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प्रश्न :
भारत की अंडरवाटर सुरक्षा को विश्वनीय बनाने के लिये परंपरागत और परमाणु चालित पनडुब्बियों का विकास अपरिहार्य है। समीक्षा करें।
12 Dec, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकीउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- परंपरागत और परमाणु पनडुब्बियों की विशेषताएँ बताते हुए भारतीय परिप्रेक्ष्य में इनकी आवश्यकता को समझाएँ।
- चीन की पानी के भीतर क्षमता से तुलना करते हुए समुद्र में भारत के लिये बढ़ रही चुनौतियों का उल्लेख करें।
- निष्कर्ष
भारत को अपनी लंबी समुद्री सीमा की निगरानी रखने और युद्ध जैसी परिस्थितियों में समुद्री सीमा की सुरक्षा करने के लिये पानी के भीतर (अंडरवाटर) अपनी क्षमता में वृद्धि करने की आवश्यकता है। इसके लिये भारत को परंपरागत और परमाणु दोनों प्रकार की पनडुब्बियों का विकास करने की आवश्यकता है। पनडुब्बियों के विकास की अपरिहार्यता को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं-
- परंपरागत पनडुब्बी
इनका संचालन अपेक्षाकृत सरल होता है और इनमें शीघ्र तैनाती की क्षमता होती है।
डीज़ल-इलेक्ट्रिक ईंधन पर संचालित होने के कारण आसान ईंधन उपलब्धता भी इनकी एक विशेषता है।
इनका इस्तेमाल समुद्री निगरानी में किया जा सकता है।
इनके साथ एक नकारात्मक पहलू यह है कि ये लंबे समय तक पानी के अंदर नहीं रह सकतीं। इन्हें बैटरी को चार्ज करने के लिये सतह पर आना पड़ता है। - परमाणु पनडुब्बी
वर्तमान में बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत को परंपरागत के साथ-साथ परमाणु पनडुब्बियों की भी आवश्यकता है।
ये पनडुब्बियाँ ज़्यादा बड़े हथियार ले जाने में सक्षम हैं।
ये अधिक समय तक पानी के अंदर रह सकती हैं। अतः युद्ध काल में इनकी महत्ता और अधिक बढ़ जाती है। - इसके अलावा गहरे समुद्री संसाधनों में निहित भूगर्भीय, पर्यावरणीय और सामरिक हितों की रक्षा के लिये देश को अपनी अंडरवाटर क्षमता बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।
हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ती चीन की गतिविधियों को संतुलित करने के लिये भारत को भी अपने पनडुब्बी बेड़े में इज़ाफा करने की जरूरत है। वर्तमान में चीन के पास 11 परमाणु और 57 परंपरागत पनडुब्बियाँ हैं, जबकि भारत 1 परमाणु (आईएनएस अरिहंत) और लगभग 13 परंपरागत पनडुब्बियों की क्षमता के साथ चीन से काफी पीछे है। कुछ समय पहले चीन की पनडुब्बियों का श्रीलंका और पाकिस्तान के बंदरगाहों पर देखा जाना भारत के लिये चिंता की बात है। वर्तमान में भारत प्रोजेक्ट-75 के अंतर्गत परंपरागत पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है।
इन दोनों प्रकार की पनडुब्बियों के अतिरिक्त भारत को एक Deep Submergence Rescue Vessel (DSRV) निर्मित करने की भी आवश्यकता है, जिसमें पनडुब्बियों में दुर्घटना के दौरान बचाव कार्यों को संपन्न कराने की विशेषज्ञता हो।
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