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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति को देखते हुए आपकी राय में कौन-सा एक बेहतर विकल्प है- राज्य आधारित या बाज़ार आधारित? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दें।

    18 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा :

    • राज्य-आधारित विकास के लाभ।
    • इसकी कमियाँ।
    • बाजार आधारित विकास के लाभ।
    • इसकी कमियाँ।
    • निष्कर्ष।

    राज्य-निर्देशित अर्थव्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जहाँ राज्य या सहकारी समितियों के उत्पादन के लिये उत्तरदायी होते हैं। लेकिन आर्थिक गतिविधियों को निर्देशित योजना के रूप में किसी सरकारी एजेंसी या मंत्रालय द्वारा निर्देशित किया जाता है, जबकि मुक्त बाजार एक ऐसी प्रणाली है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य खुले बाज़ार और उपभोक्ताओं द्वारा निर्धारित किये जाते हैं, जिसमें आपूर्ति और मांग में सरकार द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जाता है। बाज़ार अर्थव्यवस्था में उन्हीं उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन होता है जिनकी बाज़ार में माँग है। इसमें वही वस्तुएँ उत्पादित की जाती हैं जिन्हें देश के घरेलू या विदेशी बाज़ारों में लाभ के साथ बेचा जा सके।

    राज्य-आधारित विकास के लाभ-

    • ससाधनों का तर्कसंगत उपयोग।
    • उत्पादन और विकास की दिशा में राज्य के संसाधनों का संकलन।
    • विकास मुख्य रूप से जनता के लिये होता है।
    • दूरस्थ क्षेत्रों में विकास संभव होता है।
    • देश में विकास सुनिश्चित करने की नियोजित प्रक्रिया।
    • आम आदमी के हित को प्राथमिकता दी जाती है, जैसे- आवास, बिजली आपूर्ति, पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि।

    राज्य-आधारित विकास की कमियाँ-

    • मांग की आपूर्ति के बीच तालमेल का अभाव।
    • सीमित वित्तीय संसाधन।
    • निजी उद्यमिता की सीमित भूमिका।
    • प्रबंधन कौशल, प्रौद्योगिकी और निवेश की कमी।
    • वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता और मात्रा का अभाव आदि।

    बाजार आधारित विकास के लाभ-

    • बाजार आधारित विकास प्रणाली मे उद्यमिता के लिये नियामक, निवेश आकर्षित करने के लिये बेहतर नियम व माहौल होता है।
    • विदेशों से नवीन तकनीक एवं पूँजी आती है।
    • विकास लोगों को सशक्त बनाने की वह प्रक्रिया है जो उन्हें अपने कल्याण, र्प्यावरण और उनके भविष्य को सुधारने की क्षमता प्रदान करता है।

    बाजार आधारित विकास की कमियाँ-

    • सामाजिक न्याय और विकास के उद्देश्यों को नजरअंदाज करना।
    • गरीब और वंचित लोगों के हितों की उपेक्षा की जाती है।
    • 2008 में अमेरिका में आई आर्थिक मंदी के दौरान घरेलू और बाहरी कारकों की वजह से विकास में अत्यधिक अस्थिरता देखी गई।

    स्वंतत्र भारत के अनेक नेताओं और चिंतकों ने मिलकर नव-स्वतंत्र भारत के लिये पूँजीवाद तथा समाजवाद के अतिवादी रूप से बचने के लिये मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया। बुनियादी तौर पर यद्यपि उन्हें समाजवाद से सहानुभूति थी, फिर भी उन्होंने ऐसी आर्थिक प्रणाली अपनाई जो उनके विचार में समाजवाद की श्रेष्ठ विशेषताओं से युक्त, किंतु कमियों से मुक्त थीं। इसके अनुसार भारत एक ऐसा ‘समाजवादी’ समाज होगा, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्रक एक सशक्त क्षेत्रक होगा, जिसके अंतर्गत निजी संपत्ति और लोकतंत्र का भी स्थान होगा। मिश्रित अर्थव्यवस्थायों में बाज़ार उन्हीं वस्तुओं और सेवाओं को सुलभ कराता है, जिसका वह अच्छा उत्पादन कर सकता है तथा सरकार उन आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को सुलभ कराती है, जिन्हें बाज़ार सुलभ कराने में विफल रहता है और अर्थव्यवस्था का यही मॉडल वर्तमान समय में भी हमारे लिये सबसे उपयुक्त है।

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