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प्रश्न :
वर्तमान में किसानों की उत्पादन संबंधी समस्याओं के संदर्भ में न्यूनतम समर्थन मूल्य एक प्रभावी कदम सिद्ध हो रहा है। विवेचना कीजिये।
20 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
प्रश्न-विच्छेद
- किसानों की उत्पादन संबंधी समस्याओं के संदर्भ में न्यूनतम समर्थन मूल्य की विवेचना करनी है।
हल करने का दृष्टिकोण
- प्रभावी भूमिका लिखते हुए किसानों की उत्पादन संबंधी समस्याओं के संदर्भ में न्यूनतम समर्थन मूल्य को एक प्रभावी कदम के रूप में बताएँ।
- तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण के उद्देश्यों को बताते हुए इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव को स्पष्ट करें।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य से जुड़े मुद्दों की चर्चा करें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
किसी उत्पादन वर्ष में फसलों के अत्यधिक उत्पादन के कारण उत्पादों के मूल्यों में आई गिरावट के विरुद्ध सरकार द्वारा किसानों के हितों की रक्षार्थ फसल उत्पादन को खरीदने के लिये जो मूल्य निर्धारित किया जाता है वह न्यूनतम समर्थन मूल्य है। कृषि लागत और मूल्य आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर कुछ फसलों के बुवाई सत्र के आरंभ में न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की जाती है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य का मुख्य उद्देश्य किसानों को मजबूरन सस्ती कीमत पर फसल बेचने से बचाना और सार्वजनिक वितरण के लिये खाद्यान्न की अधिप्राप्ति करना है। यदि किसी फसल का बंपर उत्पादन होने या बाज़ार में उसकी अधिकता होने के कारण उसकी कीमत घोषित मूल्य की तुलना में कम हो जाती है तो सरकारी एजेंसियाँ किसानों की अधिकांश फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद लेती है। इसके सकारात्मक व नकारात्मक दोनों प्रभाव देखे गए हैं।
सकारात्मक प्रभाव
- खाद्यान्न और अन्य फसलों की कीमतों की स्थिरता,
- नई तकनीक को किसानों में लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका,
- एक सामाजिक कदम के रूप में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका तथा निर्धन लोगों के बीच आमदनी का विकेंद्रीकरण,
- कृषि की व्यापार शर्तों को उचित स्तर पर बनाए रखने में मदद।
नकारात्मक प्रभाव
- मोटे अनाज और दालों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।
- इसका लाभ कुछ विशेष क्षेत्र और कुछ विशेष लोगों को अधिक मिला है। भारत सरकार द्वारा कुछ राज्यों, जैसे कि पंजाब, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र आदि में अधिग्रहण के कार्यक्रम को विशेष वरीयता दी गई है। इससे प्रादेशिक असंतुलन के बढ़ने के साथ-साथ आय की विषमताओं में बढ़ोतरी हुई है।
- सार्वजनिक खरीद केंद्रों का पर्याप्त मात्रा में न होना।
- सरकारी नीति के कारण पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। गेहूँ, चावल आदि के निरंतर एमएसपी बढ़ने से रासायनिक उर्वरक आदि के अत्यधिक उपयोग को बढ़ावा मिला है।
- उपर्युक्त प्रभावों के अतिरिक्त इससे जुड़े कुछ मुद्दे भी हैं, जैसे-
♦ न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा ने बाज़ार को विकृत कर दिया है। यह धान और गेहूँ के लिये प्रभावी है, जबकि अन्य फसलों के लिये केवल सांकेतिक है।
♦ एमएसपी को बाज़ार की गतिशीलता के साथ जोड़ने की बजाय, किसानों के हितों के अनुरूप बढ़ाने से कीमत निर्धारण प्रणाली विकृत हो गई है।
♦ एमएसपी विभिन्न वर्गों के बीच अंतर नहीं करता है, बल्कि यह एक उचित औसत गुणवत्ता को संदर्भित करता है।
♦ उच्च गुणवत्ता की फसल को आधार मूल्य पर बिक्री के लिये बाध्य करने से किसानों और व्यापारियों दोनों की स्थिति एक जैसी हो जाती है।
♦ ऐसी नीतियाँ किसानों को अपने मानकों को कम करने और निम्न किस्मों के उत्पादन के लिये प्रेरित करेंगी जिससे क्रेता कम गुणवत्ता वाले खाद्यान्न के लिये उच्च मूल्य का भुगतान करने को अनिच्छुक होगा और इससे गतिरोध उत्पन्न होगा।
♦ एमएसपी से धान और गेहूँ की खरीद तय की गई है, जो सीधे पीडीएस से जुड़ी है और एक अच्छी व्यवस्था की तरह कार्य करती है लेकिन यह कुछ विशिष्ट फसलों तक सीमित होती है।
♦ एक खुली समाप्ति योजना होने पर एफसीआई के पास अधिशेष अनाज की बाढ़ आ जाती है जिससे भंडारण और अपव्यय की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य भले ही किसानों की उत्पादन संबंधी समस्याओं का निदान करता है परंतु अर्थव्यवस्था को व्यापक रूप से प्रभावित करता है। अतः इस संबंध में अभी और सुधार किये जाने बाकी हैं।
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