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प्रश्न :
नियामक निकाय यद्यपि आवश्यक हैं परंतु इनकी ‘स्वतंत्रता बनाम जवाबदेही’ के मुद्दे से इतर अन्य समस्याएँ भी इन पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। कथन को स्पष्ट करते हुए इन समस्याओं के हल से संबंधित सुझाव दें।
25 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
उत्तर की रुपरेखा :
- नियामक निकायों की आवश्यकता संबंधी संक्षिप्त विवरण लिखें ।
- नियामकों के समक्ष विभिन्न समस्याओं का वर्णन करें।
- इन समस्याओं के हल संबंधी सुझावों का विवरण दें।
भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था, जिसमें पूंजीवादी विकास के साथ-साथ समाजवादी लोक कल्याण की भावना निहित है, में बाजार पर नियंत्रण हेतु तथा विविधता से परिपूर्ण समाज की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिये एवं अन्य राजनीतिक और पर्यावरणीय मुद्दों के निदान हेतु निष्पक्ष एवं प्रभावी व्यवस्था बनाए जाने के लिये नियामक निकायों का गठन किया गया है।
परंतु इन नियामकों में राजनीतिक हस्तक्षेप जहाँ इनकी स्वतंत्रता बाधित कर इनके निष्पादन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है वहीं, इनकी गैर-जवाबदेही इनकी प्रासंगिकता से संबंधित समस्या को जन्म देती है। इन दोनों के अतिरिक्त निम्नलिखित समस्याएँ भी इनकी उपयोगिता पर सवाल उठाती हैं।
निकायों द्वारा बनाए गए विनियमों को कानूनी दर्जा प्राप्त होता है। कानून बनाने का दायित्व निर्वाचित सदस्यों का होता है, अतः गैर-निर्वाचित सदस्यों द्वारा बनाए गए विनियम आधारित कानून अपेक्षाकृत कम पारदर्शी होते हैं।
विभिन्न नियामकों के बीच क्षेत्राधिकार को लेकर टकराव की समस्या है।
किसी क्षेत्र विशेष से संबंधित न्यायाधिकरणों की स्थापना न्यायिक प्रशासन की सर्वोच्चता एवं एकीकृत ढाँचे को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
विभिन्न विभागों एवं संबंधित नियामकों में तालमेल का अभाव भी इनकी प्रभावशीलता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
उपरोक्त समस्याओं के निदान के बिना नियामकों के कार्य निष्पादन में सुधार अपेक्षित नहीं है। अतः इनके सुधार हेतु निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं:
- एक सशक्त पारदर्शी समिति की व्यवस्था की जाए जो नियामकों द्वारा बनाए गए कानूनों की समीक्षा कर सके।
- नियामकों के कार्यों एवं उनके गठन में अनावश्यक राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिये। नियामक को वित्तीय रूप से स्वतंत्र होने के साथ-साथ उनके पास कर्मचारियों की नियुक्ति तथा प्रबंधन से संबंधित विवेकाधिकार भी होना चाहिये।
- नियामकों की जवाबदेही तय करने हेतु विशेष कदम उठाए जाने चाहिये, जैसे-इनकी रिपोर्ट संसद की स्थायी समीति के समक्ष रखी जानी चाहिये तथा इनके कार्यों की व्याख्या जनता के समक्ष की जानी चाहिये।
- विभागों एवं नियामकों के मध्य सदस्यों एवं उनके कार्य विभाजन तथा सहयोग द्वारा बेहतर तालमेल बनाया जा सकता है।
अतः स्पष्ट है कि नियामकों की स्वतंत्रता एवं उनकी जवाबदेही के साथ-साथ उनकी अन्य समस्याओं को हल कर उन्हें भारतीय लोकतंत्र के सशक्तीकरण का विशेष माध्यम बनाया जा सकता है जो कि समस्याओं का निष्पक्ष हल करने में सक्षम होंगे।
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