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प्रश्न :
भारतीय समाज में विभिन्न डेरों और आश्रमों के प्रति अंधश्रद्धा और आकर्षण बढ़ता जा रहा है। समालोचनात्मक टिप्पणी करें।
08 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- भारतीय समाज के धार्मिक व आध्यात्मिक स्वरूप की ऐतिहासिकता का परिचय दें।
- वर्तमान में विभिन्न धार्मिक संस्थानों और संप्रदायों के उदय से संबंधित तथ्य प्रस्तुत करें।
- डेरों और आश्रमों के प्रभाव में वृद्धि के कारणों का उल्लेख करें।
- निष्कर्ष
भारत विविध संस्कृतियों और विभिन्न धर्मों व विश्वासों वाला देश है। प्राचीन काल से ही यहाँ के लोग मानसिक शांति के लिये विभिन्न धार्मिक संस्थाओं और व्यक्तियों की शरण में जाते रहे हैं। भारत की आध्यात्मिक ज़मीन तो इतनी उर्वर रही है कि उपनिषदों के ऋषियों से लेकर बुद्ध, महावीर, कबीर, रैदास, तिरुवल्लुवर और नानक जैसे संतों और फकीरों ने यहाँ के समाज को समय-समय पर मानवता की राह दिखाई है।
आधुनिक तकनीकी युग में विभिन्न सुख-सुविधाओं और भौतिक संरचनाओं के विकास के बावज़ूद व्यक्ति का पारिवारिक और सामाजिक जीवन जटिल होता गया है। विभिन्न व्यक्तिगत, सामाजिक, मानसिक तथा नैतिक समस्याओं से जूझ रहे व्यक्तियों और समुदायों को जब अपनी समस्याओं का हल नहीं मिल पाता तो वे किसी ऐसे व्यक्ति व उसकी संस्था की शरण में चले जाते हैं जो स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि बताता है। पिछले कुछ समय से भारत में विभिन्न धार्मिक बाबाओं-संतों के डेरों और आश्रमों की संख्या में इज़ाफा हुआ है। इनकी वृद्धि के पीछे निम्नलिखित कारण हैं-
- भारतीय संस्कृति और समाज ने प्राचीन काल से ही नए धर्मों और आध्यात्मिक मान्यताओं का स्वागत किया है। ऐसे में इन नए धार्मिक संस्थानों और धार्मिक व्यक्तित्वों के विकास में कोई बाधा नहीं आई।
- इन आश्रमों और डेरों द्वारा दी जाने वाली निःशुल्क स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा, आपदा राहत सुविधाओं, नशे की लत छुड़वाना आदि परोपकारी गतिविधियों ने कई लोगों को इनकी ओर आकर्षित किया है। गरीबी में फंसे लोग यहाँ वित्तीय सहायता पाने की लालसा में खिंचे चले आते हैं।
- इन आश्रमों के बहुसंख्यक अनुयायी गरीब और अशिक्षित वर्ग से आते हैं। कुछ शिक्षित और संपन्न वर्ग के लोग भी इनके अनुयायी हैं। चमत्कारों और समस्या के पूर्ण समाधान के दावों के कारण बड़ी संख्या में लोग इनकी ओर आकर्षित होते हैं। तर्कसंगत सोच की कमी के कारण और अंधविश्वास के चलते लोग ईश्वर के इन तथाकथित दूतों के प्रभाव में आ जाते हैं।
- इन धार्मिक संस्थाओं के राजनीतिक नेताओं से गठजोड़ के चलते ये संस्थाएँ वोट बैंक की राजनीति का केंद्र बन गई हैं। यही कारण है कि इनके गलत कृत्यों को समय-समय पर राजनीतिक संरक्षण मिलता आया है।
- जातिगत और अन्य प्रकार के भेद-भावों के कारण व्यक्ति जब अपने अस्तित्व को ढूंढ रहा होता है तो उसे इन आश्रमों की शरण में एक नई पहचान मिलती है। वह अपनी सामाजिक स्थिति को परिभाषित कर पाता है। निचली जातियों के लोग अपने ऊपर लगे हीनता और दलित कलंक को मिटाने के लिये ऐसी अलग धार्मिक पहचान में शामिल हो जाते हैं।
- इन संस्थानों की संदिग्ध गतिविधियों पर सरकारें मौन रहती हैं, बल्कि इसके विपरीत वे इन्हें कई प्रकार की छूट देती हैं। ये संस्थान सरकार द्वारा पैदा किये निर्वात (जगह) को भरते हैं और लोगों के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं की व्यवस्था कर उनमें सुरक्षा की भावना को बढ़ाते हैं।
हालाँकि देश में ऐसे कई आश्रम हैं जो वास्तव में दलितों और गरीबों के उत्थान के लिये कार्य करते हैं। ये आश्रम मानवता, भाई-चारे, धर्मनिरपेक्षता एवं सह-अस्तित्व की भावना को बढ़ावा देते हैं। रामकृष्ण मिशन आश्रम जैसी संस्थाएँ छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जैसे सुदूर जनजातीय क्षेत्रों में पिछड़े व जनजातीय लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के लिये काम करती हैं।
डेरों और आश्रमों की होड़ के इस माहौल में आवश्यकता है कि सरकारें इनकी संदिग्ध गतिविधियों पर निगरानी रखें और ज़रुरत पड़ने पर कार्यवाही करें। विभिन्न चुनावी और प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से इस धार्मिक-राजनीतिक गठजोड़ को भी तोड़ने के प्रयास किये जाने चाहिये। साथ ही लोगों को भी जागरूक करना होगा, ताकि वे तर्कसंगत सोच को अपनाएं और ऐसे तथाकथित ईश्वरीय दूतों के प्रभाव में न आएँ।
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