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प्रश्न :
प्रश्न कला, साहित्य और वास्तुकला के प्रति अकबर के संरक्षण ने एक विशिष्ट इंडो-इस्लामिक संकलन संवाद को बढ़ावा दिया। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
18 Nov, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
दृष्टिकोण:
- सम्राट अकबर के शासनकाल के संक्षिप्त विवरण से उत्तर लिखना प्रारंभ कीजिये।
- कला, साहित्य और वास्तुकला के संरक्षक के रूप में अकबर की भूमिका का उल्लेख कीजिये।
- एक विशिष्ट भारतीय-इस्लामी सांस्कृतिक संकलन को आयाम देने में अकबर की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
सम्राट अकबर (सन् 1556-1605) को उनके दूरदर्शी नेतृत्व और सांस्कृतिक समावेशिता के माध्यम से अपने विशाल साम्राज्य को एकीकृत करने के प्रयासों के लिये जाना जाता है। उसके शासनकाल ने कलात्मक और बौद्धिक उत्कर्ष के स्वर्ण युग को चिह्नित किया, जिसने एक विशिष्ट इंडो-इस्लामिक सांस्कृतिक संकलन को बढ़ावा दिया जिसमें फारसी, मध्य एशियाई और भारतीय परंपराओं का मिश्रण था।
मुख्य भाग:
कला, साहित्य और वास्तुकला का संरक्षण:
- कला:
- मुगल लघु चित्रकला का विकास: उसने लघु चित्रकला में फारसी और भारतीय कलात्मक परंपराओं के मिश्रण को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया। उसके दरबार में फारस के साथ-साथ भारत के प्रतिभाशाली कलाकारों को नियुक्त किया गया, जिससे एक अनूठी कलात्मक शैली का विकास हुआ।
- दसवंथ: रज़्मनामा के प्रमुख चित्रकार, जटिल और कल्पनाशील कार्य के लिये विख्यात।
- बसावन: यथार्थवाद तथा विस्तार के स्वामी, अकबरनामा और अन्य पांडुलिपियों में योगदान दिया।
- वस्त्र कला और शिल्प: अकबर ने वस्त्र और हस्तशिल्प को भी प्रोत्साहन दिया, जहाँ पुष्प डिज़ाइन जैसे फारसी रूपांकनों को भारतीय डिज़ाइनों, जैसे मोर एवं कमल के साथ सम्मिलित किया गया।
- मुगल लघु चित्रकला का विकास: उसने लघु चित्रकला में फारसी और भारतीय कलात्मक परंपराओं के मिश्रण को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया। उसके दरबार में फारस के साथ-साथ भारत के प्रतिभाशाली कलाकारों को नियुक्त किया गया, जिससे एक अनूठी कलात्मक शैली का विकास हुआ।
- साहित्य:
- अनुवाद परियोजनाएँ: अकबर ने फारसी को आधिकारिक दरबारी भाषा बनाया, लेकिन भारतीय कार्यों के अनुवाद का भी समर्थन किया, जिससे विभिन्न संस्कृतियों में ज्ञान सुलभ हो गया।
- रामायण, महाभारत और पंचतंत्र जैसे ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया गया, जिससे विद्वानों को भारतीय दार्शनिक तथा साहित्यिक परंपराओं से जुड़ने का अवसर मिला।
- उल्लेखनीय विद्वान: अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फज़ल ने अकबरनामा और आइन-ए-अकबरी की रचना की, जिसमें अकबर की नीतियों का दस्तावेज़ीकरण किया गया तथा फारसी गद्य को भारतीय साहित्य के साथ संकलित किया गया।
- अनुवाद परियोजनाएँ: अकबर ने फारसी को आधिकारिक दरबारी भाषा बनाया, लेकिन भारतीय कार्यों के अनुवाद का भी समर्थन किया, जिससे विभिन्न संस्कृतियों में ज्ञान सुलभ हो गया।
- वास्तुकला:
- बुलंद दरवाज़ा और दीवान-ए-खास जैसी इमारतों में फारसी मेहराब, भारतीय छत्र (गुंबददार मंडप) एवं स्थानीय परंपराओं से प्रेरित जटिल नक्काशी प्रदर्शित होती है।
- फतेहपुर सीकरी: अकबर द्वारा निर्मित फतेहपुर सीकरी शहर इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का प्रमाण है।
- सांस्कृतिक संकलन
- एक समन्वयात्मक धर्म का निर्माण: दीन-ए-इलाही, जिसका अर्थ है "ईश्वर का धर्म", अकबर द्वारा एक नया, सार्वभौमिक विश्वास बनाने का प्रयास था, जिसने विभिन्न धार्मिक परंपराओं– मुख्य रूप से इस्लाम, हिंदू धर्म और पारसी धर्म - के तत्त्वों को एक ही मत की विचारधारा में एकीकृत किया।
- धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा: अकबर की सुलह-ए-कुल (सभी के साथ शांति) की नीति ने विविध परंपराओं के सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित किया।
- अंतर-धार्मिक दार्शनिक संवाद: अकबर की बौद्धिक जिज्ञासा ने इबादतखाना वाद-विवाद को जन्म दिया, जहाँ विभिन्न धर्मों के विद्वान विचारों का आदान-प्रदान करते थे।
निष्कर्ष
अकबर द्वारा शुरू किये गए इंडो-इस्लामिक संकलन ने भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को समृद्ध किया और समकालीन कला, साहित्य एवं वास्तुकला को प्रभावित करना जारी रखा। उनके समावेशी दृष्टिकोण ने राष्ट्रीय एकीकरण में योगदान दिया और एक विविध समाज में सांस्कृतिक समामेलन की क्षमता को उजागर किया।
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