- फ़िल्टर करें :
- भूगोल
- इतिहास
- संस्कृति
- भारतीय समाज
-
प्रश्न :
भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर असहयोग आंदोलन के प्रभाव की चर्चा करते हुए इसकी रणनीतियों एवं परिणामों का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
25 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत असहयोग आंदोलन से कीजिये।
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर असहयोग आंदोलन के प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
- असहयोग आंदोलन की रणनीतियों और परिणामों का विश्लेषण कीजिये।
- तद्नुसार उचित निष्कर्ष लिखिये।
भूमिका:
असहयोग आंदोलन (1920-1922) ने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गए स्वतंत्रता के लिये भारत के संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित किया। इसका उद्देश्य अहिंसक प्रतिरोध, बहिष्कार और सविनय अवज्ञा के माध्यम से ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करना था।
मुख्य भाग:
असहयोग आंदोलन की रणनीतियाँ:
- ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार:
- भारतीयों को ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करने और इसके स्थान पर खादी (हाथ से बुने हुए वस्त्र) अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
- इससे भारत में ब्रिटिश कपड़ा निर्यात में उल्लेखनीय गिरावट आई, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई। इसने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी उद्योगों के विकास को बढ़ावा दिया।
- ब्रिटिश संस्थानों से वापसी:
- लोगों से सरकारी नौकरियों, स्कूलों और कॉलेजों से इस्तीफा देने का आग्रह किया गया।
- इससे ब्रिटिश प्रशासन और संस्थाएँ कमज़ोर हो गईं, जिससे उनका शासन बाधित हो गया।
- इसने भारतीयों की स्वतंत्रता के लिये बलिदान देने की इच्छा को प्रदर्शित किया।
- सविनय अवज्ञा:
- अहिंसक प्रतिरोध और अवज्ञा प्रमुख रणनीति थी।
- उदाहरणों में चौरी-चौरा की घटना शामिल है, जहाँ प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए, जिसके कारण गांधीजी को अहिंसा बनाए रखने के लिये कुछ समय के लिये आंदोलन स्थगित करना पड़ा।
- हिंदू और मुसलमानों के बीच एकता:
- इस आंदोलन का उद्देश्य सांप्रदायिक विभाजन को समाप्त करना और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना था।
- इस एकता ने राष्ट्रीय आंदोलन को मज़बूत किया और भारतीयों में एकजुटता की भावना उत्पन्न की।
असहयोग आंदोलन का प्रभाव:
- राजनीतिक जागृति:
- इस आंदोलन ने भारतीयों में राजनीतिक चेतना और भागीदारी की लहर जागृत की।
- किसानों और श्रमिकों सहित समाज के विभिन्न वर्गों के लोग सक्रिय रूप से आंदोलन में शामिल हुए।
- ब्रिटिश प्रतिक्रिया:
- ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को रोकने के लिये दमनकारी उपाय लागू किये, जिससे बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ और दमन हुआ।
- इसने भारतीय जनता की ताकत और दृढ़ संकल्प को उजागर किया।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
- इस आंदोलन ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया, विशेषकर ब्रिटेन में, जहाँ इसने स्वतंत्रता के लिये भारतीय आकांक्षाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाई।
- इससे ब्रिटिश सरकार पर भारत की मांगों पर विचार करने का दबाव बढ़ गया।
- नये नेताओं का उदय:
- इस आंदोलन ने जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे नए नेताओं को प्रमुखता से उभरने के लिये एक मंच प्रदान किया।
- इन नेताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन के बाद के चरणों में महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं।
असहयोग आंदोलन के परिणाम:
- ब्रिटिश नीति में परिवर्तन:
- इस आंदोलन ने अंग्रेज़ों को भारत में उनकी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिये विवश किया।
- वर्ष 1927 में संवैधानिक सुधारों की सिफारिश करने के लिये साइमन कमीशन की नियुक्ति की गई, हालाँकि भारतीयों ने इसका बहिष्कार किया।
- भारतीय राजनीति में बदलाव:
- इस आंदोलन से भारतीय राजनीति में अधिक मुखर और समावेशी राष्ट्रवाद की ओर बदलाव आया।
- इसने सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे भविष्य के जन आंदोलनों की नींव रखी।
- विरासत:
- असहयोग आंदोलन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसक प्रतिरोध की एक स्थायी विरासत प्रस्तुत की।
- इसने संयुक्त राज्य अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग जूनियर सहित विश्व भर के भावी नेताओं और आंदोलनों को प्रेरित किया।
निष्कर्ष:
असहयोग आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा को आकार दिया तथा भारतीय समाज और राजनीति पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा। इसने स्वतंत्रता के लिये भारतीयों के बीच अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति और उद्देश्य की एकता को प्रदर्शित किया।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print