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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    आप एक ऐसे क्षेत्र में ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में कार्यरत हैं जहाँ वनों की कटाई एक गंभीर मुद्दा बन गया है। यहाँ का स्थानीय समुदाय अपनी आजीविका के लिये वन संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जिनमें ईंधन एवं घर निर्माण के लिये लकड़ी सहित आजीविका के लिये अन्य वन उत्पादों का संग्रह करना, जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं। हालाँकि यहाँ पर बड़े पैमाने पर होने वाली वनों की कटाई से पारिस्थितिकी असंतुलन होने के साथ विभिन्न समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। वनों की कटाई में वृद्धि विभिन्न कारकों से प्रेरित है, जिसमें अवैध कटाई, कृषि और बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु भूमि का अतिक्रमण करना शामिल है। इसके परिणामस्वरूप जैव विविधता के नुकसान एवं मृदा के क्षरण के साथ जल चक्र बाधित हुआ, जिससे कृषि एवं स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

    ज़िला मजिस्ट्रेट के रूप में आपको इन समस्याओं का समाधान करने एवं पर्यावरण संरक्षण के साथ समुदायों की ज़रूरतों को संतुलित करने वाले स्थायी समाधान खोजने का कार्य सौंपा गया है।

    इस परिदृश्य में वनों की कटाई से संबंधित मुद्दों का विश्लेषण करते हुए स्थानीय समुदायों तथा पर्यावरण संबंधी चिंताओं का समाधान करने हेतु व्यापक कार्ययोजना बताइये।

    22 Mar, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • वनों की कटाई और मामले के अध्ययन के तथ्यों का परिचय देकर अपने उत्तर की शरूआत कीजिये।
    • केस स्टडी में शामिल नैतिक मुद्दों और विभिन्न हितधारकों पर भी चर्चा कीजिये।
    • इसके अलावा, वनों की कटाई से संबंधित समस्याओं और मुद्दों का वर्णन कीजिये।
    • दोनों समुदायों और पर्यावरण की चिंताओं को संबोधित करने वाली एक व्यापक कार्य योजना का प्रस्ताव दीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    वनों की कटाई से तात्पर्य मुख्य रूप से कृषि विस्तार, शहरीकरण, कटाई और बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु जंगलों का बड़े पैमाने उन्मूलन या उन्हें नष्ट करने से है। यह जैवविविधता, जलवायु और मानव आजीविका पर दूरगामी प्रभावों वाला एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दा है।

    केस स्टडी के तथ्य:

    • वन संसाधनों पर भारी निर्भरता: स्थानीय समुदाय ईंधन हेतु लकड़ी और गैर-लकड़ी वन उत्पादों सहित आजीविका के लिये वनों पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं।
    • वनों की कटाई: बुनियादी ढाँचे के विकास और कृषि के लिये बड़े पैमाने पर वनों की अवैध रूप से कटाई।
    • पारिस्थितिक असंतुलन: वनों की कटाई से जैवविविधता का नुकसान, मिट्टी का क्षरण और जल चक्र बाधित होता है, जिससे कृषि एवं पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

    मुख्य भाग:

    शामिल हितधारक:

    • स्थानीय समुदाय: वन संसाधनों पर निर्भर।
    • वन विभाग: संरक्षण और प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार।
    • सरकार: नीतियाँ निर्धारित कर संसाधन उपलब्ध कराती है।
    • गैर सरकारी संगठन: संरक्षण प्रयासों में शामिल।
    • व्यवसाय: वन संसाधनों की कटाई या उपयोग में शामिल।
    • शैक्षणिक संस्थान: अनुसंधान करना और विशेषज्ञता प्रदान करना।

    नैतिक मुद्दों:

    • पर्यावरण न्याय:
      • संसाधन उपभोग में समानता: पारिस्थितिक अखंडता की रक्षा करते हुए वन संसाधनों तक समान पहुँच सुनिश्चित करना।
      • अंतर-पीढ़ीगत समानता: स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र और संसाधनों तक पहुँचने के लिये भावी पीढ़ियों के अधिकारों पर विचार करना।
    • स्वदेशी अधिकार:
      • पारंपरिक ज्ञान: संरक्षण के प्रयास हेतु स्वदेशी ज्ञान और प्रथाओं को अपनाना एवं उन्हें शामिल करना।
      • भूमि अधिकार: वन क्षेत्रों पर स्वदेशी समुदायों के भूमि अधिकारों और संप्रभुता को बनाए रखना।
    • उत्तरदायित्त्व और जवाबदेहिता:
      • सरकारी उत्तरदायित्त्व: पर्यावरण नियमों को लागू करने और अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाने में सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करना।
      • व्यक्तिगत उत्तरदायित्त्व: सतत् संसाधन उपयोग और संरक्षण के प्रति व्यक्तिगत उत्तरदायित्त्व को प्रोत्साहित करना।

    वनों की कटाई से संबंधित समस्याएँ और मुद्दे:

    • पर्यावरणीय प्रभाव:
      • जैवविविधता का ह्रास: वनों की कटाई से विभिन्न प्रजातियों के आवास में कमी आती है, जिससे जैवविविधता का ह्रास होता है।
      • मिट्टी का कटाव: वनों की कटाई से मिट्टी का कटाव होता है, जिससे कृषि उत्पादकता और पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
      • बाधित जल चक्र: वनों की कटाई से स्थानीय जल विज्ञान परिवर्तित हो जाता है, जिससे पानी की उपलब्धता में कमी आती है और बाढ़ एवं सूखे का खतरा बढ़ जाता है।
    • सामाजिक प्रभाव:
      • आजीविका संबंधी चुनौतियाँ: स्थानीय समुदाय अपनी आजीविका के लिये वन संसाधनों पर निर्भर रहते हैं, जिनमें ईंधन की लकड़ी, लकड़ी और गैर-लकड़ी वन उत्पाद शामिल हैं। वनों की कटाई से उनकी आजीविका प्रभावित होती है।
      • स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे: वनों की कटाई बढ़ने से वायु और जल प्रदूषण हो सकता है, जिससे समुदायों के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
    • आर्थिक प्रभाव:
      • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का नुकसान: वनों की कटाई से वनों द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी सेवाओं, जैसे- कार्बन पृथक्करण, जल शोधन और मिट्टी की उर्वरता में कमी आती है।
      • पर्यटन पर प्रभाव: वनों की कटाई पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
    • कानूनी और शासन संबंधी मुद्दे:
      • अवैध कटाई: अनियमित रूप से वनों की कटाई संरक्षण संबंधी प्रयासों को कमज़ोर करती है।
      • भूमि अधिक्रमण: कृषि उद्देश्यों के लिये वन भूमि पर अधिक्रमण से वन क्षेत्र में कमी आती है।
      • प्रवर्तन का अभाव: वन कानूनों और विनियमों के कमज़ोर कार्यान्वयन से वनों की कटाई बढ़ जाती है।
    • कृषि हेतु अधिक्रमण:
      • जनसंख्या के बढ़ते दबाव और कृषि योग्य भूमि की मांग के कारण तेज़ी से कृषि विस्तार के कारण वन क्षेत्रों में अधिक्रमण हो रहा है।
      • पारंपरिक स्थानांतरण खेती पद्धतियाँ समस्या को और अधिक तीव्र करती हैं, जिससे वनों की कटाई का चक्र कायम हो जाता है।
    • बुनियादी ढाँचे का विकास:
      • सड़क, बाँध और खनन कार्यों जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये अक्सर वन भूमि के बड़े हिस्से को साफ करने, पारिस्थितिक तंत्र को खंडित करने एवं वनों की कटाई में तेज़ी लाने की आवश्यकता होती है।
      • पर्यावरण संरक्षण के साथ विकास की ज़रूरतों को संतुलित करना एक जटिल चुनौती प्रस्तुत करता है।

    व्यापक कार्य योजना:

    • सामुदायिक सहभागिता एवं सशक्तीकरण:
      • हितधारकों से परामर्श: वन प्रबंधन और संरक्षण के संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में स्थानीय समुदायों को शामिल करना।
      • क्षमता निर्माण: समुदायों को सतत् आजीविका प्रथाओं को अपनाने के लिये सशक्त बनाने हेतु प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान करना।
        • भारत में संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) कार्यक्रम, जहाँ स्थानीय समुदाय वन प्रबंधन में शामिल हैं, ने वन संरक्षण और आजीविका में सुधार किया है।
        • नेपाल में सामुदायिक वानिकी कार्यक्रम ने स्थानीय समुदायों को वन संसाधनों को स्थायी रूप से प्रबंधित करने के लिये सशक्त बनाया है, जिससे आजीविका और वन संरक्षण में सुधार हुआ है।
    • विधि और नीतिगत सुधार:
      • प्रवर्तन को मज़बूत करना: अवैध कटाई और अतिक्रमण को रोकने के लिये निगरानी एवं प्रवर्तन तंत्र में वृद्धि करना।
      • भूमि के उपयोग संबंधी योजना: सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं को संबोधित करते हुए संरक्षण को प्राथमिकता देने वाली व्यापक भूमि-उपयोग संबंधी योजनाएँ विकसित करना।
        • ब्राज़ीलियाई अमेज़न में वनों की कटाई को संबोधित करने वाला सस्टेनेबल अमेज़न प्लान (PAS) इस दृष्टिकोण का एक व्यापक उदाहरण है।
          • सरकारी एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों और स्वदेशी समुदायों को शामिल करते हुए सहयोगात्मक शासन के माध्यम से, सस्टेनेबल अमेज़न प्लान स्थायी भूमि प्रबंधन, जैवविविधता संरक्षण एवं सामाजिक-आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • सतत् विकल्प:
      • वैकल्पिक आजीविका: वन संसाधनों पर निर्भरता को कम करने वाली वैकल्पिक आय-सृजन गतिविधियों जैसे इको-पर्यटन या कृषि वानिकी, को बढ़ावा देना।
      • ऊर्जा विकल्प: खाना पकाने और हीटिंग के लिये ईंधन की लकड़ी पर निर्भरता कम करने के लिये स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को अपनाना।
      • REDD+ (वनों की कटाई और वन क्षरण से उत्सर्जन को कम करना) पहल में विकासशील देशों के लिये वनों की कटाई को कम करने, स्थायी वन प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन शामिल है।
    • संरक्षण और पुनर्वनीकरण:
      • वनरोपण और पुनर्वनीकरण: वनों की कटाई को कम करना, अनुपयुक्त वन क्षेत्रों की उचित बहाली और नए वन स्थापित करने के लिये कार्यक्रम लागू करना।
      • संरक्षित क्षेत्र प्रबंधन: जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिये संरक्षित क्षेत्रों के प्रबंधन को मज़बूत करना।
        • अफ्रीका में ग्रेट ग्रीन वॉल जैसी परियोजनाओं का उद्देश्य बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और भूमि बहाली जैसे प्रयासों के माध्यम से मरुस्थलीकरण से निपटना है।
        • भारत में "हरियाली" पहल कृषि वानिकी प्रथाओं को बढ़ावा देती है, साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य और जैवविधता में सुधार के लिये पेड़ों को कृषि परिदृश्य में एकीकृत करती है।
    • जल संरक्षण के उपाय:
      • जल संसाधनों के संरक्षण और जल चक्र को बहाल करने के लिये वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम लागू करना।
      • भूजल स्तर के पुनर्वनीकरण करने के लिये चेक डैम और अन्य जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करना।
    • बुनियादी ढाँचा योजना और विकास:
      • सुनिश्चित करना कि बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं की योजना पर्यावरण की दृष्टि से सतत् तरीके से बनाई जाए, ताकि इनका वनों पर न्यूनतम प्रभाव पड़े।
      • वनों और स्थानीय पारिस्थितिकी प्रणालियों पर नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिये बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये पर्यावरणीय प्रभाव आकलन का संचालन करना।
        • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (PES) के लिये भुगतान: कोस्टा रिका का PES कार्यक्रम द्वारा भूमि मालिकों को वनों के संरक्षण हेतु भुगतान किया जाता है, जिससे वन आवरण और कार्बन पृथक्करण में वृद्धि होती है।
    • शिक्षा और जागरूकता:
      • पर्यावरण शिक्षा: संरक्षण के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये स्कूल पाठ्यक्रम और सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों में पर्यावरण शिक्षा को एकीकृत करना।
      • सूचना प्रसार: सतत् प्रथाओं और संरक्षण प्रयासों के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लिये मीडिया एवं संचार चैनलों का उपयोग करना।
    • अनुसंधान और निगरानी:
      • डेटा संग्रह: निर्णय लेने की जानकारी देने के लिये वन आवरण, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य पर नियमित निगरानी एवं डेटा संग्रह का संचालन करना।
      • अनुसंधान और नवाचार: सतत् वन प्रबंधन प्रथाओं और वैकल्पिक आजीविका विकल्पों के लिये अनुसंधान एवं नवाचार में निवेश करना।

    निष्कर्ष:

    वनों की कटाई की चुनौतियों से निपटने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो समुदायों और पर्यावरण दोनों की ज़रूरतों पर विचार कर सके। प्रभावी शासन, हितधारक जुड़ाव और सतत् प्रथाओं के माध्यम से, विकास एवं संरक्षण के बीच संतुलन हासिल करना संभव है, जिससे सभी के लिये समृद्ध तथा किफायती भविष्य सुनिश्चित हो सके।

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