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प्रश्न :
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के समक्ष विद्यमान चुनौतियों और अवसरों का विश्लेषण कीजिये। भारत इस क्षेत्र में अपने रणनीतिक और आर्थिक हितों का लाभ किस प्रकार उठा सकता है? (250 शब्द)
11 Jul, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के समक्ष उपलब्ध चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा कीजिये।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के सामरिक और आर्थिक हितों की व्याख्या कीजिये।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
"हिंद-प्रशांत" शब्द दो महासागरों के परस्पर समन्वय से संबंधित है और इस क्षेत्र में एक प्रमुख हितधारक के रूप में भारत की भूमिका निर्णायक है। चीन के उदय, शक्ति असंतुलन एवं समुद्री विवादों के कारण हिंद-प्रशांत क्षेत्र ने विभिन्न देशों का ध्यान आकर्षित किया है। भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित विभिन्न देशों ने स्थिरता बनाए रखने और साझा समृद्धि को बढ़ावा देने के लिये इस क्षेत्र की सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता को आकार देने में गहरी रुचि दिखाई है।
मुख्य भाग:
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के समक्ष चुनौतियाँ:
- भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा:
- इस क्षेत्र में प्रभाव और नियंत्रण के लिये चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसी प्रमुख शक्तियों के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा देखी जाती है, जिससे संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखने में भारत के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- समुद्री सुरक्षा:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र से महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग गुजरते हैं जिससे भारत को समुद्री डकैती, आतंकवाद और क्षेत्रीय विवादों से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और इससे समुद्री सुरक्षा एवं नेविगेशन की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
- आर्थिक एकीकरण:
- जटिल व्यापार समझौतों, नियामक बाधाओं और देशों के बीच अलग-अलग आर्थिक प्रणालियों के कारण भारत को इस क्षेत्र के साथ अपनी अर्थव्यवस्था को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- बुनियादी ढाँचे का विकास:
- कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे की कमी से भारत को आर्थिक अवसरों का फायदा उठाने में चुनौती उत्पन्न होती है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के समक्ष उपलब्ध अवसर:
- रणनीतिक साझेदारी:
- भारत के पास नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने, नेविगेशन की स्वतंत्रता को बनाए रखने और चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिये इस क्षेत्र में जापान, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे समान विचारधारा वाले देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाने के अवसर हैं।
- आर्थिक समन्वय:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापक आर्थिक संभावनाएँ हैं। भारत क्षेत्रीय व्यापार समझौतों में सक्रिय रूप से भाग लेकर, निवेश और व्यापार को बढ़ावा देकर एवं बुनियादी ढाँचे की विकास परियोजनाओं में संलग्न होकर इसका लाभ उठा सकता है।
- सुरक्षा सहयोग:
- क्षेत्रीय साझेदारों के साथ सहयोगात्मक सुरक्षा पहल और सैन्य अभ्यास से भारत के सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा मिलने के साथ साझा सुरक्षा चुनौतियों से निपटने की क्षमताओं में मज़बूती आती है।
- सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध सॉफ्ट पावर कूटनीति के अवसर प्रदान करते हैं, जो लोगों के बीच आदान-प्रदान, सांस्कृतिक सहयोग और सार्वजनिक कूटनीति प्रयासों को सुविधाजनक बनाते हैं।
रणनीतिक और आर्थिक हितों का लाभ उठाना:
- क्षेत्रीय साझेदारी को मज़बूत बनाना:
- क्वाड जैसी रणनीतिक साझेदारियों को मज़बूत करने के साथ बहुपक्षीय मंचों में शामिल होने से भारत अपने हितों पर जोर देने के साथ क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान कर सकता है।
- बुनियादी ढाँचे का विकास:
- क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में निवेश करके भारत कनेक्टिविटी, व्यापार सुविधा और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा दे सकता है, जिससे भारत के साथ इस क्षेत्र के अन्य देशों को लाभ होगा।
- व्यापार और निवेश सुविधा:
- भारत, ट्राँस-पैसिफिक पार्टनरशिप जैसे क्षेत्रीय व्यापार समझौतों में सक्रिय रूप से भाग लेकर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ावा देकर अपने आर्थिक हितों का लाभ उठा सकता है।
- रक्षा और समुद्री सहयोग:
- समुद्री सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने, संयुक्त नौसैनिक अभ्यास आयोजित करने और साझेदार देशों के बीच खुफिया जानकारी साझा करने से इस क्षेत्र में समुद्री स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये भारत की क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा।
निष्कर्ष:
भारत के समक्ष हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चुनौतियाँ और अवसर दोनों ही हैं। क्षेत्रीय साझेदारों के साथ रणनीतिक रूप से जुड़कर, आर्थिक अवसरों का लाभ उठाकर, सुरक्षा सहयोग बढ़ाकर और क्षेत्रीय पहलों में सक्रिय रूप से भाग लेकर, भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने रणनीतिक और आर्थिक हितों की प्रभावी ढंग से रक्षा कर सकता है। संतुलित दृष्टिकोण (जो क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देता हो) से न केवल अंतर्राष्ट्रीय कानून को बनाए रखने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने में सहायता मिलेगी बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र की उभरती गतिशीलता में एक महत्त्वपूर्ण हितधारक के रूप में भारत की स्थिति को भी मज़बूती मिलेगी।
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