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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    जर्मनी का राष्ट्रीय समाजवाद, राष्ट्रीयकरण और धन के पुनर्वितरण तक ही सीमित नहीं था। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)

    16 May, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • जर्मनी में राष्ट्रीय समाजवाद के उदय की चर्चा करें।
    • इसके द्वारा किये गए विभिन्न समाजवादी वादों की चर्चा करें।
    • नाजी पार्टी के कुटिल लक्ष्यों का वर्णन करें।
    • उपरोक्त सभी को परस्पर संबद्ध कर निष्कर्ष दें।

    जर्मनी में राष्ट्रीय समाजवाद का उदय एक राजनीतिक आंदोलन के रूप में 1919 में हुआ था और जल्द ही यह नाजी पार्टी के रूप में लोकप्रिय हो गया। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से गुजर रही थी, अति मुद्रास्फीति स्थानिक हो गई थी और इसके साथ ही वर्साय की संधि के तहत युद्ध के भुगतान का अतिरिक्त बोझ भी जर्मनी की स्थिति को और बदतर कर रहा था। इन परिस्थितियों में नाजी पार्टी ने जो पेशकश की उसे एक प्रभावशाली विकल्प के रूप में देखा गया।

    1920 में घोषित अपने 25-सूत्री कार्यक्रम में राष्ट्रीय समाजवादियों ने समृद्धि, पूर्ण रोज़गार, राष्ट्रीयकरण, धन का पुनर्वितरण, राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम आदि समाजवादी प्रकृति के कई वादे किये थे। उनके व्यापक एजेंडे में जर्मनी को फिर से एक महान राष्ट्र बनाना और राष्ट्रीय गौरव को बहाल करना था जिसे निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

    • राष्ट्रीय समाजवाद, राष्ट्र के पुनर्जन्म के लिये समर्पित जीवन का एक तरीका था और समाज में सभी वर्गों को एक ‘राष्ट्रीय समुदाय’ में एकजुट करने का लक्ष्य रखा गया था।
    • राष्ट्रीय महानता प्राप्त करने के लिये केंद्रीय सरकार के अंतर्गत जनता के जीवन के सभी पहलुओं के कुशल संगठन पर बहुत जोर दिया गया था और यदि आवश्यक हो तो हिंसा और आतंक का सहारा भी लिया जा सकता था।
    • राज्य सर्वोच्च था; व्यक्ति के हित हमेशा राज्य के हितों के समक्ष गौण थे, अर्थात् राज्य का स्वरूप अधिनायकवादी था जिसमें प्रचार या प्रोपेगेंडा की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
    • चूँकि जनसामान्य में यह धारणा थी कि महानता केवल युद्ध द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है, पूरे राज्य को एक सैन्य आधार पर गठित किया जाना था।
    • नस्लीय सिद्धांत जर्मन समाज में अत्यंत महत्त्वपूर्ण था। मानव जाति को दो नस्लीय समूहों में विभाजित किया गया था- आर्य और गैर-आर्य। गैर-आर्य दोयम माने गए थे और उन्हें ‘राष्ट्रीय समुदाय’ से बाहर रखा गया था।

    आर्थिक संकट के बिना और राष्ट्रीयकरण एवं धन के पुनर्वितरण के वादे के बिना यह संदिग्ध है कि राष्ट्रीय समाजवादी सत्ता हासिल कर पाने का अधिक अवसर पाते। व्यापक बेरोज़गारी और सामाजिक पीड़ा के साथ साम्यवाद के भय ने नाजियों को व्यापक जनसमर्थन प्रदान किया।

    उन्होंने इस जनसमर्थन का दुरुपयोग अपने संकीर्ण हितों के लिये किया जहाँ विस्तारवादी नीति लेबेन्सराम और अल्पसंख्यकों व व्यक्तिगत अधिकारों के दमन के बाद होलोकॉस्ट के रूप में मानव इतिहास के सबसे घृणित अपराध अंजाम दिये गए और ये सभी परिणाम द्वितीय विश्वयुद्ध के कारणों में परिणत हुए।

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