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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकारों को अक्सर एक व्यापक और विस्तृत आलोचना का सामना करना पड़ता है। विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    22 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सर्वप्रथम भारतीय संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इसकी विशेषताओं को लिखिये।
    • फिर आलोचकों द्वारा की जाने वाली आलोचनाओं के बिंदुओं व कारणों को लिखिये।

    भारतीय संविधान के भाग-III में अनुच्छेद-12 से 35 तक मौलिक अधिकारों को समाहित किया गया है। संविधान द्वारा सभी व्यक्तियों को मौलिक अधिकारों की गारंटी प्रदान की गई है, जो किसी भी प्रकार के भेदभाव से रहित हो। वस्तुत: मौलिक अधिकार सभी व्यक्तियों को समानता प्रदान करने, व्यक्ति की गरिमा, व्यापक जनहित और राष्ट्र की एकता को बनाए रखने में योगदान करता है। ये राजनीतिक लोकतंत्र के आदर्श में बढ़ावा देने के लिये होता है साथ ही यह देश में सत्तावादी और निरंकुश शासन को स्थापित होने से रोकता है तथा राज्य की आव्रमकता के खिलाफ लोगों की स्वतंत्रताओं की रक्षा करता है। इसके अलावा यह कार्यपालिका को लोगों के उत्पीड़न व विधायिका द्वारा मनमाने कानूनों का निर्माण करने से रोकने का काम भी करता है।

    हालाँकि इन मौलिक अधिकारों को अक्सर एक व्यापक व विस्तृत आलोचनाओं से भी दो-चार होना पड़ता है, जो कि निम्नलिखित हैं-

    • अत्यधिक सीमाओं से ग्रस्त: मौलिक अधिकारों को असंख्य अपवादों, प्रतिबंधों, योग्यताओं आदि के माध्यम से सीमांकित किया गया है जो इसकी प्रभावकारिता को कम करता है।
    • सामाजिक व आर्थिक अधिकारों की अनुपस्थिति: मौलिक अधिकारों की प्रदत्त सूची व्यापक नहीं है क्योंकि इसमें मुख्य रूप से राजनीतिक अधिकारों को ही शामिल किया गया है। मसलन इसमें सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, काम करने का अधिकार, अवकाश आदि जैसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक अधिकारों संबंधी कोई प्रावधान नहीं है।
    • स्पष्टता का अभाव: गौर करने योग्य बात यह है कि संविधान में मौलिक अधिकारों को स्पष्ट व सटीकता के साथ प्रस्तुत नहीं किया गया है। इसका प्रमाण यह है कि, विभिन्न अध्यायों में प्रयुक्त वाक्यांशों व शब्दों यथा- सार्वजनिक व्यवस्था, जनहित, अल्पसंख्यकों, युक्तियुक्त निर्बंधन आदि जैसे शब्दों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
    • स्थायित्व का न होना: भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार दृढ़ व रक्षणीय नहीं है। संसद इसे कभी भी कम या समाप्त कर सकती है जैसे- 1978 में संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार की सूची से हटा दिया गया। इसलिये ये संसद में बहुमत प्राप्त पार्टियों व राजनेताओं के हाथों का नाटकीय उपकरण बन जाता है।
    • आपातकाल के दौरान निलंबन: राष्ट्रीय आपातकाल के संचालन के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन (अनुच्छेद-20 व 21 को छोड़कर) इसकी प्रभावकारिता पर संशय उत्पन्न करता है।
    • निवारक निरोध: कई आलोचकों का मानना है कि निवारक निरोध (अनुच्छेद-22) का प्रावधान मौलिक अधिकारों की मूल आत्मा को खत्म कर देता है। यह राज्य के मनमानी शक्तियों के प्रयोग को बढ़ावा देता है और व्यक्ति की स्वतंत्रता को नकारता है।

    यद्यपि मौलिक अधिकारों की उपरोक्त आधारों पर आलोचना की जाती है, तथापि ये अपनी प्रकृति में बेहद महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ये देश में लोकतांत्रिक प्रणाली के आधार स्तंभ को मज़बूत करता है और व्यक्ति की स्वतंत्रता के हित में एक दुर्जेय बांध के रूप में खड़ा रहता है।

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