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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    मानवीय कार्यों का उद्देश्य 'अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख' ही होना चाहिये। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)

    29 Jul, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • उपयोगितावाद के दृष्टिकोण के संदर्भ में इस कथन की व्याख्या करते हुए परिचय दीजिये।
    • समाज में इस दृष्टिकोण के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों पर चर्चा कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    उपयोगितावाद नीतिशास्त्र का एक आधुनिक सिद्धांत तथा एक परिणाम सापेक्षवादी विचारधारा है, जो कि अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख पर केंद्रित है। 18वीं शताब्दी में शेफ्टसबरी व बटलर तथा 19वीं शताब्दी में बेन्थम, मिल और सिज़विक इसके प्रमुख समर्थक माने जाते हैं।

    उपयोगितावादी मानते हैं कि वही कर्म शुभ है जो सिर्फ व्यक्ति विशेष के हित में न होकर व्यापक सामाजिक हित की पुष्टि करता है। यदि यह संभव नहीं है, तो वह कार्य शुभ है जो अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख को साधने में सहायक है। उपयोगितावाद में शुभ की मूल परिभाषा किसी वस्तु या कार्य की उपयोगिता से तय होती है। जो समाज के लिये उपयोगी है वह शुभ है और शुभ वही है जो सुख प्रदान करता है। इसीलिये अधिकांश उपयोगितावादी सुखवादी भी हैं। किंतु अगर कोई यह माने कि सुख के अलावा कोई अन्य वस्तु है जो समाज के लिये उपयोगी है तो उपयोगितावाद सुखवाद से पृथक भी हो सकता है हेस्टिंग्स, रैश्डैल का उपयोगितावाद इसी प्रकार का है।

    सकारात्मक पक्ष

    • समाज की संतुष्टि को प्राथमिता: उपयोगितावादी सिद्धांत की प्रसिद्धि का मुख्य कारण इस तथ्य पर आधारित है कि इस सिद्धांत का अस्तित्व समाज की संतुष्टि पर प्राथमिकता से ध्यान केंद्रित करने पर आधारित है।
    • सिद्धांत को आसानी से लागू किया जा सकता है: इस सिद्धांत से किसी भी समाज में निर्णय लेने की प्रक्रिया जटिल नहीं होती बल्कि वह अधिक स्पष्ट हो जाती है। इस प्रकार विशेष निर्णयों की नकारात्मकता और सकारात्मकता को आसानी से समझा जा सकता है।
    • सिद्धांत समाज के लिये सबसे बड़ा शुभ हासिल करने पर केंद्रित है: व्यक्तिगत कल्याण को अधिकतम करने के बजाय उपयोगितावाद सामूहिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करता है और यह 'अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख' पर ज़ोर देता है।
    • कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक: बेंथम का उपयोगितावाद का सिद्धांत विधि-वेत्ताओं से ऐसे कानून या नियम बनाने की बात करता है जो ‘अधिकतम व्यक्तियों को अधिकतम सुख प्रदान करें, वस्तुत: यह कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक है।’
    • वस्तुगत तथ्यों पर आधारित: यह वस्तुगत तथ्यों पर आधारित है। स्वयंसिद्ध नैतिक नियमों में विश्वास न कर अनुभव पर आधरित है।
      • अर्थात् यह पारभौतिक नियमों को नकार देता है, जिससे इसे वैज्ञानिक एवं आनुभविक धरातल प्राप्त होता है।
      • क्योंकि यह परिणामों पर आधारित है, इसलिये अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है।

    नकारात्मक पक्ष

    • सुख पर अत्यधिक केंद्रित: यह सुख की बात पर केंद्रित है। वस्तुत: कोई कार्य किसी व्यक्ति को सुख प्रदान करने वाला हो सकता है, वहीं अन्य व्यक्ति के लिये वह कार्य पीड़ादायी भी हो सकता है; ऐसा संभव है।
      • इसमें ‘सुख’ का एक आशय ‘पीड़ा से बचाव’ भी है। वस्तुत: प्रत्येक पीड़ा बुरी नहीं होती, वह दीर्घकालीन समय में सुख प्रदान करने वाली हो सकती है, जैसे- कहा जाता है कि ‘गलतियों से ही इंसान सीखता है’, असफलता ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।
      • मानव जीवन में सुख की आकांक्षा ही एकमात्र उद्देश्य नहीं होता, अधिकांशतः व्यक्ति कर्तव्य की भावना से प्रेरित होकर कार्य करते हैं। ‘गीता’ में भी कहा गया है कि ‘कर्म कर, फल की इच्छा मत कर’ अर्थात् कर्म करना व्यक्ति का कर्तव्य है।
      • आध्यात्मिक सुख के स्थान पर सापेक्षिक भौतिकवादी सुख पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के कारण अराजकता, स्वार्थपरकता जैसे भावों को बढ़ावा मिल सकता है।
    • परिणामवादी: यह परिणामों पर ध्यान केंद्रित करता है, केवल परिणामों के आधार पर किसी कार्य को पूर्णत: सही या गलत नहीं ठहराया जा सकता।
    • रॉक्स जैसे उदारवादी चिंतकों का मानना है कि उपयोगितावाद ‘अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख’ की आकांक्षा रखता है, किंतु इस प्रयास में समुदाय के कुछ व्यक्ति छूट जाते हैं, जो उनके लिये अन्यायपूर्ण है।

    निष्कर्ष

    उपयोगितावाद का सिद्धांत जीवन को अधिकतम लोगों द्वारा यथासंभव ‘पीड़ामुक्त’ बनाने पर केंद्रित है। सामान्यत: यह एक प्रशंसा योग्य लक्ष्य की भाँति लगता है। परंतु यदि सभी इस जीवन में ‘अधिकतम सुख की प्राप्ति के लिये ही जीवित रहेंगे तो जीवन का व्यापक दृष्टिकोण संकीर्ण/धुँधला हो जाएगा।

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