उत्तर :
दृष्टिकोण
- एक साथ चुनाव के संदर्भ का संक्षेप में उल्लेख करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- एक साथ चुनाव के पक्ष और विपक्ष में तर्कों पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
- यह विचार वर्ष 1983 से अस्तित्व में है, जब चुनाव आयोग ने पहली बार इसे प्रस्तावित किया था। हालाँकि वर्ष 1967 तक एक साथ चुनाव भारत में प्रतिमान थे।
- हाल ही में कोविड 19 संक्रमण की दूसरी लहर का प्रकोप भारत में देखा गया है। इसमें मार्च-अप्रैल 2021 के दौरान चार राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में हुए चुनावों का भी संभावित योगदान माना जा रहा है, इसलिये "एक राष्ट्र, एक चुनाव" (One Nation, One Election) जैसी महत्त्वपूर्ण अवधारणा पर तर्कपूर्ण चर्चा करना आवश्यक हो गया है।
एक साथ चुनाव के पक्ष में तर्क
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक चुनाव होता है; दरअसल प्रत्येक राज्य में प्रत्येक वर्ष चुनाव भी होते हैं। उस रिपोर्ट में नीति आयोग ने तर्क दिया कि इन चुनावों के चलते विभिन्न प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नुकसान होते हैं।
- चुनाव की अगणनीय आर्थिक लागत: बिहार जैसे बड़े आकार के राज्य के लिये चुनाव से संबंधित सीधे बजट की लागत लगभग 300 करोड़ रुपए है। हालाँकि इसके अलावा अन्य वित्तीय लागतें एवं अगणनीय आर्थिक लागतें भी हैं।
- प्रत्येक चुनाव के दौरान सरकारी तंत्र चुनाव ड्यूटी और संबंधित कार्यों के कारण अपने नियमित कर्तव्यों से चूक जाता है।
- चुनावी बजट में चुनाव के दौरान उपयोग किये जाने वाले इन लाखों मानव-घंटे की लागत की गणना नहीं की जाती है।
- नीति पक्षाघात: आदर्श आचार संहिता (MCC) सरकार की कार्यकारिणी को भी प्रभावित करती है, क्योंकि चुनावों की घोषणा के बाद न तो किसी नई महत्त्वपूर्ण नीति की घोषणा की जा सकती है और न ही क्रियान्वयन।
- प्रशासनिक लागतें: सुरक्षा बलों को तैनात करने तथा बार-बार उनके परिवहन पर भी भारी और दृश्यमान लागत आती है।
- संवेदनशील क्षेत्रों से इन बलों को हटाने और देश भर में जगह बार-बार तैनाती के कारण होने वाली थकान तथा बीमारियों के संदर्भ में राष्ट्र द्वारा एक बड़ी अदृश्य लागत का भुगतान किया जाता है।
एक साथ चुनाव के विरुद्ध तर्क
- संघीय समस्या: एक साथ चुनावों को लागू करना लगभग असंभव है क्योंकि इसके लिये मौजूदा विधानसभाओं के कार्यकाल में मनमाने ढंग से कटौती करनी पड़ेगी या उनकी चुनाव तिथियों को देश के बाकी भागों हेतु नियत तारीख के अनुरूप लाने के लिये उनके कार्यकाल में वृद्धि करनी पड़ेगी।
- ऐसा कदम लोकतंत्र और संघवाद को कमज़ोर करेगा।
- लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध: आलोचकों का यह भी कहना है कि एक साथ चुनाव कराने के लिये मजबूर करना लोकतंत्र के विरुद्ध है क्योंकि चुनावों के कृत्रिम चक्र को थोपने की कोशिश करना और मतदाताओं की पसंद को सीमित करना उचित नहीं है।
- क्षेत्रीय दलों को नुकसान: ऐसा माना जाता है कि एक साथ चुनाव से क्षेत्रीय दलों को नुकसान पहुँचेगा क्योंकि एक साथ होने वाले चुनावों में मतदाताओं द्वारा मुख्य रूप से एक ही तरफ वोट देने की संभावना अधिक होती है जिससे केंद्र में प्रमुख पार्टी को लाभ होता है।
- जवाबदेही में कमी: प्रत्येक 5 वर्ष में एक से अधिक बार मतदाताओं के समक्ष आने से राजनेताओं की जवाबदेहिता बढ़ती है।
निष्कर्ष
- यह स्पष्ट है कि एक साथ चुनाव की अवधारणा को लागू करने के लिये संविधान और अन्य कानूनों में संशोधन की आवश्यकता होगी। लेकिन यह कार्य इस प्रकार किया जाना चाहिये कि लोकतंत्र और संघवाद के मूल सिद्धांतों को चोट न पहुँचे।
- इस संदर्भ में विधि आयोग ने एक विकल्प का सुझाव दिया है जिसके अनुसार अगले आम चुनाव से निकटता के आधार पर राज्यों को वर्गीकृत किया चाहिये और अगले लोकसभा चुनाव के साथ राज्य विधानसभा चुनाव का एक दौर तथा शेष राज्यों के लिये दूसरा दौर 30 महीने बाद होना चाहिये। लेकिन यह इस बात की गारंटी नहीं देता है कि इन सबके बावजूद भी मध्यावधि चुनाव की आवश्यकता नहीं होगी।