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प्रश्न :
भारत में लैंगिक असमानता के लिये कौन-से मुख्य कारक उत्तरदायी हैं? इस संदर्भ में सावित्रीबाई फुले के योगदान की चर्चा कीजिये। (UPSC GS-4 Mains 2020)
24 Feb, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में लैंगिक अन्याय के बारे में संक्षेप में चर्चा करते हुए उत्तर की शुरुआत करें।
- भारत में लैंगिक असमानता के लिये ज़िम्मेदार कारकों पर चर्चा करें।
- सावित्रीबाई फुले के योगदान पर चर्चा करें।
- उचित निष्कर्ष दें।
उत्तरोत्तर युग में भले ही लैंगिक समानता को स्थापित करने के लिये सरकारों ने लगातार कई कदम उठाए हैं, लेकिन लैंगिक असमानता जीवन के सभी क्षेत्रों, जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थशास्त्र और राजनीति में व्याप्त है। इसे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2019-2020 में भारत की 112वीं रैंक परिलक्षित किया जा सकता है।
भारत में लैंगिक असमानता के लिये ज़िम्मेदार कारक:
पुत्र को प्राथमिकता: अनादिकाल से एक बालिका के जन्म को अवांछित माना जाता है और उसे ऐसा बोझ माना जाता है जिसे माता-पिता दूर भागते हैं। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव उनके जन्म से पहले ही शुरू हो जाता है।
कन्या भ्रूण हत्या और शिशु हत्या जैसी भीषण बुराइयाँ यह साबित करती हैं कि महिलाओं के लिये दुनिया कितनी क्रूर हो सकती है।
सांस्कृतिक संस्थानों की भूमिका: भारत में सांस्कृतिक संस्थाएँ, विशेष रूप से पितृसत्तात्मकता (पुरुष वंशजों के माध्यम से विरासत/पति के माता-पिता के साथ या के घर रहने वाले विवाहित जोड़े), लैंगिक असमानता को बढ़ाने में एक केंद्रीय भूमिका निभाती है।
परिवार में महिलाओं के पूर्वानुमानित कर्तव्य: भारतीय समाज में यह माना जाता है कि परिवार की देखभाल और बच्चे को जन्म देने एवं उसका पालन - पोषण की प्राथमिक ज़िम्मेदारी अभी भी महिलाओं पर है। पारिवारिक दबाव के कारण कई कार्यरत महिलाओं को कार्य भी छोड़ना पड़ता है।
पिंक-कॉलर नौकरियाँ: महिलाओं को ज़्यादातर 'पिंक-कॉलर नौकरियों' के लिये ही फिट माना जाता है, जैसे कि शिक्षक, नर्स, रिसेप्शनिस्ट, दाई, लेक्चरर आदि, जो महिलाओं के लिये रूढ़िवादी सोच है। यह उन्हें अन्य क्षेत्रों में अवसरों से वंचित करता है।
कार्यस्थल पर भेदभाव: कंपनियाँ अधिक युवा महिलाओं को काम पर रखने में रुचि रखती हैं क्योंकि आमतौर पर यह देखा गया है कि काम और पारिवारिक वातावरण, विवाह और मातृत्व आमतौर पर एक विवाहित महिला को कार्य से इस्तीफा देने के लिये मजबूर करते हैं। महिलाओं को समान कार्य के लिये पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलता है।
सावित्रीबाई फुले का योगदान
समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले को भारत की पहली आधुनिक नारीवादियों में से एक माना जाता है।
वह और उनके पति ज्योतिराव फुले यह मानते थे कि शिक्षा ही एक ऐसा उपाय है जिसकी सहायता से महिलाएँ सदियों के अन्याय से मुक्ति पा सकती हैं। उन्होंने वर्ष 1948 में पुणे के भिडे वाड़ा नामक स्थान पर लड़कियों के लिये पहला स्कूल बनाया।
उनके प्रयासों से महिलाओं की आवाज़ एक ऐसे समय में बुलंद हुई जब महिलाओं के अस्तित्व को लगभग नकार दिया गया था।
महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में फुले की भूमिका के परिणामस्वरूप उन्हें लैंगिक न्याय का अग्रदूत माना जाता है।
अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने मानवतावाद, स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, तर्कसंगतता और दूसरों के बीच शिक्षा के महत्त्व जैसे मूल्यों की वकालत की।
निष्कर्ष
भारत को एक वैश्विक नेता के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिये स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर तथा निजी क्षेत्र द्वारा और अधिक ठोस प्रयासों की जरूरत है ताकि महिलाओं को पुरुषों के साथ समानता में लाया जा सके।
सार्वजनिक क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना आवश्यक है और इसे कुछ सकारात्मक कार्रवाइयों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, घरों के भीतर और समाज में महिलाओं के प्रति अवधारणाओं को बदलने की ज़रूरत है।
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