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प्रश्न :
कॉर्पोरेट गवर्नेंस से आप क्या समझते हैं?वर्तमान परिदृश्य में इसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए बताएं कि सरकार द्वारा इसे सुनिश्चित करने के लिये किन उपायों को अपनाया जा रहा है।
18 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण-
- भूमिका
- महत्त्व
- सरकारी प्रयास
- निष्कर्ष
किसी भी संगठन चाहे वह लोक संगठन हो या फिर निजी उसका कामकाज नैतिकता के आधार पर संचालित होना चाहिये तथा उसके द्वारा अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन भली-भाँति किया जाना चाहिये। किसी भी कंपनी के कॉर्पोरेट शासन में मुख्य रूप से छह घटक (ग्राहक, कर्मचारी, निवेशक, वैंडर, सरकार तथा समाज) शामिल होते हैं जिन्हें ‘स्टेक होल्डर्स’ कहा जाता है। कॉर्पोरेट शासन को प्रभावी और कुशल तरीके से चलाने के लिये प्रबंधन को इन सभी स्टेक होल्डर्स का विश्वास प्राप्त करना आवश्यक होता है।
कोई भी ऐसा संगठन जो सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में कार्य करता है तथा अपने कर्मचारियों, ग्राहकों, आम नागरिकों (समाज) तथा शेयरधारकों के प्रति अपनी जबावदेही को समझता है और संगठन के विकास के साथ-साथ इन सभी का भी ध्यान रखता है तो कहा जा सकता है कि ऐसे संगठन का कामकाज नैतिकता के आधार पर संचालित किया जा रहा है। इस पूरी प्रक्रिया में समाज के प्रति नैतिक दायित्वों का निर्वहन कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी कहलाता है। कॉर्पोरेट गवर्नेंस की संकल्पना लोक और निजी संगठनों को नैतिकता के आधार पर संचालित करने से संबंधित है अर्थात् इसका संबंध नैतिकता आधारित शासन से है।
महत्त्व के संदर्भ में देखें तो जिन कंपनियों में कॉर्पोरेट शासन को सही ढंग से प्रबंधन किया जाता है ऐसी कंपनियों पर लोगों का विश्वास बना रहता है।कंपनी में स्वतंत्र निदेशकों की उपस्थिति और उनकी सक्रियता बाज़ार में कंपनी की अच्छी छवि स्थापित करने में मददगार साबित होती है।
जब किसी कंपनी में विदेशी संस्थागत निवेश किया जाता तो कंपनी के कॉरपोरेट गवर्नेंस पर भी खासा ध्यान दिया जाता है।
साथ ही कार्पोरेट गवर्नेंस कंपनी के शेयरों की कीमत पर भी असर डालता है। यदि किसी कंपनी का कॉरपोरेट गवर्नेंस बेहतर होता है तो ऐसी कंपनी को बाज़ार से रकम जुटाने में आसानी होती है।
साथ ही वैश्विक स्तर पर देश की साख कायम होती है।भारतीय संदर्भ में कई बार ऐसा देखा गया है कि कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मानकों का सही से पालन नहीं किया जाता तथा नैतिकता का मुद्दा बार-बार सामने आता है, चाहे वर्ष1984 का भोपाल गैस कांड हो या फिर वर्ष 2009 का सत्यम कंप्यूटर केस।
इन्हीं सब बातों को मद्देनज़र रखते हुए सरकार द्वारा कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार हेतु समय-समय पर कुछ दिशा-निर्देश जारी किये गए जो इस प्रकार हैं-भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस के क्षेत्र में पहला सुधारात्मक प्रयास वर्ष 1988 में सेबी की स्थापना के साथ किया गया। इसके द्वारा शेयर धारकों/ जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए कुछ मानक निर्धारित किये गए। इन मानकों को अपनाने के बाद ही अब कोई निजी या सार्वजनिक कंपनी पब्लिक इश्यूज़ (Public Issues) जारी कर सकती है।
वर्ष 1992 के हर्षद मेहता कांड के बाद सेबी को वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया तथा सेबी को कुछ दंडात्मक एवं बाध्यकारी अधिकार भी दिये गए।
सेबी एक्ट1992 में सुधार हेतु सुझाव देने के लिये वर्ष 2003 में नारायण मूर्ति समिति का गठन किया गया। इसने कॉर्पोरेट शासन को बेहतर बनाने के लिये कुछ सुझाव प्रस्तुत किये जो इस प्रकार हैं-
- किसी भी संगठन में स्वतंत्र निदेशकों की संख्या ⅓ होनी चाहिये जिन्हें बढ़ाकर ½ तक किया जा सकता है। इससे संगठन में पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व को बढ़ावा मिलेगा।
- कोई भी ऐसा कंपनी/संगठन जो शेयर बाज़ार में व्यापार करता है उसके लेखा की जाँच सिर्फ निजी लेखा परीक्षकों द्वारा नहीं बल्कि एक ऑडिट बोर्ड के माध्यम से की जानी चाहिये जिसमें भारतीय लेखा एवं लेखा परीक्षा सेवा के अधिकारी भी शामिल हों।
- समिति द्वारा व्हिसल ब्लोवर नीति को भी अपनाने का सुझाव दिया गया है।
वर्ष 2017 में उदय कोटक समिति का गठन किया गया जिसने कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मानकों में सुधार हेतु अपने सुझाव सेबी के समक्ष प्रस्तुत किये।
इसी क्रम में भारत में कंपनियों के विनियम से संबंधित कम्पनी अधिनयम-2013 भी प्रमुख है। इस अधिनियम के अनुसार कंपनियों द्वारा कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (C.S.R) समिति का गठन किया जा सकता है जिसमे कम्पनी को कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के लिये योजना बनाने, सिफारिश करने और उस पर निगरानी करने के लिये जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
इन सबके साथ कॉर्पोरेट शासन को बेहतर बनाने के लिये स्वयं उद्योगपतियों के समुदाय द्वारा संस्थान/संगठन में नैतिकता के आधार पर कार्य करने की संस्कृति का विकास किया जाना चाहिये।To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
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