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प्रश्न :
भारत के सतत, समावेशी विकास तथा विदेश नीति के संदर्भ में एक्ट ईस्ट पॉलिसी को सफल बनाने के लक्ष्य को उत्तर-पूर्व के राज्यों के विकास के बिना पूर्ण नहीं किया जा सकता है।" स्पष्ट करें।
17 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• परिचय।
• विकास में भूमिका लिखें।
• विदेश नीति में भूमिका की चर्चा करें।
• निष्कर्ष लिखें।
आज़ादी से पूर्व उत्तर-पूर्व क्षेत्र मुख्य रूप से असम एवं बंगाल क्षेत्र में विभाजित था। विभाजन के पश्चात् तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के उत्तरी एवं पूर्वी क्षेत्र में असम एवं कुछ अन्य क्षेत्रों से अलग होकर धीरे-धीरे सात राज्यों का गठन हुआ। इन राज्यों के उद्भव में प्रमुख रूप से राजनीतिक एवं स्थानीय समुदायों ने अहम भूमिका निभाई। भारत का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र 5300 किमी. की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से घिरा हुआ है अतः इसकी अवस्थिति भू-सामरिक एवं आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
भारत के अन्य हिस्सों से यह क्षेत्र सिलीगुड़ी गलियारे के माध्यम से ही प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है जिससे कनेक्टिविटी इस क्षेत्र के लिये प्रमुख समस्या है। साथ ही यह क्षेत्र लंबे समय से उपेक्षा का शिकार रहा है तथा यहाँ विकास से जुड़ी गतिविधियाँ भी सीमित ही रही हैं। इसके अतिरिक्त भौगोलिक स्थिति तथा स्थानीय जनजातीय संस्कृति एवं अलगाववाद भी इसके विकास में बाधक बना रहा।
भारत के सतत, समावेशी विकास के लक्ष्य को उत्तर-पूर्व के राज्यों के विकास के बिना पूर्ण नहीं किया जा सकता है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण ये राज्य भारत के विकास, विदेश नीति व राष्ट्रीय एकता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जिन्हें निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता हैः
- विकास के संदर्भ में देखें तो उत्तर-पूर्वी राज्यों का विकास अन्य भारतीय राज्यों के लिये दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बाज़ार तक सुगम पहुँच को सुनिश्चित कर सकता है।केंद्र सरकार ने मिनिस्ट्री ऑफ डेवलपमेंट ऑफ नॉर्थ-ईस्ट रीजन मंत्रालय का गठन किया है।
- उत्तर-पूर्वी राज्यों में उपस्थित भौगोलिक स्थलाकृतियों व नदियों की अवस्थिति के कारण यह क्षेत्र ऊर्जा उत्पादन का महत्वपूर्ण केंद्र बन सकता है। यह भारत की भविष्य की ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं को पूर्ण करने में महती भूमिका निभा सकता है। इसी परिप्रेक्ष्य में एक संसाधन अव्यपगत केन्द्रीय पूल (एनएलसीपीआर)की स्थापना की गई है।
उत्तर-पूर्व के राज्यों में उपस्थित प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग सतत रूप में किया जा सकता है।
विदेश नीति के संदर्भ में देखें तो-
- उत्तर-पूर्वी राज्यों, चीन, भूटान, म्याँमार, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ सीमाएँ बनाते हैं जो भू-राजनैतिक स्थिति व क्षेत्रीय संप्रभुता हेतु महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
- चीन के साथ क्षेत्रीय वर्चस्व संबंधी विदेश नीति में इन राज्यों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसी परिप्रेक्ष्य में कलादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट, बीबीआईएन सड़क प्रोजेक्ट एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
- सरकार द्वारा ‘एक्ट ईस्ट’ के माध्यम से पूर्वोत्तर में समग्र तथा समावेशी विकास की अनेक परियोजनाएं प्रारंभ की हैं तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के लिए भारत के इस अंचल को एक ‘पोटेंशियल हब’ या संभावनाओं के क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। एक्ट ईस्ट पॉलिसी का उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ बहुपक्षीय जुड़ाव के माध्यम से आर्थिक सहयोग तथा सांस्कृतिक संबंधों को निरंतर बढ़ावा देना और वैश्विक राजनीति तथा अर्थव्यवस्था में भारत की प्रभावी भूमिका सुनिश्चित करना है।
‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र को ‘पूर्वी प्रवेश द्वार’ के रूप में महत्त्व देती है यह क्षेत्र संपूर्ण भारत की प्रगति तथा समृद्धि के लिये एक विस्तारित गलियारा है इसलिए इस नीति में उत्तर पूर्व क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता दी गयी। पूर्वोत्तर में आधारभूत ढांचे को विकसित करते हुए आसियान क्षेत्र के साथ उसके संबंधों और संपर्क को सुदृढ करने के लिए प्रयास किया जा रहा है।
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