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प्रश्न :
आज के वैश्वीकरण और बहुसंस्कृतिवाद के काल में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक दोधारी तलवार की भाँति है जो जीवन, सभ्यताओं, यहाँ तक कि इतिहास की दिशा को बदल देने की क्षमता रखती है। टिप्पणी करें।
07 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोणः
• वैश्वीकरण एवं बहुसंस्कृतिवाद के युग में सूचना-विचारों आदि का प्रवाह
• विभिन्न लोकतांत्रिक देशों द्वारा अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान किया जाना
• सूचना एवं संचार तकनीकी के युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रसार और उसके परिणाम
• अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जीवन, सभ्यताओं, इतिहास आदि पर प्रभाव
• भारत द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हेतु प्रावधान
• निष्कर्ष
वर्तमान युग वैश्वीकरण का युग है जिसका अब बहुसंस्कृतिवाद से जुड़ाव हो गया है, जिससे हमारा विभिन्न प्रकार के विचारों, सूचनाओं और विभिन्न तंत्रों से संपर्क हो रहा है। इन विचारों, सूचनाओं एवं तंत्रों के संपर्क के परिणामस्वरूप उत्पन्न विभिन्न सरकारों से कहीं न कहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है।
विभिन्न देशों ने अपनी स्वतंत्रता के पश्चात् अपने इतिहास, मूल्य, संस्कृति तथा विचारधारा के आधार पर अपने नागरिकों को विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रताएँ प्रदान की हैं। इन्हीं स्वतंत्रताओं में एक महत्त्वपूर्ण स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है जो लोकतंत्र का प्राणतत्त्व है तथा एक स्वस्थ लोकतंत्र तथा लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था के विकास के लिये अति आवश्यक है।
सूचना और संचार तकनीकी (सोशल मीडिया, फेसबुक, व्हाट्सएप आदि) के अतिशय प्रसार के परिणामस्वरूप एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के चलते लोगों के विचारों का आसानी से सम्प्रेषण हो रहा है। इसका प्रभाव क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पड़ रहा है जो कई मायनों में मिश्रित परिणाम उत्पन्न कर रहा है, परंतु अज्ञानतावश इसके नकारात्मक प्रभाव अधिक दिखाई पड़ रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप देशों की आंतरिक सुरक्षा चिंताएँ बढ़ी हैं। वर्तमान वैश्वीकरण और बहुसंस्कृतिवाद के युग में संपूर्ण विश्व में विभिन्न विचारों का मुक्त प्रवाह हो रहा है तथा विभिन्न देश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सांस्कृतिक साम्राज्यवाद कायम करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में विश्व जनमत के सामने उपयुक्त विचारों का चुनाव करना एक बड़ी चुनौती है। बहुत से लोग अज्ञानतावश सही विचारों का चुनाव नहीं कर पाते हैं जिससे सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की जड़ें और मज़बूत हो रही हैं। अतः अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नियंत्रण रखना अति आवश्यक है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सकारात्मक पक्ष हो या नकारात्मक, दोनों ही स्थितियों में यह जीवन, सभ्यता और इतिहास पर गहरी छाप छोड़ता है। हाल ही के दिनों में इस प्रकार की घटनाएँ संपूर्ण विश्व में देखने को मिली हैं। भारत में हाल ही में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक द्वंद्वात्मक माहौल देखा गया है, जहाँ किसी एक संबंधित मुद्दे पर मिश्रित गुटबाज़ी देखी गई है जो कहीं न कहीं जीवन, सभ्यता और इतिहास को एक नई दिशा देने का कार्य कर सकता है। उदाहरण के तौर पर एक सम्मानित विश्वविद्यालय में छात्रों द्वारा भारत विरोधी विचारों के सम्प्रेषण के बाद उपजा विवाद इसका जीता जागता उदाहरण है।
भारत द्वारा स्वतंत्रता के पश्चात् निर्मित नवीन संविधान के अनुच्छेद 19(1) के अंतर्गत नागरिकों के लिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रावधान किया गया, परंतु साथ ही इस स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त प्रतिबंध भी लगाए गए ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देश के विकास में बाधा न पहुँचा सके और देश की एकता और अखंडता की रक्षा की जा सके।
इस प्रकार स्पष्ट है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक दोधारी तलवार है जो मानव जीवन को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करती है तथा सभ्यताओं और इतिहास की दिशा को परिवर्तित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। अतः इसके सकारात्मक परिणामों को प्रोत्साहित कर इसे समाज तथा देश के हित में प्रयोग करना चाहिये।
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