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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन दर्शन की अभिव्यक्ति आर्य समाज के सिद्धांतों एवं कार्यों से होती है। स्पष्ट करें।

    29 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में स्वामी दयानंद के विषय में लिखें।
    • तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में उनके जीवन दर्शन की स्पष्ट चर्चा करें।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    स्वामी दयानंद सरस्वती को पुनर्जागरण युग का हिंदू मार्टिन लूथर कहा जाता है। उनके द्वारा रचित ‘सत्यार्थ प्रकाश’ और स्थापित ‘आर्य समाज’ यह संदेश देता है कि वेदों की और लौटो और भारत की प्रभुता को समझो। लूथर की भाँति ही स्वामी दयानंद पाखंडवाद से लड़े, धर्म सुधार के लिए उन्होंने मूर्तिपूजा का विरोध किया, शुद्धि आंदोलन और एंग्लो-वैदिक शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना कर एक सड़े-गले समाज को अभिनव राष्ट्रवाद और धर्म सुधार के लिये तैयार किया।

    स्वामी दयानंद का मानना था कि आर्य समाज के कर्त्तव्य धार्मिक परिधि से कहीं अधिक व्यापक हैं। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य लोगों के शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिये कार्य करना होना चाहिये। उन्होंने व्यक्तिगत उत्थान के स्थान पर सामूहिक उत्थान को अधिक महत्त्व दिया। उन्होंने कहा कि सामाजिक कल्याण और सामूहिक उत्थान तभी संभव है जब व्यक्ति में सेवा और त्याग की भावना हो। धर्म-कर्म के बाह्य आचारों का स्वामी दयानंद द्वारा विरोध किया गया। हिंदू रूढ़िवादिता का विरोध करते हुए उन्होंने मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, पशुबलि, कर्मकांडों व अंधविश्वासों का विरोध किया, क्योंकि उनका मानना था कि जिस ज्ञान के आधार पर इन क्रियाओं को संपादित किया जा रहा है, वे भ्रम युक्त हैं। इसलिये उन्होंने ज्ञान के स्रोत के रूप में वेदों को स्थापित किया तथा आर्य समाज की स्थापना की। उनका कहना था कि वेदों की व्याख्या मानव-विवेक द्वारा होनी चाहिये क्योंकि मानव द्वारा व्याख्यायित समुचित शिक्षा के प्रसार द्वारा ही अज्ञान और भ्रांति को दूर कर मानव-विवेक का विकास किया जा सकता है। उनके अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ विज्ञान और समाजशास्त्र जैसे विषयों का अध्ययन नहीं बल्कि चरित्र निर्माण, सेवा भाव और निष्ठा का विकास करना है। उनके द्वारा शिक्षा को जनहितकारी गतिविधियों के साथ संयोजित किया गया।

    दयानंद सरस्वती का योगदान एक विचारक और सुधारक दोनों ही रूपों में सहज प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने सक्रिय रूप से समाज सुधार के आंदोलन चलाए, आर्य कन्या पाठशालाओं का जाल फैलाया और आर्य समाज मंदिरों से राष्ट्रीय जागरण का बिगुल बजाकर विदेशी शासन से लड़ने की प्रेरणा दी।

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