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प्रश्न :
जहाँ एक तरफ खनन और गैर-खनन परिचालन जैसे कार्यों में महिलाएँ अधिकारी की भूमिका बखूबी निभा रही हैं वहीं रक्षा क्षेत्र में लड़ाकू भूमिकाओं से महिलाएँ अभी भी वंचित हैं। रक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा अपनाई जा रही ‘संपूर्ण लिंग समानता’(Total Gender Parity) की अवधारणा पर आलोचनात्मक टिप्पणी करें।
27 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्यायउत्तर :
भूमिका:
रक्षा क्षेत्र में महिलाओं की लड़ाकू भूमिका की पृष्ठभूमि देते हुए उत्तर आरंभ करें-लंबे समय तक सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका चिकित्सकीय पेशे जैसे- डॉक्टर और नर्स तक ही सीमित थी। हालाँकि, आज वे वायु रक्षा प्रणाली का प्रबंधन भी कर रही हैं, लेकिन उन्हें प्रंटलाइन लड़ाकू की भूमिका निभाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
विषय-वस्तु
विषय-वस्तु के पहले भाग में हम सरकार द्वारा रक्षा क्षेत्र में ‘संपूर्ण लिंग समानता’ को प्राप्त करने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डालेंगे-अभी तक भारतीय सेना में महिलाओं की तैनाती चिकित्सा, शिक्षा, कानून, सिग्नल और इंजीनियरिंग जैसी इकाइयों में होती रही है। परंतु 2016 में घोषणा की गई कि महिलाओं को भारतीय सशस्त्र बालों के सभी वर्गों में युद्ध की भूमिका निभाने की अनुमति दी जाएगी जो दुनिया की सर्वाधिक पुरुष-वर्चस्व वाली सेना में लैंगिक समानता की दिशा में एक सार्थक कदम था। भारतीय नौसेना भी जंगी जहाज़ों पर महिलाओं की तैनाती पर विचार कर रही है। पायलट और ऑब्ज़र्वर के रूप में क्षमता के अनुसार महिलाओं को मैरीटाइम सैनिक सर्वेक्षण विमानों पर लड़ाकू भूमिका में नियोजित किया जा रहा है। भारतीय नौसेना में कानून एवं शिक्षा तथा नौसेना कन्स्ट्रक्टर्स शाखा में महिला अधिकारियों के लिये स्थायी कमीशन की व्यवस्था की नीति को अंतिम रूप दिया गया है। सरकार ने भारतीय वायुसेना की कुछ शाखाओं में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिये भावी नीतियाँ जारी की थीं, जबकि भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की नीति को अंतिम रूप दिय गया है। हालाँकि, भारतीय वायुसेना में अब पहले से कहीं अधिक महिला पायलट है परंतु अभी तक महिलाओं को विशेषज्ञ बलों जैसे- घातक, गरूड़, मार्कोस, पैराकमांडों आदि में लड़ाकों के रूप में अनुमति नहीं दी गई है। केंद्र सरकार द्वारा 2017 में घोषणा की गई कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CRPF) और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) में 30 प्रतिशत तथा सीमा सुरक्षा बल (BSF), सशस्त्र सीमा बल (SSB) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में 15 प्रतिशत कॉन्स्टेबल रैंक के पदों पर महिलाओं को भर्ती किया जाएगा। वायु रक्षा क्षेत्र में महिला हथियार प्रणालियों का प्रबंधन कर रही हैं परंतु, इन्हें प्रंटलाइन मुकाबले में नहीं रखा गया है। इसके पीछे लॉजिस्टिक तथा ऑपरेशनल चिंताओं को मुख्य कारण माना जाता है।
हालाँकि रक्षा क्षेत्र में सरकार संपूर्ण लिंग समानता के लिये प्रयासरत है लेकिन कुछ कारणों से महिलाओं को कॉम्बैट भूमिका देने में कठिनाइयाँ सामने आ रही हैं।
विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम महिलाओं को कॉम्बैट रोल देने में आने वाली कठिनाइयों पर चर्चा करेंगे-
1. शारीरिक मुद्दे
- महिला- पुरुष के बीच कद, ताकत और शारीरिक संरचना में प्राकृतिक विभिन्नता के कारण महिलाएँ चोटों और चिकित्सकीय समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील होती है। यह समस्या विशेष रूप से गहन प्रशिक्षण के दौरान होती है।
- महिलाओं में अधिक ऊँचाई, रेगिस्तानी इलाकों, क्लीयरेंस ड्राइविंग और हाईस्पीड एविएशन जैसे कठिन इलाकों में नॉन-कॉम्बैट चोटें भी प्राय: देखी जाती हैं।
- मासिक धर्म और गर्भावस्था की प्राकृतिक प्रव्रियाएँ महिलाओं को विशेष रूप से कमज़ोर बना देती हैं।
2. सामाजिक और मनोवैज्ञानिक मुद्दे
- महिलाएँ अपने परिवार, विशेष रूप से अपने बच्चों से अधिक जुड़ी हुई होती हैं। वे लंबे समय तक अलगाव के दौरान मानसिक तनाव में होती है जो कि सामाजिक समर्थन की आवश्यकता को इंगित करता है।
- मिलिट्री सेक्सुअल ट्रामा (MST) गंभीर तथा दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण बन सकता है, जिसमें पोस्टट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), अवसाद और वस्तुओं का दुरुपयोग शामिल है।
3. सांस्कृतिक मुद्दे
- समाज में सांस्कृतिक बाधाएँ, विशेष रूप से भारत जैसे देश में, युद्ध में महिलाओं को शामिल करने के संदर्भ में सबसे बड़ी बाधा हो सकती है।
निष्कर्ष
अंत में संतुलित, संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-आज महिलाएँ पूरी दुनिया में सैन्य क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। भारत भी लड़ाकू भूमिकाओं में महिलाओं को शामिल करने की ओर तेज़ी से कदम बढ़ा रहा है। महिलाओं को युद्ध में भूमिका निभाने की अनुमति देना, लैंगिक समानता की दिशा में एक प्रगतिशील कदम होगा। यह कदम महिलाओं को उनकी उचित स्थिति और अधिकार देने में मदद करेगा, जो सामाजिक पदानुव्रम में उनकी स्थिति को बेहतर बनाएगा। महिला लड़ाकों के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के अलावा सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को समझने के लिये एक समेकित अध्ययन की ज़रूरत है जिसमें नागरिक समाज के अलावा स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास तथा (HRD) (मानव संसाधन विकास) मंत्रालय को शामिल किया जाना चाहिये ताकि निकट भविष्य में इस क्षेत्र में अपेक्षित चुनौतियों का सामना किया जा सके।
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