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प्रश्न :
क्या बच्चों के रिएलिटी टी.वी. कार्यक्रमों पर पाबंदी लगनी चाहिये? इस मुद्दे के नैतिक आयामों पर चर्चा करें।
09 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
टी.वी. तथा रिएलिटी शो, आज एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं। लगभग हर टी.वी. चैनल पर किसी- न -किसी फॉर्मेट पर आधारित रिएलिटी शो प्रसारित हो रहा है। वैसे तो ये कार्यक्रम मूलतः युवाओं के रोमांच और उत्साह को भुनाकर चैनल की टी.आर.पी. बढ़ाने के लिये प्रसारित होते हैं, परन्तु आजकल 5 वर्ष तक के बच्चे भी न केवल इन कार्यक्रमों के दर्शक बन गए हैं, बल्कि इनमें स्वयं प्रतिभागी भी बन गए हैं।
बच्चों के रिएलिटी शो नृत्य, गायन, अभिनय,हास्य आदि विधाओं पर आधारित होते हैं। ये कार्यक्रम, बच्चों को टी.वी. के माध्यम से अपनी प्रतिभा को सारी दुनिया से परिचित करवाने हेतु मंच प्रदान करते हैं। कम उम्र में ख्याति(ग्लैमर) तथा धन कमाने का अवसर देने वाले इन कार्यक्रमों का दूसरा पहलू भी है,जो बच्चों के व्यवहार और भावनाओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। इसे हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:-- लगभग तीन या चार महीनों में खत्म होने वाले रिएलिटी शो के दौरान बच्चों को एक्सपोज़र की आदत पड़ जाती है, जो शो खत्म होने के बाद एक प्रकार के डिप्रेशन(अवसाद) का रूप ले लेती है।
- असफलता के डर के कारण इन बच्चों में मनोविकार पैदा हो जाते हैं। बचपन में ही उन पर लगा असफलता का तमगा, उन्हें जीवन भर बोझ जैसा प्रतीत होता है।
- इन कार्यक्रमों के दौरान बच्चों को लंबी अवधी तक शूटिंग स्थलों पर रुकना होता है। दबाव और चिंता के माहौल में रहने व आराम की कमी के कारण इनमें अनिद्रा आदि की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
- शूटिंग के दौरान बच्चों को तेज़ रोशनी का सामना करना पड़ता है जिससे उनकी आँखों तथा चेहरे की त्वचा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- ऐसे कई कार्यक्रमों में बच्चों से भद्दे डांस, घिनौने व द्विअर्थी संवाद तथा खतरनाक स्टंट करवाए जाते हैं। ये उनके बचपन पर कुठाराघात है।
बच्चों के रिएलिटी शो उनके मानसिक - शारीरिक स्वास्थ्य, मानवाधिकार, बाल अधिकार, शिक्षा आदि की राह में बाधा बनते स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। अतः बच्चों के रिएलिटी टी.वी. कार्यक्रमों पर पाबंदी एक उचित कदम प्रतीत होता है। यदि ऐसा तत्काल करना संभव न हो तो भी उन्हें विनियमित करने हेतु निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:-
- ऐसे कार्यक्रमों में बच्चों की आयु सीमा तय होनी चाहिये। 5 से 9 वर्ष तक के बच्चों को ऐसी प्रतिस्पर्द्धाओं में नहीं उतारना चाहिये।
- बच्चों के मोटापे, दाँत या आदतों पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी नहीं की जानी चाहिये।
- कार्यक्रम के जजों की वाणी में संयम तथा व्यवहार में शालीनता होनी चाहिये।
टी.वी. मनोरंजन का साधन है। शुद्ध व्यावसायिकता और टी.आर.पी की इस दौड़ में बच्चों के अधिकारों को रौंदा जाना बिलकुल भी उचित नहीं है। बच्चों की प्रतिभा को परखने के ये तरीके उनके जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। माता-पिता को भी ये प्रयास करना चाहिये कि बच्चे के हुनर का विकास घरेलु स्तर पर किया जाए एवं उसके युवा होने पर ही रिएलिटी कार्यकर्मों में भाग लेने दिया जाए।
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