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प्रश्न :
जंगलों के संकुचन और वन्यजीवों के आवास विखंडन के परिणामस्वरूप मानव-पशु संघर्ष में बढ़ोतरी देखने को मिलती है। हाल ही में एक अधेड़ उम्र की व्यक्ति को एक बाघ ने उस समय मार दिया जब वह अपने पशुओं को पास के आरक्षित वन के समीप चराने ले गया था। इस घटना से क्षुब्ध होकर ग्रामीणों ने वन-विभाग के खिलाफ जमकर विरोध प्रदर्शन किया और बाघ को मार गिराने की मांग की। यदि एक भूखे बाघ ने अपनी क्षुधा की तृप्ति के लिये किसी व्यक्ति को मार दिया तो क्या इसके बदले में मनुष्य द्वारा बाघ को मार गिराए जाने की मांग नैतिक है? आलोचनात्मक टिप्पणी करें।
18 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- उत्तर के परिचय के रूप में मानव व पशु के बीच के विभेद को समझाएँ।
- बाघ को मारने की मांग की आलोचनात्मक विवेचन प्रस्तुत करें।
- निष्कर्ष में मानव-पशु सामंजस्य के उपायों की चर्चा करें।
मानव और पशु कई तरह से एक-दूसरे से भिन्न हैं। यद्यपि दोनों की भौतिक ज़रूरतें एक हो सकती हैं, लेकिन मानव का मस्तिष्क पशु की तुलना में काफी विकसित होता है और सक्रिय विवेकी शक्ति उसे और भी विशिष्ट बनाती है। इन्हीं विशेषताओं के कारण वह मानवोचित गुणों को धारण करता है। खाद्य पिरामिड में बाघ और मानव एक ही वर्ग में शामिल हैं, जबकि मैस्लो के आवश्यकता पिरामिड के अनुसार मानव ही वह प्राणी है जो स्वयं वास्तवीकरण (Self actualization) के स्तर तक पहुँच सकता है।
पशु के हिंसात्मक व्यवहार को उसका मूल व्यवहार नहीं माना जाता है। वह किसी को तभी मारता है जब वह भूखा रहता है या डरा हुआ रहता है या फिर खुद पर आक्रमण महसूस करता है। इस प्रकार बाघ द्वारा रक्षात्मक कार्रवाई के रूप में हिंसात्मक व्यवहार को अपनाया जाता है। इसके लिये मनुष्यों द्वारा बाघ को मारने की मांग –
- यह एक प्रतिशोध से भरी प्रतिक्रिया का ही रूप है।
- यद्यपि वन्यजीव संरक्षण कानून विशेष परिस्थितियों जैसे ‘जीवन पर खतरा’ की स्थिति में संरक्षित जीवों को अपवाद के रूप में मारने की इजाज़त देता है। लेकिन उपर्युक्त परिस्थिति में यह दुविधा उत्पन्न होती है कि यहाँ स्वयं मानव द्वारा ही खतरा को उत्पन्न किया गया था।
- बाघों के आवासों पर खुद हमला करना या फिर बाघों के आवासों के आस-पास टहलना उसके बाद बाघ द्वारा शिकार होने का दावा करना किसी तेज़ गति से चल रही ट्रेन के आगे कूद जाने के बाद यह कहना कि ट्रेन ने एक व्यक्ति को धक्का दे दिया के समान ही प्रतीत होता है।
- उपर्युक्त परिस्थिति में मनुष्य को किसी जीव का प्राण हरण करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि वह ईश्वर या प्रकृति प्रदत्त है।
उपर्युक्त प्रकरण में यह कहा जा सकता है कि भावनात्मक होकर बाघ को मारने की जगह एक दीर्घकालीन सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण को विकसित करने की मांग होनी चाहिये। उदाहरण के लिये, संरक्षित क्षेत्र के इर्द-गिर्द बाड़ लगाना, पशुओं के लिये हरे-भरे चारागाह की व्यवस्था कराना, ट्रिंक्वीलाइज़र जैसे उपकरणों का इस्तेमाल करना आदि। इस तरह मनुष्य-प्रकृति संतुलन को स्थापित कर ही हम सही अर्थों में मानव कहलाने योग्य होंगे, अन्यथा हमारी सक्रिय बुद्धि व्यर्थ हो जाएगी।
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