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  • 19 Jul 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस-3: विश्व के शीत और उष्ण मरुस्थलों के वितरण को बताते हुए उनके विकास हेतु उत्तरदायी कारणों को स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • वर्षण के संदर्भ में मरुस्थल की परिभाषा बताते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • विश्व के शीत और उष्ण मरुस्थलों के वितरण हेतु उत्तरदायी कारणों को स्पष्ट कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    मरुस्थल, भूमि का वह क्षेत्र है जहाँ प्रति वर्ष 25 सेंटीमीटर से कम वर्षा होती है। मरुस्थल क्षेत्र में वाष्पीकरण की मात्रा अक्सर वार्षिक वर्षा से कहीं अधिक होती है। विश्व के शीत और उष्ण मरुस्थलों को उनके विकास हेतु उत्तरदायी कारणों एवं जलवायु परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में देखा जाता है।

    विश्व के शीत मरुस्थलों का वितरण और उनके विकास हेतु उत्तरदायी कारण:

    • शीत मरुस्थलों का वितरण: शीत मरुस्थल मुख्यतः ध्रुवीय क्षेत्रों तथा ऊँचाई पर मिलते हैं। विश्व का सबसे बड़ा शीत मरुस्थल अंटार्कटिका है। अन्य उल्लेखनीय शीत मरुस्थलों में आर्कटिक क्षेत्र, मध्य एशिया के कुछ हिस्से (जैसे गोबी रेगिस्तान) और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्से (जैसे ग्रेट बेसिन रेगिस्तान) शामिल हैं।
      • इन मरुस्थलों में काफी कम तापमान रहने के साथ बहुत अधिक सर्दियाँ होती हैं।
    • शीत मरुस्थलों का निर्माण: शीत मरुस्थलों का निर्माण विशिष्ट जलवायु परिस्थितियों और भौगोलिक विशेषताओं के कारण होता है।
      • इसका प्राथमिक कारक पर्वत शृंखलाओं के कारण होने वाला वर्षा छाया क्षेत्र प्रभाव है। जैसे ही समुद्र से नम पवनें पर्वतों की ओर बहती है, वह ऊपर उठती हैं और ठंडी हो जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप पर्वतों के एक ओर वर्षा होती है। जब तक यह पवनें पर्वतों के दूसरी ओर पहुँचती हैं तब तक उनकी अधिकांश नमी समाप्त हो चुकी होती है, जिससे वहाँ पर शुष्क स्थिति पैदा हो जाती है।
      • इसके अतिरिक्त शीत मरुस्थल का विकास जल निकायों से दूरी, प्रचलित हवा के प्रतिरूप और अक्षांश एवं ऊँचाई के कारण तापमान में होने वाले उतार-चढ़ाव से प्रभावित होता है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से आर्कटिक क्षेत्र में ध्रुवीय बर्फ की चोटियों का पिघलना भी देखा गया है।
      • समुद्री बर्फ के आवरण में कमी के कारण ध्रुवीय प्रजातियों के आवास के विघटन के साथ इनके व्यवहार में परिवर्तन आया है।
      • इसके अतिरिक्त हिमालय जैसे शीत रेगिस्तानी क्षेत्रों में ग्लेशियरों के कम होने का जल की उपलब्धता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जिससे स्थानीय समुदाय और निचले क्षेत्र दोनों प्रभावित हुए हैं।

    विश्व के उष्ण मरुस्थलों का वितरण एवं उनके विकास हेतु उत्तरदायी कारण:

    • उष्ण मरुस्थलों का वितरण: उष्ण मरुस्थल मुख्यतः उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। विश्व का सबसे बड़ा उष्ण मरुस्थल अफ्रीका का सहारा मरुस्थल है। अन्य उल्लेखनीय उष्ण मरुस्थलों में अरब का रेगिस्तान क्षेत्र, उत्तरी अमेरिका का मोजावे मरुस्थल और ऑस्ट्रेलियाई आउटबैक क्षेत्र शामिल हैं।
      • उष्ण मरुस्थलों में दिन के दौरान अधिक तापमान और अपेक्षाकृत ठंडी रातें होती हैं।
    • उष्ण मरुस्थलों का विकास: उष्ण मरुस्थलों का विकास विशिष्ट जलवायु और भौगोलिक कारकों से होता है।
      • इनमें उच्च वायुदाब प्रणाली, वैश्विक पवन प्रतिरूप और ठंडी समुद्री धाराओं की भूमिका होती है। उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उच्च वायुदाब प्रणाली से ऐसी वायुमंडलीय परिस्थितियाँ बनती हैं, जिससे बादलों के निर्माण और वर्षा में बाधा होती है।
      • इसके अतिरिक्त उष्ण मरुस्थल अक्सर शीत मरुस्थलों की तरह वर्षा छाया क्षेत्र में स्थित होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप यहाँ शुष्क स्थिति उत्पन्न होती है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से अफ्रीका के साहेल क्षेत्र और दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका के शुष्क क्षेत्रों में सूखे और हीटवेव की तीव्रता में वृद्धि हुई है।
      • इन कारणों से मरुस्थलीकरण में वृद्धि, कृषि उत्पादकता में कमी एवं जल की कमी से स्थानीय समुदाय और पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहे हैं।
      • सहारा मरुस्थल का विस्तार जलवायु परिवर्तन का एक और चिंताजनक परिणाम है।

    शीत और उष्ण मरुस्थलों की स्थिति, भौगोलिक एवं जलवायु कारकों से प्रभावित है। शीत मरुस्थल अधिक ऊँचाई वाले ध्रुवीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं जबकि उष्ण मरुस्थल उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मिलते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुवीय बर्फ के आवरण में कमी आने, ग्लेशियरों के पिघलने एवं सूखा और मरुस्थलीकरण में वृद्धि होने से मरुस्थली पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।

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