नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Mains Marathon

  • 31 Aug 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    दिवस 52: “सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) एक वैश्विक प्रयास है जिसका एक प्रमुख उद्देश्य सभी के लिये बेहतर भविष्य प्राप्त करना है। यदि भारत को वर्ष 2030 तक अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना है, तो उसे एसडीजी को प्रभावी ढंग से स्थानीयकृत करने के लिये एक तंत्र का निर्माण करना होगा। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और सतत् विकास लक्ष्य के स्थानीयकरण के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • 2030 तक एसडीजी हासिल करने हेतु भारत के लिए एसडीजी के स्थानीयकरण के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
    • निष्पक्ष निष्कर्ष दीजिये।

    सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals- SDGs) एक वैश्विक प्रयास है जिसका एक प्रमुख उद्देश्य है—सभी के लिये एक बेहतर भविष्य की प्राप्ति। इन वैश्विक और राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये स्थानीयकरण (localization) एक महत्त्वपूर्ण साधन है।

    यह सहसंबंधित करता है कि किस प्रकार स्थानीय और राज्य सरकारें ऊर्ध्वगामी कार्रवाई (bottom-up action) के माध्यम से SDGs की प्राप्ति में सहायता दे सकती हैं और SDGs किस प्रकार स्थानीय नीति के लिये एक ढाँचा प्रदान कर सकते हैं।

    यदि भारत को वर्ष 2030 तक अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना है, तो उसे SDGs को प्रभावी ढंग से स्थानीयकृत करने के लिये एक तंत्र का निर्माण करना होगा

    जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता:

    • पेरिस समझौता एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय समझौता है जिसे जलवायु परिवर्तन और उसके नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिये वर्ष 2015 में दुनिया के लगभग प्रत्येक देश द्वारा अपनाया गया था।
    • इस समझौते का उद्देश्य वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करना है, ताकि इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर (Pre-Industrial level) से 2 डिग्री सेल्सियस कम रखा जा सके।
    • इसके साथ ही आगे चलकर तापमान वृद्धि को और 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। ध्यातव्य है कि इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये प्रत्येक देश को ग्रीनहाउस गैसों के अपने उत्सर्जन को कम करना होगा, जिसके संबंध में कई देशों द्वारा सराहनीय प्रयास भी किये गए हैं।
    • यह समझौता विकसित राष्ट्रों को उनके जलवायु से निपटने के प्रयासों में विकासशील राष्ट्रों की सहायता हेतु एक मार्ग प्रदान करता है।

    ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (INDC): सम्मेलन की शुरुआत से पूर्व 180 से अधिक देशों ने अपने कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के लिये प्रतिज्ञा की थी।

    • INDCs को समझौते के तहत मान्यता दी गई है, लेकिन यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है।
    • भारत ने भी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये समझौते के तहत लक्ष्यों को पूरा करने हेतु अपनी INDCs प्रतिबद्धताओं की पुष्टि की है।

    भारत के INDCs

    • उत्सर्जन तीव्रता को जीडीपी के लगभग एक-तिहाई तक कम करना।
    • बिजली की कुल स्थापित क्षमता का 40% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करना।
    • 2030 तक भारत द्वारा वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के अतिरिक्त कार्बन सिंक (वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने का एक साधन) के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।

    सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भारत की स्थानीय पहल:

    • भारत ने नीति आयोग के एसडीजी इंडिया इंडेक्स द्वारा मूल्यांकन किए गए 15 एसडीजी में से आठ पर अच्छा प्रदर्शन किया, जबकि 2020-21 एक महामारी वर्ष रहा।
    • एसडीजी स्कोर 0 और 100 के बीच होता है और उच्च स्कोर यह दर्शाता है कि एक राज्य लक्ष्य हासिल करने के करीब है।
    • केरल और चंडीगढ़ 2021-22 में शीर्ष राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के रूप में उभरे।
    • सर्वेक्षण से पता चलता है कि 2020-21 में फ्रंट रनर (65-99 स्कोरिंग) राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की संख्या बढ़कर 22 हो गई, जो 2019-20 में 10 थी।
    • नीति आयोग एसडीजी इंडिया इंडेक्स का निर्माण 84 संकेतकों के साथ किया गया है और इसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र के आठ राज्यों में 15 वैश्विक लक्ष्य, 50 एसडीजी लक्ष्य और 103 जिले शामिल हैं।

    चुनौतियाँ

    • सीमित संसाधनों की चुनौतियाँ: निस्संदेह ग्राम पंचायत विकास योजना के प्रसार में (मानव संसाधन, क्षमताओं का विकास और अलग-अलग विभागीय बजट आवंटन सहित) स्व-सहायता समूहों जैसे सामुदायिक संस्थानों को शामिल करने की कई अंतर्निहित चुनौतियाँ भी हैं।
      • उपयुक्त और लाभदायक आजीविका विकल्प अपनाने के लिये स्व-सहायता समूह के सदस्यों के बीच ज्ञान और उचित अभिविन्यास की कमी है।
    • ग्रामीण बैंकिंग सुविधाओं का अभाव: कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और सूक्ष्म-वित्त संस्थान (micro-finance institutions) निर्धनों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि वहाँ सेवा की लागत अधिक होती है।
      • स्व-सहायता समूहों की संवहनीयता और उनके कार्यान्वयन की गुणवत्ता पर्याप्त बहस का विषय रही हैं।

    आगे की राह

    • महिला संघों की शक्ति का लाभ उठाना: वर्तमान में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihoods Mission) के अंतर्गत स्व-सहायता समूहों के माध्यम से 76 मिलियन महिलाओं को गतिशील किया गया है और 3.1 मिलियन महिलाएँ निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों के रूप में सक्रिय हैं।
      • सतत् विकास लक्ष्यों के स्थानीयकरण की वास्तविक सफलता के लिये साझेदारी के माध्यम से इन दोनों संस्थाओं (PRIs & SHGs) की शक्ति का लाभ उठाने की आवश्यकता है।
    • पंचायत को मज़बूत करना: सतत् विकास लक्ष्यों के वास्तविक स्थानीयकरण के लिये संविधान के ढाँचे के भीतर मार्ग तलाश किया जाना चाहिये।
      • कोई भी कार्रवाई किसी समानांतर मार्ग का निर्माण न करे, बल्कि पंचायतों की संस्थागत क्षमता को सशक्त करने का एक उपाय हो।
    • पंचायती राज संस्थाओं को अधिक उत्तरदायित्व सौंपना: 73वें संविधान संशोधन ने 29 विषयों को पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित कर दिया। विकास के सफल स्थानीयकरण के लिये पंचायती राज संस्थाओं को न केवल अपनी शासन भूमिका पर बल देने की आवश्यकता है बल्कि अपनी विकासात्मक भूमिका पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
      • पूरी बहस को इस बात पर केंद्रित होना चाहिये कि किस प्रकार पंचायती राज संस्थाओं को सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये उनकी नेतृत्त्व भूमिका पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाया जाए।
      • इसके लिये दूरदर्शिता, संसाधन जुटाना और भागीदारी की तलाश जैसे विभिन्न नेतृत्त्व गुणों के विकास की आवश्यकता होगी।
    • सामाजिक पूँजी का लाभ उठाना: सामाजिक पूँजी आर्थिक गतिविधियों के लिये एक मज़बूत आधार का निर्माण करती है। इसलिये अंततः स्थानीयकरण के प्रयासों को न केवल सामाजिक संबंधों में बल्कि ग्रामों में आर्थिक गतिविधि के स्तर पर भी रूपांतरण की दिशा में प्रेरित होना चाहिये।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow