प्रश्न 1. "न्यायाधीशों की आयु बढ़ाने से उच्च न्यायपालिका में सुधार करने में काफी हद तक मदद मिलेगी।" समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
प्रश्न 2. चुनाव आयोग की निष्पक्षता के बारे में संदेह लोकतंत्र के लिये खतरा हो सकता है। समझाइये। (150 words)
प्रश्न 3. I2U2 पहल को 'वेस्ट एशियाई क्वाड' कहा जाता है। भारत के संदर्भ में I2U2 पहल के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
प्रश्न 4. भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 इन समस्याओं को दूर करने और इस समुदाय को न्याय दिलाने में कितना सक्षम होगा? (150 शब्द)
प्रश्न 5. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की स्थापना ST के हितों को आगे बढ़ाने के लिये की गई थी, हालाँकि पिछले चार वर्षों में यह निष्क्रिय रहा है और एक भी रिपोर्ट तैयार नहीं की है। इस संदर्भ में NCST की समस्याओं पर चर्चा कीजिये और इसे सुधारने के लिये विचार प्रस्तुत कीजिये। (150 शब्द)
प्रश्न 6. वर्णन कीजिये कि सामाजिक लेखा परीक्षा में क्या शामिल है। सामाजिक लेखा परीक्षा नीति के उद्देश्यों को परिणामों से कैसे जोड़ती है। चर्चा कीजिये (150 शब्द)
प्रश्न 7. भारत में मानवाधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न 8. संभावित लाभों के आलोक में सार्वभौमिक बुनियादी आय ( यूनिवर्सल बेसिक इनकम ) की अवधारणा का परीक्षण करते हुए भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में सार्वभौमिक बुनियादी आय के विचार के संभावित लाभों और कमियों पर विचार कीजिये।
प्रश्न 9. "शिक्षा एक निषेधाज्ञा नहीं है, यह सामाजिक परिवर्तन और व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिये एक प्रभावी और व्यापक उपकरण है।” उपरोक्त कथन के आलोक में नई शिक्षा नीति, 2020 (NEP, 2020) का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
प्रश्न 10. "श्रीलंका अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। इस संदर्भ में श्रीलंका संकट के पीछे के कारणों और श्रीलंकाई संकट में भारत के लिये अवसर की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)।
प्रश्न 11. पिछले पाँच वर्षों में वस्तु एवं सेवा अधिनियम (GST) की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं और GST प्रणाली के साथ प्रमुख चुनौतियों को उजागर कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न 12. ब्रिक्स एक हद तक सफल रहा है लेकिन अब उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस संदर्भ में समूह की स्थिरता बनाए रखने के लिये उठाए जाने वाले कदमों की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न 13. विशेष श्रेणी राज्य (SCS) कुछ राज्यों के विकास में सहायता के लिये केंद्र द्वारा दिया गया एक वर्गीकरण है, जिसमें कई विशेषताओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।" इस संदर्भ में SCS का दर्जा प्रदान करने से होने वाले लाभों पर चर्चा कीजिये, इस स्थिति को प्रदान करने के मानदंड और SCS स्थिति से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न 14. आर्थिक समावेशन और सामाजिक परिवर्तन दोनों ही सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (आईसीटी) से संभव हुए हैं।" विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक समावेशन और सामाजिक परिवर्तन लाने में आईसीटी की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)।
प्रश्न 15. "श्रीलंका में हाल ही में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों ने चार्टर को अपनाया, अब बिम्सटेक का एक अंतर्राष्ट्रीय चरित्र है। क्या आपको लगता है कि यह सार्क की विफलता के कारण उभरा है? (150 शब्द)
प्रश्न 16. "कोविड -19 के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की महामारी की स्थिति से निपटने में अक्षम होने के लिये गंभीर आलोचना हुई।" चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
प्रश्न 17. "समय के साथ फ्रीबीज़ भारतीय राजनीति का अभिन्न अंग बन गए हैं, चाहे वे चुनावी संघर्ष में मतदाताओं को लुभाने के लिये वादे के रूप में हों या उनका उद्देश्य सत्ता में बने रहने के लिये मुफ़्त सुविधाएँ प्रदान करना हो।समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न 18. “भारत में एक साथ चुनाव एक राष्ट्र एक चुनाव के विचार का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन यह कई चुनौतियों के साथ आता है। विचार-विमर्श कीजिये।
प्रश्न 19. "अधिकरण अदालतों के कार्यभार को कम करने और निर्णयों में तेज़ी लाने में मदद करते हैं, लेकिन वे अपने त्वरित न्याय के मिशन में विफल हो रहे हैं"। इस संदर्भ में न्यायाधिकरणों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं के रामबाण उपाय के रूप में राष्ट्रीय अधिकरण आयोग (NTC) के विचार पर चर्चा कीजिये।
प्रश्न 20. "संसदीय विपक्ष लोकतंत्र के वास्तविक सार को संरक्षित करने और देश में बड़ी संख्या में लोगों की चिंताओं को उठाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।" इस संदर्भ में वर्तमान संसद विपक्ष के साथ महत्त्व और मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
05 Sep 2022 | रिवीज़न टेस्ट्स | सामान्य अध्ययन पेपर 2
हल करने का दृष्टिकोण :
|
वेंकटचलैया रिपोर्ट (संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट, 2002) ने सिफारिश की कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 65 वर्ष की जानी चाहिये और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 68 साल बढ़ाई जानी चाहिये।
वर्ष 2010 में संविधान (114वंँ संशोधन) विधेयक के माध्यम से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 65 करने के लिये पेश किया गया था। हालाँकि इसे संसद में विचार के लिये नहीं लिया गया और 15 वीं लोकसभा के विघटन के साथ समाप्त हो गया।
न्यायाधीशों की आयु बढ़ाने की आवश्यकता:
सकारात्मक परिणाम
नकारात्मक परिणाम
आगे की राह
हल करने का दृष्टिकोण:
|
भारत निर्वाचन आयोग, जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है। यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
चुनाव आयोग की निष्पक्षता का महत्त्व:
औचित्य पर सवाल उठाना मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) लोकतंत्र के लिये एक गंभीर खतरा हो सकता है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यालय स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की एकमात्र ज़िम्मेदारी के साथ निहित है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव शासन के लोकतांत्रिक स्वरूप के तंत्रिका केंद्र हैं। केंद्रीय कानून मंत्रालय चुनाव आयोग के कार्यालय के प्रशासनिक प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।
पीएमओ के "निर्देश" और CEC और दो अन्य चुनाव आयुक्तों के साथ अनौपचारिक बैठक के दौरान दबाव ने आयोग के स्वतंत्र कामकाज के बारे में चिंता जताई है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक प्राधिकरण है जिसकी ज़ि जिम्मेदारियाँ और शक्तियाँ भारत के संविधान में अनुच्छेद 324 के तहत निर्धारित हैं।
चुनाव आयोग को अपने कार्यों के निष्पादन में कार्यकारी हस्तक्षेप से अछूता रखा जाता है।इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य आम चुनाव या उप-चुनाव कराने के लिये समय-समय पर चुनाव कार्यक्रम तय करना है। यह निर्वाचक नामावली (Voter List) तैयार करता है तथा मतदाता पहचान पत्र (EPIC) जारी करता है। यह मतदान एवं मतगणना केंद्रों के लिये स्थान, मतदाताओं के लिये मतदान केंद्र तय करना, मतदान एवं मतगणना केंद्रों में सभी प्रकार की आवश्यक व्यवस्थाएँ और अन्य संबद्ध कार्यों का प्रबंधन करता है। आयोग के निर्णयों को उपयुक्त याचिकाओं द्वारा उच्च न्यायालय और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। लंबे समय से चली आ रही परंपरा और कई न्यायिक घोषणाओं से एक बार चुनाव की वास्तविक प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद न्यायपालिका चुनावों के वास्तविक संचालन में हस्तक्षेप नहीं करती है।
चुनाव आयोग चुनाव के दौरान सुरक्षा कर्मियों की तैनाती के लिये अपने प्रशासनिक मंत्रालय, कानून मंत्रालय या गृह मंत्रालय के माध्यम से नौकरशाही के माध्यम से चुनाव मामलों पर सरकार के साथ संचार करता है। ऐसी परिस्थितियों में गृह सचिव को अक्सर पूर्ण आयोग के समक्ष बुलाया जाता है, जिसमें तीन आयुक्त शामिल होते हैं। कानून मंत्रालय देश के लिये कानून बनाता है और उम्मीद की जाती है कि वह आयोग को अपनी स्वायत्तता की रक्षा हेतु सौंपे गए संवैधानिक सुरक्षा उपायों का उल्लंघन नहीं करेगा।
आयोग के जनादेश और इसका समर्थन करने वाले तंत्र के लिये अधिक कानूनी समर्थन की आवश्यकता है। हस्तक्षेप को उचित कानूनी उपायों के साथ पूरा किया जाना चाहिये जो चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता की रक्षा करते हैं।
हल करने का दृष्टिकोण:
|
I2U2 को आरंभिक रूप से अक्टूबर, 2021 में अब्राहम समझौते के बाद समुद्री सुरक्षा, आधारभूत संरचना और परिवहन से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये गठित किया गया था।
उस समय इसे 'आर्थिक सहयोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय मंच' कहा जाता था। इसे 'वेस्ट एशियन क्वाड' भी कहा जाता था।
I2U2 पहल भारत, इज़रायल, यूएसए और यूएई का एक नया समूह है।
समूह के नाम में 'I2' का अर्थ भारत और इज़रायल है, जबकि 'U2' का अर्थ संयुक्त राज्य अमेरिका एवं संयुक्त अरब अमीरात है।
यह एक बड़ी उपलब्धि है जो इस क्षेत्र में होने वाले भू-राजनीतिक परिवर्तनों को दर्शाती है।
यह न केवल दुनिया भर में गठबंधन और साझेदारी की प्रणाली को पुनर्जीवित एवं फिर से सक्रिय करेगा, बल्कि उन साझेदारियों को भी जोड़ देगा जो पहले मौजूद नहीं थीं या पूरी तरह से उपयोग नहीं की गई थीं।
भारत के लिये I2U2 का महत्त्व:
अब्राहम समझौते से लाभ: भारत को संयुक्त अरब अमीरात और अन्य अरब राज्यों के साथ अपने संबंधों को जोखिम में डाले बिना इज़रायल के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये अब्राहम समझौते (Abraham Accords) का लाभ मिलेगा।
बाज़ार को फायदा: भारत एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार है। यह उच्च तकनीक और अत्यधिक मांग वाले सामानों का भी एक बड़ा उत्पादक स्थान है। इस ग्रुपिंग से भारत को फायदा होगा।
गठबंधन: यह भारत को राजनीतिक और सामाजिक गठबंधन निर्मित करने में मददगार साबित होगा।
UAE के साथ संबंध मज़बूत करना: I2U2 समूह की सदस्यता कई मायनों में भारत के अनुकूल है। यह भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच पिछले साल हस्ताक्षरित व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) को बढ़ावा देता है, जो खाड़ी क्षेत्र से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सर्वोच्च योगदानकर्त्ता है। CEPA से पाँच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार के मूल्य को 100 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने की उम्मीद है। UAE 35 लाख भारतीयों का भी आवास है, जो देश की आबादी का लगभग एक तिहाई है और श्रम का एक प्रमुख स्रोत है।
वाशिंगटन के साथ अपने सहयोग का विस्तार करने हेतु एक नया एवेन्यू प्रदान करना: I2U2 राजनयिक स्तर पर भी भारत के लिये एक विजेता है। यह भारत के लिये पश्चिम एशिया में एक उन्नत प्रोफाइल के साथ एक बड़ी वैश्विक भूमिका निभाने के लिये एक खिड़की खोलता है। यह नई दिल्ली की रणनीतिक स्वायत्तता का त्याग किये बिना भारत-प्रशांत से परे वाशिंगटन के साथ अपने सहयोग का विस्तार करने के लिये एक नया अवसर प्रदान करता है। यह भारत की ऊर्जा और आर्थिक हितों के कारण रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र मध्य पूर्व के साथ संबंधों को भी गहरा कर सकता है।
I2U2 में भारत के लिये चुनौतियाँ:
मुस्लिम दुनिया और इज़राइल दोनों के साथ संबंधों को संतुलित करना: मुस्लिम दुनिया के देशों और इज़राइल दोनों के साथ एक यहूदी-प्रभुत्व वाले देश के साथ रणनीतिक स्वायत्तता खोए बिना संबंधों का संतुलन भारत के लिये एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
सुरक्षा संबंधी खतरे: मिडल इस्ट क्वाड के रूप में I2U2 की स्थापना को इस क्षेत्र में आतंकवादी समूहों द्वारा इस क्षेत्र में पश्चिम के बढ़ते प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है तथा वे एक समानांतर संगठन स्थापित करने का प्रयास करेंगे जो अहिंसा और भारतीय विदेश नीति की शांति के प्रमुख उद्देश्यों को बाधित करेगा।
खाड़ी क्षेत्र में अस्थिरता: संयुक्त अरब अमीरात के गठबंधन से हटने के मामले में यह पूरे संगठन को बाहरी गठबंधन के रूप में क्षेत्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में पेश करेगा।
आगे की राह
हल करने का दृष्टिकोण:
|
‘ट्रांसजेंडर’ शब्द का उपयोग प्राय: उन लोगों को संदर्भित करने के लिये किया जाता है जिनकी लैंगिक पहचान उनके जन्म लिंग से भिन्न होती है। भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय लंबे समय से पुरुष वर्चस्ववादी सामाजिक पूर्वाग्रहों और वैकल्पिक यौनिकता को अपराध मानने वाले क्रूर कानूनों का खामियाज भुगत रहे हैं।
भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय की प्रमुख समस्याएँ
भेदभाव: शिक्षा, रोज़गार और सार्वजनिक सुविधाओं तक पहुँच के मामले में उनके साथ भेदभाव किया जाता है। पुलिस द्वारा भी उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और वे सामाजिक न्याय के लिये संघर्षरत होते हैं।
पारिवारिक समर्थन का अभाव: उनकी लैंगिक पहचान की सिद्धि के बाद उन्हें समाज द्वारा माता-पिता का घर छोड़ने के लिये मज़बूर किया जाता है क्योंकि उन्हें सामान्य समुदाय और वर्ग का हिस्सा नहीं माना जाता है।
अवांछित ध्यान: सार्वजनिक स्थल पर ये लोगों के अवांछित ध्यान का शिकार बनते हैं।
चिकित्सीय सहायता की कमी: ये एच.आई.वी., अवसाद, हार्मोन की गोली के दुरुपयोग, तंबाकू एवं शराब सेवन, पेनेकटॉमी (penectomy) जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार हैं।
वे वैवाहिक और गोद लेने संबंधी कानूनी समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 के प्रावधान
एक उदार और समग्र दृष्टिकोण के बावजूद ट्रांसजेंडर विधेयक की आलोचना निम्नलिखित कारणों से की जा रही है-
हल करने का दृष्टिकोण:
|
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन करके और संविधान (89वाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A सम्मिलित कर की गई थी, अत: यह एक संवैधानिक निकाय है।
अनुच्छेद 338A अन्य बातों के साथ-साथ NCST को संविधान के तहत या किसी अन्य कानून के तहत या सरकार को किसी अन्य आदेश के तहत STs को प्रदान किये गए विभिन्न सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी करने और ऐसे सुरक्षा उपायों के कामकाज का मूल्यांकन करने की शक्ति प्रदान करता है।
NCST के कर्तव्य और कार्य:
NCST से संबंधित मुद्दे:
आगे की राह
हल करने का दृष्टिकोण :
|
सामाजिक अंकेक्षण एक संगठन के सामाजिक और नैतिक प्रदर्शन को मापने, समझने, प्रेषित करने और अंततः सुधारने का एक तरीका है। यह दक्षता और प्रभावशीलता, लक्ष्य और वास्तविकता के मध्य उत्पन्न अंतराल को कम करने में सहायक है।
यह संगठन के सामाजिक प्रदर्शन को समझने, मापने, सत्यापित करने, प्रेषित करने और सुधारने की एक तकनीक है।
नीतिगत उद्देश्यों और परिणामों के मध्य अंतराल में सामाजिक अंकेक्षण की भूमिका:
सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया का उपयोग सामाजिक जुड़ाव, पारदर्शिता और सूचना के संचार के लिये एक साधन के रूप में किया जाता है, जिससे निर्णयकर्त्ताओं, प्रतिनिधियों, प्रबंधकों और अधिकारियों की अधिक जवाबदेही सुनिश्चित होती है। इस प्रकार सामाजिक अंकेक्षण में नीतिगत उद्देश्यों एवं परिणामों के मध्य अंतराल को कम करने की जबरदस्त क्षमता होती है।
हल करने का दृष्टिकोण:
|
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, एक सांविधिक निकाय है। इसका गठन वर्ष 1993 संसद में पारित मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत किया गया। यह आयोग मानवाधिकारों का प्रहरी है। जिसका उद्देश्य उन संस्थागत व्यवस्थाओं को मज़बूत करना, जिसके द्वारा मानवाधिकार के मुद्दों का पूर्ण रूप में समाधान किया जा सके, अधिकारों के अतिक्रमण को सरकार से स्वतंत्र रूप में इस तरह से देखना ताकि सरकार का ध्यान उसके द्वारा मानवाधिकारों की रक्षा की प्रतिबद्धता पर केंद्रित किया जा सके तथा इस दिशा में किये गए प्रयासों को पूर्ण व सशक्त बनाना है।
यह आयोग वर्ष 1991 के प्रथम अंतर्राष्ट्रीय वर्कशॉप ऑन नेशनल इंस्टीट्यूशनस फॉर द परमोशन एंड प्रोटेक्शन ऑफ ह्यूमन राइट्स (पेरिस प्रिंसपल्स) के सिद्धांतों के अनुरूप है।
मानवाधिकार आयोग निम्नलिखित प्रकार से मानवाधिकारों का संरक्षण एवं संवर्धन करता है-
हालाँकि निम्नलिखित कारणों से एन.एच.आर.सी. की आलोचना की होती है-
इस प्रकार देखें तो उपर्युक्त कमियों को दूर करने के लिये सरकार को एन.एच.आर.सी. के कर्मचारियों का एक स्वतंत्र वर्ग विकसित करना चाहिये तथा आयोग की कुछ शक्तियाँ उपलब्ध कराकर उसे संवैधानिक निकाय बनाना चाहिये ताकि भविष्य में यह नीति निरपेक्ष एवं मानवाधिकारों की रक्षा में महत्त्चवूर्ण भूमिका निभा सके।
हल करने का दृष्टिकोण:
|
यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) देश के प्रत्येक नागरिक को दिया जाने वाला एक आवधिक (Periodic), बिना शर्त नकद हस्तांतरण है।
UBI के मुख्य रूप से 4 घटक हैं: सार्वभौमिकता: यह प्रकृति में सार्वभौमिक है, आवधिकता: नियमित अंतराल पर भुगतान (एकमुश्त अनुदान नहीं), व्यक्तिपरकता: व्यक्तियों को भुगतान, शर्तरहित: नकद हस्तांतरण के साथ कोई पूर्व शर्त संलग्न नहीं है
यूनिवर्सल बेसिक इनकम के लाभ:
यूबीआई से जुड़ी चिंताएँ:
यूबीआई क्रांतिकारी अवधारणा है, विशेष रूप से भारत में यह देखते हुए कि भारत गरीबी उन्मूलन की चुनौतियों का सामना कर रहा है। यदि जनसंख्या के उचित प्रतिशत पर ध्यान केंद्रित करके इसके नुकसान से बचने के लिये प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है, तो यूबीआई में गरीबी मुक्त भारत की शुरुआत करने की क्षमता है
हल करने का दृष्टिकोण:
|
हाल ही में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की घोषणा की गई है। एनईपी 2020 कई मायनों में एक व्यक्ति के विकास और समाज में सकारात्मक परिवर्तन करने में मदद कर सकती है।
यह शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों को महत्त्व प्रदान करती है; यह शिक्षा को अधिक समावेशी बनाने की परिकल्पना करती है और इसका उद्देश्य 21वीं सदी की ज़रूरतों को पूरा करने हेतु भारतीय शिक्षा प्रणाली को बदलना है।
व्यक्तित्व के विकास एवं सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से प्रारंभिक वर्षों के महत्त्व को पहचानना: 3 वर्ष की आयु से शुरू होने वाली स्कूली शिक्षा के लिये 5 + 3 + 3 + 4 मॉडल अपनाकर इस नीति के तहत बच्चे के भविष्य को आकार देने में 3 से 8 वर्ष की प्रारंभिक अवस्था को प्रधानता दी गई है।
समाज के कमज़ोर वर्गों को प्रोत्साहित करना: इस योजना का एक और प्रशंसनीय पहलू इंटर्नशिप के साथ व्यावसायिक पाठ्यक्रम है। यह समाज के कमज़ोर वर्गों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है। साथ ही यह 'स्किल इंडिया मिशन' के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगी।
शिक्षा को अधिक समावेशी बनाना: एनईपी में 18 वर्ष तक के सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार (आरटीई) प्रदान करने का प्रावधान है। इसके अलावा यह नीति उच्च शिक्षा में सकल नामांकन को बढ़ाने के लिये ऑनलाइन शिक्षण और सीखने के तरीकों की क्षमता बढ़ाने पर बल देती है। साथ ही इसमें सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों तक अधिक पहुँच बनाने के लिये तकनीकी समाधान के उपयोग पर ज़ोर दिया गया है।
हिंदी बनाम अंग्रेज़ी: सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि एनईपी स्पष्ट रूप से हिंदी बनाम अंग्रेज़ी भाषा की बहस को खत्म करती है। यह मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा को कम-से-कम ग्रेड 5 तक शिक्षा का माध्यम बनाने पर ज़ोर देती है, जिसे शिक्षण का सबसे अच्छा माध्यम माना जाता है। इसके तहत सीखने के साथ संस्कृति, भाषा और परंपराओं का एकीकरण होगा जिससे बच्चे आसानी से आत्मसात कर सकेंगे।
सिलो मानसिकता से छुटकारा: नई नीति में स्कूली शिक्षा का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू हाईस्कूल में कला, वाणिज्य और विज्ञान वर्ग के मध्य सख्त विभाजन का टूटना है। यह उच्च शिक्षा में एक बहु-विषयक दृष्टिकोण की नींव रख सकती है। यह वर्तमान परिदृश्य को बदलने में मदद करेगी जहाँ सामाजिक दबाव के कारण छात्रों को उन क्षेत्रों को चुनना पड़ता है जो उनकी पसंद के नहीं होते हैं।
शिक्षा और सामाजिक न्याय: एनईपी सामाजिक न्याय के लिये शिक्षा को सबसे प्रभावी तरीके के रूप में मान्यता देती है। इस प्रकार, एनईपी केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से सकल घरेलू उत्पाद का लगभग छह प्रतिशत के निवेश का सुझाव देती है।
निष्कर्ष
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य शिक्षा प्रणाली को 21वीं सदी और वर्ष 2030 तक समग्र रूप से सतत् विकास लक्ष्यों की आवश्यकताओं के अनुरूप लचीला और बहु-विषयक बनाना है।
हल करने का दृष्टिकोण:
|
श्रीलंका जिसकी आबादी 22 मिलियन है, अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, यह सात दशकों में सबसे खराब स्थिति है, जिसके कारण लाखों लोगों को भोजन, दवा, ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है।
राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के बाद सैकड़ों सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों ने श्रीलंका के राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग को लेकर राष्ट्रपति के आवास पर धावा बोल दिया।
श्रीलंका संकट का कारण:
भारत को श्रीलंका संकट की चिंता क्यों?
श्रीलंका संकट में भारत के लिये अवसर
आगे की राह
हल करने का दृष्टिकोण:
|
1 जुलाई, 2017 को, भारत ने वस्तु और सेवा कर (GST) के साथ अपनी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में सबसे बड़े बदलाव किये, जिसने देश की संपूर्ण अप्रत्यक्ष कर संरचना को नया रूप दिया और कर प्रशासन और अनुपालन को महत्त्वपूर्ण रूप से संशोधित किया।
वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम की उपलब्धियाँ
(a) अनुपालन में डिजिटलीकरण: सरकार द्वारा कर अनुपालन का स्वचालन एक बड़ी जीत रही है और विशेष रूप से पूर्ववर्ती शासन की तुलना में कुशलता से काम किया है। यह GST के तहत सभी अनुपालनों के लिये 'वन-स्टॉप-शॉप' पोर्टल यानी GST नेटवर्क (GSTN) की शुरुआत के कारण संभव हुआ है।
(b) प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग: पहले चरण में करदाताओं और अधिकारियों के लिये आवश्यक बुनियादी कार्यों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया था। इसके साथ ही GSTN का अगला ध्यान अनुपालन में सुधार, धोखाधड़ी का पता लगाने और नीति निर्माण का समर्थन करने के लिये उपलब्ध प्रौद्योगिकी एवं और डेटा का लाभ उठाने पर था। इसके लिये GSTN ने मार्च 2019 में एक बिजनेस इंटेलिजेंस एंड फ्रॉड एनालिटिक्स (BIFA) यूनिट का गठन किया, जिसने BIFA टूल को विकसित करने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग को नियोजित किया, जो GST के पिछले पाँच वर्षों में एक बड़ी जीत के रूप में उभरा है।
(c) सहकारी संघवाद: GST परिषद राजकोषीय संघीय और सर्वसम्मति-आधारित संरचना का एक सच्चा वसीयतनामा है, जो GST शासन की आधारशिला है। केंद्र और राज्य सरकारें महत्त्वपूर्ण कानूनी मुद्दों पर मिलकर काम कर रही हैं।
(d) कर आधार का विस्तार: सामान्य तौर पर GST ने उपभोक्ताओं पर समग्र अप्रत्यक्ष कर का बोझ कम किया है और भारतीय उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारोंं में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बना दिया है। कर आधार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप राजस्व संग्रह में वृद्धि हुई है।
(e) जीएसटी कर के व्यापक प्रभाव को समाप्त करता है: GST एक व्यापक अप्रत्यक्ष कर है जिसे अप्रत्यक्ष कराधान को एक छत्र के नीचे लाने के लिये डिज़ाइन किया गया था। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कर के व्यापक प्रभाव को समाप्त करने जा रहा है जो पहले स्पष्ट था। व्यापक कर प्रभाव को 'कर पर कर' के रूप में सर्वोत्तम रूप से वर्णित किया जा सकता है।
सुधार के क्षेत्र
(a) क्रेडिट अनलॉक करने की आवश्यकता: GST के कार्यान्वयन के पीछे का उद्देश्य बिना किसी नुकसान के संपूर्ण मूल्य शृंखला में निर्बाध कर क्रेडिट सुनिश्चित करना था। हालाँकि पूर्ववर्ती शासन से आगे बढ़ाए गए क्रेडिट प्रतिबंध व्यवसायों की लागत में वृद्धि करते हैं, कंपनियों के लिये कीमती कार्यशील पूंजी को अवरुद्ध करते हैं। इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर का मुद्दा भी एक बाधा बना हुआ है क्योंकि वर्तमान में इनपुट सेवाओं की वापसी की अनुमति नहीं है।
(b) विवाद समाधान: जबकि प्रौद्योगिकी और अनुपालन के मामले में बहुत कुछ पूरा किया गया है, जीएसटी से संबंधित कानूनी विवाद अभी भी प्रारंभिक अवस्था में हैं। क्षेत्रीय अग्रिम निर्णय पीठों द्वारा पारित असंगत निर्णयों के कई उदाहरण हैं। इस तरह के विपरीत निर्णयों के परिणामस्वरूप कई व्यवसायों के लिये अनावश्यक मुकदमेबाजी हुई है।
(c) जीएसटी टैक्स नेटवर्क का विस्तार: पेट्रोलियम GST के दायरे से बाहर है, अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा अभी भी टैक्स के दायरे से बाहर है। पेट्रोलियम उत्पादों को GST के दायरे में शामिल करने से कंपनियों की लागत में कमी आएगी।।
(d) ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग: जबकि GSTN ने GST परिदृश्य में क्रांति ला दी है, ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी में GSTN में गड़बड़ियों को दूर करने और दक्षता में सुधार करने की अपार संभावनाएँ हैं, क्योंकि दूरदराज के स्थानों पर छोटे व्यवसायों के लिये GST नेटवर्क की अविश्वसनीयता अभी भी एक चुनौती बनी हुई है।
(e) वर्चुअल डिजिटल एसेट्स का कराधान: सरकार ने अपने हालिया बजट में यह भी घोषणा की कि क्रिप्टोकरेंसी पर 30% की दर से आयकर लगाया जाएगा। दूसरी ओर NFT से संबंधित आपूर्ति पर GST कानून (अभी तक) इस क्षेत्र में कोई स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान नहीं करता है।
(f) ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (EODB) में बदलाव: जबकि GST के तहत प्रौद्योगिकी ने सरकार और उद्योग की आवश्यकताओं के साथ तालमेल बिठाया है, अनुपालन प्रावधान अभी भी पकड़ में आ रहे हैं। उदाहरण के लिये, GST कानून में प्रत्येक राज्य में एक प्रधान कार्यालय की स्थापना की आवश्यकता होती है जहाँ से आपूर्ति की जाती है।
परिवर्तन निश्चित रूप से कभी आसान नहीं होता है। सरकार GST की राह आसान करने की कोशिश कर रही है।वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं से एक सीख लेना महत्त्वपूर्ण है, जिन्होंने हमारे सामने GST लागू किया है और जिन्होंने एक एकीकृत कर प्रणाली और आसान इनपुट क्रेडिट होने के लाभों का अनुभव करने के लिये शुरुआती परेशानियों पर काबू पा लिया है।
हल करने का दृष्टिकोण:
|
ब्रिक्स विश्व की आबादी के 42%, भूमि क्षेत्र के 30%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 24% और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के 16% का प्रतिनिधित्व करता है। इसने वैश्विक उत्तर और वैश्विक दक्षिण के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करने का प्रयास किया है। BRICs ने बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार का आह्वान किया ताकि वे विश्व अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तनों और उभरते बाज़ारों की तेज़ी से बढ़ती केंद्रीय भूमिका को प्रतिबिंबित कर सकें।
ब्रिक्स के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ
आगे की राह
निष्कर्ष
हल करने का दृष्टिकोण :
|
हमारे संविधान में किसी राज्य को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन देश के कुछ हिस्से अन्य राज्यों की तुलना में संसाधनों के मामले में पिछड़े हुए हैं, इसलिये ऐसे राज्यों को केंद्र ने विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया है और SCS राज्यों को पूर्व में योजना आयोग के निकाय, राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) द्वारा केंद्रीय योजना सहायता प्रदान की गई है।
NDC ने राज्यों की कई विशेषताओं के आधार पर यह दर्जा दिया जिसमें शामिल हैं:
राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा पूर्व में योजना सहायता के लिये विशेष श्रेणी का दर्जा उन राज्यों को प्रदान किया गया था, जिन्हें विशेष ध्यान देने की आवश्यकता वाले कई विशेषताओं की विशेषता है। अब यह केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा है।
14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के लिये 'विशेष श्रेणी का दर्जा' समाप्त कर दिया है।
SCS वाले राज्यों को लाभ:
1. सभी केंद्र प्रायोजित योजनाओं और विदेशी सहायता पर राज्य के खर्च का 90% केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाता है, जबकि शेष 10 प्रतिशत राज्य को ब्याज़ मुक्त ऋण के रूप में दिया जाता है।
2. विशेष श्रेणी के राज्यों को केंद्रीय निधि प्राप्त करने में वरीयता दी जाती है।
3. उद्योगों को राज्य की ओर आकर्षित करने के लिये उन्हें उत्पाद शुल्क में रियायत दी जाती है।
4. केंद्र का सकल बजट भी 30 प्रतिशत विशेष श्रेणी के राज्यों को दिया जाता है।
5. इन राज्यों में ऋण अदला-बदली योजना और ऋण राहत उपलब्ध है।
6. निवेश आकर्षित करने के लिये विशेष श्रेणी की स्थिति वाले राज्यों को सीमा शुल्क, कॉर्पोरेट कर, आयकर और अन्य करों से छूट दी गई है।
7. विशेष श्रेणी के राज्यों में एक वित्तीय वर्ष से अप्रयुक्त धन समाप्त नहीं होता है और अगले वर्ष के लिये आगे बढ़ाया जाता है।
विशेष श्रेणी के दर्जे के कामकाज में कमी:
आगे की राह
हल करने का दृष्टिकोण:
|
भारतीय समाज में परिवर्तन लाने एवं आर्थिक समावेशिता के संदर्भ में ई-गवर्नेंस के निम्नलिखित अनुप्रयोग हैं:
आर्थिक आयाम
सामाजिक आयाम
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम भारत में सुशासन की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव लाने के उद्देश्यों से डिजिटल तकनीकों का उपयोग करने में मददगार साबित हुआ है। किसी भी ई-गवर्नेंस पहल का उद्देश्य परिवर्तनकारी, सस्ती और टिकाऊ तकनीक के साथ नागरिक भागीदारी और शक्तीकरण सुनिश्चित करना होना चाहिये। इस प्रकार वर्तमान वैश्विक ज़रूरतों एवं समय को ध्यान में रखते हुए ’अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार’ के आदर्श वाक्य को प्राप्त करने के लिये डिजिटल शक्तीकरण आवश्यक है।
हल करने का दृष्टिकोण:
|
बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) एक क्षेत्रीय संगठन है जिसके 7 सदस्यों में से 5 दक्षिण एशिया से हैं, इनमें बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं तथा दो- म्याँमार व थाईलैंड दक्षिण-पूर्व एशिया से हैं।
बिम्सटेक (बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल) समूह का पाँचवाँ शिखर सम्मेलन कोलंबो (श्रीलंका) में आयोजित किया गया। बिम्सटेक चार्टर पर हस्ताक्षर इस शिखर सम्मेलन का मुख्य परिणाम था।
यह उप-क्षेत्रीय संगठन वर्ष 1997 में बैंकॉक घोषणा के माध्यम से अस्तित्व में आया।
बिम्सटेक के उद्भव के पीछे विभिन्न क्षेत्रों में सार्क की विफलताओं में निहित है। जिन कारकों के कारण SAARC का पतन हुआ है, वही कारक हैं जिन्होंने बिम्सटेक, BBIN आदि जैसे संगठनों के उदय में मदद की है।
बिम्सटेक/सार्क की विफलताओं के उद्भव के लिये कारक
अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में विफल: जबकि सार्क ने खुद को एक क्षेत्रीय मंच के रूप में स्थापित किया है, यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में विफल रहा है। सार्क के तहत अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं और संस्थागत तंत्र स्थापित किये गए हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त रूप से लागू नहीं किया गया है।
कम व्यापार: दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (SAFTA) को अक्सर सार्क के एक प्रमुख परिणाम के रूप में उजागर किया जाता है, लेकिन वह भी अभी तक लागू नहीं किया गया है। साफ्टा के 2006 में ही लागू होने के बावजूद अंतर-क्षेत्रीय व्यापार केवल 5% ही बना हुआ है।
आपसी अविश्वास: सार्क के आठ सदस्य देश शामिल हैं: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका। जबकि संगठन का उद्देश्य दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना थाा।
अनियमित शिखर सम्मेलन: सार्क की पहली बैठक 1985 में ढाका में हुई थी, और अब तक 18 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं। हालाँकि संगठन का संचालन सुचारू रूप से नहीं हुआ है। अपने इतिहास के 30 वर्षों में वार्षिक सार्क शिखर सम्मेलन को राजनीतिक कारणों (चाहे वह द्विपक्षीय हो या आंतरिक) से 11 बार स्थगित किया गया है।
खतरे की धारणा पर सहमति का अभाव: सार्क को सुरक्षा सहयोग के क्षेत्र में भी बाधाओं का सामना करना पड़ा है। इस संबंध में एक बड़ी बाधा खतरे की धारणा पर आम सहमति की कमी रही है, क्योंकि सदस्य देश खतरों के विचार पर असहमत हैं। उदाहरण के लिये जहाँ पाकिस्तान से उत्पन्न होने वाला सीमा पार आतंकवाद भारत के लिये एक प्रमुख चिंता का विषय है, वहीं पाकिस्तान इन चिंताओं को दूर करने में विफल रहा है।
भारत और अन्य सदस्यों के बीच विषमता: भूगोल, अर्थव्यवस्था, सैन्य शक्ति और वैश्विक क्षेत्र में प्रभाव के मामले में भारत और अन्य सदस्य देशों के बीच विषमता छोटे देशों को आशंकित बनाती है। वे भारत को "बिग ब्रदर" के रूप में देखते हैं और डरते हैं कि यह सार्क का उपयोग इस क्षेत्र में आधिपत्य का पीछा करने के लिये कर सकता है। इसलिये छोटे पड़ोसी देश सार्क के तहत विभिन्न समझौतों को लागू करने के लिये अनिच्छुक रहे हैं।
बिम्सटेक की संभावनाएँ:
बिम्सटेक सार्क के लिये एक आदर्श विकल्प का प्रतिनिधित्व करता है जो अपनी स्थापना से ही अपने कामकाज में अप्रभावी रहा है। बिम्सटेक उस क्षेत्र में व्यापार, वाणिज्य, शांति और सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करेगा जो सार्क करने में विफल रहा है।
हल करने का दृष्टिकोण:
|
स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organization-WHO) की स्थापना वर्ष 1948 हुई थी।
यह एक अंतर-सरकारी संगठन है तथा सामान्यतः अपने सदस्य राष्ट्रों के स्वास्थ्य मंत्रालयों के सहयोग से कार्य करता है।
WHO वैश्विक स्वास्थ्य मामलों पर नेतृत्व प्रदान करते हुए स्वास्थ्य अनुसंधान संबंधी एजेंडा को आकार देता है तथा विभिन्न मानदंड एवं मानक निर्धारित करता है। साथ ही WHO साक्ष्य-आधारित नीति विकल्पों को स्पष्ट करता है, देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करता है तथा स्वास्थ्य संबंधी रुझानों की निगरानी और मूल्यांकन करता है।
कोविड-19 के दौरान WHO की भूमिका की आलोचना:
WHO की आलोचना के खिलाफ तर्क:
WHO की विश्वसनीयता को इस समय मिल रही आलोचना के कारण एक बड़ा झटका लगा है। WHO का राजनीतिकरण अभी भी एक बड़ी चिंता है, लेकिन यह व्यापक वैश्विक शासन प्रणाली के अंतर्निहित सिद्धांतों पर पुनर्विचार करने का अवसर भी प्रदान करता है। इस प्रकार WHO के कामकाज में आने वाली समस्याओं को ठीक करने के लिये उसके कामकाज में पर्याप्त सुधार होना चाहिये।
हल करने का दृष्टिकोण:
|
राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिये मुफ़्त बिजली/पानी की आपूर्ति, बेरोज़गारों, दिहाड़ी मज़दूरों एवं महिलाओं के लिये मासिक भत्ते के साथ-साथ लैपटॉप, स्मार्टफोन जैसे गैजेट्स देने का वादा करते हैं।
राज्यों को फ्रीबीज़ प्रदान करने की आदत ही हो गई है, चाहे वह ऋण माफी के रूप में हो या मुफ़्त बिजली, साइकिल, लैपटॉप, टीवी सेट आदि के रूप में।
फ्रीबीज़ के पक्ष में तर्क:
विकास को सुगम बनाना: ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जो दिखाते हैं कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली, रोज़गार गारंटी योजनाएँ, शिक्षा के लिये सहायता और स्वास्थ्य जैसे विषयों में किये जाने वाले परिव्यय वास्तव में समग्र लाभ का सृजन करते हैं। महामारी के दौरान विशेष रूप से इसकी पुष्टि भी हुई।.
उद्योगों को बढ़ावा: तमिलनाडु और बिहार जैसे राज्य महिलाओं को सिलाई मशीन, साड़ी और साइकिल जैसे लाभ देते रहे हैं, लेकिन वे इन वस्तुओं की खरीद अपने बजट राजस्व से करते हैं जिससे संबंधित उद्योगों की बिक्री बढ़ाने में भी योगदान करते हैं।
अपेक्षाओं की पूर्ति के लिये आवश्यक: भारत जैसे देश में जहाँ राज्यों में विकास का एक निश्चित स्तर पाया जाता है (या नहीं पाया जाता है), चुनावों के समय लोगों की ओर से ऐसी अपेक्षाएँ प्रकट की जाती हैं, जिन्हें फ्रीबीज़ के ऐसे वादों से पूरा किया जाता है।
कम विकसित राज्यों की सहायता: गरीबी से पीड़ित आबादी के एक बड़े हिस्से के साथ तुलनात्मक रूप से विकास के निम्न स्तर पर स्थित राज्यों के लिये इस तरह के फ्रीबीज़ आवश्यकता या मांग-आधारित बन जाते हैं और अपने स्वयं के उत्थान हेतु लोगों के लिये इस तरह की सब्सिडी की पेशकश करना आवश्यक हो जाता है।
फ्रीबीज़ के विपक्ष में तर्क:
मैक्रोइकोनॉमिक रूप से असंवहनीय: फ्रीबीज़ मैक्रोइकॉनॉमिक संवहनीयता/स्थिरता के बुनियादी ढाँचे को कमज़ोर करते हैं। फ्रीबीज़ की राजनीति व्यय प्राथमिकताओं को विकृत करती है और परिव्यय के किसी न किसी तरह की सब्सिडी पर केंद्रित बने रहने की प्रवृत्ति उभरती है।
राज्यों की वित्तीय स्थिति पर प्रभाव: फ्रीबीज़ देने का अंततः राजकोष पर प्रभाव पड़ता है, जबकि भारत के अधिकांश राज्य एक सुदृढ़ वित्तीय स्थिति नहीं रखते और उनके पास राजस्व के मामले में प्रायः अत्यंत सीमित संसाधन ही होते हैं।
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की भावना के विरुद्ध: चुनाव से पहले लोकलुभावन फ्रीबीज़ (सार्वजनिक धन का उपयोग करते हुए) का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है, सभी दलों के लिये समान अवसर की स्थिति में व्यवधान लाता है और चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता को मलिन करता है।
पर्यावरण से एक कदम दूर: जब ये फ्रीबीज़ मुफ़्त बिजली अथवा एक निश्चित मात्रा में मुफ़्त बिजली, पानी और अन्य प्रकार की उपभोग वस्तुओं के रूप में प्रदान किये जाते हैं, तो ये पर्यावरण एवं सतत विकास, नवीकरणीय ऊर्जा और अधिक कुशल सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के मद में किये जा सकने वाले परिव्यय को विचलित करते हैं।
भविष्य के विनिर्माण पर दुर्बलकारी प्रभाव: फ्रीबीज़ विनिर्माण क्षेत्र में उच्च-गुणक दक्षता को सक्षम करने वाले कुशल एवं प्रतिस्पर्द्धी अवसंरचना को बाधित कर विनिर्माण क्षेत्र की गुणवत्ता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम कर देते हैं।
‘क्रेडिट कल्चर’ का विनाश: फ्रीबीज़ के रूप में ऋण माफी (Loan Waivers) के अवांछित परिणाम भी सामने आ सकते हैं; जैसे कि यह संपूर्ण क्रेडिट कल्चर को नष्ट कर सकता है और यह इस बुनियादी प्रश्न को धुंधला कर देता है कि ऐसा क्यों है कि किसान समुदाय का एक बड़ा भाग बार-बार कर्ज के जाल में फँसता रहता है।
आगे की राह:
फ्रीबीज़ के आर्थिक प्रभावों को समझना: सवाल यह नहीं कि फ्रीबीज़ कितने सस्ते हैं, बल्कि यह है कि दीर्घावधि में अर्थव्यवस्था, जीवन की गुणवत्ता और सामाजिक सामंजस्य के लिये वे कितने महंगे साबित हो सकते हैं। इसके बजाय हमें लोकतंत्र और सशक्त संघवाद की प्रयोगशालाओं के माध्यम से दक्षता की दौड़ के लिये प्रयास करना चाहिये जहाँ राज्य अपने प्राधिकार का उपयोग नवीन विचारों एवं सामान्य समस्याओं के समाधान के लिये करें, जिनका फिर अन्य राज्य भी अनुकरण कर सकते हैं।
विवेकपूर्ण मांग-आधारित फ्रीबीज़: भारत एक बड़ा देश है और यहाँ अभी भी ऐसे लोगों का एक बड़ा समूह मौजूद है जो गरीबी रेखा से नीचे है। देश की विकास योजना में सभी लोगों को शामिल किया जाना भी ज़रूरी है।
सब्सिडी और फ्रीबीज़ में अंतर करना: फ्रीबीज़ के प्रभावों को आर्थिक नज़रिये और करदाताओं के धन से जोड़कर देखने की ज़रूरत है। सब्सिडी और फ्रीबीज़ में अंतर करना भी आवश्यक है क्योंकि सब्सिडी उचित और विशेष रूप से लक्षित लाभ हैं जो मांगों से उत्पन्न होते हैं।
दृष्टिकोण
|
परिचय
एक साथ चुनाव के पक्ष में तर्क
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक चुनाव होता है; दरअसल प्रत्येक राज्य में प्रत्येक वर्ष चुनाव भी होते हैं। उस रिपोर्ट में नीति आयोग ने तर्क दिया कि इन चुनावों के चलते विभिन्न प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नुकसान होते हैं।
एक साथ चुनाव के विरुद्ध तर्क
निष्कर्ष
हल करने का दृष्टिकोण:
|
अधिकरण एक अर्द्ध-न्यायिक संस्था (Quasi-Judicial Institution) है जिसे प्रशासनिक या कर-संबंधी विवादों को हल करने के लिये स्थापित किया जाता है। यह विवादों के अधिनिर्णयन, संघर्षरत पक्षों के बीच अधिकारों के निर्धारण, प्रशासनिक निर्णयन, किसी विद्यमान प्रशासनिक निर्णय की समीक्षा जैसे विभिन्न कार्यों का निष्पादन करती है।
अधिकरण संबंधी प्रावधान मूल संविधान में नहीं थे। इन्हें भारतीय संविधान में स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा शामिल किया गया। इस संशोधन के माध्यम से संविधान में अधिकरण से संबंधित एक नया भाग XIV-A और दो अनुच्छेद जोड़े गए:
अनुच्छेद 323A: यह अनुच्छेद प्रशासनिक अधिकरण से संबंधित है।
अनुच्छेद 323B: यह अनुच्छेद अन्य विषयों जैसे कि कराधान, विदेशी मुद्रा, आयात और निर्यात, भूमि सुधार, खाद्य, संसद तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव आदि के लिये अधिकरणों की स्थापना से संबंधित है।
भारत में अधिकरणों की वर्तमान स्थिति
स्वतंत्रता का अभाव: विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी रिपोर्ट (रिफॉर्मिंग द ट्रिब्यूनल फ्रेमवर्क इन इंडिया) के अनुसार स्वतंत्रता की कमी भारत में अधिकरणों को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों में से एक है। प्रारंभ में चयन समितियों के माध्यम से नियुक्ति की व्यवस्था अधिकरणों की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
गैर-एकरूपता की समस्या: अधिकरणों में सेवा शर्तों, सदस्यों के कार्यकाल, विभिन्न न्यायाधिकरणों के प्रभारी नोडल मंत्रालयों के संबंध में गैर-एकरूपता की समस्या है। ये कारक अधिकरणों के प्रबंधन और प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
संस्थागत मुद्दे: अधिकरण के कामकाज में कार्यकारी हस्तक्षेप प्रायः इसके दिन-प्रतिदिन के कामकाज के लिये आवश्यक वित्त, बुनियादी ढाँचे, कर्मियों और अन्य संसाधनों के प्रावधान के रूप में देखा जाता है।
राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग और इसका प्रभाव
आगे की राह
कानूनी समर्थन: जवाबदेही शासन के लिये एक स्वतंत्र निरीक्षण निकाय विकसित करने हेतु एक कानूनी ढाँचे की आवश्यकता होती है जो इसकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता की रक्षा करता है। इसलिये NTC को एक संवैधानिक संशोधन के माध्यम से स्थापित किया जाना चाहिये या एक ऐसे क़ानून द्वारा समर्थित होना चाहिये जो इसे कार्यात्मक, परिचालन और वित्तीय स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) मुद्दे से सीख: NTC को अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने के लिये न्यायपालिका द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करना होगा। अत्यधिक कार्यकारी हस्तक्षेप के कारण, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को न्यायपालिका की स्वतंत्रता बाधा उत्पन्न करने वाले निर्णय के रूप में देखा गया। इस प्रकार कार्यपालिका के साथ-साथ बार (Bar) को भी प्रासंगिक हितधारक होने के नाते किसी भी NTC का एक हिस्सा बनना चाहिये लेकिन इस प्रक्रिया में न्यायिक सदस्यों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
पुनर्नियुक्ति की प्रक्रिया से दूरी बनाना: NTC को ट्रिब्यूनल की स्वतंत्रता पर इसके प्रभाव के कारण ट्रिब्यूनल सदस्यों की पुनर्नियुक्ति की प्रणाली को भी दूर करना चाहिये।
हल करने का दृष्टिकोण:
|
संसदीय विपक्ष, विशेष रूप से वेस्टमिंस्टर-आधारित संसदीय प्रणाली में एक नामित सरकार के राजनीतिक विपक्ष का एक रूप है। "आधिकारिक विपक्ष" का दर्जा आमतौर पर विपक्ष में बैठे सबसे बड़े दल को प्राप्त होता है और इसके नेता को "विपक्ष के नेता" की उपाधि दी जाती है।
विपक्ष की महत्त्वपूर्ण भूमिका:
संसदीय विपक्ष के साथ संबद्ध समस्याएँ
आगे की राह
विपक्ष को पुनर्जीवित करना: महज ऊपर से हुक्म चलाने के बजाय गाँवों, प्रखंडों और ज़िलों में दलों को पुनर्जीवित करने और पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। विपक्षी दलों को सतत् बारहमासी अभियान और लामबंदी की आवश्यकता है। किसी शॉर्टकट या "कृत्रिम प्रोत्साहन" का विकल्प मौजूद नहीं है जो एक प्रभावी विपक्ष का निर्माण कर सके।
विपक्ष की भूमिका को सशक्त करना: विपक्ष की भूमिका को सशक्त करने के लिये भारत में 'शैडो कैबिनेट' (Shadow Cabinet) की संस्था का गठन किया जा सकता है। शैडो कैबिनेट ब्रिटिश कैबिनेट प्रणाली की एक अनूठी संस्था है जहाँ सत्ताधारी कैबिनेट को संतुलित करने के लिये विपक्षी दल द्वारा शैडो कैबिनेट का गठन किया जाता है।
विपक्ष को मज़बूत करने के अंतर्निहित कारक: अंतर्निहित कारक महज एक विपक्ष का निर्माण करने के बजाय कई दलों को एकजुट कर सत्तारूढ़ दल को चुनाव में प्रतिस्थापित करने की राह पर आगे बढ़ेंगे। आवश्यकता यह है कि पार्टी संगठन में सुधार किया जाए, लामबंदी के लिये आगे बढ़ा जाए और जनता को संबंधित पार्टी कार्यक्रमों से परिचित कराया जाए। इसके साथ ही, पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र के समय-समय पर मूल्यांकन के लिये एक तंत्र भी अपनाया जाना चाहिये।
प्रतिनिधित्व का उत्तरदायित्व: वर्तमान मोड़ पर विपक्ष का एक महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व यह है कि वह साझा मुद्दों पर समन्वय सुनिश्चित करे, संसदीय प्रक्रियाओं पर रणनीति तैयार करे और इनसे अधिक महत्त्वपूर्ण, दमित अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास करे।
विरासत से सबक: भारत में संसदीय विपक्ष को अपनी विरासत से बहुत कुछ सीखना है। यह विरासत से सबक ग्रहण कर स्वयं को लोकतांत्रिक और समतावादी आग्रह की प्रतिनिधि आवाज़ के रूप में स्थापित कर सकता है ।
सत्तारूढ़ दल के सदस्यों की भूमिका: जबकि विपक्ष को सरकार को चुनौती देने और उसे प्रश्नगत करने की ज़िम्मेदारी लेने की ज़रूरत है, प्रतिनिधित्व के विचार की सफलता के लिये आवश्यक है कि सभी सांसद, वे किसी भी दल से संबंधित हों, जनता की राय के प्रति संवेदनशील हों।
जहाँ हमारी राजव्यवस्था 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' प्रणाली का पालन करती हो, विपक्ष की भूमिका विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाती है। भारत के लिये एक सच्चे लोकतंत्र के रूप में कार्य करने हेतु एक संसदीय विपक्ष—जो राष्ट्र की अंतरात्मा है, को संपुष्ट करना महत्त्वपूर्ण है।