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05 Sep 2022
रिवीज़न टेस्ट्स
सामान्य अध्ययन पेपर 2
दिवस 57: संपूर्ण पाठ्यक्रम टेस्ट सामान्य अध्ययन पेपर 2
प्रश्न 1. "न्यायाधीशों की आयु बढ़ाने से उच्च न्यायपालिका में सुधार करने में काफी हद तक मदद मिलेगी।" समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
प्रश्न 2. चुनाव आयोग की निष्पक्षता के बारे में संदेह लोकतंत्र के लिये खतरा हो सकता है। समझाइये। (150 words)
प्रश्न 3. I2U2 पहल को 'वेस्ट एशियाई क्वाड' कहा जाता है। भारत के संदर्भ में I2U2 पहल के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
प्रश्न 4. भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 इन समस्याओं को दूर करने और इस समुदाय को न्याय दिलाने में कितना सक्षम होगा? (150 शब्द)
प्रश्न 5. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की स्थापना ST के हितों को आगे बढ़ाने के लिये की गई थी, हालाँकि पिछले चार वर्षों में यह निष्क्रिय रहा है और एक भी रिपोर्ट तैयार नहीं की है। इस संदर्भ में NCST की समस्याओं पर चर्चा कीजिये और इसे सुधारने के लिये विचार प्रस्तुत कीजिये। (150 शब्द)
प्रश्न 6. वर्णन कीजिये कि सामाजिक लेखा परीक्षा में क्या शामिल है। सामाजिक लेखा परीक्षा नीति के उद्देश्यों को परिणामों से कैसे जोड़ती है। चर्चा कीजिये (150 शब्द)
प्रश्न 7. भारत में मानवाधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न 8. संभावित लाभों के आलोक में सार्वभौमिक बुनियादी आय ( यूनिवर्सल बेसिक इनकम ) की अवधारणा का परीक्षण करते हुए भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में सार्वभौमिक बुनियादी आय के विचार के संभावित लाभों और कमियों पर विचार कीजिये।
प्रश्न 9. "शिक्षा एक निषेधाज्ञा नहीं है, यह सामाजिक परिवर्तन और व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिये एक प्रभावी और व्यापक उपकरण है।” उपरोक्त कथन के आलोक में नई शिक्षा नीति, 2020 (NEP, 2020) का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
प्रश्न 10. "श्रीलंका अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। इस संदर्भ में श्रीलंका संकट के पीछे के कारणों और श्रीलंकाई संकट में भारत के लिये अवसर की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)।
प्रश्न 11. पिछले पाँच वर्षों में वस्तु एवं सेवा अधिनियम (GST) की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं और GST प्रणाली के साथ प्रमुख चुनौतियों को उजागर कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न 12. ब्रिक्स एक हद तक सफल रहा है लेकिन अब उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस संदर्भ में समूह की स्थिरता बनाए रखने के लिये उठाए जाने वाले कदमों की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न 13. विशेष श्रेणी राज्य (SCS) कुछ राज्यों के विकास में सहायता के लिये केंद्र द्वारा दिया गया एक वर्गीकरण है, जिसमें कई विशेषताओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।" इस संदर्भ में SCS का दर्जा प्रदान करने से होने वाले लाभों पर चर्चा कीजिये, इस स्थिति को प्रदान करने के मानदंड और SCS स्थिति से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न 14. आर्थिक समावेशन और सामाजिक परिवर्तन दोनों ही सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (आईसीटी) से संभव हुए हैं।" विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक समावेशन और सामाजिक परिवर्तन लाने में आईसीटी की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)।
प्रश्न 15. "श्रीलंका में हाल ही में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों ने चार्टर को अपनाया, अब बिम्सटेक का एक अंतर्राष्ट्रीय चरित्र है। क्या आपको लगता है कि यह सार्क की विफलता के कारण उभरा है? (150 शब्द)
प्रश्न 16. "कोविड -19 के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की महामारी की स्थिति से निपटने में अक्षम होने के लिये गंभीर आलोचना हुई।" चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
प्रश्न 17. "समय के साथ फ्रीबीज़ भारतीय राजनीति का अभिन्न अंग बन गए हैं, चाहे वे चुनावी संघर्ष में मतदाताओं को लुभाने के लिये वादे के रूप में हों या उनका उद्देश्य सत्ता में बने रहने के लिये मुफ़्त सुविधाएँ प्रदान करना हो।समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न 18. “भारत में एक साथ चुनाव एक राष्ट्र एक चुनाव के विचार का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन यह कई चुनौतियों के साथ आता है। विचार-विमर्श कीजिये।
प्रश्न 19. "अधिकरण अदालतों के कार्यभार को कम करने और निर्णयों में तेज़ी लाने में मदद करते हैं, लेकिन वे अपने त्वरित न्याय के मिशन में विफल हो रहे हैं"। इस संदर्भ में न्यायाधिकरणों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं के रामबाण उपाय के रूप में राष्ट्रीय अधिकरण आयोग (NTC) के विचार पर चर्चा कीजिये।
प्रश्न 20. "संसदीय विपक्ष लोकतंत्र के वास्तविक सार को संरक्षित करने और देश में बड़ी संख्या में लोगों की चिंताओं को उठाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।" इस संदर्भ में वर्तमान संसद विपक्ष के साथ महत्त्व और मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
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उत्तर 1:
हल करने का दृष्टिकोण :
- अपने उत्तर की शुरुआत किसी ऐसे आयोग या विधेयक का उल्लेख करके करें जो न्यायाधीशों की आयु बढ़ाने का आह्वान करता है।
- न्यायाधीशों की आयु बढ़ाने की आवश्यकता की विवेचना कीजिये।
- न्यायाधीशों की आयु बढ़ाने के सकारात्मक परिणामों की चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।
वेंकटचलैया रिपोर्ट (संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट, 2002) ने सिफारिश की कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 65 वर्ष की जानी चाहिये और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 68 साल बढ़ाई जानी चाहिये।
वर्ष 2010 में संविधान (114वंँ संशोधन) विधेयक के माध्यम से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 65 करने के लिये पेश किया गया था। हालाँकि इसे संसद में विचार के लिये नहीं लिया गया और 15 वीं लोकसभा के विघटन के साथ समाप्त हो गया।
न्यायाधीशों की आयु बढ़ाने की आवश्यकता:
- भारत में जज-जनसंख्या अनुपात आज की स्थिति में प्रति मिलियन (10 लाख) लोगों पर 19.66 न्यायाधीशों के साथ दुनिया में सबसे कम है। वर्ष 2016 में ब्रिटेन में प्रति मिलियन लोगों पर 51 न्यायाधीश थे तथा अमेरिका में 107, ऑस्ट्रेलिया में 41 और कनाडा में 75 न्यायाधीश थे।
- न्यायपालिका को बड़े पैमाने पर लंबित मामलों से निपटने में सक्षम बनाने के लिये न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि करना भी आवश्यक है।
- नेशनल न्यायिक डेटा ग्रिड के आँकड़ों के अनुसार अधीनस्थ न्यायालयों में 2.84 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं और 43 लाख मामले उच्च न्यायालय में तथा 57,987 मामले सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं।
- इसके अलावा विधान उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को 70 वर्ष की आयु तक अध्यक्ष और 65 सदस्य के रूप में मानव न्यायाधिकरणों के लिये प्रदान करते हैं। इन न्यायाधीशों को इतनी जल्दी सेवानिवृत्त होने का कोई कारण नहीं है।
- एक पहलू जिस पर ध्यान नहीं दिया गया है, वह यह है कि जैसे-जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़ती है, मुकदमों का जनसंख्या से अनुपात तेज़ी से बढ़ेगा। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्राँस, यू.एस., यू.के. और जापान जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुकदमेबाज़ी -से-जनसंख्या अनुपात बहुत अधिक है।
सकारात्मक परिणाम
- इससे महत्त्वपूर्ण लाभ होंगे। वरिष्ठ सेवारत न्यायाधीश अपने साथ वर्षों का अनुभव लेकर आएंगे।
- यह अनुभवी न्यायाधीशों के एक मज़बूत प्रतिभा पूल की निरंतर उपस्थिति सुनिश्चित करेगा।
- मौजूदा न्यायाधीशों को हटाए बिना नए न्यायाधीशों की नियुक्ति की जा सकती है।
- यह बढ़ते बकाया की समस्या का समाधान करेगा।
- यह सेवानिवृत्ति के बाद के कार्यों को अनाकर्षक बना देगा और परिणामस्वरूप, कानून के शासन तथा न्यायपालिका की स्वतंत्रता को मज़बूत करेगा जो लोकतंत्र को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
नकारात्मक परिणाम
- पद के दुरुपयोग की संभावना: लंबे समय तक सीट पर रहने से उस व्यक्ति द्वारा पद के दुरुपयोग की संभावना हो सकती है जो इसे धारण करता है।
- युवा पीढ़ी की राय में कमी: वरिष्ठों द्वारा उच्च पदों को धारण करने से नई पीढ़ी की राय और इच्छाओं की उपेक्षा होगी और महत्त्वपूर्ण सामाजिक विषयों पर युवा पीढ़ी की राय की विविधता की कमी होगी।
आगे की राह
- भारत मामलों के बैकलॉग के बारहमासी मुद्दे का सामना करता है। न्यायाधीशों की आयु बढ़ाने से निश्चित रूप से इस मुद्दे को हल करने में मदद मिलेगी। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाई जा सकती है, लेकिन सेवानिवृत्ति की आयु तक पहुँचने से पहले छोड़ने के विकल्प के साथ जिम्बाब्वे में प्रचलित एक प्रथा है, जहाँ शीर्ष अदालत के न्यायाधीश को 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होने के लिये नियुक्त किया जाता है, लेकिन 70 वर्ष की आयु रखने का विकल्प चुन सकते हैं।
- इसके अलावा केवल न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाना भारतीय न्यायपालिका में समस्याओं का समाधान नहीं है। पारदर्शिता की कमी (विशेषकर न्यायाधीशों की नियुक्ति में) अभियुक्तों के विचाराधीन, जानकारी की कमी और लोगों और अदालतों के बीच बातचीत जैसे अन्य मुद्दों को भी संबोधित किया जाना चाहिये।
उत्तर 2:
हल करने का दृष्टिकोण:
- चुनाव आयोग के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- चुनाव आयोग की निष्पक्षता के आरोप को उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये।
- निष्पक्ष निष्कर्ष दीजिये।
भारत निर्वाचन आयोग, जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है। यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
चुनाव आयोग की निष्पक्षता का महत्त्व:
औचित्य पर सवाल उठाना मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) लोकतंत्र के लिये एक गंभीर खतरा हो सकता है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यालय स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की एकमात्र ज़िम्मेदारी के साथ निहित है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव शासन के लोकतांत्रिक स्वरूप के तंत्रिका केंद्र हैं। केंद्रीय कानून मंत्रालय चुनाव आयोग के कार्यालय के प्रशासनिक प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।
पीएमओ के "निर्देश" और CEC और दो अन्य चुनाव आयुक्तों के साथ अनौपचारिक बैठक के दौरान दबाव ने आयोग के स्वतंत्र कामकाज के बारे में चिंता जताई है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक प्राधिकरण है जिसकी ज़ि जिम्मेदारियाँ और शक्तियाँ भारत के संविधान में अनुच्छेद 324 के तहत निर्धारित हैं।
चुनाव आयोग को अपने कार्यों के निष्पादन में कार्यकारी हस्तक्षेप से अछूता रखा जाता है।इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य आम चुनाव या उप-चुनाव कराने के लिये समय-समय पर चुनाव कार्यक्रम तय करना है। यह निर्वाचक नामावली (Voter List) तैयार करता है तथा मतदाता पहचान पत्र (EPIC) जारी करता है। यह मतदान एवं मतगणना केंद्रों के लिये स्थान, मतदाताओं के लिये मतदान केंद्र तय करना, मतदान एवं मतगणना केंद्रों में सभी प्रकार की आवश्यक व्यवस्थाएँ और अन्य संबद्ध कार्यों का प्रबंधन करता है। आयोग के निर्णयों को उपयुक्त याचिकाओं द्वारा उच्च न्यायालय और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। लंबे समय से चली आ रही परंपरा और कई न्यायिक घोषणाओं से एक बार चुनाव की वास्तविक प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद न्यायपालिका चुनावों के वास्तविक संचालन में हस्तक्षेप नहीं करती है।
चुनाव आयोग चुनाव के दौरान सुरक्षा कर्मियों की तैनाती के लिये अपने प्रशासनिक मंत्रालय, कानून मंत्रालय या गृह मंत्रालय के माध्यम से नौकरशाही के माध्यम से चुनाव मामलों पर सरकार के साथ संचार करता है। ऐसी परिस्थितियों में गृह सचिव को अक्सर पूर्ण आयोग के समक्ष बुलाया जाता है, जिसमें तीन आयुक्त शामिल होते हैं। कानून मंत्रालय देश के लिये कानून बनाता है और उम्मीद की जाती है कि वह आयोग को अपनी स्वायत्तता की रक्षा हेतु सौंपे गए संवैधानिक सुरक्षा उपायों का उल्लंघन नहीं करेगा।
- भारत के चुनाव आयोग ने यह विचार किया कि भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी नियम पुस्तिका का उल्लंघन नहीं किया। आयोग ने ज़िला चुनाव अधिकारियों की राय को यह कहकर खारिज कर दिया कि प्रधानमंत्री ने बालाकोट हवाई हमले का आह्वान करके वोट नहीं मांगा। भयंकर महामारी के बीच चुनाव अभियानों पर प्रतिबंध लगाने के आयोग के देरी से निर्णय लिया। राष्ट्रपति को संबोधित एक पत्र में लगभग 66 पूर्व नौकरशाहों ने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता के विभिन्न उल्लंघनों का हवाला देते हुए चुनाव आयोग के कामकाज पर अपनी चिंता व्यक्त की।
आयोग के जनादेश और इसका समर्थन करने वाले तंत्र के लिये अधिक कानूनी समर्थन की आवश्यकता है। हस्तक्षेप को उचित कानूनी उपायों के साथ पूरा किया जाना चाहिये जो चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता की रक्षा करते हैं।
उत्तर 3:
हल करने का दृष्टिकोण:
- I2U2 पहल के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत के लिये I2U2 के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त रूप से निष्कर्ष निकालिये।
I2U2 को आरंभिक रूप से अक्टूबर, 2021 में अब्राहम समझौते के बाद समुद्री सुरक्षा, आधारभूत संरचना और परिवहन से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये गठित किया गया था।
उस समय इसे 'आर्थिक सहयोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय मंच' कहा जाता था। इसे 'वेस्ट एशियन क्वाड' भी कहा जाता था।
I2U2 पहल भारत, इज़रायल, यूएसए और यूएई का एक नया समूह है।
समूह के नाम में 'I2' का अर्थ भारत और इज़रायल है, जबकि 'U2' का अर्थ संयुक्त राज्य अमेरिका एवं संयुक्त अरब अमीरात है।
यह एक बड़ी उपलब्धि है जो इस क्षेत्र में होने वाले भू-राजनीतिक परिवर्तनों को दर्शाती है।
यह न केवल दुनिया भर में गठबंधन और साझेदारी की प्रणाली को पुनर्जीवित एवं फिर से सक्रिय करेगा, बल्कि उन साझेदारियों को भी जोड़ देगा जो पहले मौजूद नहीं थीं या पूरी तरह से उपयोग नहीं की गई थीं।
भारत के लिये I2U2 का महत्त्व:
अब्राहम समझौते से लाभ: भारत को संयुक्त अरब अमीरात और अन्य अरब राज्यों के साथ अपने संबंधों को जोखिम में डाले बिना इज़रायल के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिये अब्राहम समझौते (Abraham Accords) का लाभ मिलेगा।
बाज़ार को फायदा: भारत एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार है। यह उच्च तकनीक और अत्यधिक मांग वाले सामानों का भी एक बड़ा उत्पादक स्थान है। इस ग्रुपिंग से भारत को फायदा होगा।
गठबंधन: यह भारत को राजनीतिक और सामाजिक गठबंधन निर्मित करने में मददगार साबित होगा।
UAE के साथ संबंध मज़बूत करना: I2U2 समूह की सदस्यता कई मायनों में भारत के अनुकूल है। यह भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच पिछले साल हस्ताक्षरित व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) को बढ़ावा देता है, जो खाड़ी क्षेत्र से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सर्वोच्च योगदानकर्त्ता है। CEPA से पाँच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार के मूल्य को 100 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने की उम्मीद है। UAE 35 लाख भारतीयों का भी आवास है, जो देश की आबादी का लगभग एक तिहाई है और श्रम का एक प्रमुख स्रोत है।
वाशिंगटन के साथ अपने सहयोग का विस्तार करने हेतु एक नया एवेन्यू प्रदान करना: I2U2 राजनयिक स्तर पर भी भारत के लिये एक विजेता है। यह भारत के लिये पश्चिम एशिया में एक उन्नत प्रोफाइल के साथ एक बड़ी वैश्विक भूमिका निभाने के लिये एक खिड़की खोलता है। यह नई दिल्ली की रणनीतिक स्वायत्तता का त्याग किये बिना भारत-प्रशांत से परे वाशिंगटन के साथ अपने सहयोग का विस्तार करने के लिये एक नया अवसर प्रदान करता है। यह भारत की ऊर्जा और आर्थिक हितों के कारण रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र मध्य पूर्व के साथ संबंधों को भी गहरा कर सकता है।
I2U2 में भारत के लिये चुनौतियाँ:
मुस्लिम दुनिया और इज़राइल दोनों के साथ संबंधों को संतुलित करना: मुस्लिम दुनिया के देशों और इज़राइल दोनों के साथ एक यहूदी-प्रभुत्व वाले देश के साथ रणनीतिक स्वायत्तता खोए बिना संबंधों का संतुलन भारत के लिये एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
सुरक्षा संबंधी खतरे: मिडल इस्ट क्वाड के रूप में I2U2 की स्थापना को इस क्षेत्र में आतंकवादी समूहों द्वारा इस क्षेत्र में पश्चिम के बढ़ते प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है तथा वे एक समानांतर संगठन स्थापित करने का प्रयास करेंगे जो अहिंसा और भारतीय विदेश नीति की शांति के प्रमुख उद्देश्यों को बाधित करेगा।
खाड़ी क्षेत्र में अस्थिरता: संयुक्त अरब अमीरात के गठबंधन से हटने के मामले में यह पूरे संगठन को बाहरी गठबंधन के रूप में क्षेत्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में पेश करेगा।
आगे की राह
- अवसर का लाभ उठाना: I2U2 सभी संबंधित देशों के लिये लाभ का सौदा है। जहाँ तक पश्चिम एशिया के साथ सहयोग का संबंध है, भारत को एक अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है। भारत को इस भूभाग में अत्यंत सतर्कता से आगे बढ़ने की आवश्यकता है क्योंकि ऊर्जा सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, श्रमिक, व्यापार, निवेश और समुद्री सुरक्षा जैसे भारत के कई मूलभूत हित इस क्षेत्र से संलग्न हैं।
- पश्चिम एशिया में अन्य भागीदारों को आश्वस्त करना: भूभाग के दो देशों- ईरान और मिस्र को विशेष रूप से आश्वस्त किये जाने की आवश्यकता है कि यह नई व्यवस्था उनके विरुद्ध लक्षित नहीं है। भारत के लिये अफगानिस्तान के वर्तमान संदर्भ में ईरान महत्त्वपूर्ण है। भारत को इस क्षेत्र में कूटनीतिक और रणनीतिक दोनों तरह की चुनौतियों से निपटना होगा।
- मिस्र का इस गठबंधन के सभी चार देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध है लेकिन फिर भी उसे आश्वस्त किया जाना चाहिये कि इस समूह से वह आर्थिक या राजनीतिक रूप से प्रभावित नहीं होगा।
- चारों देशों के बीच आपसी सहयोग: पश्चिम एशियाई क्षेत्र की जटिलताओं से निपटने की राह में कई चुनौतियाँ मौजूद हैं। एक-दूसरे के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिये प्रतिद्वंद्वी देशों को कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से संतुलित करना चारों देशों के बीच आपसी सहयोग के माध्यम से कार्यान्वित किया जा सकता है।
उत्तर 4:
हल करने का दृष्टिकोण:
- ‘ट्रांसजेंडर’ की परिभाषा और भारतीय समाज में उनकी स्थिति के साथ उत्तर की शुरूआत कीजिये।
- इस समुदाय के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- विधेयक के विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
‘ट्रांसजेंडर’ शब्द का उपयोग प्राय: उन लोगों को संदर्भित करने के लिये किया जाता है जिनकी लैंगिक पहचान उनके जन्म लिंग से भिन्न होती है। भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय लंबे समय से पुरुष वर्चस्ववादी सामाजिक पूर्वाग्रहों और वैकल्पिक यौनिकता को अपराध मानने वाले क्रूर कानूनों का खामियाज भुगत रहे हैं।
भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय की प्रमुख समस्याएँ
भेदभाव: शिक्षा, रोज़गार और सार्वजनिक सुविधाओं तक पहुँच के मामले में उनके साथ भेदभाव किया जाता है। पुलिस द्वारा भी उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और वे सामाजिक न्याय के लिये संघर्षरत होते हैं।
पारिवारिक समर्थन का अभाव: उनकी लैंगिक पहचान की सिद्धि के बाद उन्हें समाज द्वारा माता-पिता का घर छोड़ने के लिये मज़बूर किया जाता है क्योंकि उन्हें सामान्य समुदाय और वर्ग का हिस्सा नहीं माना जाता है।
अवांछित ध्यान: सार्वजनिक स्थल पर ये लोगों के अवांछित ध्यान का शिकार बनते हैं।
चिकित्सीय सहायता की कमी: ये एच.आई.वी., अवसाद, हार्मोन की गोली के दुरुपयोग, तंबाकू एवं शराब सेवन, पेनेकटॉमी (penectomy) जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार हैं।
वे वैवाहिक और गोद लेने संबंधी कानूनी समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 के प्रावधान
- इस विधेयक में कहा गया है कि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को स्व-कथित लिंग पहचान का अधिकार होगा और यह विभिन्न आधारों पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
- प्रत्येक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपने परिवार के साथ रहने का अधिकार होगा और यदि निकटस्थ संबंधी उसका देखभाल रखने में असमर्थ है तो उसे पुनर्वास केंद्र में रखा जा सकता है।
- सरकार ट्रांसजेंडर लोगों के लिये शिक्षा, खेल और मनोरंजक सुविधाएँ प्रदान करेगी। विधेयक के अनुसार सरकार द्वारा उनके लिये अलग एच.आई.वी. निगरानी केंद्र और ‘सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी’ की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के प्रावधानों और कार्यों के अनुपालन के लिये सरकार राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर व्यक्ति परिषद (National Council for Transgender Persons–NCT) की स्थापना करेगी। यह निकाय केंद्र सरकार द्वारा ट्रांसजेंडर लोगों के लिये बनाई गई नीतियों और योजनाओं पर सलाह देने तथा उसकी निगरानी एवं समीक्षा का कार्य करेगा।
एक उदार और समग्र दृष्टिकोण के बावजूद ट्रांसजेंडर विधेयक की आलोचना निम्नलिखित कारणों से की जा रही है-
- यह व्यक्तियों को पहचान प्रमाण पत्र जारी करने के लिये विशेषज्ञों की एक ‘स्क्रीनिंग कमेटी’ का प्रस्ताव करता है जिस बारे में कार्यकर्त्ताओं का मानना है कि यह ट्रांसजेंडर लोगों को दुर्व्यवहार के लिये भेद्य बना सकता है।
- भिक्षावृत्ति भारत में ट्रांस व्यक्तियों के लिये आजीविका का एक प्राथमिक स्रोत रही है। इस गतिविधि को आपराधिक कृत्य घोषित करने वाला यह विधेयक उन्हें वंचना की ओर धकेलता है।
- ट्रांसजेंडर समुदाय के लिये शिक्षा तथा सकारात्मक कार्रवाई के बारे में किसी विशेष प्रावधान का अभाव इस विधेयक की एक और बड़ी कमी है।
- यौन अभिविन्यास और लैंगिक पहचान प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा तथा मानवता के साथ अभिन्न है और यह किसी लोकतांत्रिक समाज में भेदभाव या दुर्व्यवहार का आधार नहीं होना चाहिये। इस प्रकार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 इस दिशा में उठाया गया एक सराहनीय कदम है।
उत्तर 5:
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपने उत्तर की शुरुआत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर कीजिये।
- NCST के कर्तव्यों और कार्यों पर चर्चा कीजिये।
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) के साथ मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह्ता बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन करके और संविधान (89वाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A सम्मिलित कर की गई थी, अत: यह एक संवैधानिक निकाय है।
अनुच्छेद 338A अन्य बातों के साथ-साथ NCST को संविधान के तहत या किसी अन्य कानून के तहत या सरकार को किसी अन्य आदेश के तहत STs को प्रदान किये गए विभिन्न सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी करने और ऐसे सुरक्षा उपायों के कामकाज का मूल्यांकन करने की शक्ति प्रदान करता है।
NCST के कर्तव्य और कार्य:
- NCST को संविधान के तहत या अन्य कानूनों के तहत या अनुसूचित जनजाति के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों से संबंधित मामलों की जाँच एवं निगरानी का अधिकार है।
- अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जाँच करना।
- अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना एवं उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
- राष्ट्रपति को वार्षिक रूप से और ऐसे अन्य समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना जब आयोग उन सुरक्षा उपायों के कार्य पर रिपोर्ट देना उचित समझे।
- अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और विकास तथा उन्नति के संबंध में ऐसे अन्य कार्यों का निर्वहन करना, जो राष्ट्रपति संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन नियम द्वारा विनिर्दिष्ट करे।
NCST से संबंधित मुद्दे:
- लंबित रिपोर्ट: वित्तीय वर्ष 2021-22 में इसकी केवल चार बार बैठक हुई है। शिकायतों के समाधान और इसे प्राप्त होने वाले मामलों की लंबित दर भी 50% के करीब है।
- जनशक्ति और बजटीय आवंटन में कमी: समिति ने जनशक्ति और बजटीय कमी के साथ आयोग के कामकाज पर निराशा व्यक्त की।
- आयोग में भर्ती, आवेदकों की कमी के कारण बाधित थी क्योंकि पात्रता को कई बार निर्धारित किया गया और कई उम्मीदवारों को आवेदन करने में सक्षम बनाने के लिये नियमों को बदल दिया गया था
- विशेषज्ञता की कमी: अनुसूचित जनजातियों की शिकायतों से संबंधित मामलों को देखने के लिये NCST के पास आवश्यक कौशल नहीं है।
- यह कानून के अनुसार खनिज संसाधनों, जल संसाधनों आदि पर आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा के उपाय करने के अपने मिशन में विफल रहा है।
आगे की राह
- रिक्तियों को तुरंत भरा जाना चाहिये। इसमें अब और देरी का कोई कारण नहीं है, क्योंकि भर्ती नियमों को उपयुक्त रूप से संशोधित किया गया है।
- आयोग के लिये बजटीय आवंटन की समीक्षा करने की आवश्यकता है ताकि धन की कमी के कारण इसके कामकाज़ को नुकसान न पहुँचे।
- आयोग के सदस्यों को अनुसूचित जनजातियों के कल्याण से संबंधित विभिन्न कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों से अवगत कराने के लिये उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये।
उत्तर 6:
हल करने का दृष्टिकोण :
- सामाजिक अंकेक्षण का वर्णन करते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- नीति में बताए गए उद्देश्यों और वांछित परिणामों के बीच की खाई को पाटने में सामाजिक लेखा परीक्षा की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
सामाजिक अंकेक्षण एक संगठन के सामाजिक और नैतिक प्रदर्शन को मापने, समझने, प्रेषित करने और अंततः सुधारने का एक तरीका है। यह दक्षता और प्रभावशीलता, लक्ष्य और वास्तविकता के मध्य उत्पन्न अंतराल को कम करने में सहायक है।
यह संगठन के सामाजिक प्रदर्शन को समझने, मापने, सत्यापित करने, प्रेषित करने और सुधारने की एक तकनीक है।
नीतिगत उद्देश्यों और परिणामों के मध्य अंतराल में सामाजिक अंकेक्षण की भूमिका:
- जवाबदेही: यह लोक सेवकों की जवाबदेही सुनिश्चित करता है, स्थानीय विकास कार्यक्रमों की प्रभावकारिता और प्रभावशीलता को बढाता है।
- पारदर्शिता: सामाजिक अंकेक्षण के उपयोग द्वारा स्थानीय विकास गतिविधियों की योजना और कार्यान्वयन में सूचना के अधिकार को लागू करने से पारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है। सार्वजनिक योजनाओं में पारदर्शिता भ्रष्टाचार को कम करती है तथा बेहतर परिणामों को बढ़ाती है।
- सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित: सामाजिक अंकेक्षण द्वारा लाभार्थियों और स्थानीय सामाजिक एवं उत्पादक सेवा प्रदाताओं के मध्य जागरूकता का विकास होता है। लोक कल्याणकारी योजनाओं की सफलता में स्थानीय समुदाय एक महत्त्वपूर्ण कारक बन जाता है, जिससे नीतियों के आवधिक मूल्यांकन के माध्यम से परिणामों में सुधार होता है। उदाहरण के लिये एमजीएनआरईजीएस का सामाजिक अंकेक्षण करते समय जॉब कार्ड में प्रविष्टियों का नेतृत्व किया गया, इससे वेतन भुगतान की पर्चियों की जानकारी में वृद्धि हुई तथा कामकाज़ के तरीकों में सुधार देखा गया।
- हाशिये पर जाना: मुख्यधारा से अलग या कटे हुए सामाजिक समूह, जिन्हें सामान्य समाज की मुख्य धारा में शामिल नहीं किया जाता है, स्थानीय विकास के मुद्दों, गतिविधियों एवं स्थानीय निर्वाचित निकायों के वास्तविक प्रदर्शन को दर्शाते हैं। सामाजिक अंकेक्षण के माध्यम से इन समूहों के लिये नीतियों के क्रियान्वयन और उनके परिणामों पर प्रभाव पड़ सकता है।
- नीति मूल्यांकन: सामाजिक अंकेक्षण नीतियों के कार्यान्वयन में ही नहीं, बल्कि नीतियों के मूल्यांकन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रकार यह स्थानीय विकास के लिये ज़रूरतों और उपलब्ध संसाधनों के मध्य भौतिक एवं वित्तीय अंतराल का आकलन करता है जिससे नीतियों एवं उनके परिणामों में सुधार देखा जाता है।
सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया का उपयोग सामाजिक जुड़ाव, पारदर्शिता और सूचना के संचार के लिये एक साधन के रूप में किया जाता है, जिससे निर्णयकर्त्ताओं, प्रतिनिधियों, प्रबंधकों और अधिकारियों की अधिक जवाबदेही सुनिश्चित होती है। इस प्रकार सामाजिक अंकेक्षण में नीतिगत उद्देश्यों एवं परिणामों के मध्य अंतराल को कम करने की जबरदस्त क्षमता होती है।
उत्तर 7:
हल करने का दृष्टिकोण:
- एन.एच.आर.सी. का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- एन.एच.आर.सी. के कार्यों एवं शक्तियों का परिचय दीजिये।
- एन.एच.आर.सी. की मानवाधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन में भूमिका को बताइये।
- एन.एच.आर.सी. की कुछ कमियों को बताइये तथा आगे की राह को बताइये।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, एक सांविधिक निकाय है। इसका गठन वर्ष 1993 संसद में पारित मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत किया गया। यह आयोग मानवाधिकारों का प्रहरी है। जिसका उद्देश्य उन संस्थागत व्यवस्थाओं को मज़बूत करना, जिसके द्वारा मानवाधिकार के मुद्दों का पूर्ण रूप में समाधान किया जा सके, अधिकारों के अतिक्रमण को सरकार से स्वतंत्र रूप में इस तरह से देखना ताकि सरकार का ध्यान उसके द्वारा मानवाधिकारों की रक्षा की प्रतिबद्धता पर केंद्रित किया जा सके तथा इस दिशा में किये गए प्रयासों को पूर्ण व सशक्त बनाना है।
यह आयोग वर्ष 1991 के प्रथम अंतर्राष्ट्रीय वर्कशॉप ऑन नेशनल इंस्टीट्यूशनस फॉर द परमोशन एंड प्रोटेक्शन ऑफ ह्यूमन राइट्स (पेरिस प्रिंसपल्स) के सिद्धांतों के अनुरूप है।
मानवाधिकार आयोग निम्नलिखित प्रकार से मानवाधिकारों का संरक्षण एवं संवर्धन करता है-
- यह मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच करता है तथा न्यायालय में लंबित किसी मानवाधिकार से संबंधित कार्यवाही में हस्तक्षेप करता है।
- जेलों व बंदीगृहों में जाकर वहाँ की स्थिति का अध्ययन करना व इस बारे में सिफारिशें करना।
- मानवाधिकारों की रक्षा हेतु बनाए गए संवैधानिक विधिक उपबंधों की समीक्षा तथा इनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु उपायों की सिफारिश करता है।
- आतंकवाद सहित उन सभी कारणों की समीक्षा करना जिनसे मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है तथा इनसे बचाव के उपायों की सिफारिश करता है।
- मानवाधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधियों व दस्तावेजों का अध्ययन व उनको प्रभावशाली तरीके से लागू करने हेतु सिफारिशें करने के साथ मानवाधिकारों के क्षेत्र में शोध करता है।
- लोगों में मानवाधिकारों की जानकारी फैलाना व उनकी सुरक्षा के लिये उपलब्ध उपायों के प्रति जागरूक करता है।
हालाँकि निम्नलिखित कारणों से एन.एच.आर.सी. की आलोचना की होती है-
- पीड़ित व्यक्ति को सीमित व्यावहारिक राहत देने की असमर्थता के कारण सोली सोराबजी ने एन.एच.आर.सी. को ‘‘भातर का चिढ़ा भ्रम’’ कहा।
- एन.एच.आर.सी. के पास जाँच हेतु एक समर्पित निकाय व व्रियाविधि का अभाव है। अधिकांश मामलों में यह केंद्र एवं संबंधित राज्य सरकारों पर निर्भर रहता है।
- एन.एच.आर.सी. के पास केवल अनुशंसनकारी भूमिका है इसे अपने निर्णयों को लागू करने की शक्ति नहीं है।
- यह एक वर्ष से पहले की घटना की जाँच नहीं कर सकती। प्राय: सरकार इसकी अनुशंसाओं को नहीं मानती।
इस प्रकार देखें तो उपर्युक्त कमियों को दूर करने के लिये सरकार को एन.एच.आर.सी. के कर्मचारियों का एक स्वतंत्र वर्ग विकसित करना चाहिये तथा आयोग की कुछ शक्तियाँ उपलब्ध कराकर उसे संवैधानिक निकाय बनाना चाहिये ताकि भविष्य में यह नीति निरपेक्ष एवं मानवाधिकारों की रक्षा में महत्त्चवूर्ण भूमिका निभा सके।
उत्तर 8:
हल करने का दृष्टिकोण:
- यूनिवर्सल बेसिक इनकम की अवधारणा का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
- भारतीय संदर्भ में यूनिवर्सल बेसिक इनकम के लाभ लिखिये।
- यूबीआई के बारे में चिंताओं का विश्लेषण कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) देश के प्रत्येक नागरिक को दिया जाने वाला एक आवधिक (Periodic), बिना शर्त नकद हस्तांतरण है।
UBI के मुख्य रूप से 4 घटक हैं: सार्वभौमिकता: यह प्रकृति में सार्वभौमिक है, आवधिकता: नियमित अंतराल पर भुगतान (एकमुश्त अनुदान नहीं), व्यक्तिपरकता: व्यक्तियों को भुगतान, शर्तरहित: नकद हस्तांतरण के साथ कोई पूर्व शर्त संलग्न नहीं है
यूनिवर्सल बेसिक इनकम के लाभ:
- गरीबी और भेद्यता में कमी: गरीबी और भेद्यता में तेज़ी से कमी आएगी।
- विकल्प: वर्तमान में सरकार विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से लोगों के कल्याण को सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है लेकिन अब सरकार उन्हें नकद पैसा देकर इस प्रवृत्ति को बदलना चाहती है ताकि लोग अपनी आवश्यकता के अनुसार सेवाओं को प्राप्त कर सकें।
- गरीबों का बेहतर लक्ष्यीकरण: जैसा कि सभी व्यक्तियों को लक्षित किया जाता है, बहिष्करण त्रुटि (गरीबों को छोड़ दिया जा रहा है) शून्य है, हालाँकि समावेश त्रुटि (योजना तक पहुँच प्राप्त करने वाले अमीर) 60 प्रतिशत है।
- आघातों के विरुद्ध बीमा: यह स्वास्थ्य, आय और वर्तमान कृषि संकट या आर्थिक मंदी जैसे अन्य आघातों के विरुद्ध एक सुरक्षा जाल प्रदान करेगी। ।
- वित्तीय समावेशन में सुधार: हस्तांतरण बैंक खातों के अधिक उपयोग को प्रोत्साहित करेगा, जिससे बैंकिंग संवाददाताओं (बीसी) के लिये उच्च लाभ होगा और वित्तीय समावेशन में सुधार होगा।
- मनोवैज्ञानिक लाभ: एक गारंटीकृत आय दैनिक आधार पर बुनियादी जीवन के दबाव को कम करेगी।
- इक्विटी और सामाजिक न्याय: यूबीआई गरीबों के लिये इक्विटी और राज्य कल्याण के विचार जो डीपीएसपी के तहत दिये गए संवैधानिक लक्ष्य है, को बढ़ावा देगी।
- प्रशासनिक दक्षता: UBI अलग-अलग कई सरकारी योजनाओं और उनके कार्यान्वयन के प्रशासनिक भार के वित्तपोषण के बोझ को कम करेगी। UBI, अपनी अभिकल्पना में, भ्रष्ट तरीके से आवंटन एवं लीकेज संबंधी मुद्दों से प्रभावी ढंग से संबोधित कर सकेगी क्योंकि हस्तांतरण प्रत्यक्षतः लाभार्थियों के बैंक खातों में निर्देशित होंगे
यूबीआई से जुड़ी चिंताएँ:
- उच्च सरकारी व्यय: यदि UBI सार्वभौमिक रूप से लागू होगी (यानी वित्तीय सक्षमता पर विचार किये बिना सभी नागरिक डिफ़ॉल्ट रूप से लाभार्थी होंगे) तो भारत में मौजूदा अमीर-गरीब अंतराल और बढ़ जाएगा।
- कार्यान्वयन की समस्याएँ: गरीबों के बीच कम वित्तीय पहुँच को देखते हुए, एक यूबीआई बैंकिंग प्रणाली पर बहुत अधिक दबाव डाल सकता है।
- विशिष्ट खर्च: परिवार विशेष रूप से पुरुष सदस्य इस अतिरिक्त आय को फिजूल गतिविधियों पर खर्च कर सकते हैं।
- नैतिक ज़ोखिम (श्रम आपूर्ति में कमी): न्यूनतम गारंटीकृत आय लोगों को आलसी बना सकती है और श्रम बाज़ार से बाहर हो सकती है।
- नकदी से प्रेरित लिंग असमानता: लिंग मानदंड एक घर के भीतर यूबीआई के बंटवारे को नियंत्रित कर सकते हैं - पुरुषों के यूबीआई के खर्च पर नियंत्रण रखने की संभावना है। यह हमेशा अन्य तरह के स्थानांतरण के मामले में नहीं हो सकता है।
- बाज़ार संबंधी ज़ोखिम: खाद्य सब्सिडी के विपरीत जो बाज़ार की कीमतों में उतार-चढ़ाव के अधीन नहीं हैं, बाज़ार में उतार-चढ़ाव से नकद हस्तांतरण क्रय शक्ति को गंभीर रूप से कम किया जा सकता है। वर्तमान प्रणाली के तहत लाभार्थियों को बाज़ार में उतार-चढ़ाव के बावजूद रियायती कीमतों पर भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
यूबीआई क्रांतिकारी अवधारणा है, विशेष रूप से भारत में यह देखते हुए कि भारत गरीबी उन्मूलन की चुनौतियों का सामना कर रहा है। यदि जनसंख्या के उचित प्रतिशत पर ध्यान केंद्रित करके इसके नुकसान से बचने के लिये प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है, तो यूबीआई में गरीबी मुक्त भारत की शुरुआत करने की क्षमता है
उत्तर 9:
हल करने का दृष्टिकोण:
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए उत्तर शुरू करें।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति किस प्रकार व्यक्ति के सर्वांगीण विकास और समाजिक बदलाव को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
- उचित निष्कर्ष दें।
हाल ही में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की घोषणा की गई है। एनईपी 2020 कई मायनों में एक व्यक्ति के विकास और समाज में सकारात्मक परिवर्तन करने में मदद कर सकती है।
यह शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों को महत्त्व प्रदान करती है; यह शिक्षा को अधिक समावेशी बनाने की परिकल्पना करती है और इसका उद्देश्य 21वीं सदी की ज़रूरतों को पूरा करने हेतु भारतीय शिक्षा प्रणाली को बदलना है।
व्यक्तित्व के विकास एवं सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से प्रारंभिक वर्षों के महत्त्व को पहचानना: 3 वर्ष की आयु से शुरू होने वाली स्कूली शिक्षा के लिये 5 + 3 + 3 + 4 मॉडल अपनाकर इस नीति के तहत बच्चे के भविष्य को आकार देने में 3 से 8 वर्ष की प्रारंभिक अवस्था को प्रधानता दी गई है।
समाज के कमज़ोर वर्गों को प्रोत्साहित करना: इस योजना का एक और प्रशंसनीय पहलू इंटर्नशिप के साथ व्यावसायिक पाठ्यक्रम है। यह समाज के कमज़ोर वर्गों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है। साथ ही यह 'स्किल इंडिया मिशन' के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगी।
शिक्षा को अधिक समावेशी बनाना: एनईपी में 18 वर्ष तक के सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार (आरटीई) प्रदान करने का प्रावधान है। इसके अलावा यह नीति उच्च शिक्षा में सकल नामांकन को बढ़ाने के लिये ऑनलाइन शिक्षण और सीखने के तरीकों की क्षमता बढ़ाने पर बल देती है। साथ ही इसमें सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों तक अधिक पहुँच बनाने के लिये तकनीकी समाधान के उपयोग पर ज़ोर दिया गया है।
हिंदी बनाम अंग्रेज़ी: सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि एनईपी स्पष्ट रूप से हिंदी बनाम अंग्रेज़ी भाषा की बहस को खत्म करती है। यह मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा को कम-से-कम ग्रेड 5 तक शिक्षा का माध्यम बनाने पर ज़ोर देती है, जिसे शिक्षण का सबसे अच्छा माध्यम माना जाता है। इसके तहत सीखने के साथ संस्कृति, भाषा और परंपराओं का एकीकरण होगा जिससे बच्चे आसानी से आत्मसात कर सकेंगे।
सिलो मानसिकता से छुटकारा: नई नीति में स्कूली शिक्षा का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू हाईस्कूल में कला, वाणिज्य और विज्ञान वर्ग के मध्य सख्त विभाजन का टूटना है। यह उच्च शिक्षा में एक बहु-विषयक दृष्टिकोण की नींव रख सकती है। यह वर्तमान परिदृश्य को बदलने में मदद करेगी जहाँ सामाजिक दबाव के कारण छात्रों को उन क्षेत्रों को चुनना पड़ता है जो उनकी पसंद के नहीं होते हैं।
शिक्षा और सामाजिक न्याय: एनईपी सामाजिक न्याय के लिये शिक्षा को सबसे प्रभावी तरीके के रूप में मान्यता देती है। इस प्रकार, एनईपी केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से सकल घरेलू उत्पाद का लगभग छह प्रतिशत के निवेश का सुझाव देती है।
निष्कर्ष
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य शिक्षा प्रणाली को 21वीं सदी और वर्ष 2030 तक समग्र रूप से सतत् विकास लक्ष्यों की आवश्यकताओं के अनुरूप लचीला और बहु-विषयक बनाना है।
उत्तर 10:
हल करने का दृष्टिकोण:
- श्रीलंकाई संकट के संदर्भ में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- श्रीलंकाई संकट के कारणों की विवेचना कीजिये।
- श्रीलंकाई संकट के कारण भारत के सामने आने वाली चुनौतियों की विवेचना कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।
श्रीलंका जिसकी आबादी 22 मिलियन है, अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, यह सात दशकों में सबसे खराब स्थिति है, जिसके कारण लाखों लोगों को भोजन, दवा, ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है।
राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के बाद सैकड़ों सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों ने श्रीलंका के राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग को लेकर राष्ट्रपति के आवास पर धावा बोल दिया।
श्रीलंका संकट का कारण:
- श्रीलंकाई गृहयुद्ध:
- युद्ध के दौरान श्रीलंका का बजट घाटा बहुत अधिक था और वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने इसके विदेशी मुद्रा भंडार को खत्म कर दिया, जिसके कारण देश ने वर्ष 2009 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 2.6 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का ऋण लिया।
- इसने वर्ष 2016 में फिर से 1.5 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के ऋण के लिये IMF से संपर्क किया, हालांँकि IMF की शर्तों ने श्रीलंका के आर्थिक स्थिति को और खराब कर दिया।
- आर्थिक कारक:
- कोलंबो के चर्चों में अप्रैल 2019 के ईस्टर बम विस्फोटों के कारण 253 लोग हताहत हुए, परिणामस्वरूप पर्यटकों की संख्या में तेज़ी से गिरावट आई, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में भी गिरावट आई।
- वर्ष 2019 में गोटबाया राजपक्षे की नई सरकार ने अपने अभियान के दौरान किसानों के लिये कम कर दरों और व्यापक SoP का वादा किया था।
- इन बेबुनियाद वादों के त्वरित कार्यान्वयन ने समस्या को और बढ़ा दिया।
- वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी ने स्थिति को और खराब कर दिया:
- चाय, रबर, मसालों और कपड़ों के निर्यात को नुकसान हुआ।
- पर्यटन आगमन और राजस्व में और गिरावट आई।
- श्रीलंका में संकट विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण उत्पन्न हुआ है, जो पिछले दो वर्षों में 70% घटकर फरवरी 2022 के अंत तक केवल 2 बिलियन अमेरिकी डाॅलर रह गया है।
- जैविक खेती की ओर कदम:
- वर्ष 2021 में सभी उर्वरक आयातों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था और यह घोषित किया गया था कि श्रीलंका रातोंरात 100% जैविक खेती वाला देश बन जाएगा।
- जैविक खादों के प्रयोग ने खाद्य उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया।
- चीन का कर्ज जाल:
- श्रीलंका ने वर्ष 2005 से बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं के लिये बीजिंग से काफी धन उधार लिया है, जिनमें से कई परियोजनाएँ सफेद हाथी (अब इणकी आवश्यकता नहीं है/उपयोगी नहीं) बनकर रह गई हैं।
- चीन का श्रीलंका पर कुल कर्ज 8 अरब अमेरिकी डॉलर का है, जो उसके कुल विदेशी कर्ज का लगभग छठा हिस्सा है।
- वर्तमान राजनीतिक शून्यता:
- प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने इस्तीफा देने की मंशा जताई है , जिससे सर्वदलीय सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया है।
भारत को श्रीलंका संकट की चिंता क्यों?
- आर्थिक:
- भारत के कुल निर्यात में श्रीलंका की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2015 में 2.16% से घटकर वित्त वर्ष 2022 में केवल 1.3 प्रतिशत रह गई है।
- टाटा मोटर्स और टीवीएस मोटर्स जैसी ऑटोमोटिव फर्मों ने श्रीलंका को वाहन किट का निर्यात बंद कर दिया है और अस्थिर विदेशी मुद्रा भंडार तथा ईंधन की कमी के कारण अपनी श्रीलंकाई असेंबलिंग इकाइयों में उत्पादन रोक दिया है।
- शरणार्थी:
- जब भी श्रीलंका में कोई राजनीतिक या सामाजिक संकट उत्पन्न हुआ है, तो भारत ने पाक जलडमरूमध्य और मन्नार की खाड़ी के माध्यम से सिंहली भूमि से भारत में तमिल जातीय समुदाय के शरणार्थियों का बड़ा अंतर्वाह देखा है।
- हालांँकि भारत के लिये इस तरह के अंतर्वाह को संभालना मुश्किल हो सकता है तथा ऐसे संकट से निपटने के लिये एक मज़बूत नीति की आवश्यकता है।
श्रीलंका संकट में भारत के लिये अवसर
- चाय बाज़ार: वैश्विक चाय बाज़ार में श्रीलंका द्वारा चाय की आपूर्ति अचानक रोक दिये जाने के बीच भारत आपूर्ति अंतराल को पाटने का इच्छुक है।
- परिधान (वस्त्र) बाज़ार: यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ और लैटिन अमेरिकी देशों के कई परिधान ऑर्डर अब भारत को मिल रहे हैं।
- श्रीलंका भारत के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण भागीदार रहा है। भारत इस अवसर का उपयोग श्रीलंका के साथ अपने राजनयिक संबंधों को संतुलित करने के लिये कर सकता है, चीन के साथ श्रीलंका की निकटता के कारण इनमें दूरी देखी गई थी।
- चूंँकि उर्वरक के मुद्दे पर श्रीलंका और चीन के बीच असहमति के बीच भारत द्वारा श्रीलंका के अनुरोध पर भारत द्वारा उर्वरक आपूर्ति को द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक विकास के रूप में देखा जा रहा है।
- श्रीलंका के साथ राजनयिक संबंधों का विस्तार करने से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल' की नीति से श्रीलंकाई द्वीपसमूह को दूर रखने के प्रयासों में भारत को आसानी होगी।
- श्रीलंका के लोगों की कठिनाइयों को कम करने के लिये भारत मदद कर सकता है, लेकिन उसे इस बात का ध्यान रखते हुए मदद करनी चाहिये कि उसकी सहायता दृष्टिगोचर होने के साथ ही मायने रखती है।
आगे की राह
- लोकतंत्र को मज़बूती से लागू करना: बेहतर संकट-प्रबंधन के लिये श्रीलंका में मज़बूत राजनीतिक सहमति की आवश्यकता है। इससे प्रशासन के सैन्यीकरण को कम किया जा सकता है।
- भारत से समर्थन: भारत, जिसने अपने पड़ोसियों के साथ सबंध को मज़बूत करने हेतु "नेबरहुड फर्स्ट नीति" का अनुसरण किया है, श्रीलंका को मौजूदा संकट से बाहर निकालने में अतिरिक्त सहायता देकर उसे संकट से उबरने में मदद कर सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से राहत: श्रीलंका ने बेलआउट के लिये IMF से संपर्क किया है। IMF मौजूदा आर्थिक संकट से उबरने के श्रीलंका के प्रयासों का समर्थन कर सकता है।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था की संभावनाएँं: श्रीलंका में आर्थिक अस्थिरता के संदर्भ में आयात पर निर्भरता को चक्रीय अर्थव्यवस्था द्वारा कम किया जा सकता है यह रिकवरी में सहायता के लिये एक स्थायी विकल्प प्रदान करेगा।
उत्तर 11:
हल करने का दृष्टिकोण:
- GST के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- पिछले पाँच वर्षों में GST की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये।
- GST में आवश्यक सुधारों की विवेचना कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
1 जुलाई, 2017 को, भारत ने वस्तु और सेवा कर (GST) के साथ अपनी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में सबसे बड़े बदलाव किये, जिसने देश की संपूर्ण अप्रत्यक्ष कर संरचना को नया रूप दिया और कर प्रशासन और अनुपालन को महत्त्वपूर्ण रूप से संशोधित किया।
वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम की उपलब्धियाँ
(a) अनुपालन में डिजिटलीकरण: सरकार द्वारा कर अनुपालन का स्वचालन एक बड़ी जीत रही है और विशेष रूप से पूर्ववर्ती शासन की तुलना में कुशलता से काम किया है। यह GST के तहत सभी अनुपालनों के लिये 'वन-स्टॉप-शॉप' पोर्टल यानी GST नेटवर्क (GSTN) की शुरुआत के कारण संभव हुआ है।
(b) प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग: पहले चरण में करदाताओं और अधिकारियों के लिये आवश्यक बुनियादी कार्यों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया था। इसके साथ ही GSTN का अगला ध्यान अनुपालन में सुधार, धोखाधड़ी का पता लगाने और नीति निर्माण का समर्थन करने के लिये उपलब्ध प्रौद्योगिकी एवं और डेटा का लाभ उठाने पर था। इसके लिये GSTN ने मार्च 2019 में एक बिजनेस इंटेलिजेंस एंड फ्रॉड एनालिटिक्स (BIFA) यूनिट का गठन किया, जिसने BIFA टूल को विकसित करने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग को नियोजित किया, जो GST के पिछले पाँच वर्षों में एक बड़ी जीत के रूप में उभरा है।
(c) सहकारी संघवाद: GST परिषद राजकोषीय संघीय और सर्वसम्मति-आधारित संरचना का एक सच्चा वसीयतनामा है, जो GST शासन की आधारशिला है। केंद्र और राज्य सरकारें महत्त्वपूर्ण कानूनी मुद्दों पर मिलकर काम कर रही हैं।
(d) कर आधार का विस्तार: सामान्य तौर पर GST ने उपभोक्ताओं पर समग्र अप्रत्यक्ष कर का बोझ कम किया है और भारतीय उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारोंं में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बना दिया है। कर आधार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप राजस्व संग्रह में वृद्धि हुई है।
(e) जीएसटी कर के व्यापक प्रभाव को समाप्त करता है: GST एक व्यापक अप्रत्यक्ष कर है जिसे अप्रत्यक्ष कराधान को एक छत्र के नीचे लाने के लिये डिज़ाइन किया गया था। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कर के व्यापक प्रभाव को समाप्त करने जा रहा है जो पहले स्पष्ट था। व्यापक कर प्रभाव को 'कर पर कर' के रूप में सर्वोत्तम रूप से वर्णित किया जा सकता है।
सुधार के क्षेत्र
(a) क्रेडिट अनलॉक करने की आवश्यकता: GST के कार्यान्वयन के पीछे का उद्देश्य बिना किसी नुकसान के संपूर्ण मूल्य शृंखला में निर्बाध कर क्रेडिट सुनिश्चित करना था। हालाँकि पूर्ववर्ती शासन से आगे बढ़ाए गए क्रेडिट प्रतिबंध व्यवसायों की लागत में वृद्धि करते हैं, कंपनियों के लिये कीमती कार्यशील पूंजी को अवरुद्ध करते हैं। इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर का मुद्दा भी एक बाधा बना हुआ है क्योंकि वर्तमान में इनपुट सेवाओं की वापसी की अनुमति नहीं है।
(b) विवाद समाधान: जबकि प्रौद्योगिकी और अनुपालन के मामले में बहुत कुछ पूरा किया गया है, जीएसटी से संबंधित कानूनी विवाद अभी भी प्रारंभिक अवस्था में हैं। क्षेत्रीय अग्रिम निर्णय पीठों द्वारा पारित असंगत निर्णयों के कई उदाहरण हैं। इस तरह के विपरीत निर्णयों के परिणामस्वरूप कई व्यवसायों के लिये अनावश्यक मुकदमेबाजी हुई है।
(c) जीएसटी टैक्स नेटवर्क का विस्तार: पेट्रोलियम GST के दायरे से बाहर है, अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा अभी भी टैक्स के दायरे से बाहर है। पेट्रोलियम उत्पादों को GST के दायरे में शामिल करने से कंपनियों की लागत में कमी आएगी।।
(d) ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग: जबकि GSTN ने GST परिदृश्य में क्रांति ला दी है, ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी में GSTN में गड़बड़ियों को दूर करने और दक्षता में सुधार करने की अपार संभावनाएँ हैं, क्योंकि दूरदराज के स्थानों पर छोटे व्यवसायों के लिये GST नेटवर्क की अविश्वसनीयता अभी भी एक चुनौती बनी हुई है।
(e) वर्चुअल डिजिटल एसेट्स का कराधान: सरकार ने अपने हालिया बजट में यह भी घोषणा की कि क्रिप्टोकरेंसी पर 30% की दर से आयकर लगाया जाएगा। दूसरी ओर NFT से संबंधित आपूर्ति पर GST कानून (अभी तक) इस क्षेत्र में कोई स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान नहीं करता है।
(f) ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (EODB) में बदलाव: जबकि GST के तहत प्रौद्योगिकी ने सरकार और उद्योग की आवश्यकताओं के साथ तालमेल बिठाया है, अनुपालन प्रावधान अभी भी पकड़ में आ रहे हैं। उदाहरण के लिये, GST कानून में प्रत्येक राज्य में एक प्रधान कार्यालय की स्थापना की आवश्यकता होती है जहाँ से आपूर्ति की जाती है।
परिवर्तन निश्चित रूप से कभी आसान नहीं होता है। सरकार GST की राह आसान करने की कोशिश कर रही है।वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं से एक सीख लेना महत्त्वपूर्ण है, जिन्होंने हमारे सामने GST लागू किया है और जिन्होंने एक एकीकृत कर प्रणाली और आसान इनपुट क्रेडिट होने के लाभों का अनुभव करने के लिये शुरुआती परेशानियों पर काबू पा लिया है।
उत्तर 12:
हल करने का दृष्टिकोण:
- उत्तर की शुरुआत ब्रिक्स समूह की सफलता के बारे में लिखते हुए कीजिये।
- वर्तमान समय में ब्रिक्स के सामने आने वाली चुनौतियों की चर्चा कीजिये।
- भविष्य में समूह की प्रासंगिकता और उपयोगिता बनाए रखने के लिये आगे की राह सुझाइये।
ब्रिक्स विश्व की आबादी के 42%, भूमि क्षेत्र के 30%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 24% और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के 16% का प्रतिनिधित्व करता है। इसने वैश्विक उत्तर और वैश्विक दक्षिण के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करने का प्रयास किया है। BRICs ने बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार का आह्वान किया ताकि वे विश्व अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तनों और उभरते बाज़ारों की तेज़ी से बढ़ती केंद्रीय भूमिका को प्रतिबिंबित कर सकें।
ब्रिक्स के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ
- विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त: समूह के समक्ष संघर्ष की कई स्थितियाँ मौजूद रही हैं। जैसे, पिछले वर्ष पूर्वी लद्दाख में चीन की आक्रामकता से भारत-चीन संबंध पिछले कई दशकों में अपने निम्नतम स्तर पर आ गया है।
- पश्चिम के साथ चीन और रूस के तनावपूर्ण संबंधों और ब्राज़ील एवं दक्षिण अफ्रीका में व्याप्त गंभीर आंतरिक चुनौतियाँ जैसी वास्तविकताओं का सामना भी यह समूह कर रहा है।
- इधर दूसरी ओर कोविड-19 के कारण वैश्विक स्तर पर चीन की छवि खराब हुई है। इस पृष्ठभूमि में ब्रिक्स की प्रासंगिकता संदेहास्पद बनी है।
- विषम जातीयता (Heterogeneity): आलोचकों द्वारा यह दावा किया जाता है कि ब्रिक्स राष्ट्रों की विषम जातीयता (सदस्य देशों की परिवर्तनशील/भिन्न प्रकृति), जहाँ देशों के अपने अलग-अलग हित हैं, से समूह की व्यवहार्यता को खतरा पहुँच रहा है।
- चीन-केंद्रित समूह: ब्रिक्स समूह के सभी देश चीन के साथ एक-दूसरे की तुलना में अधिक व्यापार करते हैं, इसलिये इसे चीन के हित को बढ़ावा देने के लिये एक मंच के रूप में दोषी ठहराया जाता है। चीन के साथ व्यापार घाटे को संतुलित करना अन्य साझेदार देशों के लिये एक बड़ी चुनौती है।
- शासन के लिये वैश्विक मॉडल: वैश्विक मंदी, व्यापार युद्ध और संरक्षणवाद के बीच, ब्रिक्स के लिये एक प्रमुख चुनौती शासन के एक नए वैश्विक मॉडल का विकास करना है जो एकध्रुवीय नहीं हो, बल्कि समावेशी और रचनात्मक हो।
- लक्ष्य यह होना चाहिये कि प्रकट हो रहे वैश्वीकरण के नकारात्मक परिदृश्य से बचा जाए और विश्व की एकल वित्तीय तथा आर्थिक सातत्य को विकृत किये या तोड़े बिना वैश्विक उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक जटिल विलय शुरू किया जाए।
- घटती प्रभावकारिता: पाँच शक्तियों का यह गठबंधन सफल रहा है, लेकिन एक सीमा तक ही। चीन के वृहत आर्थिक विकास ने ब्रिक्स के अंदर एक गंभीर असंतुलन पैदा कर दिया है। इसके अलावा, समूह ने वैश्विक दक्षिण की सहायता के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं किया है, ताकि अपने एजेंडे के लिये उनका इष्टतम समर्थन हासिल कर सके।
आगे की राह
- समूह के भीतर सहयोग: ब्रिक्स को चीन की केंद्रीयता के त्याग के साथ एक बेहतर आंतरिक संतुलन के निर्माण की आवश्यकता है, जो क्षेत्रीय मूल्य शृंखलाओं के विविधीकरण और सशक्तिकरण की तत्काल आवश्यकता से प्रबलित हो (जिसकी आवश्यकता महामारी के दौरान उजागर हुई है)।
- नीतिनिर्माता कृषि, आपदा प्रत्यास्थता (disaster resilience), डिजिटल स्वास्थ्य, पारंपरिक चिकित्सा और सीमा शुल्क संबंधी सहयोग जैसे विविध क्षेत्रों में इंट्रा-ब्रिक्स सहयोग (intra-BRICS cooperation) में वृद्धि को प्रोत्साहित करते रहे हैं।
- ब्रिक्स ने अपने पहले दशक में साझा हितों के मुद्दों की पहचान करने और इन मुद्दों के समाधान के लिये एक मंच के निर्माण के रूप में अच्छा प्रदर्शन किया था।
- अगले दशकों में ब्रिक्स के प्रासंगिक बने रहने के लिये, इसके प्रत्येक सदस्य को इस पहल के अवसरों और अंतर्निहित सीमाओं का यथार्थवादी मूल्यांकन करना चाहिये।
- बहुपक्षीय विश्व के लिये प्रतिबद्धता: ब्रिक्स देशों को अपने दृष्टिकोण के पुनःव्यासमापन (Recalibration) और अपने आधारभूत लोकाचार के लिये फिर से प्रतिबद्ध होने की आवश्यकता है। ब्रिक्स को एक बहुध्रुवीय विश्व के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करनी चाहिये जो संप्रभु समानता और लोकतांत्रिक निर्णय लेने का अवसर देता हो।
- उन्हें NDB की सफलता से प्रेरित होना चाहिये और अन्य ब्रिक्स संस्थानों में निवेश करना चाहिये। ब्रिक्स के लिये OECD की तर्ज पर एक संस्थागत अनुसंधान प्रभाग विकसित करना उपयोगी होगा, जो ऐसे समाधान पेश करेगा जो विकासशील विश्व के लिये अधिक अनुकूल होंगे।
- ब्रिक्स को जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते (Paris Agreement on climate change) और संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (UN's sustainable development goals) के तहत घोषित अपनी प्रतिबद्धताओं की पूर्ति के लिये ब्रिक्स-नेतृत्त्व वाले प्रयास पर विचार करना चाहिये। इसमें ब्रिक्स ऊर्जा गठबंधन (BRICS energy alliance) और एक ऊर्जा नीति संस्थान (energy policy institution) स्थापित करने जैसे कदम शामिल हो सकते हैं।
- ब्रिक्स देशों को विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में संकट और संघर्ष के शांतिपूर्ण तथा राजनीतिक-राजनयिक समाधान के लिये भी प्रयास करना चाहिये।
निष्कर्ष
- इस प्रकार, ब्रिक्स का भविष्य भारत, चीन और रूस के आंतरिक और बाह्य मुद्दों के समायोजन पर निर्भर करता है। भारत, चीन और रूस के बीच आपसी संवाद आगे बढ़ने के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण होगा।
उत्तर 13:
हल करने का दृष्टिकोण :
- विशेष श्रेणी राज्य के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- विशेष श्रेणी का दर्जा देने के मानदंड की चर्चा कीजिये।
- विशेष श्रेणी राज्य वाले राज्यों के लिये उपलब्ध लाभों पर चर्चा कीजिये।
- विशेष श्रेणी राज्य के मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।
हमारे संविधान में किसी राज्य को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा देने का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन देश के कुछ हिस्से अन्य राज्यों की तुलना में संसाधनों के मामले में पिछड़े हुए हैं, इसलिये ऐसे राज्यों को केंद्र ने विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया है और SCS राज्यों को पूर्व में योजना आयोग के निकाय, राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC) द्वारा केंद्रीय योजना सहायता प्रदान की गई है।
NDC ने राज्यों की कई विशेषताओं के आधार पर यह दर्जा दिया जिसमें शामिल हैं:
- पहाड़ी क्षेत्र।
- कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा।
- पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं की सामरिक स्थिति।
- आर्थिक और बुनियादी अवसंरचना का पिछड़ापन।
- राज्य वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति।
राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा पूर्व में योजना सहायता के लिये विशेष श्रेणी का दर्जा उन राज्यों को प्रदान किया गया था, जिन्हें विशेष ध्यान देने की आवश्यकता वाले कई विशेषताओं की विशेषता है। अब यह केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा है।
14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के लिये 'विशेष श्रेणी का दर्जा' समाप्त कर दिया है।
SCS वाले राज्यों को लाभ:
1. सभी केंद्र प्रायोजित योजनाओं और विदेशी सहायता पर राज्य के खर्च का 90% केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाता है, जबकि शेष 10 प्रतिशत राज्य को ब्याज़ मुक्त ऋण के रूप में दिया जाता है।
2. विशेष श्रेणी के राज्यों को केंद्रीय निधि प्राप्त करने में वरीयता दी जाती है।
3. उद्योगों को राज्य की ओर आकर्षित करने के लिये उन्हें उत्पाद शुल्क में रियायत दी जाती है।
4. केंद्र का सकल बजट भी 30 प्रतिशत विशेष श्रेणी के राज्यों को दिया जाता है।
5. इन राज्यों में ऋण अदला-बदली योजना और ऋण राहत उपलब्ध है।
6. निवेश आकर्षित करने के लिये विशेष श्रेणी की स्थिति वाले राज्यों को सीमा शुल्क, कॉर्पोरेट कर, आयकर और अन्य करों से छूट दी गई है।
7. विशेष श्रेणी के राज्यों में एक वित्तीय वर्ष से अप्रयुक्त धन समाप्त नहीं होता है और अगले वर्ष के लिये आगे बढ़ाया जाता है।
विशेष श्रेणी के दर्जे के कामकाज में कमी:
- SCS का दर्जा देने के मानदंड को लेकर राज्यों के बीच लगातार असहमति रही है।
- जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड आदि जैसे SCS राज्यों से सम्मानित होने के बावजूद वे अभी भी हरियाणा, पंजाब जैसे गैर-श्रेणी वाले राज्यों से पीछे हैं।
- 14वें वित्त आयोग के बाद से राज्यों को मिलने वाली आय की राशि में (42%) वृद्धि हुई है। वर्तमान संदर्भ में संरचना प्रासंगिक प्रतीत नहीं होती है।
- किसी भी नए राज्य को विशेष दर्जा देने से अन्य राज्यों की मांगें बढ़ेंगी और लाभ और भी कम हो जाएंगे।
- जब कोई उधारकर्त्ता चूक करता है, तो राज्य सरकार की गारंटी ऋण स्थिरता के लिये एक चुनौती होती है।
आगे की राह
- SCS देने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले सिद्धांत पर राज्यों के बीच आम तौर पर सहमति होनी चाहिये।
- SCS के लाभ एक प्रोत्साहन के रूप में कार्य कर सकते हैं, लेकिन शेष राज्य की आर्थिक नीतियों पर निर्भर करता है; इसलिये, ध्वनि आर्थिक नीतियों का पालन करना महत्त्वपूर्ण है।
- अपने विशिष्ट संसाधनों का लाभ उठाने के लिये राज्यों को अपनी औद्योगिक ताकत को समझना चाहिये और एक ऐसा नीति वातावरण बनाना चाहिये जो केंद्र पर निर्भर रहने के बजाय उनका लाभ उठाए।
उत्तर 14:
हल करने का दृष्टिकोण:
- आईसीटी, ई-गवर्नेंस और समावेशी विकास को आपस में जोड़ते हुए परिभाषित कीजिये।
- सामाजिक-आर्थिक आयामों के साथ आईसीटी और ई-पहल की विशेषताओं पर चर्चा कीजिये।
- आईसीटी क्षेत्र के समक्ष नई उभरती चुनौतियों का वर्णन कीजिये।
- नागरिक-केंद्रित शासन की आवश्यकता का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष दीजिये।
- ई-गवर्नेंस सरल, नैतिक, जवाबदेह, उत्तरदायी और पारदर्शी ’(स्मार्ट) शासन व्यवस्था को स्थापित करने के लिये सरकारी कामकाज की प्रक्रियाओं में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) का अनुप्रयोग है।
- एक स्मार्ट गवर्नेंस मॉडल में समावेशी विकास को बढ़ावा दिया चाहिये जो सभी वर्गों के लिये अवसर पैदा करता हो और सामाजिक समृद्धि के लाभांश को वितरित करे। इस प्रकार ई-गवर्नेंस सभी के सामाजिक-आर्थिक और सतत् विकास में मदद करता है।
भारतीय समाज में परिवर्तन लाने एवं आर्थिक समावेशिता के संदर्भ में ई-गवर्नेंस के निम्नलिखित अनुप्रयोग हैं:
आर्थिक आयाम
- पुनर्जीवित कृषि क्षेत्र:
- भूमि राशि पोर्टल के माध्यम से भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण।
- भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) ने टिकाऊ, आर्थिक और पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके उत्पादकता में सुधार करने और किसानों को सशक्त बनाने में मदद की है।
- वित्तीय साक्षरता और समावेश:
- प्रत्येक परिवार के कम से कम एक व्यक्ति को साक्षर बनाने के उद्देश्य से ‘प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षर अभियान’ की शुरुआत की गई है।
- आधार सक्षम भुगतान प्रणाली बैंकिंग सेवाओं तथा डिजिटल भुगतान की सुविधा प्रदान करती है।
- डिजिटल भुगतान: कई नवीन डिजिटल भुगतान उपकरण, जैसे BHIM-UPI, भारत क्यूआर कोड, राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह आदि को लागू किया गया है।
- गुणवत्तापूर्ण रोज़गार:
- कई सरकारी एप्लीकेशन और डेटाबेस के साथ बैकों के स्तर पर एकीकरण के माध्यम से सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने के लिये उमंग मोबाइल एप्लीकेशन का उपयोग किया जा रहा है।
- ईपीएफओ रिकॉर्ड्स का डिजिटलीकरण: पेंशन राशि का डिजिटलीकरण लोगों को इस बात के प्रति आश्वस्त करता है कि उनके द्वारा फंड राशि का उपयोग करना सुरक्षित हैं तथा यह फंड की निगरानी करने का आसान एवं सुरक्षित तरीका भी है।
सामाजिक आयाम
- सस्ती शिक्षा:
- राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल एक एकल ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म के रूप में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से आवेदन जमा करने, सत्यापन करने तथा निधियों के वितरण की सुविधा के लिये कई छात्रवृत्ति योजनाओं को एकीकृत करता है।
- स्वयं (SWAYAM) एक बड़ा ऑनलाइन ओपन कोर्स प्लेटफॉर्म है जिसके माध्यम से 2000 से अधिक कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है।
- राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क ज्ञान के साझाकरण और सहयोगी अनुसंधान की सुविधा के लिये उच्च गति के डेटा संचार नेटवर्क के साथ उच्च शिक्षण और अनुसंधान के सभी संस्थानों को आपस में जोड़ने के लिये कार्यरत्त है।
- गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल:
- ई-अस्पताल: अस्पताल प्रबंधन सूचना प्रणाली के 20+ मॉड्यूल अर्थात् रोगी पंजीकरण, आईपीडी, फार्मेसी, ब्लड बैंक, आदि के लिये अस्पतालों में स्वचालन की सुविधा प्रदान करता है।
- `मेरा अस्पताल 'आवेदन: रोगियों को अस्पतालों में सेवा की गुणवत्ता पर प्रतिक्रिया प्रदान करने और अंततः रोगी द्वारा संचालित, उत्तरदायी और जवाबदेह स्वास्थ्य प्रणाली स्थापित करने में सहायक है।
- उपेक्षित वर्गों को शामिल करना:
- नॉन विजुअल डिस्प्ले एक्सेस (एनवीडीए) एक ओपन सोर्स स्क्रीन रीडिंग सॉफ्टवेयर है। यह सात भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है जो सेवाओं तक पहुँचने के लिये अलग तरह से सुविधा प्रदान करता है।
- जीवन प्रमाण सुविधा पेंशनभोगियों को अपना जीवन प्रमाण पत्र डिजिटल रूप से कहीं से भी, कभी भी आधार शामिल करने की सुविधा देता है।
- सहभागी शासन की सुविधा प्रदान करना/नागरिकों की शिकायतों का समाधान करना:
- MyGov पोर्टल पर नागरिक, सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के संबंध में अपने विचार साझा कर सकते हैं।
- नागरिकों की शिकायतों का समाधान करने और वास्तविक समय में प्रौद्योगिकी सेवाओं का लाभ उठाने के लिये आंध्र प्रदेश सरकार की रियल टाइम गवर्नेंस पहल, नागरिक शिकायतों को सुलझाने और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, घटनाओं और मौसम तथा जलवायु संबंधी घटनाओं की निगरानी करने की दिशा में कार्यरत्त है।
- इस प्रकार, ई-गवर्नेंस आर्थिक समावेशन की सुविधा प्रदान कर भारत में सामाजिक परिवर्तन लाने में मददगार साबित हो सकता है।
- आईसीटी क्षेत्रों के समक्ष उभरती चुनौतियाँ:
- साइबर सुरक्षा: साइबर सुरक्षा की चुनौती कही अधिक है।प्रतिदिन साइबर हमले के मामले बढ़ रहे हैं, साथ ही लाखों साइबर रोज़गार की संभावनाएँ भी बनी हुई हैं। साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के साथ पर्याप्त आईटी पेशेवरों की कमी बनी हुई है साथ ही एक साइबर सुरक्षा कौशल अंतराल भी बना हुआ हैं जिसे आईटी के समक्ष सबसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है।
- खर्च करने में गिरावट: भविष्य में कंपनियों द्वारा आईटी परियोजनाओं के खर्च में कमी किये जाने के कारण वैश्विक स्तर पर आईटी और आउटसोर्सिंग कंपनियों के समक्ष चुनौतियांँ उत्पन्न होगी। खासकर यात्रा और पर्यटन, आतिथ्य और विमानन जैसे क्षेत्रों में, जिसमें राजस्व प्राप्ति में 80 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक की कमी देखने को मिली है। कम-प्रभावित क्षेत्र, जैसे बैंक और वित्तीय सेवा फर्म स्वंय को नकदी-संरक्षण मोड में बनाए हुए हैं जिससे नई आईटी परियोजनाओं के निवेश में विलंब हो रहा है।
- विश्लेषिकी और डेटा प्रबंधन: साइबर सुरक्षा और क्लाउड कंप्यूटिंग के अलावा यह आईटी विभागों के लिये सबसे बड़ा कौशल अंतराल क्षेत्र है। संगठन नए डेटा का प्रबंधन करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2025 तक वैश्विक स्तर पर कुल डेटा का संग्रह 163 ज़ेटाबाइट्स (जेडबी) हो जायएगा जो वर्ष 2016 के कुल डेटा का 10 गुना होगा। नया डेटा लगातार जमा हो रहा है जिसके समक्ष भंडारण और सुरक्षा जोखिम बना हुआ है अत: डेटा को व्यवस्थित करने की आवश्यकता है।
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम भारत में सुशासन की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव लाने के उद्देश्यों से डिजिटल तकनीकों का उपयोग करने में मददगार साबित हुआ है। किसी भी ई-गवर्नेंस पहल का उद्देश्य परिवर्तनकारी, सस्ती और टिकाऊ तकनीक के साथ नागरिक भागीदारी और शक्तीकरण सुनिश्चित करना होना चाहिये। इस प्रकार वर्तमान वैश्विक ज़रूरतों एवं समय को ध्यान में रखते हुए ’अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार’ के आदर्श वाक्य को प्राप्त करने के लिये डिजिटल शक्तीकरण आवश्यक है।
उत्तर 15:
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपने उत्तर की शुरुआत बिम्सटेक के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर कीजिये।
- बिम्सटेक के उदय के कारणों की विवेचना कीजिये।
- बिम्सटेक की संभावनाओं पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त रूप से निष्कर्ष लिखिये।
बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) एक क्षेत्रीय संगठन है जिसके 7 सदस्यों में से 5 दक्षिण एशिया से हैं, इनमें बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं तथा दो- म्याँमार व थाईलैंड दक्षिण-पूर्व एशिया से हैं।
बिम्सटेक (बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल) समूह का पाँचवाँ शिखर सम्मेलन कोलंबो (श्रीलंका) में आयोजित किया गया। बिम्सटेक चार्टर पर हस्ताक्षर इस शिखर सम्मेलन का मुख्य परिणाम था।
- इस चार्टर के तहत सभी सदस्य दो वर्ष में एक बार मिलते हैं।
- चार्टर के साथ बिम्सटेक का अब एक अंतर्राष्ट्रीय अस्त्तित्व है। साथ ही इसका एक प्रतीक चिह्न है एवं एक झंडा भी है।
यह उप-क्षेत्रीय संगठन वर्ष 1997 में बैंकॉक घोषणा के माध्यम से अस्तित्व में आया।
बिम्सटेक के उद्भव के पीछे विभिन्न क्षेत्रों में सार्क की विफलताओं में निहित है। जिन कारकों के कारण SAARC का पतन हुआ है, वही कारक हैं जिन्होंने बिम्सटेक, BBIN आदि जैसे संगठनों के उदय में मदद की है।
बिम्सटेक/सार्क की विफलताओं के उद्भव के लिये कारक
अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में विफल: जबकि सार्क ने खुद को एक क्षेत्रीय मंच के रूप में स्थापित किया है, यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में विफल रहा है। सार्क के तहत अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं और संस्थागत तंत्र स्थापित किये गए हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त रूप से लागू नहीं किया गया है।
कम व्यापार: दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (SAFTA) को अक्सर सार्क के एक प्रमुख परिणाम के रूप में उजागर किया जाता है, लेकिन वह भी अभी तक लागू नहीं किया गया है। साफ्टा के 2006 में ही लागू होने के बावजूद अंतर-क्षेत्रीय व्यापार केवल 5% ही बना हुआ है।
आपसी अविश्वास: सार्क के आठ सदस्य देश शामिल हैं: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका। जबकि संगठन का उद्देश्य दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाना थाा।
अनियमित शिखर सम्मेलन: सार्क की पहली बैठक 1985 में ढाका में हुई थी, और अब तक 18 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं। हालाँकि संगठन का संचालन सुचारू रूप से नहीं हुआ है। अपने इतिहास के 30 वर्षों में वार्षिक सार्क शिखर सम्मेलन को राजनीतिक कारणों (चाहे वह द्विपक्षीय हो या आंतरिक) से 11 बार स्थगित किया गया है।
खतरे की धारणा पर सहमति का अभाव: सार्क को सुरक्षा सहयोग के क्षेत्र में भी बाधाओं का सामना करना पड़ा है। इस संबंध में एक बड़ी बाधा खतरे की धारणा पर आम सहमति की कमी रही है, क्योंकि सदस्य देश खतरों के विचार पर असहमत हैं। उदाहरण के लिये जहाँ पाकिस्तान से उत्पन्न होने वाला सीमा पार आतंकवाद भारत के लिये एक प्रमुख चिंता का विषय है, वहीं पाकिस्तान इन चिंताओं को दूर करने में विफल रहा है।
भारत और अन्य सदस्यों के बीच विषमता: भूगोल, अर्थव्यवस्था, सैन्य शक्ति और वैश्विक क्षेत्र में प्रभाव के मामले में भारत और अन्य सदस्य देशों के बीच विषमता छोटे देशों को आशंकित बनाती है। वे भारत को "बिग ब्रदर" के रूप में देखते हैं और डरते हैं कि यह सार्क का उपयोग इस क्षेत्र में आधिपत्य का पीछा करने के लिये कर सकता है। इसलिये छोटे पड़ोसी देश सार्क के तहत विभिन्न समझौतों को लागू करने के लिये अनिच्छुक रहे हैं।
बिम्सटेक की संभावनाएँ:
- यह संगठन दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के मध्य एक सेतु की भाँति कार्य करता है तथा इन देशों के सुदृढ़ आपसी संबंधों का प्रतिनिधित्व करता है।
- सार्क और आसियान के सदस्यों के बीच अंतर-क्षेत्रीय सहयोग हेतु मंच प्रदान करता है।
- संगठन में सदस्य देशों की जनसंख्या लगभग 1.5 अरब है जो वैश्विक आबादी का लगभग 22% है।
- 2.7 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के साथ, बिम्सटेक सदस्य राज्य पिछले पाँच वर्षों में औसतन 6.5% आर्थिक विकास प्रक्षेपवक्र को बनाए रखने में सक्षम रहे हैं।
- दुनिया के कुल व्यापार का एक-चौथाई हिस्सा प्रतिवर्ष बंगाल की खाड़ी से होकर गुज़रता है।
- महत्त्वपूर्ण संपर्क परियोजनाएँ:
- कलादान मल्टीमॉडल परियोजना: यह परियोजना भारत और म्याँमार को जोड़ती है।
- एशियाई त्रिपक्षीय राजमार्ग: म्याँमार से होकर भारत और थाईलैंड को जोड़ता है।
- बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौता: यात्री और माल परिवहन के निर्बाध प्रवाह हेतु।
बिम्सटेक सार्क के लिये एक आदर्श विकल्प का प्रतिनिधित्व करता है जो अपनी स्थापना से ही अपने कामकाज में अप्रभावी रहा है। बिम्सटेक उस क्षेत्र में व्यापार, वाणिज्य, शांति और सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करेगा जो सार्क करने में विफल रहा है।
उत्तर 16:
हल करने का दृष्टिकोण:
- WHO के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- कोविड-19 के दौरान WHO की भूमिका की आलोचना पर चर्चा कीजिये।
- WHO की आलोचना के खिलाफ तर्कों पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organization-WHO) की स्थापना वर्ष 1948 हुई थी।
यह एक अंतर-सरकारी संगठन है तथा सामान्यतः अपने सदस्य राष्ट्रों के स्वास्थ्य मंत्रालयों के सहयोग से कार्य करता है।
WHO वैश्विक स्वास्थ्य मामलों पर नेतृत्व प्रदान करते हुए स्वास्थ्य अनुसंधान संबंधी एजेंडा को आकार देता है तथा विभिन्न मानदंड एवं मानक निर्धारित करता है। साथ ही WHO साक्ष्य-आधारित नीति विकल्पों को स्पष्ट करता है, देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करता है तथा स्वास्थ्य संबंधी रुझानों की निगरानी और मूल्यांकन करता है।
कोविड-19 के दौरान WHO की भूमिका की आलोचना:
- तैयारी: प्राथमिकता वाली बीमारियों की WHO की 2018 की वार्षिक समीक्षा ने पुष्टि की कि बीमारियों के कोरोनावायरस परिवार को तत्काल अनुसंधान और विकास की आवश्यकता वाली प्राथमिकताओं की सूची में शामिल किया जाना चाहिये, जिसे 2015 में चुना गया था।
- घोषणा में देरी: कोविड -19 को अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (PHEIC) घोषित किया गया था, जब 18 देशों में पुष्टि के मामलों में 10 गुना वृद्धि हुई थी। WHO ने कोविड -19 को महामारी घोषित करने में देरी की।
- कथित पक्षपात चीन: जब चीन में एक जाँच दल भेजने की बात आई तो WHO ने थोड़ी जल्दबाजी दिखाई।
- व्यापार और यात्रा सीमाओं के आवेदन का समर्थन नहीं करना: WHO ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सलाह दी कि वे यात्रा प्रतिबंध लगाकर डर और कलंक को भड़काने से बचें, न कि उनके उपयोग को बढ़ावा दें।
WHO की आलोचना के खिलाफ तर्क:
- WHO के पास सरकारों के राजनीतिक विरोध के लिये आवश्यक उपकरणों का अभाव है।
- देशों ने शुरू से ही भू-राजनीतिक शब्दों में महामारी को फँसाया है और इस त्रासदी के लिये चीन को ज़िम्मेदार ठहराया है। वास्तव में WHO ने संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय देशों की सिफारिशों के पालन को बनाए रखने के लिये जोरदार संघर्ष किया। सक्रिय राष्ट्र दक्षिण कोरिया और जर्मनी सहित प्रसार को रोकने में सक्षम थे।
- WHO के कोरोनोवायरस टीकाकरण और उपचार के विकास में तेज़ी लाने के प्रयासों की सराहना की जानी चाहिये।
- WHO को ज्ञान साझा करने और इंटरनेट धोखाधड़ी और गलत सूचना का मुकाबला करने के अपने प्रयासों के लिये उच्च प्रशंसा मिली है।
- WHO के पास सम्मेलनों, समझौतों, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रक्रियाओं और अंतर्राष्ट्रीय नामकरण की सिफारिश करने का अधिकार है। विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे संगठनों के विपरीत इसके सदस्यों को बाध्य करने या दंडित करने का अधिकार नहीं है।
WHO की विश्वसनीयता को इस समय मिल रही आलोचना के कारण एक बड़ा झटका लगा है। WHO का राजनीतिकरण अभी भी एक बड़ी चिंता है, लेकिन यह व्यापक वैश्विक शासन प्रणाली के अंतर्निहित सिद्धांतों पर पुनर्विचार करने का अवसर भी प्रदान करता है। इस प्रकार WHO के कामकाज में आने वाली समस्याओं को ठीक करने के लिये उसके कामकाज में पर्याप्त सुधार होना चाहिये।
उत्तर 17:
हल करने का दृष्टिकोण:
- फ्रीबीज़ के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- फ्रीबीज़ के सकारात्मक पहलुओं पर चर्चा कीजिये।
- फ्रीबीज़ के नकारात्मक पहलुओं पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह सुझाते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।
राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिये मुफ़्त बिजली/पानी की आपूर्ति, बेरोज़गारों, दिहाड़ी मज़दूरों एवं महिलाओं के लिये मासिक भत्ते के साथ-साथ लैपटॉप, स्मार्टफोन जैसे गैजेट्स देने का वादा करते हैं।
राज्यों को फ्रीबीज़ प्रदान करने की आदत ही हो गई है, चाहे वह ऋण माफी के रूप में हो या मुफ़्त बिजली, साइकिल, लैपटॉप, टीवी सेट आदि के रूप में।
फ्रीबीज़ के पक्ष में तर्क:
विकास को सुगम बनाना: ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जो दिखाते हैं कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली, रोज़गार गारंटी योजनाएँ, शिक्षा के लिये सहायता और स्वास्थ्य जैसे विषयों में किये जाने वाले परिव्यय वास्तव में समग्र लाभ का सृजन करते हैं। महामारी के दौरान विशेष रूप से इसकी पुष्टि भी हुई।.
उद्योगों को बढ़ावा: तमिलनाडु और बिहार जैसे राज्य महिलाओं को सिलाई मशीन, साड़ी और साइकिल जैसे लाभ देते रहे हैं, लेकिन वे इन वस्तुओं की खरीद अपने बजट राजस्व से करते हैं जिससे संबंधित उद्योगों की बिक्री बढ़ाने में भी योगदान करते हैं।
अपेक्षाओं की पूर्ति के लिये आवश्यक: भारत जैसे देश में जहाँ राज्यों में विकास का एक निश्चित स्तर पाया जाता है (या नहीं पाया जाता है), चुनावों के समय लोगों की ओर से ऐसी अपेक्षाएँ प्रकट की जाती हैं, जिन्हें फ्रीबीज़ के ऐसे वादों से पूरा किया जाता है।
कम विकसित राज्यों की सहायता: गरीबी से पीड़ित आबादी के एक बड़े हिस्से के साथ तुलनात्मक रूप से विकास के निम्न स्तर पर स्थित राज्यों के लिये इस तरह के फ्रीबीज़ आवश्यकता या मांग-आधारित बन जाते हैं और अपने स्वयं के उत्थान हेतु लोगों के लिये इस तरह की सब्सिडी की पेशकश करना आवश्यक हो जाता है।
फ्रीबीज़ के विपक्ष में तर्क:
मैक्रोइकोनॉमिक रूप से असंवहनीय: फ्रीबीज़ मैक्रोइकॉनॉमिक संवहनीयता/स्थिरता के बुनियादी ढाँचे को कमज़ोर करते हैं। फ्रीबीज़ की राजनीति व्यय प्राथमिकताओं को विकृत करती है और परिव्यय के किसी न किसी तरह की सब्सिडी पर केंद्रित बने रहने की प्रवृत्ति उभरती है।
राज्यों की वित्तीय स्थिति पर प्रभाव: फ्रीबीज़ देने का अंततः राजकोष पर प्रभाव पड़ता है, जबकि भारत के अधिकांश राज्य एक सुदृढ़ वित्तीय स्थिति नहीं रखते और उनके पास राजस्व के मामले में प्रायः अत्यंत सीमित संसाधन ही होते हैं।
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की भावना के विरुद्ध: चुनाव से पहले लोकलुभावन फ्रीबीज़ (सार्वजनिक धन का उपयोग करते हुए) का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है, सभी दलों के लिये समान अवसर की स्थिति में व्यवधान लाता है और चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता को मलिन करता है।
पर्यावरण से एक कदम दूर: जब ये फ्रीबीज़ मुफ़्त बिजली अथवा एक निश्चित मात्रा में मुफ़्त बिजली, पानी और अन्य प्रकार की उपभोग वस्तुओं के रूप में प्रदान किये जाते हैं, तो ये पर्यावरण एवं सतत विकास, नवीकरणीय ऊर्जा और अधिक कुशल सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के मद में किये जा सकने वाले परिव्यय को विचलित करते हैं।
भविष्य के विनिर्माण पर दुर्बलकारी प्रभाव: फ्रीबीज़ विनिर्माण क्षेत्र में उच्च-गुणक दक्षता को सक्षम करने वाले कुशल एवं प्रतिस्पर्द्धी अवसंरचना को बाधित कर विनिर्माण क्षेत्र की गुणवत्ता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम कर देते हैं।
‘क्रेडिट कल्चर’ का विनाश: फ्रीबीज़ के रूप में ऋण माफी (Loan Waivers) के अवांछित परिणाम भी सामने आ सकते हैं; जैसे कि यह संपूर्ण क्रेडिट कल्चर को नष्ट कर सकता है और यह इस बुनियादी प्रश्न को धुंधला कर देता है कि ऐसा क्यों है कि किसान समुदाय का एक बड़ा भाग बार-बार कर्ज के जाल में फँसता रहता है।
आगे की राह:
फ्रीबीज़ के आर्थिक प्रभावों को समझना: सवाल यह नहीं कि फ्रीबीज़ कितने सस्ते हैं, बल्कि यह है कि दीर्घावधि में अर्थव्यवस्था, जीवन की गुणवत्ता और सामाजिक सामंजस्य के लिये वे कितने महंगे साबित हो सकते हैं। इसके बजाय हमें लोकतंत्र और सशक्त संघवाद की प्रयोगशालाओं के माध्यम से दक्षता की दौड़ के लिये प्रयास करना चाहिये जहाँ राज्य अपने प्राधिकार का उपयोग नवीन विचारों एवं सामान्य समस्याओं के समाधान के लिये करें, जिनका फिर अन्य राज्य भी अनुकरण कर सकते हैं।
विवेकपूर्ण मांग-आधारित फ्रीबीज़: भारत एक बड़ा देश है और यहाँ अभी भी ऐसे लोगों का एक बड़ा समूह मौजूद है जो गरीबी रेखा से नीचे है। देश की विकास योजना में सभी लोगों को शामिल किया जाना भी ज़रूरी है।
सब्सिडी और फ्रीबीज़ में अंतर करना: फ्रीबीज़ के प्रभावों को आर्थिक नज़रिये और करदाताओं के धन से जोड़कर देखने की ज़रूरत है। सब्सिडी और फ्रीबीज़ में अंतर करना भी आवश्यक है क्योंकि सब्सिडी उचित और विशेष रूप से लक्षित लाभ हैं जो मांगों से उत्पन्न होते हैं।
उत्तर 18:
दृष्टिकोण
- एक साथ चुनाव के संदर्भ का संक्षेप में उल्लेख करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- एक साथ चुनाव के पक्ष और विपक्ष में तर्कों पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
परिचय
- यह विचार वर्ष 1983 से अस्तित्व में है, जब चुनाव आयोग ने पहली बार इसे प्रस्तावित किया था। हालाँकि वर्ष 1967 तक एक साथ चुनाव भारत में प्रतिमान थे।
- हाल ही में कोविड 19 संक्रमण की दूसरी लहर का प्रकोप भारत में देखा गया है। इसमें मार्च-अप्रैल 2021 के दौरान चार राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में हुए चुनावों का भी संभावित योगदान माना जा रहा है, इसलिये "एक राष्ट्र, एक चुनाव" (One Nation, One Election) जैसी महत्त्वपूर्ण अवधारणा पर तर्कपूर्ण चर्चा करना आवश्यक हो गया है।
एक साथ चुनाव के पक्ष में तर्क
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक चुनाव होता है; दरअसल प्रत्येक राज्य में प्रत्येक वर्ष चुनाव भी होते हैं। उस रिपोर्ट में नीति आयोग ने तर्क दिया कि इन चुनावों के चलते विभिन्न प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नुकसान होते हैं।
- चुनाव की अगणनीय आर्थिक लागत: बिहार जैसे बड़े आकार के राज्य के लिये चुनाव से संबंधित सीधे बजट की लागत लगभग 300 करोड़ रुपए है। हालाँकि इसके अलावा अन्य वित्तीय लागतें एवं अगणनीय आर्थिक लागतें भी हैं।
- प्रत्येक चुनाव के दौरान सरकारी तंत्र चुनाव ड्यूटी और संबंधित कार्यों के कारण अपने नियमित कर्तव्यों से चूक जाता है।
- चुनावी बजट में चुनाव के दौरान उपयोग किये जाने वाले इन लाखों मानव-घंटे की लागत की गणना नहीं की जाती है।
- नीति पक्षाघात: आदर्श आचार संहिता(MCC) सरकार की कार्यकारिणी को भी प्रभावित करती है, क्योंकि चुनावों की घोषणा के बाद न तो किसी नई महत्त्वपूर्ण नीति की घोषणा की जा सकती है और न ही क्रियान्वयन।
- प्रशासनिक लागतें: सुरक्षा बलों को तैनात करने तथा बार-बार उनके परिवहन पर भी भारी और दृश्यमान लागत आती है।
- संवेदनशील क्षेत्रों से इन बलों को हटाने और देश भर में जगह बार-बार तैनाती के कारण होने वाली थकान तथा बीमारियों के संदर्भ में राष्ट्र द्वारा एक बड़ी अदृश्य लागत का भुगतान किया जाता है।
एक साथ चुनाव के विरुद्ध तर्क
- संघीय समस्या: एक साथ चुनावों को लागू करना लगभग असंभव है क्योंकि इसके लिये मौजूदा विधानसभाओं के कार्यकाल में मनमाने ढंग से कटौती करनी पड़ेगी या उनकी चुनाव तिथियों को देश के बाकी भागों हेतु नियत तारीख के अनुरूप लाने के लिये उनके कार्यकाल में वृद्धि करनी पड़ेगी।
- ऐसा कदम लोकतंत्र और संघवाद को कमज़ोर करेगा।
- लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध: आलोचकों का यह भी कहना है कि एक साथ चुनाव कराने के लिये मजबूर करना लोकतंत्र के विरुद्ध है क्योंकि चुनावों के कृत्रिम चक्र को थोपने की कोशिश करना और मतदाताओं की पसंद को सीमित करना उचित नहीं है।
- क्षेत्रीय दलों को नुकसान: ऐसा माना जाता है कि एक साथ चुनाव से क्षेत्रीय दलों को नुकसान पहुँचेगा क्योंकि एक साथ होने वाले चुनावों में मतदाताओं द्वारा मुख्य रूप से एक ही तरफ वोट देने की संभावना अधिक होती है जिससे केंद्र में प्रमुख पार्टी को लाभ होता है।
- जवाबदेही में कमी: प्रत्येक 5 वर्ष में एक से अधिक बार मतदाताओं के समक्ष आने से राजनेताओं की जवाबदेहिता बढ़ती है।
निष्कर्ष
- यह स्पष्ट है कि एक साथ चुनाव की अवधारणा को लागू करने के लिये संविधान और अन्य कानूनों में संशोधन की आवश्यकता होगी। लेकिन यह कार्य इस प्रकार किया जाना चाहिये कि लोकतंत्र और संघवाद के मूल सिद्धांतों को चोट न पहुँचे।
- इस संदर्भ में विधि आयोग ने एक विकल्प का सुझाव दिया है जिसके अनुसार अगले आम चुनाव से निकटता के आधार पर राज्यों को वर्गीकृत किया चाहिये और अगले लोकसभा चुनाव के साथ राज्य विधानसभा चुनाव का एक दौर तथा शेष राज्यों के लिये दूसरा दौर 30 महीने बाद होना चाहिये। लेकिन यह इस बात की गारंटी नहीं देता है कि इन सबके बावजूद भी मध्यावधि चुनाव की आवश्यकता नहीं होगी।
उत्तर 19:
हल करने का दृष्टिकोण:
- राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग के बारे में संक्षेप में उल्लेख करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- न्यायाधिकरणों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग (NTC) के विचार और न्यायाधिकरणों के कामकाज पर इसके सकारात्मक प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
- आगे का रास्ता बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।
अधिकरण एक अर्द्ध-न्यायिक संस्था (Quasi-Judicial Institution) है जिसे प्रशासनिक या कर-संबंधी विवादों को हल करने के लिये स्थापित किया जाता है। यह विवादों के अधिनिर्णयन, संघर्षरत पक्षों के बीच अधिकारों के निर्धारण, प्रशासनिक निर्णयन, किसी विद्यमान प्रशासनिक निर्णय की समीक्षा जैसे विभिन्न कार्यों का निष्पादन करती है।
अधिकरण संबंधी प्रावधान मूल संविधान में नहीं थे। इन्हें भारतीय संविधान में स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा शामिल किया गया। इस संशोधन के माध्यम से संविधान में अधिकरण से संबंधित एक नया भाग XIV-A और दो अनुच्छेद जोड़े गए:
अनुच्छेद 323A: यह अनुच्छेद प्रशासनिक अधिकरण से संबंधित है।
अनुच्छेद 323B: यह अनुच्छेद अन्य विषयों जैसे कि कराधान, विदेशी मुद्रा, आयात और निर्यात, भूमि सुधार, खाद्य, संसद तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव आदि के लिये अधिकरणों की स्थापना से संबंधित है।
भारत में अधिकरणों की वर्तमान स्थिति
स्वतंत्रता का अभाव: विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी रिपोर्ट (रिफॉर्मिंग द ट्रिब्यूनल फ्रेमवर्क इन इंडिया) के अनुसार स्वतंत्रता की कमी भारत में अधिकरणों को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों में से एक है। प्रारंभ में चयन समितियों के माध्यम से नियुक्ति की व्यवस्था अधिकरणों की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
गैर-एकरूपता की समस्या: अधिकरणों में सेवा शर्तों, सदस्यों के कार्यकाल, विभिन्न न्यायाधिकरणों के प्रभारी नोडल मंत्रालयों के संबंध में गैर-एकरूपता की समस्या है। ये कारक अधिकरणों के प्रबंधन और प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
संस्थागत मुद्दे: अधिकरण के कामकाज में कार्यकारी हस्तक्षेप प्रायः इसके दिन-प्रतिदिन के कामकाज के लिये आवश्यक वित्त, बुनियादी ढाँचे, कर्मियों और अन्य संसाधनों के प्रावधान के रूप में देखा जाता है।
राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग और इसका प्रभाव
- NTC का विचार सबसे पहले एल. चंद्र कुमार बनाम भारत संघ मामले(1997) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रस्तुत किया गया था। NTC की कल्पना अधिकरणों के कामकाज, सदस्यों की नियुक्ति और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की निगरानी तथा ट्रिब्यूनल की प्रशासनिक एवं ढाँचागत ज़रूरतों का ध्यान रखने के लिये एक स्वतंत्र निकाय के रूप में की गई है।
- एकरूपता: NTC सभी न्यायाधिकरणों में समान प्रशासन का समर्थन करेगा। यह ट्रिब्यूनल की दक्षता और उनकी अपनी प्रशासनिक प्रक्रियाओं के लिये प्रदर्शन मानक निर्धारित कर सकता है।
- शक्तियों का पृथक्करण सुनिश्चित करना: NTC को नियमों के अधीन सदस्यों के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा शर्तों को निर्धारित करने का अधिकार देने से न्यायाधिकरणों की स्वतंत्रता बनाए रखने में मदद मिलेगी। NTC विभिन्न न्यायाधिकरणों द्वारा किये गए प्रशासनिक और न्यायिक कार्यों को अलग करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
- सेवाओं का विस्तार: एक बोर्ड, एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) और एक सचिवालय से युक्त NTC की एक 'निगमीकृत' संरचना इसे अपनी सेवाओं को बढ़ाने और देश भर के सभी न्यायाधिकरणों को आवश्यक प्रशासनिक सहायता प्रदान करने की अनुमति देगी।
- स्वायत्त निरीक्षण: NTC अनुशासनात्मक कार्यवाही और अधिकरण के सदस्यों की नियुक्ति से संबंधित प्रक्रिया को विकसित और संचालित करने के लिये एक स्वतंत्र भर्ती निकाय के रूप में कार्य कर सकता है।
- एक NTC प्रभावी रूप से नियुक्ति प्रणाली में एकरूपता लाने में सक्षम होगा और यह सुनिश्चित करेगा कि यह स्वतंत्र तथा पारदर्शी हो।
आगे की राह
कानूनी समर्थन: जवाबदेही शासन के लिये एक स्वतंत्र निरीक्षण निकाय विकसित करने हेतु एक कानूनी ढाँचे की आवश्यकता होती है जो इसकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता की रक्षा करता है। इसलिये NTC को एक संवैधानिक संशोधन के माध्यम से स्थापित किया जाना चाहिये या एक ऐसे क़ानून द्वारा समर्थित होना चाहिये जो इसे कार्यात्मक, परिचालन और वित्तीय स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) मुद्दे से सीख: NTC को अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने के लिये न्यायपालिका द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करना होगा। अत्यधिक कार्यकारी हस्तक्षेप के कारण, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को न्यायपालिका की स्वतंत्रता बाधा उत्पन्न करने वाले निर्णय के रूप में देखा गया। इस प्रकार कार्यपालिका के साथ-साथ बार (Bar) को भी प्रासंगिक हितधारक होने के नाते किसी भी NTC का एक हिस्सा बनना चाहिये लेकिन इस प्रक्रिया में न्यायिक सदस्यों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
पुनर्नियुक्ति की प्रक्रिया से दूरी बनाना: NTC को ट्रिब्यूनल की स्वतंत्रता पर इसके प्रभाव के कारण ट्रिब्यूनल सदस्यों की पुनर्नियुक्ति की प्रणाली को भी दूर करना चाहिये।
उत्तर 20:
हल करने का दृष्टिकोण:
- संसदीय विपक्ष के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- विपक्ष की महत्त्वपूर्ण भूमिका की विवेचना कीजिये।
- संसदीय विपक्ष के साथ मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।
संसदीय विपक्ष, विशेष रूप से वेस्टमिंस्टर-आधारित संसदीय प्रणाली में एक नामित सरकार के राजनीतिक विपक्ष का एक रूप है। "आधिकारिक विपक्ष" का दर्जा आमतौर पर विपक्ष में बैठे सबसे बड़े दल को प्राप्त होता है और इसके नेता को "विपक्ष के नेता" की उपाधि दी जाती है।
विपक्ष की महत्त्वपूर्ण भूमिका:
- विपक्ष संसद एवं उसकी समितियों के अंदर और संसद के बाहर मीडिया में और जनता के बीच दिन-प्रतिदिन आधार पर सरकार के कामकाज पर प्रतिक्रिया करता है, सवाल करता है और उसकी निगरानी करता है।
- विपक्ष की भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि सरकार संवैधानिक सुरक्षा-घेरा बनाए रखे।
- सरकार नीतिगत उपाय और कानून के निर्माता के रूप में जो भी कदम उठाती है, विपक्ष उसे अनिवार्य रूप से आलोचनात्मक दृष्टिकोण से देखता है।
- इसके अलावा, विपक्ष संसद में केवल सरकार के कामकाज पर नज़र रखने तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि विभिन्न संसदीय साधनों (Parliamentary Devices) का उपयोग करते हुए अपने निर्वाचन क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं, संशोधनों और आश्वासनों के संबंध में भी मांग और अपील प्रस्तुत करता है।
- इतिहास में संसदीय विपक्ष ने भारत के संसदीय लोकतंत्र को रचनात्मकता और विदग्धता प्रदान की थी।
संसदीय विपक्ष के साथ संबद्ध समस्याएँ
- विपक्ष का समकालीन संकट मुख्य रूप से इन दलों की प्रभावशीलता और चुनावी प्रतिनिधित्व का संकट है।
- राजनीतिक दलों में भरोसे की कमी और नेतृत्व का अभाव भी है।
- विपक्षी दल कुछ विशिष्ट सामाजिक समूहों तक सीमित प्रतिनिधित्व के संहत स्वरूप में अटके रह गए हैं और अपने दायरे को कुछ पहचानों या अस्मिताओं की सीमितता से परे ले जाने में असमर्थ रहे हैं।
- प्रतिनिधित्ववादी दावे ने विपक्ष को गठित, विस्तारित और समेकित होने में तो सक्षम बनाया है, लेकिन इस दृष्टिकोण या परिघटना की समाज के सभी वर्गों के अंदर वास्तविक प्रतिनिधित्व साकार कर सकने की असमर्थता ने विपक्ष के लिये अवसर को संकुचित करने में भी योगदान किया है।
- पिछले कुछ वर्षों में विपक्ष की एक प्रमुख विफलता यह भी रही है कि यह एक राजनीतिक एजेंडा निर्धारित कर सकने और तटस्थ या निरपेक्ष लोगों को अपने पक्ष में कर सकने में विफल रहा है। सरकार की कई विफलताओं पर भी उसे घेर सकने में विपक्ष की असमर्थता से इसकी पुष्टि होती है।
आगे की राह
विपक्ष को पुनर्जीवित करना: महज ऊपर से हुक्म चलाने के बजाय गाँवों, प्रखंडों और ज़िलों में दलों को पुनर्जीवित करने और पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। विपक्षी दलों को सतत् बारहमासी अभियान और लामबंदी की आवश्यकता है। किसी शॉर्टकट या "कृत्रिम प्रोत्साहन" का विकल्प मौजूद नहीं है जो एक प्रभावी विपक्ष का निर्माण कर सके।
विपक्ष की भूमिका को सशक्त करना: विपक्ष की भूमिका को सशक्त करने के लिये भारत में 'शैडो कैबिनेट' (Shadow Cabinet) की संस्था का गठन किया जा सकता है। शैडो कैबिनेट ब्रिटिश कैबिनेट प्रणाली की एक अनूठी संस्था है जहाँ सत्ताधारी कैबिनेट को संतुलित करने के लिये विपक्षी दल द्वारा शैडो कैबिनेट का गठन किया जाता है।
विपक्ष को मज़बूत करने के अंतर्निहित कारक: अंतर्निहित कारक महज एक विपक्ष का निर्माण करने के बजाय कई दलों को एकजुट कर सत्तारूढ़ दल को चुनाव में प्रतिस्थापित करने की राह पर आगे बढ़ेंगे। आवश्यकता यह है कि पार्टी संगठन में सुधार किया जाए, लामबंदी के लिये आगे बढ़ा जाए और जनता को संबंधित पार्टी कार्यक्रमों से परिचित कराया जाए। इसके साथ ही, पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र के समय-समय पर मूल्यांकन के लिये एक तंत्र भी अपनाया जाना चाहिये।
प्रतिनिधित्व का उत्तरदायित्व: वर्तमान मोड़ पर विपक्ष का एक महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व यह है कि वह साझा मुद्दों पर समन्वय सुनिश्चित करे, संसदीय प्रक्रियाओं पर रणनीति तैयार करे और इनसे अधिक महत्त्वपूर्ण, दमित अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास करे।
विरासत से सबक: भारत में संसदीय विपक्ष को अपनी विरासत से बहुत कुछ सीखना है। यह विरासत से सबक ग्रहण कर स्वयं को लोकतांत्रिक और समतावादी आग्रह की प्रतिनिधि आवाज़ के रूप में स्थापित कर सकता है ।
सत्तारूढ़ दल के सदस्यों की भूमिका: जबकि विपक्ष को सरकार को चुनौती देने और उसे प्रश्नगत करने की ज़िम्मेदारी लेने की ज़रूरत है, प्रतिनिधित्व के विचार की सफलता के लिये आवश्यक है कि सभी सांसद, वे किसी भी दल से संबंधित हों, जनता की राय के प्रति संवेदनशील हों।
जहाँ हमारी राजव्यवस्था 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट' प्रणाली का पालन करती हो, विपक्ष की भूमिका विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाती है। भारत के लिये एक सच्चे लोकतंत्र के रूप में कार्य करने हेतु एक संसदीय विपक्ष—जो राष्ट्र की अंतरात्मा है, को संपुष्ट करना महत्त्वपूर्ण है।