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  • 16 Aug 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 37: "मौत की सजा इस बारे में नहीं है कि क्या लोग अपने द्वारा किये गए अपराधों के लिये मृत्यु के पात्र हैं। इस देश में मौत की सजा पर असली सवाल यह है कि क्या हम मृत्यु की सजा देने के लायक हैं? अपने तर्क दीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तर की शुरुआत मृत्युदंड और भारत में इसकी स्थिति के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर कीजिये।
    • मृत्युदंड के विरुद्ध और उसके पक्ष में तर्कों की विवेचना कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए अपना उत्तर समाप्त कीजिये।

    मृत्युदंड या मौत की सज़ा किसी जघन्य आपराधिक कृत्य के मामले में दोषसिद्धि के बाद न्यायालय द्वारा दी जाने वाली फाँसी की सज़ा है। यह न्यायालय द्वारा किसी आरोपी को दिया जाने वाला उच्चतम और कठोरतम दंड है।

    • भारत में मृत्युदंड दुर्लभतम या ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ मामलों तक सीमित है जैसे भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 121 (राज्य के विरुद्ध हथियार उठाना) और धारा 302 (हत्या) के अंतर्गत निर्णित मामलें।
    • मृत्युदंड को जघन्यतम अपराधों के लिये सबसे उपयुक्त दंड और प्रभावी निवारक उपाय के रूप में देखा जाता है।
    • दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम (CrPC), 1955 से पूर्व भारत में मृत्युदंड नियम(rule) था, जबकि आजीवन कारावास एक अपवाद था। वर्ष 1955 के संशोधन के बाद अदालतें अपने विवेक से मृत्युदंड या आजीवन कारावास देने के लिये स्वतंत्र हो गईं।

    मृत्युदंड के पक्ष में तर्क:

    • प्रतिशोध:
      • प्रतिशोध के प्रमुख सिद्धांतों में से एक यह है कि लोगों को उनके अपराध की गंभीरता के अनुपात में वह सज़ा मिलनी चाहिये जिसके वे हकदार हैं। इस तर्क में कहा गया है कि हत्या करने वाला व्यक्ति किसी के जीवन जीने का अधिकार छीन लेता है जिसके कारण उसके जीवन का अधिकार भी समाप्त हो जाता है। इस प्रकार मृत्युदंड एक प्रकार का प्रतिकार होता है।
    • निवारण:
      • मृत्युदंड को अक्सर इस तर्क के साथ उचित ठहराया जाता है कि सज़ायाफ्ता हत्यारों को मृत्युदंड देकर हम हत्यारों को लोगों को मारने से रोक सकते हैं।
      • समापन : सामान्यतय: यह तर्क दिया जाता है कि मृत्युदंड पीड़ितों के परिवारों को एक समापन का अवसर देता है।

    मृत्युदंड के पक्ष में तर्क:

    • ‘दंड के सिद्धांत’ के विपरीत:
      • मृत्युदंड, अपने सार में ‘दंड के सिद्धांत’ की भावना और इससे आगे प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध सिद्ध होता है। जो लोग मृत्युदंड का विरोध करते हैं, उनका विचार है कि प्रतिकार (Retribution) अनैतिक है और यह प्रतिशोध (Vengeance) का ही एक रूप है।
    • मानव जीवन का संरक्षण:
      • यद्यपि मृत्युदंड उपयुक्त मामलों में उचित सजा की समाज की मांग पर जवाब के रूप में कार्य करता है, दंड के सिद्धांत समाज के अन्य दायित्वों को संतुलित करने हेतु विकसित हुए हैं अर्थात मानव जीवन को संरक्षित करने के लिये, चाहे वह अभियुक्त का हो (जब तक कि उसकी समाप्ति अपरिहार्य न हो) और अन्य सामाजिक कारणों एवं समाज के सामूहिक विवेक की पूर्ति के लिये हो।
    • मृत्युदंड के विरुद्ध सामाजिक कारक:
      • मौत की सज़ा को समाप्त करने के संभावित कारणों का एक विश्लेषण लोचन श्रीवस बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2021) और भागचंद्र बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2021) जैसे हालिया फैसलों की एक शृंखला में परिलक्षित हुआ है। इन कारणों में सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन, मानसिक स्वास्थ्य, आनुवंशिकता, पालन-पोषण, समाजीकरण, शिक्षा आदि शामिल हो सकते हैं।
    • वर्ग विशेष के प्रति भेदभावपूर्ण: तथ्य यह भी है कि अमीरों के बजाय प्रायः गरीबों को ही फाँसी दी गई है।

    आगे की राह

    • अभियुक्त का मनो-सामाजिक विश्लेषण:
      • सज़ा सुनाते समय शमन विश्लेषण (Mitigation Analysis) को शामिल करने और कैदी की मनो-सामाजिक रिपोर्टों पर विचार करने के संबंध में दिशा-निर्देश तैयार करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समयबद्ध और आवश्यक हस्तक्षेप किया गया है।
    • सामाजिक सुधार:
      • केवल दंड बढ़ाने के बजाय महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों से निपटने के लिये व्यापक सामाजिक सुधारों, जाँच व रिपोर्टिंग तंत्र को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
    • निवारण (Deterrence) को सच्चे अर्थों में सुनिश्चित करना:
      • जब अपराध के तुरंत बाद सज़ा दी जाती है तो निवारण या अवरोध सर्वाधिक प्रभावी होता है। कानूनी प्रक्रिया अपराध और दंड के बीच जितनी दूरी उत्पन्न करती है (समय के संदर्भ में या निश्चितता के संदर्भ में), वह दंड उतना कम प्रभावी निवारक हो सकता है।
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