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29 Aug 2022
सामान्य अध्ययन पेपर 4
सैद्धांतिक प्रश्न
दिवस 50: नैतिक अंतः प्रज्ञा की अवधारणा का वर्णन कीजिये और अंतः प्रज्ञा तथा तर्क के बीच अंतर को उजागर करने के लिये उपयुक्त उदाहरण भी दीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- नैतिक अंतर्ज्ञान का अर्थ उदाहरण सहित समझाइये।
- अंतर्ज्ञान और तर्क के अर्थ को परिभाषित कीजिये।
- उदाहरण सहित दोनों में अंतर बताइये।
- लोक सेवा मूल्य।
नैतिक अंत:प्रज्ञा एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रम है, जिसमें व्यक्ति किसी सामाजिक घटना, व्यक्ति अथवा विचारों के प्रति स्वीकृति या अस्वीकृति की तात्कालिक अनुभूति करता है। इस प्रक्रिया में तर्क का प्रयोग शामिल नहीं होता, किंतु इसमें सामान्यत: भावनाओं, विचारों एवं अभिवृत्तियों को शामिल किया जाता है। हम सभी जब ऐसे परिदृश्य में होते हैं जब हमें अपनी पूर्व धारणाओं के आधार पर अपनी राय देनी होती है तो हम अपनी अंत:प्रज्ञा का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिये, कोई व्यक्ति हिंसा के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति होने के बाद भी अपनी अंतरात्मा की आवाज के आधार पर किसी तीर्थस्थल पर पशुबलि देता है।
नैतिक अंत:प्रज्ञा व्यक्तिपरक होती है जो व्यक्ति की नैतिक प्रवृत्ति पर आधारित होती है। उपर्युक्त उदाहरण में उस व्यक्ति के लिये हिंसा नैतिक रूप से घृणास्पद थी, किंतु उसकी अंतरात्मा के लिये हिंसा धार्मिक अनुष्ठान मात्र था।
अंत:प्रज्ञा एवं तर्कशक्ति:
- अंत:प्रज्ञा एवं तर्कशक्ति दो प्रकार की अनुभूतियों को संदर्भित करती हैं जो हमें दैनिक जीवन में विभिन्न मसलों से संबंधित निर्णय लेने में सहायता करती हैं। जहाँ तर्कशक्ति एक धीमी प्रक्रिया है जिसमें कुछ प्रयास शामिल होते हैं तथा कम-से-कम कुछ ऐसे चरण शामिल होते हैं जो चेतना के लिये सुगम हैं। वहीं अंत:प्रज्ञा एक त्वरित प्रक्रिया है जो कि स्वचालित बिना किसी परिश्रम के निर्णयन करती है, जो कि मानसिक प्रक्रिया न होकर अंतरात्मा की आवाज़ है।
- इन दोनों के मध्य अंतर को नोबेल पुरस्कार विजेता डेनियल काहनमैन के मानव अनुभूति के द्वैतवादी विभाजन, सिस्टम 1 और सिस्टम 2 द्वारा समझा जा सकता है। इनके सिद्धांत के अनुसार, सिस्टम 1 एक आवेगपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें ऐसी कार्रवाइयाँ शामिल हैं जो किसी दूसरे विचार के बिना ही की जा सकती है, जबकि सिस्टम 2 विचारशील और तर्कसंगत कार्रवाइयों को शामिल करता है।
- ड्राइविंग करना, खेलना, शेयरों में निवेश करना आदि गतिविधियाँ मस्तिष्क द्वारा अंतरात्मा के आधार पर किये गए कार्य हैं। चूँकि इन कार्यों में त्वरित निर्णयन की आवश्यकता होती है, इसलिये ये कार्य अंत:प्रज्ञा के आधार पर किये जाते हैं, जबकि अन्य कार्य, जैसे- लिखना, वाद-विवाद करना तथा रणनीति बनाना आदि में मानसिक व्यायाम की आवश्यकता होती है। हालाँकि, कुछ कार्य विशेषज्ञों द्वारा किये जाते हैं जहाँ अंत:प्रज्ञा एवं तर्कशक्ति दोनों की ही आवश्यकता होती है। जैसे कि एक डॉक्टर द्वारा किसी रोगी का इलाज करने अथवा फुटबॉल के खिलाड़ियों द्वारा अपने खेल के लिये योजना बनाने के संदर्भ में देखा जा सकता है।