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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वॉशिंगटन एकॉर्ड एवं भारत में इंजीनियरिंग शिक्षा

  • 08 Jul 2020
  • 18 min read

संदर्भ:

हाल ही में भारत को अगले 6 वर्षों के लिये ‘वाशिंगटन एकॉर्ड’ (Washington Accord) में ‘परमानेंट सिग्नेटरी स्टेटस’ (Permanent Signatory Status) दिया गया है। ‘वाशिंगटन एकॉर्ड’ सदस्य देशों द्वारा इंजीनियरिंग शिक्षा में स्नातक हेतु प्रदान की जाने वाली मान्यता है। जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य है। इंजीनियरिंग में स्नातक की गुणवत्ता के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘वाशिंगटन एकॉर्ड’ की स्वीकार्यता है। यह समझौता हस्ताक्षरकर्त्ता देशों की तरफ से अधिकृत इंजीनियरिंग कार्यक्रमों को सामान स्तर पर मान्यता देता है।     

 

पृष्ठभूमि:

  • ‘वाशिंगटन एकॉर्ड’ (Washington Accord- WA) इंजीनियरिंग में स्नातक की गुणवत्ता का एक प्रमाणपत्र माना जाता है। 
  • वर्ष 1989 में विश्व के कुछ देशों ने इंजीनियरिंग में  स्नातक की मान्यता के लिये ‘वाशिंगटन एकॉर्ड’ नाम से एक प्रक्रिया की शुरुआत की गई, जिसमें कई स्नातक स्तर के इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों की जाँच कर उन्हें प्रमाणित किया जाता है।
  • भारत में वर्ष 1987 में ‘अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद अधिनियम’ [All India Council for Technical Education (AICTE) Act] के माध्यम से ‘अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद’ की सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया।
  • हालाँकि देश में ‘राष्ट्रीय प्रमाणन बोर्ड(The National Board of Accreditation- NBA) के माध्यम से प्रमाणन की प्रक्रिया वर्ष 1994 में शुरू की गई
  • NBA की स्थापना के बाद शुरुआत के वर्षों में पाठ्यक्रमों का प्रमाणन भारतीय मानदंडों के आधार पर किया जाता था, जो ‘वाशिंगटन एकॉर्ड’ से मेल नहीं खाते थे।
  • वर्ष 2010 से ‘राष्ट्रीय प्रमाणन बोर्ड ने AICTE से अलग होकर एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करना शुरू किया।
  • वर्ष 2010 से वर्ष 2014 के बीच NBA में ‘वाशिंगटन एकॉर्ड’ के अनुरूप आवश्यक सुधार किए गए और जून 2014 में न्यूज़ीलैंड में आयोजित WA की बैठक में भारत को इस समझौते की सदस्यता प्रदान किया गया था।        

प्रमुख बिंदु:

  • WA द्वारा किसी भी देश को ‘परमानेंट सिग्नेटरी स्टेटस’ मात्र 6 वर्षों के लिये ही दिया जाता है और प्रत्येक 6 वर्ष के पश्चात एक समीक्षा के माध्यम से इसे जारी रखने या निरस्त करने के संदर्भ में पुनः निर्णय लिया जाता है।     
  • पूर्व में विश्व के कई बड़े देश पहली बार में ही इस समझौते में स्थाई स्थान प्राप्त करने में असफल रहे हैं, ऐसे में भारत को लगातार दो बार इस समझौते से जोड़ा जाना भारतीय तकनीकी शिक्षा क्षेत्र की एक बड़ी सफलता है। 

राष्ट्रीय प्रमाणन बोर्ड’

(The National Board of Accreditation- NBA)

  • राष्ट्रीय प्रमाणन बोर्डकी स्थापना ‘अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद अधिनियम’ की धारा 10(u) के तहत वर्ष 1994 में की गई थी। 
  • NBA की स्थापना का उद्देश्य शैक्षिक संस्थान द्वारा इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, फार्मेसी, वास्तुकला और संबंधित विषयों में डिप्लोमा स्तर से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक के पाठ्यक्रमों की गुणात्मक क्षमता का आकलन करना था।  
  • वर्ष 2012 से NBA द्वारा प्रत्येक दूसरे वर्ष ‘प्रत्यायन पर विश्व शिखर सम्मेलन’ (The World Summit on Accreditation-WOSA) नामक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जाता है।
    • इस सम्मेलन में दुनिया के सभी  देशों को आमंत्रित किया जाता है, जहाँ वे इस क्षेत्र से जुड़े अपनी चुनौतियों और अनुभवों चर्चा करते हैं।   
  • गौरतलब है कि वर्ष 2020 में प्रस्तावित WOSA के पाँचवें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को COVID-19 महामारी के प्रभाव के कारण टाल दिया गया है।   

WA की प्रमाणिकता के अभाव में छात्रों की चुनौतियाँ:

  • उदाहरण के लिये भारत में इंजीनियरिंग शिक्षा में स्वायत्त संस्थानों द्वारा बीटेक (B.Tech) जबकि विश्वविद्यालय से संबद्ध संस्थानों द्वारा बी.ई. (B.E.) की डिग्री दी जाती है।
    • भारत में जहाँ बीटेक को अधिक वरीयता दी जाती है वहीँ ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ देशों में बी.ई. को बेहतर मन जाता है।  
    • वर्तमान में भारत सहित विश्व के अन्य देशों में भी संचालित कई पाठ्यक्रमों को भिन्न-भिन्न देशों में अलग-अलग वरीयता प्राप्त होने से छात्रों और नियोक्ताओं को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। 
  • वर्ष 2018 में कुवैत (Kuwait) द्वारा गैर-NBA प्रमाणित संस्थानों से उत्तीर्ण भारतीय इंजीनियरों की वीज़ा अवधि को बढ़ाने पर रोक लगा दी गई थी
  • नियमों में हुए इस बदलाव के बाद ऐसे इंजीनियरों को टेकनीशियन के रूप में ही कार्य करने की अनुमति दी गई जबकि उनके पास इंजीनियरिंग की डिग्री के साथ कई वर्षों के अनुभव का प्रमाण भी था।   

वाशिंगटन एकॉर्ड के तहत मान्यता का लाभ:

  • WA के तहत मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रमों को इस समझौते में शामिल सभी देशों में सामान वरीयता दी जाएगी।
  • यदि कोई भारतीय छात्र भारत में स्थित WA के तहत NBA से मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रम में किसी इंजीनियरिंग संस्थान से स्नातक की शिक्षा पूरी कर उच्च शिक्षा के लिये विदेश जाना चाहता है, तो उसे किसी भी संस्थान में प्रवेश प्राप्त करने में आसानी होगी।
  • साथ ही ऐसे छात्रों को किसी विदेशी कंपनी में रोज़गार प्राप्त करने में भी आसानी होगी।
  • इसके अतिरिक्त WA में NBA की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से देश में इंजीनियरिंग शिक्षा की गुणवत्ता में सतत सुधार के द्वारा अधिक-से-अधिक कुशल कामगारों को प्रशिक्षण प्रदान कर ‘मेक-इन-इंडिया’ के तहत भारत को विनिर्माण के क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति के रूप में स्थापित किया जा सकेगा। 
  • उदाहरण के लिये वर्तमान में भारत के किसी भी ‘आईआईटी’ (IIT) से उत्तीर्ण छात्रों को उच्च शिक्षा या रोज़गार प्राप्त करने में सामान्यतयः अधिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है, परंतु देश के सभी छात्रों को IITs में प्रवेश नहीं दिलाया जा सकता। 
  • ऐसे में WA के मानदंडों के तहत अन्य संस्थानों के पाठ्यक्रमों का मूल्यांकन कर अधिक-से-अधिक छात्रों को आगे बढ़ने के समान अवसर उपलब्ध कराए जा सकेंगे।     

वाशिंगटन एकॉर्ड की सीमाएँ: 

  • गौरतलब है कि WA के तहत केवल स्नातक इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को मान्यता दी जाती है परास्नातक या अन्य इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को नहीं। 
  • WA के तहत NBA द्वारा पूरे संस्थान को मान्यता नहीं दी जाती बल्कि किसी पाठ्यक्रम को दी जाती है। 
  • साथ ही NBA द्वारा किसी भी पाठ्यक्रम की मान्यता हेतु निर्धारित प्रक्रिया में शामिल होना पूर्णरूप से संस्थान की इच्छा पर निर्भर करता है।
    • हालाँकि AICTE द्वारा किसी भी संस्थान को मान्यता प्राप्त करने के लिये NBA से उस संस्थान के कम-से-कम 50% पाठ्यक्रमों का मान्यता प्राप्त होना अनिवार्य है।                                

संस्थान और पाठ्यक्रम के मूल्यांकन में अंतर: 

  • वर्तमान में ‘राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद’ (National Assessment and Accreditation Council- NAAC) देश में स्थित उच्च शिक्षा से जुड़े किसी संस्थान का मूल्यांकन एक इकाई के रूप में करता है।
  • जबकि NBA द्वारा किसी संस्थान में संचालित सभी पाठ्यक्रमों का अलग-अलग मूल्यांकन किया जाता है।

लाभ: 

  • किसी संस्थान के सभी पाठ्यक्रमों के अलग-अलग मूल्यांकन से छात्रों और अन्य हितधारकों को निर्णय लेने के लिये बेहतर आँकड़े उपलब्ध कराने में सहायता होती है।
  • उदाहरण के लिये यदि किसी संस्थान के सभी पाठ्यक्रमों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की सुविधा उपलब्ध हो परंतु एक में नहीं, या किसी संस्थान में अन्य पाठ्यक्रमों के विपरीत एक पाठ्यक्रम के लिये उच्च कोटि की शिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध हों, ऐसे में छात्रों को NBA के आंकड़ों के माध्यम से बेहतर निर्णय लेने में सहायता मिलेगी। 

अन्य समझौते:

  • सिडनी एकॉर्ड (Sydney Accord):
    • वर्ष 2001 में लागू।
    • वर्तमान में इस समझौते में विश्व के 11 देश शामिल हैं, भारत इस समझौते में शामिल नहीं है। 
  • सियोल एकॉर्ड (Seoul Accord):  
    • कंप्यूटिंग और सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी अकादमिक डिग्री के लिये। 
    • वर्ष 2008 में लागू।
    • भारत इस समझौते में शामिल नहीं है।   
  • डबलिन एकॉर्ड (Dublin Accord):
    • इंजीनियरिंग टेक्निशियन से जुड़े पाठ्यक्रमों के लिये 
    • यह समझौता वर्ष 2002 कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, आयरलैंड गणराज्य और दक्षिण अफ्रीका के प्रयासों से लागू हुआ था।

समाधान:

  • AICTE द्वारा इंजीनियरिंग संस्थानों को अपने कम-से-कम 50% पाठ्यक्रमों को NBA से मान्यता प्राप्त करने की अनिवार्यता के साथ विभिन्न योजनाओं के माध्यम से उन्हें इसके लिये सहायता भी प्रदान की जा रही है।  
  • मार्गदर्शन योजना:
    • संस्थानों के  पाठ्यक्रमों के लिये NBA से मान्यता प्राप्त करने में सहयोग हेतु AICTE द्वारा   आईआईटी (IIT) और एनआईटी (NIT) के अनुभवी शिक्षकों के माध्यम से संस्थानों को परामर्श तथा मार्गदर्शन प्रदान करने का प्रबंध किया गया है।  
    • साथ ही इन मार्गदर्शकों की आवागमन और अन्य खर्चों का वहन भी द्वारा किया जाता है।  
    • AICTE द्वारा ‘केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय’ (The Ministry of Human Resource Development- MHRD) से शिक्षा के जुड़े अधिक-से-अधिक अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में शामिल होने की मांग की गई है, जिससे भविष्य में भारतीय छात्रों या कामगारों को ऐसी किसी समस्या का सामना न करना पड़े।   
  • परिणाम आधारित शिक्षा: 
    • पिछले कुछ वर्षों में भारत में इंजीनियरिंग शिक्षा को पूर्णरूप से परिणाम आधारित (Outcome Based) बनाया गया है और इसके माध्यम से पाठ्यक्रम की गुणवत्ता और शिक्षा कार्यक्रमों के परिणामों में महत्त्वपूर्ण सुधार किया गया है।
    • ऐसे में इस दृष्टिकोण को इंजिनियरिंग के अतिरिक्त अन्य पाठ्यक्रमों में भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • ऑनलाइन शिक्षा: 
    • हाल ही में केंद्र सरकार और विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) द्वारा बताया गया है कि शीघ्र ही देश के लगभग 230 विश्वविद्यालयों को ऑनलाइन शिक्षा की मान्यता दी जाएगी।
    • ऑनलाइन शिक्षा आने वाले दिनों में पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ एक और समानांतर माध्यम बन सकता है। 
    • ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से अधिक-से-अधिक छात्रों को कम लागत में उच्च कोटि की शिक्षा उपलब्ध कराई जा सकेगी।   
    • केंद्र सरकार द्वारा स्वयं (SWAYAM) के माध्यम से शिक्षण संस्थानों को 20% कोर्स को ऑनलाइन चलने की अनुमति दी गई है और इसे बढ़ाते हुए 40% करने की योजना है। 
    • हालाँकि प्रयोग आधारित पाठ्यक्रमों (जैसे-तकनीकी शिक्षा आदि) को पूर्णरूप से ऑनलाइन चलाना संभव नहीं अतः ऐसी स्थिति में कक्षा और ऑनलाइन कार्यक्रमों को मिला कर शिक्षा को अधिक सुगम बनाने का प्रयास किया जा सकता है।    

आगे की राह:

  • भारत सरकार द्वारा विश्व के अन्य देशों से प्राप्त अनुभवों और वर्तमान में शिक्षा क्षेत्र में सूचना प्रोद्योगिकी की मांग में वृद्धि को देखते हुए सूचना प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षा (IT Enabled Education) को बढ़ावा देने के लिये एक ‘न्यू डेली एकॉर्ड’ (New Delhi Accord) की शुरुआत करनी चाहिये
  • वर्तमान में ‘सूचना प्रोद्योगिकी’ के क्षेत्र में भारत विश्व में शीर्ष के देशों में शामिल है, ऐसे में भारत को वर्तमान वैश्विक परिस्थिति का लाभ उठाते हुए विश्व के समक्ष  अपनी नेतृत्व क्षमता का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिये।

निष्कर्ष:

भारत को लगातार दूसरी बार ‘वाशिंगटन एकॉर्ड’ (Washington Accord) में सदस्य चुना जाना भारतीय तकनीकी शिक्षा क्षेत्र की एक बड़ी सफलता है। WA के तहत NBA द्वारा पाठ्यक्रमों की मान्यता से न सिर्फ छात्रों को लाभ होगा बल्कि इससे देश में तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने में भी सहायता प्राप्त होगी ऐसे में अधिक-से-अधिक शिक्षण संस्थानों को NBA की प्रमाणन प्रक्रिया में भाग लेते हुए अपना योगदान देना चाहिये।  

अभ्यास प्रश्न-   ‘वाशिंगटन एकॉर्ड’ (Washington Accord- WA) से आप क्या समझते हैं? भारतीय तकनीकी शिक्षा क्षेत्र की वर्तमान चुनौतियों और इसके समाधान में ‘वाशिंगटन एकॉर्ड’ की भूमिका पर चर्चा कीजिये। 

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