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भारतीय अर्थव्यवस्था

द बिग पिक्चर: किसानों की मांगें

  • 12 Jan 2021
  • 10 min read

संदर्भ

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सीमाओं पर एकत्रित किसान कई महीनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने दिल्ली से जुड़े राजमार्गों को अवरुद्ध कर दिया है एवं हाल ही में पारित कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अडिग हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • किसानों को सरकार द्वारा दिये गए आश्वासन कि नए कानून उनके लाभ के लिये हैं, के बावज़ूद उन्हें भय है कि इन कानूनों की वजह से उनकी आजीविका गंभीर रूप से प्रभावित होगी।
  • किसानों की प्रमुख मांगों में फसल उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सुनिश्चित करने के साथ ही इन तीनों कृषि कानूनों को पूर्णतः वापस लेना शामिल है।
  • किसान संगठनों ने भी सरकार द्वारा प्रस्तावित कृषि कानूनों में संशोधन के कारण अपना असंतोष व्यक्त करने के लिये 'भारत बंद' का आह्वान कर कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन तेज कर दिया था।

किसानों की मांगें:

  • कृषि कानूनों को निरस्त करना: प्रदर्शनकारी किसान संगठनों की प्रथम एवं सबसे महत्त्वपूर्ण मांग तीनों नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की है।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य: उचित मूल्य पर फसलों की खरीद सुनिश्चित करने के लिये किसानों की दूसरी मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी देना है।
    • एक विधेयक के रूप में एमएसपी की निरंतरता एवं खाद्य अनाज खरीद की पारंपरिक प्रणाली हेतु किसान एक लिखित आश्वासन प्राप्त करने की मांग कर रहे हैं।
    • किसान संगठन चाहते हैं कि एपीएमसी अथवा मंडी प्रणाली को संरक्षण प्रदान किया जाए।
  • विद्युत (संशोधन) विधेयक: किसानों की तीसरी मांग विद्युत (संशोधन) विधेयक को वापस लेने की है, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसके कारण उन्हें मुफ्त बिजली प्राप्त नहीं होगी।
  • पराली दहन: किसानों की चौथी मांग पराली जलाने पर जुर्माने एवं कारावास की सज़ा को समाप्त करना है।
  • स्वामीनाथन आयोग: किसान स्वामीनाथन आयोग द्वारा अनुशंसित एमएसपी की मांग कर रहे हैं।
    • स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि एमएसपी में सरकार को उत्पादन की औसत लागत की कम-से-कम 50% वृद्धि करनी चाहिये। इसे C2 + 50% सूत्र के रूप में भी जाना जाता है।
      • इसमें किसानों को 50% प्रतिफल देने के लिये पूंजी एवं भूमि किराये (जिसे ’C2’ कहा जाता है) को भी शामिल किया गया है।

क्या मांगें उचित हैं?

इसके विपक्ष में तर्क-

  • एमएसपी एक प्रोत्साहन है, न कि एक अधिकार: यद्यपि एमएसपी से केवल कुछ किसान लाभान्वित हों, लेकिन एमएसपी पर होने वाला व्यय देश के लिये बहुत अधिक है।
    • एमएसपी को किसानों को शोषण से बचाने के लिये प्रोत्साहन के रूप में दिया गया था, इसे एक अधिकार के रूप में अनिवार्य नहीं किया जा सकता है।
    • यह कृत्रिम रूप से एक उच्च कीमत होती है और उस जनसंख्या वर्ग को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है जो इन फसलों का उत्पादन नहीं करते हैं एवं गरीब हैं, जैसे- भूमिहीन श्रमिक, गाँवों में लघु एवं सीमांत किसान जिन्हें खाद्यान्न खरीदने की आवश्यकता होती है।
  • कानून एपीएमसी प्रणाली को समाप्त नहीं करता है: इन कानूनों की वजह से  एपीएमसी प्रणाली बंद नहीं होगी बल्कि किसानों के उपज की बिक्री के लिये यह एक विकल्प के रूप में उपलब्ध रहेगी।
    • सरकार ने तो किसानों को एपीएमसी से बाहर भी उपज बेचने की स्वतंत्रता प्रदान की है।
  • अनुबंध कृषि: अनुबंध कृषि व्यवस्था देश के कुछ हिस्सों में पहले से ही मौजूद है। बड़े पैमाने पर अनौपचारिक अनुबंध कृषि व्यवस्था के तहत पश्चिम बंगाल एवं दिल्ली के आस-पास पहले से ही खेती की जा रही है।
    • कानून तो केवल अनुबंध कृषि को मान्यता प्रदान करता है, इसे वैध बनाता है एवं किसानों को सुरक्षा प्रदान करता है।
  • पराली जलाने की अनुमति: पराली जलाने वाले किसान, यदि पराली जलाना जारी रखते हैं, तो उन्हें जेल जाने का भय रहता है क्योंकि कानून में पराली जलाने वाले किसानों पर 1 करोड़ रूपए तक का जुर्माना अथवा पाँच वर्ष तक का कारावास अथवा दोनों सज़ा जैसे कठोर दंड का प्रावधान है ।
    • प्रदूषण के विरुद्ध कानून की अत्यंत आवश्यकता के बावज़ूद किसानों की यह मांग चिंताजनक है।

इसके पक्ष में तर्क-

  • किसानों के कल्याण के विरुद्ध कृषि का व्यवसायीकरण: कृषि बाज़ारों का वैश्विक अनुभव दर्शाता है कि किसानों के लिये एक निश्‍चित भुगतान गारंटी के रूप में कृषि सुरक्षा के बिना कृषि के व्यवसायीकरण के परिणामस्वरूप बड़े व्यापारियों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता है।
  • लघु एवं सीमांत किसानों के लिये जोखिम: यह लघु एवं सीमांत किसानों के लिये एक गंभीर चुनौती है जो हमारी कृषक जनसंख्या के 86% हिस्सा है।
    • वर्तमान कानून सौदेबाज़ी के परिदृश्य को उद्यमियों के पक्ष में परिवर्तित कर देते हैं।
  • विवाद निपटान तंत्र: नए कृषि कानून स्पष्ट रूप से दीवानी न्यायालय के न्यायाधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं, किसानों को विवाद निवारण तंत्र के किसी स्वतंत्र माध्यम से वंचित कर देते हैं।
    • किसानों को अदालत में अपना पक्ष रखने का अधिकार प्रदान किया जाएगा।
  • एपीएमसी मंडियों का क्रमिक पतन: कृषि कानून बाज़ार/निजी क्षेत्र के लिये विकल्प खोलते हैं, जहाँ एमएसपी भुगतान करने हेतु खरीदार का कोई वैधानिक दायित्व नहीं होगा।
    • चूँकि बाज़ार/निज़ी क्षेत्र से कोई बाज़ार शुल्क नहीं लिया जाएगा एवं कृषि क्षेत्र का विपणन एपीएमसी मंडियों से इन निज़ी क्षेत्रों में स्थानांतरित हो जाएगा।
  • कृषि राज्य सूची का विषय है: केंद्र सरकार ने संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची के तहत विशेष रूप से राज्य सरकार के क्षेत्र में आने वाले विषयों पर कानून बनाकर संघीय ढाँचे को दरकिनार कर दिया है।

आगे की राह

  • मध्यम मार्ग चुनना: सरकार तीनों कृषि कानूनों को रद्द नहीं करना चाहती है, जबकि इन कानूनों को रद्द करने के लिये किसान विरोध पर अडिग हैं। यहाँ एक मध्यम मार्ग अपनाने की आवश्यकता है।
    • दोनों पक्षों के मध्य कुछ समझौते होने चाहिये, यदि सरकार कुछ वास्तविक मांगों को स्वीकार कर रही है, तो किसानों को भी कुछ शर्तों पर सहमत होना चाहिये।
  • अधिकारों के संदर्भ में पूर्ण जानकारी: किसानों को अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों की पूर्ण जानकारी के साथ-साथ कनेक्टिविटी की भी आवश्यकता होती है जो कि केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों द्वारा भी प्रदान की जानी चाहिये।
  • भूमिहीन श्रमिक: भूमिहीन श्रमिकों को अक्सर कल्याणकारी नीतियों से वंचित कर दिया जाता है, जबकि वे ग्रामीण क्षेत्रों में बहुसंख्यक हैं। भूमिहीन श्रमिकों पर अधिक नीतिगत ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • लोगों के सुझाव: विशेष रूप से विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में एक नया विधेयक पारित करने से पहले सभी हितधारकों के सुझाव लेना महत्त्वपूर्ण है।

निष्कर्ष:

देश के निर्माण में किसान का महत्त्वपूर्ण योगदान है, उनके हितों का संरक्षण किये जाने के साथ उनके मुद्दों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये। इस मामले में बीच का मार्ग अपनाना सबसे उचित एवं समझदारीपूर्ण हो सकता है।

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