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पर्सपेक्टिव: सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करना

  • 28 Aug 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI), पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972, प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्त्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958

मेन्स के लिये:

भारत में चोरी हुई प्राचीन वस्तुएँ: वर्तमान परिदृश्य, चुनौतियाँ, आगे की राह 

प्रसंग:

हाल ही में संसदीय पैनल ने चोरी हुए पुरावशेषों की बरामदगी के लिये एक समर्पित सांस्कृतिक विरासत दस्ते (बहु-विभागीय टास्क फोर्स) की स्थापना की सिफारिश की, जिसमें अधिकारियों की एक टीम होगी, जिन्हें पुनर्प्राप्ति के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षित किया जा सकता है।

टास्क फोर्स में गृह मंत्रालय (पुलिस और जाँच), विदेश मंत्रालय (विदेशी सरकारों के साथ समन्वय के लिये), भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) के वरिष्ठ अधिकारी तथा वरिष्ठ विद्वान एवं विशेषज्ञ शामिल होने चाहिये।

इटली, कनाडा, नीदरलैंड, अमेरिका, स्कॉटलैंड, स्पेन और फ्राँस जैसे कई देशों ने विशेषज्ञों की एक टीम के साथ समर्पित सांस्कृतिक विरासत दस्तों की स्थापना की है जो चोरी की गई प्राचीन वस्तुओं को ट्रैक करने और उनकी पुनर्प्राप्ति  पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

पुरावशेष:

  • परिचय:
    • पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 जो 1 अप्रैल, 1976 को लागू हुआ, ऐसे "पुरावशेष" जो कम-से-कम 100 वर्षों से अस्तित्त्व में हैं, को वस्तु या कला के रूप में परिभाषित करता है।
      • इसमें सिक्के, मूर्तियाँ, पेंटिंग, पुरालेख, पृथक लेख आदि वस्तुएँ शामिल हैं जो विज्ञान, साहित्य, कला, धार्मिक प्रथाओं, सामाजिक लोकाचार या ऐतिहासिक राजनीति को चित्रित करती हैं।
    • "पांडुलिपि, रिकॉर्ड या अन्य दस्तावेज़ जो वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक या सौंदर्यवादी मूल्य के हैं" और जिनकी अवधि "75 वर्ष से कम नहीं है”, को पुरावशेष के रूप शमिल किया जाता है।
  • संरक्षण पहल:
    • भारतीय:
      • भारत में संघ सूची की मद- 67, राज्य सूची की मद- 12 तथा संविधान की समवर्ती सूची की मद- 40 देश की विरासत से संबंधित हैं।
      • स्वतंत्रता से पहले अप्रैल 1947 में पुरावशेष (निर्यात नियंत्रण) अधिनियम यह सुनिश्चित करने हेतु पारित किया गया था कि बिना लाइसेंस के किसी भी पुरावशेष का निर्यात नहीं किया जा सकता है।
      • प्राचीन स्मारकों और पुरातात्त्विक स्थलों को विनाश तथा दुरुपयोग से बचाने हेतु वर्ष 1958 में प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्त्व स्थल व अवशेष अधिनियम बनाया गया था।
    • वैश्विक:
      • यूनेस्को ने सांस्कृतिक संपत्ति के स्वामित्व के अवैध आयात, निर्यात और हस्तांतरण को प्रतिबंधित करने तथा रोकने के साधनों पर 1970 कन्वेंशन तैयार किया।
      • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी संघर्ष वाले क्षेत्रों में सांस्कृतिक विरासत स्थलों की सुरक्षा हेतु वर्ष 2015 और 2016 में प्रस्ताव पारित किये।

भारत में लुप्त पुरावशेषों का वर्तमान परिदृश्य:

  • सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत प्राप्त रिकॉर्ड के अनुसार, स्वतंत्रता के बाद से भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित और अनुरक्षित 3,696 स्मारकों में से 486 पुरावशेष गायब बताए गए हैं।
  • ASI सूची के अनुसार, वर्ष 1976 के बाद से 486 में से 322 पुरावशेषों के गायब होने की सूचना मिली थी, उसके बाद भारत ने पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 लागू किया था।
  • स्मारक और पुरावशेषों पर राष्ट्रीय मिशन (NMMA) ने कुल अनुमानित 58 लाख में से केवल 16.8 लाख पुरावशेषों का दस्तावेज़ीकरण किया है, जो अनुमानित कुल 58 लाख पुरावशेषों का लगभग 30% है।
  • ASI के अधीन स्मारक और स्थल पूरे देश में पुरातात्त्विक स्थलों एवं स्मारकों की कुल संख्या का "छोटा प्रतिशत" है। 
    • लुप्त पुरावशेषों के खतरे को यूनेस्को द्वारा भी विश्लेषित किया गया है। अनुमान है कि "1989 तक भारत से 50,000 से अधिक कला वस्तुओं की तस्करी की गई है।" 
  • ASI के अनुसार, वर्ष 2014 में 292 और वर्ष 1976 से 2013 के बीच 13 पुरावशेष विदेशों से भारत वापस लाए गए हैं।
  • भारत के प्रधानमंत्री की हालिया अमेरिका यात्रा के बाद अमेरिका द्वारा कुल 105 पुरावशेष भारत को सौंपे गए।

भारत में पुरावशेषों से संबंधित चुनौतियाँ:

  • अवैध व्यापार और तस्करी: सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौतियों में से एक पुरावशेषों का अवैध व्यापार तथा तस्करी है। पुरातात्त्विक स्थलों एवं मंदिरों से कई मूल्यवान कलाकृतियाँ लूट ली जाती हैं और देश से बाहर उनकी तस्करी की जाती है।
  • दस्तावेज़ीकरण का अभाव: पुरावशेषों का उचित दस्तावेज़ीकरण उनके संरक्षण और चोरी की स्थिति में पुनर्प्राप्ति के लिये महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि दस्तावेज़ीकरण प्रयासों में कमियाँ हैं, जिससे चोरी हुई कलाकृतियों की पहचान करने और तथा उनकी पुनर्प्राप्ति में कठिनाइयाँ आती हैं।
  • अपर्याप्त सुरक्षा उपाय: कई संग्रहालयों और पुरातात्त्विक स्थलों में उचित सुरक्षा उपायों का अभाव है, जिससे वे पुरावशेषों की चोरी और चोरी के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
  • जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी का अभाव: सांस्कृतिक विरासत के महत्त्व और इसकी सुरक्षा में भूमिका के बारे में स्थानीय समुदायों के बीच जागरूकता की कमी चोरी तथा तस्करी की घटनाओं में योगदान कर सकती है।
  • अपर्याप्त धन: पुरावशेषों की सुरक्षा और संरक्षण के लिये दस्तावेज़ीकरण, अनुसंधान तथा पुनर्प्राप्ति प्रयासों हेतु वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। अपर्याप्त धन इन आवश्यक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • विदेशों से पुरावशेषों को पुनः प्राप्त करने में चुनौतियाँ: विदेशों से चोरी हुए पुरावशेषों को पुनः प्राप्त करने में जटिल कानूनी और राजनयिक प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं। पुनर्प्राप्ति प्रक्रिया को मेज़बान देश के प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है तथा यह अंतर्राष्ट्रीय कानूनों एवं सम्मेलनों के अधीन हो सकता है।
  • व्यापक डेटाबेस का अभाव: प्रभावी प्रबंधन और पुनर्प्राप्ति प्रयासों के लिये पुरावशेषों का एक व्यापक राष्ट्रीय डेटाबेस होना आवश्यक है। ऐसे डेटाबेस की अनुपस्थिति के कारण चोरी की गई वस्तुओं की पहचान तथा उन्हें ट्रैक करने में समस्याएँ पैदा हो  सकती है।

आगे की राह

  • स्थानीय जागरूकता और सामुदायिक भागीदारी: पैनल सांस्कृतिक कलाकृतियों की चोरी और तस्करी को रोकने में स्थानीय जागरूकता तथा सामुदायिक चेतना की भूमिका पर ज़ोर देता है।
    • समुदाय को पुरावशेषों से संबंधित चोरी या संदिग्ध गतिविधियों की किसी भी घटना की रिपोर्ट करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। स्थानीय जागरूकता से सांस्कृतिक विरासत के और अधिक नुकसान को रोकने में सहायता मिल सकती है।
  • कला एवं संस्कृति संवर्द्धन हेतु बजट में वृद्धि: पैनल का कहना है कि चीन, अमेरिका, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये अपने बजट का उच्च प्रतिशत आवंटित करते हैं।
    • पैनल भारत में सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये बजट बढ़ाने की सिफारिश करता है।
  • नागरिक समाज संगठनों और CSR की भूमिका: सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और प्रचार के प्रयासों को मज़बूत करने के लिये पैनल नागरिक समाज संगठनों तथा कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहल को शामिल करने का सुझाव देता है।
    • ये संस्थाएँ विरासत के संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने में योगदान दे सकती हैं और संरक्षण प्रयासों हेतु वित्तीय सहायता भी प्रदान कर सकती हैं।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

मेन्स:

प्रश्न 1. भारतीय कला विरासत की रक्षा करना वर्तमान  समय की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (2018)

प्रश्न 2. भारतीय दर्शन और परंपरा ने भारत में स्मारकों एवं उनकी कला की कल्पना को  आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चर्चा कीजिये। (2020)

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