AUKUS: भू-राजनैतिक प्रभाव | 05 Oct 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएसए के बीच एक नई त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी 'ऑकस' (AUKUS) की घोषणा की गई है।
प्रमुख बिंदु
- ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी प्रदान करना: ऑस्ट्रेलिया इस पहल के तहत यूके और यूएस की मदद से परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों को प्राप्त करेगा।
- यह कदम महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका ने इससे पहले केवल एक बार वर्ष 1958 में ग्रेट ब्रिटेन के साथ परमाणु पनडुब्बी प्रौद्योगिकी को साझा किया है।
- चीन की प्रतिक्रिया: जैसा कि अपेक्षित था, चीन ने इस साझेदारी को अस्थिरता और हथियारों की होड़ को बढ़ावा देने वाला बताते हुए AUKUS और पनडुब्बी सौदे की कड़ी आलोचना की है।
- सहयोग के क्षेत्र: इस गठबंधन को इन तीनों देशों के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण सुरक्षा साझेदारी के रूप में माना जा रहा है।
- AUKUS के सदस्य साइबर क्षमताओं, अनुप्रयुक्त AI, क्वांटम प्रौद्योगिकियों और समुद्र के भीतर प्रौद्योगिकियों को भी एक-दूसरे से साझा करेंगे।
- अमेरिका द्वारा भारत को सांत्वना: इस बीच अमेरिका ने भारत को इस नए त्रिपक्षीय समझौते के बारे में जानकारी दी और कहा कि इससे भारत के साथ द्विपक्षीय या क्वाड (QUAD) जैसे बहुपक्षीय सहयोग पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
AUKUS गठबंधन
- AUKUS की प्रासंगिकता: साझेदारी का मुख्य उद्देश्य परमाणु पनडुब्बियों को साझा करना है ताकि ऑस्ट्रेलिया दुनिया में (भारत सहित) छह परमाणु पनडुब्बियों का संचालन करने वाले देशों में से एक बन सके।
- यह कार्य मौजूदा गठबंधन व्यवस्था के तहत नहीं किया जा सकता था क्योंकि यूके और यूएसए के बीच परमाणु साझा करने की नीति बहुत सख्त है।
- क्वाड चार देशों के बीच एक अंतर्निहित समझ का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन उनके बीच कोई आधिकारिक सैन्य संबंध नहीं है।
- पश्चिमी-प्रशांत में अनिवार्य रूप से AUKUS अमेरिका के द्विपक्षीय सैन्य गठबंधनों के लिये एक गैर-चीनी सुरक्षा संरचना है।
- हालाँकि उन सहयोगियों के पास चीन के खिलाफ एक-दूसरे का बचाव करने के लिये इसका कोई बहुपक्षीय ढाँचा नहीं है।
- नाटो भी मुख्य रूप से पश्चिमी यूरोप के आसपास केंद्रित है; हिंद-प्रशांत क्षेत्र ऐसे किसी भी सैन्य गठबंधन के लिये काफी बड़ा क्षेत्र है।
- एक चीन-केंद्रित कदम: ऑस्ट्रेलिया ने परमाणु पनडुब्बी रखने के खिलाफ अपनी लंबे समय से चली आ रही नीति में बदलाव किया है और ब्रिटेन और अमेरिका भी केवल एक-दूसरे के साथ परमाणु प्रौद्योगिकी साझा करने की अपनी दीर्घकालिक नीति से पीछे हटे हैं।
- इसका कारण यह है कि चीन से प्रणालीगत चुनौती के बारे में उनका एक सामान्य मूल्यांकन है और इसके लिये त्रिपक्षीय साझेदारी अनिवार्य है।
- यह एक डिजिटल त्रिपक्षीय व्यवस्था है क्योंकि डिजिटल सहयोग से चीन के खिलाफ क्षमता में बहुत सुधार और प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होगी।
- यूरोपीय सहयोगियों में असंतोष: तीनों देशों के यूरोपीय सहयोगी इस नई त्रिपक्षीय साझेदारी से खुश नहीं हैं।
- फ्राँस ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से अपने राजदूतों को वापस बुलाने का आदेश दिया है, उन पर यूरोपीय सहयोगियों को सूचित किये बिना यूके के साथ रक्षा साझेदारी पर बातचीत करने जैसे विश्वासघात का आरोप लगाया है।
- यूरोपीय संघ ने भी हिंद-प्रशांत में राजनीतिक और रक्षा संबंधों को बढ़ावा देने के लिये अपनी रणनीति की घोषणा की है।
- फ्राँस के असंतोष का कारण: ऑस्ट्रेलिया ने अपनी परमाणु पनडुब्बियों की खरीद के लिये फ्राँस के साथ 90 बिलियन डॉलर के पनडुब्बी अनुबंध पर हस्ताक्षर किये थे; इसलिये इस त्रिपक्षीय साझेदारी का फ्राँसीसी अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।
- 'फाइव आईज़ नेशन्स' (Five Eyes Nations) का गैर-समावेशन: 'द फाइव आईज़ एलायंस' अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच एक खुफिया-साझाकरण व्यवस्था है।
- न्यूज़ीलैंड की लंबे समय से चली आ रही नीति है कि वह परमाणु शक्ति से चलने वाले युद्धपोतों को अपने जल में प्रवेश नहीं करने देगा।
- कनाडा ने भी परमाणु पनडुब्बी हासिल करने में कोई तत्परता नहीं दिखाई है।
भारत पर प्रभाव
महत्त्व
- शक्तिशाली सहयोगी शक्तिशाली भारत: AUKUS साझेदारी QUAD को मज़बूत करती है और इससे भारत जैसे महत्त्वपूर्ण भागीदारों को अधिक लाभ मिलेगा, जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य संतुलन बना रहेगा।
- क्वाड को मज़बूती: AUKUS साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम तकनीक और उन्नत मिसाइल जैसे क्षेत्रों में QUAD की क्षमताओं को भी बढ़ावा देगा।
- यह भारत और जापान के लिये इन क्षेत्रों में सहयोग के अवसर भी खोलेगा।
- चीन के खिलाफ शुद्ध रणनीतिक लाभ (Net strategic positive): चीन के विरुद्ध किसी भी बहुपक्षीय ढाँचे को लाभ पहुँचाने वाला कोई भी गठबंधन या साझेदारी भारत के लिये एक शुद्ध रणनीतिक लाभ है।
- AUKUS के प्रति चीन की आक्रामक प्रतिक्रिया भारत के लिये लाभ का एक संकेत है।
संबंधित मुद्दे
- हिंद-प्रशांत में सत्ता परिवर्तन: भारत के लिये चिंता की बात यह है कि अमेरिका अब अपने अंग्रेज सहयोगी के साथ एक ऐसी सुरक्षा साझेदारी को बढ़ावा दे रहा है, जिसका भारत हिस्सा नहीं है।
- यह संभवतः इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बिगाड़ सकता है और भारत के पूर्व में नए तनाव पैदा कर सकता है, जबकि भारत के पश्चिम में अफगानिस्तान में सरकार के हालिया परिवर्तन के कारण पर्याप्त अशांति है।
- परमाणु पनडुब्बियों की भीड़: यह सौदा अंततः पूर्वी हिंद महासागर में परमाणु पनडुब्बियों की भीड़ को निमंत्रित कर सकता है, जिससे इस क्षेत्र में भारत की श्रेष्ठता समाप्त हो सकती है।
- भारतीय नौसेना वर्तमान में अंतरिक्ष में आगे है लेकिन इसकी क्षमता पारंपरिक जल में कम हो रही है।
- वफादारी को लेकर संदेह: यह सवाल उठाता है, "भारत का भविष्य कैसा हो सकता है"।
- अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का एक बड़ा नाटो सहयोगी फ्राँस इस साझेदारी को विश्वासघात मानता है।
- यदि भविष्य में ऐसी स्थिति बनती है, जिसमें भारत को भी ऐसा महसूस होता है तो दोनों देशों के लिये अपने स्वयं के हित की ओर देखने की संभावना है।
आगे की राह
- भारत और इसकी नौसेना: भारत रूस से लीज पर परमाणु पनडुब्बी- INS चक्र वापस करने के बाद केवल एक स्वदेशी निर्मित सबमर्सिबल शिप बैलिस्टिक मिसाइल न्यूक्लियर- INS अरिहंत का संचालन करता है।
- AUKUS साझेदारी के बाद भारत परमाणु हमले वाली पनडुब्बियों की खरीद के लिये फ्राँस के साथ कोई समझौता कर सकता है। यह भारत की नौसैनिक क्षमता में एक बड़े अंतर को भर देगा।
- भारत-फ्राँस संबंधों को मज़बूत करना: एक प्रमुख हिंद-प्रशांत शक्ति के रूप में फ्राँस क्षेत्रीय सुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण सदस्य है।
- ऑस्ट्रेलिया द्वारा हालिया झटका फ्राँस को भारत जैसे भागीदारों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने के लिये प्रेरित कर सकता है।
- साथ ही भारत को निरंतर आयात और रक्षा निर्माण से जुड़े सभी महत्त्वपूर्ण योजनाएँ एवं परियोजनाएँ जो आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत आती हैं, को लागू करने के मध्य संतुलन बनाना चाहिये।
- ऑस्ट्रेलिया द्वारा हालिया झटका फ्राँस को भारत जैसे भागीदारों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने के लिये प्रेरित कर सकता है।
- बहुपक्षवाद में तेज़ी: QUAD और AUKUS सहित छोटे समूहों को निकट भविष्य में और साझेदारों को जोड़ना चाहिये।
- उदाहरण के लिये अर्द्धचालक, इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार या सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहायता की आवश्यकता होने पर ताइवान और दक्षिण कोरिया को QUAD में शामिल किया जा सकता है।
निष्कर्ष
- अमेरिका और ब्रिटेन के साथ मिलकर ऑस्ट्रेलिया हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने में अधिक मज़बूत भूमिका निभाने के लिये तैयार है।
- विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिये किसी भी विशाल गठबंधन के अभाव में AUKUS जैसी छोटे समूहों के आगे आने की संभावना है।
- इस बीच भारत संभवत: एक बड़े सहयोगी के रूप में फ्राँस की ओर देख सकता है, विशेषकर जब फ्राँस को अपने ही सहयोगियों से झटका लगा हो।
- दोनों के पास अब पारस्परिक रूप से आर्थिक सहयोग करने एवं हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सुनिश्चित करने का एक बेहतर मौका है।