वन नहीं तो जीवन नहीं | 06 Apr 2022
चर्चा में क्यों?
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटेंड स्पीशीज़ के हालिया आँकड़ों के अनुसार, जंगली जीवों और वनस्पतियों की 8,400 से अधिक प्रजातियाँ गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं, जबकि 30,000 से अधिक लुप्तप्राय हैं।
भारत का ट्रैक रिकॉर्ड क्या है?
- भारत दुनिया के सबसे बड़े जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है, जहाँ तीन जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट हैं- पश्चिमी घाट, पूर्वी हिमालय और इंडो-बर्मा हॉटस्पॉट तथा सुंदरलैंड।
- भारत में सात प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थल, 11 बायोस्फीयर रिज़र्व और 49 रामसर स्थल हैं।
- IUCN के अनुसार, संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में भारत में पाई जाने वाली 239 जीवों की प्रजातियाँ लुप्तप्राय हैं, जिनमें स्तनधारियों की 45 प्रजातियाँ, पक्षियों की 23 प्रजातियाँ, सरीसृप की 18 प्रजातियाँ, उभयचरों की 39 प्रजातियाँ और मछलियों की 114 प्रजातियाँ शामिल हैं।
- भारत में 987 संरक्षित क्षेत्रों का एक नेटवर्क है जिसमें 106 राष्ट्रीय उद्यान, 564 वन्यजीव अभयारण्य, 99 संरक्षण रिज़र्व और 218 सामुदायिक रिज़र्व शामिल हैं, ये देश के भौगोलिक क्षेत्र के कुल 1,73,053.69 वर्ग किमी. को कवर करते हैं जो लगभग 5.26% है।
- अरावली पर्वतमाला के क्रमिक विनाश के साथ पश्चिमी राजस्थान में थार का रेगिस्तान लोगों के प्रवास, वर्षा के पैटर्न में बदलाव, रेत के टीलों के प्रसार और अवैज्ञानिक वृक्षारोपण अभियान के कारण तेज़ी से विस्तार कर रहा है।
- लोगों के प्रवास के परिणामस्वरूप मानवीय गतिविधियाँ होती हैं जिसका मरुस्थलीकरण में योगदान है जैसे कि कृषि भूमि का विस्तार और गहन उपयोग, खराब सिंचाई पद्धति, वनों की कटाई तथा अतिवृष्टि जो भूमि पर भारी दबाव डालती है एवं मरुस्थल की पारिस्थितिकी के लिये भी खतरा पैदा करती है।
द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
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अवैध वन्यजीव व्यापार क्या है?
- वन्यजीव व्यापार का अर्थ है मृत या जीवित पौधों और जानवरों तथा उनसे प्राप्त उत्पादों को खरीदना और बेचना।
- अमेरिकी विदेश विभाग का अनुमान है कि प्रतिवर्ष लगभग 10 बिलियन डॉलर मूल्य के सामान की तस्करी के साथ ड्रग्स और हथियारों के बाद वन्यजीव तस्करी तीसरा सबसे बड़ा अवैध व्यापार है।
- वर्ल्ड वाइल्डलाइफ क्राइम रिपोर्ट, 2020 के अनुसार, पैंगोलिन दुनिया में सबसे अधिक तस्करी किये जाने वाले स्तनधारी हैं।
अवैध वन्यजीव व्यापार का क्या प्रभाव है?
- अवैध वन्यजीव व्यापार टिकाऊ नहीं है, यह जंगली जानवरों और पौधों को नुकसान पहुँचा रहा है तथा लुप्तप्राय प्रजातियों को विलुप्त होने की ओर धकेल रहा है।
- यह कई सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणाम भी उत्पन्न करता है, जैसे कि जूनोटिक रोगजनकों का प्रसार।
- भारत में प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले जूनोटिक रोगों में रेबीज़, ब्रुसेलोसिस, टोक्सोप्लाज्मोसिस, सिस्टीसर्कोसिस, इचिनोकोकोसिस आदि शामिल हैं।
- अवैध वन्यजीव व्यापार के कारण उत्पन्न होने वाली मांगों की वजह से प्रजातियों को भी विलुप्त होने जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है।
- इस अवैध व्यापार के कारण वन्यजीव संसाधनों का अत्यधिक दोहन पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा करता है।
- अवैध व्यापार सिंडिकेट के हिस्से के रूप में अवैध वन्यजीव व्यापार देश की अर्थव्यवस्था को कमज़ोर करता है और इस तरह सामाजिक असुरक्षा की स्थिति पैदा करता है।
- जंगली पौधे जो फसलों को आनुवंशिक भिन्नता प्रदान करते हैं (कई दवाओं के लिये प्राकृतिक स्रोत) अवैध व्यापार के कारण खतरे में हैं।
भारत वन सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2021 की स्थिति क्या दर्शाती है?
- प्रकृति हर चीज़ का मूल है और जैविक विविधता के संरक्षण से वन्यजीवों का संरक्षण होता है। एक प्रजाति की रक्षा करते हुए उसके निवास स्थान को बचाना सबसे महत्त्वपूर्ण है। यह वह तरीका है जिससे राष्ट्रीय प्राकृतिक विरासत को बचाया जा सकता है।
हाल ही में जारी भारत राज्य वन सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2021 के अनुसार:
- कुल वन आवरण:
- भारत का वन क्षेत्र अब 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है, जबकि वर्ष 2019 में यह 21.67% था।
- उच्चतम वन क्षेत्र/आच्छादन वाले राज्य:
- क्षेत्रवार: मध्य प्रदेश में देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र का स्थान है।
- कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वन कवर के मामले में शीर्ष पाँच राज्य मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर और नगालैंड हैं।
- कार्बन स्टॉक:
- देश के जंगलों में कुल कार्बन स्टॉक 7,204 मिलियन टन होने का अनुमान है, वर्ष 2019 से 79.4 मिलियन टन की वृद्धि।
- क्षेत्रवार: मध्य प्रदेश में देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र का स्थान है।
क्या प्रकृति के नुकसान को रोकना संभव है?
- सरकार के विभिन्न कानूनी ढाँचे के कारण भारत में लगभग लुप्तप्राय प्रजातियों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है, जैसे:
- असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिज़र्व (KNPTR) में एक सींग वाले गैंडों की आबादी में पिछले चार वर्षों में 200 की वृद्धि हुई है।
- भारत सरकार द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, आधिकारिक तौर पर तेंदुए की संख्या में वर्ष 2014-2018 की तुलना में 63% की वृद्धि हुई है।
- राज्य वन विभाग, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) की नवीनतम रिपोर्ट से पता चलता है कि विदर्भ में कम-से-कम 352 बाघ और 635 तेंदुए हैं।
वन्यजीव संरक्षण के लिये भारत का घरेलू कानूनी ढाँचा क्या है?
- वन्यजीवन के लिये संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा "वनों" को समवर्ती सूची में प्रविष्टि 17A के रूप में जोड़ा गया और "जंगली जानवरों तथा पक्षियों की सुरक्षा" को प्रविष्टि 17B के रूप में जोड़ा गया।
- संविधान के अनुच्छेद 51A (G) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 48A में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार तथा देश के वनों एवं वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
- कानूनी ढाँचा:
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
- जैविक विविधता अधिनियम, 2002
- वैश्विक वन्यजीव संरक्षण प्रयासों में भारत का सहयोग
- वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES)
- जंगली जानवरों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर कन्वेंशन (CMS)
- जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD)
- विश्व विरासत सम्मेलन
- रामसर कन्वेंशन
- वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क (TRAFFIC)
- वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम (UNFF)
- अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग (IWC)
- प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN)
- ग्लोबल टाइगर फोरम (GTF)
प्रोजेक्ट टाइगर:
- प्रोजेक्ट टाइगर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे वर्ष 1973 में भारत में नामित बाघ अभयारण्यों में बाघ संरक्षण के लिये राज्यों को केंद्रीय सहायता प्रदान करने हेतु शुरू किया गया था। यह परियोजना राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा प्रशासित है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण:
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है।
- इसकी स्थापना वर्ष 2005 में टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद की गई थी।
- इसे सौंपी गई शक्तियों और कार्यों के अनुसार, बाघ संरक्षण को मज़बूती प्रदान करने के लिये वर्ष 2006 में संशोधित वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों को बल देने के लिए इसका गठन किया गया था।
आगे की राह
- भागीदारी: केवल कानून और तकनीकी विशेषज्ञता ही काफी नहीं है, स्थानीय समुदायों को यह समझने की ज़रूरत है कि उनकी भागीदारी भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है।
- पर्यावास की हानि: भारत के भौगोलिक क्षेत्र का केवल 5% ही संरक्षित क्षेत्र की श्रेणी में है जो समस्त जंगली जानवरों के आवास के लिये पर्याप्त नहीं है।
- इसने जंगली जानवरों को भोजन की तलाश में बाहर निकलने और मानव बस्तियों के करीब जाने के लिये मजबूर कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप मानव-पशु संघर्ष की घटनाएँ होती हैं।
- वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, यदि वन्यजीव संरक्षण केवल रिज़र्व और पार्कों तक ही सीमित होगा तो कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर पहुँच जाएंगी।
- संरक्षित क्षेत्रों के लिये खतरा: राजमार्गों को चौड़ा करने जैसी बड़ी संख्या में सरकारी परियोजनाओं से संरक्षित क्षेत्रों के लिये भी खतरा उत्पन्न हो रहा है; रेलवे नेटवर्क खनन; सिंचाई परियोजनाएँ; परिवहन, आदि
- टाइगर रिज़र्व में राजमार्गों के अलावा रेलवे और सिंचाई परियोजनाएँ आ रही हैं। उदाहरण के लिये केन-बेतवा नदी को जोड़ने की परियोजना से मध्य प्रदेश में पन्ना टाइगर रिज़र्व के मुख्य क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो जाएगा।
- प्रौद्योगिकी: इस वैज्ञानिक दुनिया में प्रौद्योगिकी वन्यजीवों के साथ-साथ आवास के संरक्षण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है जैसे:
- कैमरा ट्रैप: वे संरक्षण और पारिस्थितिक अनुसंधान के लिये एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभरे हैं।
- इनका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिये किया जा रहा है, जिसमें वन्यजीव आबादी की निगरानी, संरक्षित क्षेत्रों का सर्वेक्षण और सार्वजनिक जुड़ाव एवं नागरिक विज्ञान के लिये मनोरम छवियों व वीडियो को कैप्चर करना शामिल है।
- M-STrIPES (बाघों के लिये निगरानी प्रणाली- गहन सुरक्षा और पारिस्थितिक स्थिति): यह एक एप-आधारित निगरानी प्रणाली है, जिसे वर्ष 2010 में NTCA द्वारा भारतीय बाघ अभयारण्यों में लॉन्च किया गया था।
- यह प्रणाली क्षेत्रीय प्रबंधकों को भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) डोमेन में तीव्रता के साथ गश्त और स्थानिक कवरेज में सहायता प्रदान कर सक्षम बनाएगी।
- आवश्यक स्थानों पर ऐसी प्रौद्योगिकियों की तैनाती सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- कैमरा ट्रैप: वे संरक्षण और पारिस्थितिक अनुसंधान के लिये एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभरे हैं।
निष्कर्ष:
भोजन से लेकर ईंधन और आर्थिक अवसरों तक अपनी सभी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये मनुष्य वन्यजीवन एवं जैव विविधता आधारित संसाधनों पर निर्भर है। वन्यजीवों के आवासों के संरक्षण और समग्र पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली की दिशा में आगे बढ़ने और कार्रवाई करना आवश्यक है क्योंकि हम एक-एक कर प्रजातियों को खोने की कगार पर हैं।
विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ):प्रश्न: यदि किसी विशेष पौधे की प्रजाति को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची VI के तहत रखा गया है, तो इसका क्या निहितार्थ है? (वर्ष 2020) (A) उस पौधे की खेती के लिये लाइसेंस की आवश्यकता होती है। उत्तर: (A) प्रश्न. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज़ (IUCN) द्वारा प्रकाशित "रेड डेटा बुक्स" में किसकी सूचियाँ हैं? (वर्ष 2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) 1 और 3 उत्तर: (B) प्रश्न. निम्नलिखित में से जानवरों का कौन सा समूह लुप्तप्राय प्रजातियों की श्रेणी में आता है? (वर्ष 2012) (A) ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, कस्तूरी मृग, लाल पांडा और एशियाई जंगली गधा उत्तर: (A) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 और 2 उत्तर: (C) प्रश्न. भारत के डेज़र्ट नेशनल पार्क के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा सही है? (वर्ष 2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (A) केवल 1 और 2 उत्तर: C |