उन्होंने एक शिक्षक के रूप में अपना कॅरियर शुरू किया। हालाँकि गरीब घुमंतू जनजातियों के लिये उनकी चिंता ने उन्हें नौकरी छोड़ने के लिये प्रेरित किया। वे विगत 53 वर्षों से सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिये कार्य कर रहे हैं।
उन्होंने वर्ष 1992 में 'सावित्रीबाई फुले शिक्षण प्रसारक (SPSP) मंडल की स्थापना की। इसने एक पिछड़ी तहसील मंडनगढ़ के गरीब छात्रों के लिये उच्च शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया।
SPSP मंडल ने महाराष्ट्र के मंडनगढ़ और दापोली तहसीलों में कॉलेज, जूनियर कॉलेज, हाई स्कूल, OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) हॉस्टल एवं आश्रम स्कूल स्थापित किये हैं।
उन्होंने भटके विमुक्त विकास परिषद (Bhatke Vimukt Vikas Parishad) के साथ ही विशेष रूप से भटके विमुक्त समाज के लिये कार्य करने वाली आठ अन्य संस्थाओं की स्थापना की।
वह महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित इदाते समिति (वर्ष 1999) के अध्यक्ष थे।
विमुक्त घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजाति (DNT) आयोग (वर्ष 2015) के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने DNT समुदायों के उत्थान के लिये कई उपयोगी सिफारिशें की हैं।