आचार्य चंदनाजी को सामाजिक कार्य में उनके विशिष्ट योगदान के लिये पद्मश्रीपुरस्कार 2022 से सम्मानित करने की घोषणा की गई है।
उनका जन्ममहाराष्ट्र में हुआ था लेकिन उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा बिहार में सामाजिक कार्य करते हुए बिताया।
आचार्य चंदनाजी, जिन्हें प्यारसे 'ताईमहाराज' कहा जाता है, ने 1973-74 में राजगीर में जैन धर्म के सिद्धांतों पर आधारित एक धार्मिक संगठन वीरायतन की स्थापना की थी।
वह 1987 में 'आचार्य' कीउपाधिपानेवालीपहलीजैनसाध्वी भी बनीं।
उन्हेंजैनसमुदायकेबीच "सेवा" ('मानवताकीसेवा') कीअवधारणा को प्रसारित करने के लिये जाना जाता है।
सामाजिक कार्य
उन्होंने 1973-74 में वीरायतन की स्थापना की, जोअबदेशभरमेंकईतकनीकी, व्यावसायिकऔरप्राथमिकस्कूलोंकाप्रबंधनकरताहै, तथायहलगभग 10,000 वंचितऔरज़रूरतमंदबच्चोंकोलगभगमुफ्तशिक्षा प्रदान करता है।
वीरायतनतीनमुख्यस्तंभोंपरआधारितहै:
सेवाः मानवता की सेवा
शिक्षा: शिक्षण, अध्ययन
साधनाः आंतरिक शांति के लिये आध्यात्मिक विकास
वीरायतन संस्था की परिकल्पना उनके गुरु, आचार्य अमर मुनि महाराज ने की थी, जिन्होंनेउन्हेंननसेआचार्यबना दिया।
राजगीर में एक नेत्र अस्पताल और जमुई जिले के पावापुरी और लछुआर में एक स्कूल के अलावा, वीरायतन संस्था के तहत पावापुरी में एक बीएड कॉलेज भी संचालित है, जहाँ सेवाएँ लगभग पूरी तरह से मुफ्त हैं।
भविष्य की परियोजनाओं के संबंध में, राजगीर में एक स्कूल, एक नैदानिक केंद्र तथा एक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र प्रस्तावित है।
संस्थाकालक्ष्यपूरेदेशमें 200 स्कूलखोलनेकाहै।
महामारी के दौरान, उन्होंने 50 अनाथ और वंचित बच्चों को गोद लिया, जो मुफ्त शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं तथा कच्छ के एक आवासीय विद्यालय में रह रहे हैं।