उन्हें समाज में उनके योगदान के लिये 2021 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
सपकाल, जिन्हे "माई" के नाम से जाना जाता था, पुणे में एक अनाथालय चलाती थीं जहाँ उन्होंने 1,000 से अधिक अनाथ बच्चों को गोद लिया था।
सामाजिक कार्य
उन्होंने 1970 में अपना सामाजिक कार्य शुरू किया, जिसके दौरान वे राज्य के ग्रामीण हिस्सों के संपर्क में आईं और पारधी समुदाय की कठिनाइयों और मुद्दों से अवगत हुईं।
वह सपकाल हडपसर के पास मंजरी में 'सनमती बाल निकेतन संस्था' नाम से एक अनाथालय चलाती हैं।
बच्चों के लिये सभी सुविधाओं के साथ इनका अपना भवन है और यह सार्वजनिक दान पर चलता है।
उन्होंने पारधी समुदाय और उनके बच्चों के उत्थान के लिये चिंचवाड़ क्षेत्र में एक गैर सरकारी संगठन, पुनरुत्थान समरसता गुरुकुलम की शुरुआत की।
वह इन बच्चों के लिये एक स्कूल और आवासीय सुविधा चलाती हैं।
शिक्षा की "गुरुकुल" प्रणाली के आधार पर, पारधी समुदाय के 200 बालक और 150 बालिकाएँ यह सुविधा प्राप्त कर रहे हैं।
2010 में, सपकाल पर एक मराठी बायोपिक महाराष्ट्र में रिलीज़ हुई थी।