वाटर वर्ल्ड | 17 Dec 2022
खगोलविदों की एक टीम ने पाया कि अंतरिक्ष में लाल बौने तारे की परिक्रमा करने वाले दो एक्सोप्लैनेट पर ज़्यादातर वाटर वर्ल्ड हो सकता है।
प्रमुख बिंदु
- एक्सोप्लैनेट:
- ये एक्सोप्लैनेट केप्लर-138C और केपलर-138D हैं, जिन्हें नासा (NASA) के हबल एवं सेवानिवृत्त स्पिट्ज़र स्पेस टेलीस्कोप का उपयोग करके देखा गया था।
- यह पहली बार है कि ग्रहों को स्पष्ट तौर पर वाटर वर्ल्ड के रूप में मान्यता दी गई है, ग्रह की एक श्रेणी जिसके होने के बारे में खगोलविदों को लंबे समय से संदेह है।
- एक्सोप्लैनेट एक ग्रह प्रणाली में स्थित हैं जो 218 प्रकाश वर्ष दूर तारामंडल लायरा में हैं और हमारे सौरमंडल के किसी भी ग्रह से अलग हैं।
- नए ग्रह को एक परिक्रमा पूरी करने में 38 दिन लगते हैं।
- ये रहने योग्य क्षेत्र में हैं, जिसका अर्थ है कि ये एक ऐसी कक्षा में स्थित हैं जहाँ जल तरल अवस्था में मौज़ूद है तथा यह अपने तारे से सही मात्रा में ऊष्मा प्राप्त करता है।
- निष्कर्ष:
- केपलर- 138C और D चट्टान (पृथ्वी जैसे चट्टानी ग्रह) की तुलना में हल्के अवयवों से बने हैं लेकिन हाइड्रोजन या हीलियम (बृहस्पति जैसे गैस-विशाल ग्रह) से भारी होते हैं।
- यह जल की उपस्थिति का संकेत देता है, जुड़वाँ विश्व के द्रव्यमान का आधा हिस्सा जल होना चाहिये।
- उन्होंने गणना की कि दोनों का आयतन पृथ्वी से तीन गुना अधिक है और द्रव्यमान दोगुना ज़्यादा है।
- वे एन्सेलाडस (शनि का चंद्रमा) और यूरोपा (बृहस्पति का चंद्रमा) का बड़े पैमाने पर संस्करण भी हैं।
- इन जुड़वाँ बहिर्ग्रहों (एक्सोप्लैनेट) का घनत्त्व पृथ्वी से कम है लेकिन इसकी तुलना एन्सेलाडस और यूरोपा से की जा सकती है।
- अब तक की जानकारी के अनुसार, पृथ्वी से थोड़े बड़े इन वाटर वर्ल्डस में चट्टानी विशेषताएँ होने की संभावना है।
- समान आकार और द्रव्यमान के ये जुड़वाँ ग्रह पृथ्वी से अधिक विशाल हैं लेकिन यूरेनस और नेपच्यून जैसे आइस जायंट्स से हल्के हैं।
- लेकिन वे हमारे सौरमंडल के ग्रहों से भिन्न हैं और इसका मुख्य कारण पृथ्वी जैसे चट्टानी ग्रहों और बृहस्पति जैसे गैस जायंट्स से बना होना है।
- महत्त्व:
- यह शोधकर्त्ताओं की इनके प्रति अज्ञानता को दूर करने तथा भविष्य में और अधिक वाटर वर्ल्ड खोजने में मदद कर सकता है।