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अपराध में फिंगरप्रिंट साक्ष्य का उपयोग

  • 30 Jan 2025
  • 4 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

बॉलीवुड अभिनेता पर हमले की जाँच ने अपराधों को सुलझाने में फिंगरप्रिंट्स के महत्त्व पर ज़ोर दिया है।

साक्ष्य सामग्री के रूप में फिंगरप्रिंट्स का कानूनी पक्ष क्या है?

  • फिंगरप्रिंट का उपयोग: फिंगरप्रिंट का उपयोग अपराध स्थल से लिये गए प्रिंटों का मिलान करने तथा यह पता लगाने के लिये किया जाता है कि क्या अभियुक्त का कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड है नही।
    • आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम, 2022 एक वर्ष से अधिक कारावास वाले अपराधों के लिये गिरफ्तार व्यक्तियों के फिंगरप्रिंट के भंडारण की अनुमति प्रदान करता है।
    • हेनरी वर्गीकरण प्रणाली (HCS) के अनुसार, पहचान निर्धारित करने के लिये उंगली के शीर्ष एक तिहाई भाग को ध्यान में रखा जाता है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग पैटर्न (घुमाव और मेहराब) होते हैं।
  • संवैधानिक आधार: अनुच्छेद 20(3) के तहत किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह  बनने के लिये मज़बूर नहीं किया जाएगा।
    • आत्म-दोष के विरुद्ध संरक्षण का मौखिक और लिखित साक्ष्य दोनों रूपों में प्रावधान है।
    • हालाँकि इसमें भौतिक वस्तुओं की अनिवार्य प्रस्तुति, अंगूठे के निशान, हस्ताक्षर, रक्त के नमूने देने की बाध्यता अथवा शारीरिक अंगों के प्रदर्शन की बाध्यता  निहित नहीं है। 
      • इसके अलावा यह केवल आपराधिक कार्यवाही तक ही सीमित है, न कि दीवानी कार्यवाही या गैर-आपराधिक प्रकृति की कार्यवाही तक। 
  • न्यायिक निर्णय: काठी कालू ओघद, 1961 मामले में, सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने माना कि किसी अभियुक्त को जाँच के लिये नमूना लिखावट, हस्ताक्षर, या उंगलियों के निशान या पैरों के निशान प्रदान करने के लिये विवश किया जाना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के तहत आत्म-दोष के विरुद्ध संरक्षण के उनके अधिकार का उल्लंघन नहीं है।
    • रितेश सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2019 मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तलेखन नमूनों के मापदंडों को व्यापक बनाते हुए इसमें आवाज़ के नमूने भी शामिल कर लिये, और अभिनिर्धारित किया, इससे आत्म-दोषी सिद्ध किये जाने के विरुद्ध अधिकार का उल्लंघन नहीं होगा।
    • सेल्वी बनाम कर्नाटक, 2010 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि आरोपी की सहमति के बिना नार्को एनालिसिस टेस्ट देना आत्म-अभिशंसन के खिलाफ उसके अधिकार का उल्लंघन होगा।

नोट: आधार अधिनियम, 2016 की धारा 29 के तहत भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा मुख्य बायोमेट्रिक जानकारी जैसे फिंगरप्रिंट, आईरिस स्कैन या इसी प्रकार की कोई जैविक लक्षण का  किसी भी एजेंसी के साथ "किसी भी कारणवाश" साझा किया जाना प्रतिबंधित है। 

और पढ़ें: आत्म-अभिशंसन के खिलाफ अधिकार और संवैधानिक उपचार

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