तिलापिया पार्वोवायरस | 20 Oct 2023
स्रोत: द हिंदू
तिलापिया पार्वोवायरस (TiPV) की भारत में पहली उपस्थिति तमिलनाडु में देखी गई है, जहाँ इसका देश के जलीय कृषि पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- यह वायरस मीठे जल की मछली प्रजाति तिलापिया में पाया गया है और उच्च मृत्यु दर के कारक के चलते इसको लेकर चिंता बढ़ गई है।
तिलापिया पार्वोवायरस:
- परिचय:
- TiPV एक वायरल रोगजनक है जो मुख्य रूप से तिलापिया को प्रभावित करता है।
- यह पारवोविरिडा परिवार से संबंधित है, जो अपने छोटे, अपरिबद्ध, सिंगल स्ट्रैंडेड DNA वायरस के लिये जाना जाता है।
- उद्भव और प्रभाव:
- पहली बार इसकी उपस्थिति वर्ष 2019 में चीन में और वर्ष 2021 में थाईलैंड में दर्ज की गई। भारत TiPV की घटना की रिपोर्ट करने वाला तीसरा देश है।
- TiPV के कारण मछली फार्मों पर मृत्यु दर 30% से 50% तक देखी गई है।
- साथ ही प्रयोगशाला में इसने 100% मृत्यु दर दर्ज की है जो इसके विनाशकारी प्रभाव को उजागर करती है।
- पहली बार इसकी उपस्थिति वर्ष 2019 में चीन में और वर्ष 2021 में थाईलैंड में दर्ज की गई। भारत TiPV की घटना की रिपोर्ट करने वाला तीसरा देश है।
- TiPV प्रकोप के परिणाम:
- TiPV का प्रकोप मीठे जल के निकायों की जैवविविधता और पारिस्थितिकी के लिये भी खतरा उत्पन्न कर सकता है क्योंकि तिलापिया एक आक्रामक प्रजाति है जो भोजन एवं आवास स्थान के लिये मछली की स्थानीय प्रजाति के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकती है।
- TiPV का प्रकोप उन लोगों की खाद्य सुरक्षा और पोषण को भी प्रभावित कर सकता है जो भोजन में प्रोटीन और आय के स्रोत के रूप में तिलापिया पर निर्भर हैं।
तिलापिया मछली के बारे में मुख्य तथ्य:
- परिचय :
- तिलापिया मीठे जल की मछली प्रजाति है जिसका पालन भारत में व्यापक स्तर पर किया जाता है और भोजन के रूप में उपयोग की जाती है। यह पर्सीफोर्मेस प्रजाति के अंतर्गत सिक्लिडे परिवार से संबंधित है।
- ये मछलियाँ मूलतः अफ्रीका में पाई जाती हैं और व्यापक रूप से खाद्य स्रोत के रूप में लोकप्रियता हासिल कर चुकी हैं।
- भारत में तिलापिया का पालन :
- तिलापिया का पालन देश के विभिन्न हिस्सों, विशेषकर आंध्र प्रदेश और केरल में किया जाता है।
- नील तिलापिया और मोज़ाम्बिक तिलापिया सहित विभिन्न तिलापिया प्रजातियों के आगमन/प्रवेश के परिणामस्वरूप विविध मत्स्यपालन पद्धतियों की उत्पत्ति हुई है।
- 1970 के दशक में लाई गई नील तिलापिया को इसके बड़े आकार और उत्पादन के पैमाने के लिये पसंद किया जाता है।
- मोज़ाम्बिक तिलापिया, जिसे तमिल में "जिलाबी" कहा जाता है, को 1950 के दशक में भारतीय अलवणीय जल निकायों में छोड़ा गया था।
- मोज़ाम्बिक तिलापिया जल में कम ऑक्सीजन स्तर के प्रति अपनी अनुकूलनशीलता के लिये जानी जाती है। यह विभिन्न प्रकार के जलीय वातावरणों में जीवित रह सकती है।
- 1970 के दशक में लाई गई नील तिलापिया को इसके बड़े आकार और उत्पादन के पैमाने के लिये पसंद किया जाता है।
- भारत सरकार ने वर्ष 1970 में विशिष्ट तिलापिया प्रजातियों, अर्थात् ओरियोक्रोमिस निलोटिकस (Oreochromis Niloticus) एवं लाल संकर प्रजाति के आयात को अधिकृत किया। इन प्रजातियों को इनके तेज़ी से विकास और बाज़ार की मांग के कारण पसंद किया गया, जिससे मत्स्यपालन पर नियंत्रण बना रहा।