प्रारंभिक परीक्षा
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में टील कार्बन अध्ययन
- 11 Sep 2024
- 11 min read
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राजस्थान के भरतपुर ज़िले में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (KNP) में 'टील कार्बन' पर भारत का पहला अध्ययन किया गया।
- शोध में पाया गया कि मीथेन उत्सर्जन में वृद्धि हुई है, जिसके कारण उत्सर्जन स्तरों को कम करने के लिये विशेष बायोचार का उपयोग करने की सिफारिश की गई है।
- इसमें जलवायु अनुकूलन और आघात सहनीयता की चुनौतियों से निपटने में आर्द्रभूमि संरक्षण के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया। इस पायलट परियोजना का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन चुनौतियों से निपटने के लिये प्रकृति-आधारित समाधान विकसित करना है।
नोट:
- बायोचार एक कार्बन समृद्ध पदार्थ है, जो मृदा की उर्वरता, जल धारण क्षमता और फसल उत्पादकता को बढ़ाता है।
- इसे पायरोलिसिस विधि के माध्यम से बनाया जाता है, जिसमें बायोमास को बहुत कम या बिना ऑक्सीज़न के गर्म किया जाता है।
टील कार्बन क्या है?
- टील कार्बन के संदर्भ में:
- टील कार्बन से तात्पर्य अलवण जल (गैर-ज्वारीय) आर्द्रभूमि में संगृहीत कार्बन से है, जिसमें वनस्पति, सूक्ष्मजीवी बायोमास तथा घुले हुए कणिका कार्बनिक पदार्थ शामिल हैं।
- कार्बन के प्रकार:
- टील कार्बन को पारिस्थितिकी तंत्र में इसकी भूमिका और इसके स्थान के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, जो इसे ब्लैक कार्बन तथा ब्राउन कार्बन से पृथक् करता है।
- ब्लैक और ब्राउन कार्बन जो कार्बनिक पदार्थों के अपूर्ण दहन से बनते हैं तथा जलवायु परिवर्तन में योगदान करते हैं, के विपरीत टील कार्बन आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र में कार्बन पृथक्करण पर केंद्रित होता है।
- ब्लैक कार्बन: यह जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्सर्जित एक काला पदार्थ है, जो वायु प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
- ब्राउन कार्बन: बायोमास जैसे कार्बनिक पदार्थों के अपूर्ण दहन से बनता है। यह UV और दृश्यमान सौर विकिरण को अवशोषित करता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में योगदानदेता है।
- ब्लू कार्बन: वायुमंडल और महासागरों में संगृहीत कार्बन।
- हरित कार्बन: प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम से स्थलीय पौधों में संगृहीत कार्बन।
- ग्रे कार्बन: औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्सर्जित होता है तथा कोयला, तेल और बायोगैस जैसे जीवाश्म ईंधनों में संगृहीत होता है।
- लाल कार्बन: हिम एवं बर्फ पर पाए जाने वाले जैविक कणों से उत्सर्जित।
- टील कार्बन को पारिस्थितिकी तंत्र में इसकी भूमिका और इसके स्थान के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, जो इसे ब्लैक कार्बन तथा ब्राउन कार्बन से पृथक् करता है।
- जलवायु परिवर्तन में भूमिका:
- टील कार्बन पारिस्थितिकी तंत्र कार्बन का एकत्रीकरण करके, भूजल स्तर को बढ़ाकर, शहरी ऊष्मा द्वीपों को कम करके, ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करके एवं बाढ़ को कम करके जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- प्राथमिक जलाशय:
- टील कार्बन के प्राथमिक भंडारों में पीटलैंड, अलवण जलीय दलदल और अलवण जलीय प्राकृतिक कच्छभूमि शामिल हैं। ये वैश्विक स्तर पर पारिस्थितिकी तंत्र के कार्बन पृथक्करण में बहुत योगदान करते हैं।
- पारिस्थितिक तंत्रों में टील कार्बन का वैश्विक भंडारण लगभग 500.21 पेटाग्राम कार्बन (PgC) अनुमानित है।
- संकट:
- कार्बन भंडारण और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने की उनकी क्षमता प्रदूषण, भूमि उपयोग में परिवर्तन, जल निकासी एवं भूदृश्य परिवर्तनों के कारण खतरे में है, जिसके कारण उनके क्षरण का जोखिम उच्च है।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के संदर्भ में
- यह राजस्थान के भरतपुर में स्थित आर्द्रभूमि और पक्षी अभयारण्य के रूप में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
- चिल्का झील (ओडिशा) और केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान) को वर्ष 1981 में भारत के प्रथम रामसर स्थल के रूप में मान्यता दी गई।
- वर्तमान में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और लोकतक झील (मणिपुर) मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड में हैं।
- यह अपनी समृद्ध पक्षी विविधता और जलपक्षियों की प्रचुरता के लिये जाना जाता है, क्योंकि यहाँ 365 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें साइबेरियाई सारस जैसी कई दुर्लभ एवं संकटग्रस्त प्रजातियाँ भी शामिल हैं।
- जीव-जंतु: इस क्षेत्र में सियार, सांभर, नीलगाय, जंगली बिल्लियाँ, लकड़बग्घा, जंगली सूअर, साही और नेवला जैसे जीव-जंतु पाए जाते हैं।
- वनस्पति: प्रमुख वनस्पति प्रकार में उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन शामिल हैं, जिनमें शुष्क घास के मैदानों के साथ बबूल नीलोटिका की बहुलता है।
- नदी: गंभीर और बाणगंगा दो नदियाँ हैं, जो इस राष्ट्रीय उद्यान से होकर बहती हैं।
आर्द्रभूमियाँ क्या हैं?
- आर्द्रभूमि ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ पर्यावरण और संबंधित वनस्पति व जंतु जीवन को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कारक जल है।
- आर्द्रभूमि को इस प्रकार परिभाषित किया गया है: ‘स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी तंत्रों के बीच वह संक्रमण भूमि जहाँ पूरे वर्ष या वर्ष के दौरान अलग-अलग समयावधियों के लिये जल आमतौर पर सतह पर होता है या भूमि उथले जल से ढकी होती है’।
आद्रभूमि संरक्षण के लिये की गई पहल
- वैश्विक स्तर:
- राष्ट्रीय स्तर:
- आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017
- जलीय पारितंत्र के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (NPCA)
- अमृत धरोहर क्षमता निर्माण योजना
- राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम (NWCP): इसे वर्ष 1985 में सुभेद्य आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्रों के लिये खतरों से निपटने और उनके संरक्षण में सुधार लाने के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: ‘‘यदि वर्षावन और उष्णकटिबंधीय वन पृथ्वी के फेफड़े हैं, तो निश्चित ही आर्द्रभूमियाँ इसके गुर्दों की तरह काम करती हैं।’’ निम्नलिखित में से आर्द्रभूमियों का कौन-सा एक कार्य उपर्युक्त कथन को सर्वोत्तम रूप से प्रतिबिंबित करता है? (2022) (a) आर्द्रभूमियों के जल चक्र में सतही अपवाह, अवमृदा अंत:स्रवण और वाष्पन शामिल होते हैं। उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |