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विकास और स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार

  • 20 Mar 2025
  • 2 min read

स्रोत: द हिंदू

ऑरोविले फाउंडेशन बनाम नवरोज़ केरस्प मोदी (2025) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि औद्योगीकरण के माध्यम से विकास का अधिकार स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार के समान ही महत्त्वपूर्ण है, तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत दोनों के बीच "गोल्डन बैलेंस" पर ज़ोर दिया।

  • मामले की पृष्ठभूमि: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने दरकाली वन में पर्यावरण संबंधी चिंताओं को ध्यान देते हुए वर्ष 2022 में तमिलनाडु में ऑरोविले के विकास पर रोक लगा दी थी।  
    • ऑरोविले फाउंडेशन ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए कहा कि ऑरोविले के मास्टर प्लान को वैधानिक अधिकार प्राप्त है और इसके लिये किसी अतिरिक्त पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने NGT के वर्ष 2022 के आदेश को पलट दिया, ऑरोविले के कानूनी रूप से वैध मास्टर प्लान को बरकरार रखा, और निर्णय दिया कि "दरकाली वन" को वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत वन के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारों पर ज़ोर देते हुए कहा कि अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) पर्यावरण संरक्षण और विकास के बीच उचित संतुलन सुनिश्चित करता है, अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता का अधिकार) उचित प्रतिबंधों के साथ व्यापार और औद्योगिक गतिविधियों के अधिकार की रक्षा करता है, जबकि अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) में स्थायी आर्थिक प्रगति के साथ-साथ स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार शामिल है।

और पढ़ें: विकास और पर्यावरण में संतुलन

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