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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 19 दिसंबर, 2022

  • 19 Dec 2022
  • 6 min read

विश्व अल्पसंख्यक अधिकार दिवस

भारत समेत पूरे विश्व में जातीय अल्पसंख्यकों के लिये स्वतंत्रता और समानता के अधिकार को बनाए रखने तथा अल्पसंख्यकों के सम्मान के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिये प्रतिवर्ष 18 दिसंबर को ‘विश्व अल्पसंख्यक अधिकार दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस विभिन्न जातीय मूल के अल्पसंख्यक समुदायों के समक्ष आने वाली चुनौतियों और मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है। वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 18 दिसंबर को ‘विश्व अल्पसंख्यक अधिकार दिवस’ के रूप में घोषित किया गया था। संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार, ऐसा समुदाय जिसका सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक रूप से कोई प्रभाव न हो और जिसकी आबादी नगण्य हो, उसे अल्पसंख्यक कहा जाएगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29, 30, 350A तथा 350B में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का प्रयोग किया गया है लेकिन इसकी परिभाषा कहीं नहीं दी गई है। भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, को बनाए रखने का अधिकार होगा। संयुक्त राष्ट्र ने 18 दिसंबर, 1992 को धार्मिक या भाषायी राष्ट्रीय अथवा जातीय अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्ति के अधिकारों पर वक्तव्य (Statement) को अपनाया था। भारत में इस दिवस का आयोजन राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग द्वारा किया जाता है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना वर्ष 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा की गई थी।

अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस

18 दिसंबर को विश्व भर में ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस’ मनाया जाता है। विश्व भर में प्रवासियों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2000 में 18 दिसंबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस’ के रूप में नामित किया था। साथ ही संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इसी दिवस पर वर्ष 1990 में सभी प्रवासी कामगारों और उनके परिवारों के सदस्यों के अधिकारों के संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय को भी अपनाया गया था। राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो जून 2022 तक (जिसके लिये अंतिम डेटा उपलब्ध है) भारत छोड़ने वाले प्रवासियों की संख्या 1,89,000 है जिसमें से आधे से अधिक बिहार और उत्तर प्रदेश के हैं। बिहार एवं उत्तर प्रदेश के प्रवासियों की संयुक्त संख्या 98,321 थी। यद्यपि बहुत से लोग अपनी इच्छा से पलायन करते हैं, किंतु अधिकांश लोगों को आर्थिक चुनौतियों, प्राकृतिक आपदाओं, अत्यधिक गरीबी और संघर्ष जैसे कारणों के चलते मजबूर होकर पलायन करना पड़ता है। ज्ञात हो कि भारत के विकास में प्रवासी भारतीयों के योगदान को चिह्नित करने के लिये प्रतिवर्ष 9 जनवरी को 'प्रवासी भारतीय दिवस' का आयोजन किया जाता है।

गोवा मुक्ति दिवस

गोवा मुक्ति दिवस प्रति वर्ष '19 दिसंबर' को मनाया जाता है। हालाँकि भारत को 1947 में ही आज़ादी मिल गई थी लेकिन इसके 14 साल बाद भी गोवा पर पुर्तगाली अपना शासन जमाए बैठे थे। 19 दिसंबर, 1961 को भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय अभियान' शुरू कर गोवा, दमन और दीव को पुर्तगालियों के शासन से मुक्त कराया था। यह दिन उस अवसर को चिह्नित करता है जब भारतीय सशस्त्र बलों ने वर्ष 1961 में 450 वर्षों के पुर्तगाली शासन से गोवा को मुक्त कराया था। वर्ष 1510 में पुर्तगालियों ने भारत के कई हिस्सों को उपनिवेश बनाया लेकिन 19वीं शताब्दी के अंत तक भारत में पुर्तगाली उपनिवेश गोवा, दमन, दीव, दादरा, नगर हवेली और अंजेदिवा द्वीप (गोवा का एक हिस्सा) तक ही सीमित रहे। 15 अगस्त, 1947 को जैसे ही भारत को स्वतंत्रता मिली, भारत ने पुर्तगालियों से अपने क्षेत्रों को सौंपने का अनुरोध किया लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था। गोवा मुक्ति आंदोलन छोटे पैमाने पर एक विद्रोह के रूप में शुरू हुआ लेकिन वर्ष 1940 से 1960 के बीच अपने चरम पर पहुँच गया। वर्ष 1961 में पुर्तगालियों के साथ राजनयिक प्रयासों की विफलता के बाद भारत सरकार द्वारा ऑपरेशन विजय चलाकर 19 दिसंबर को दमन और दीव तथा गोवा को भारतीय मुख्य भूमि के साथ मिला लिया गया। 30 मई, 1987 को इस क्षेत्र के विभाजन के साथ गोवा का गठन हुआ तथा दमन और दीव को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया। 30 मई को गोवा के स्थापना दिवस (Statehood Day of Goa) के रूप में मनाया जाता है।

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