Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 17 अप्रैल, 2023 | 17 Apr 2023
कैस्केड फ्रॉग की नई प्रजाति- अमोलोप्स सिजू
ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) के शोधकर्त्ताओं ने मेघालय के दक्षिण गारो हिल्स ज़िले में सिजू गुफा से मेंढक की एक नई प्रजाति की खोज की है, जिसे उन्होंने अमोलॉप्स सिजू नाम दिया है। अमोलॉप्स सिजू रेनिड मेंढकों के सबसे बड़े समूह से संबंधित है, जिसकी 70 से अधिक ज्ञात प्रजातियाँ पूर्वोत्तर एवं उत्तर भारत, नेपाल, भूटान, चीन तथा मलाया प्रायद्वीप में पाई जाती हैं। इस गुफा से मेंढक की एक दुर्लभ नई प्रजाति की खोज की गई है और यह कैस्केड फ्रॉग (अमोलोप्स) की चौथी नई प्रजाति है। उन्हें कास्केड फ्रॉग नाम उनके पहाड़ी क्षेत्रों में छोटे झरनों या बहती धाराओं में पाए जाने के कारण दिया गया है।
NCLT और फ्यूचर रिटेल लिमिटेड मामला
राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) ने फ्यूचर रिटेल लिमिटेड (FRL) को अपनी कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) को पूरा करने के लिये और 90 दिनों का समय दिया है। NCLT ने जुलाई 2022 में ऋणों को समय पर चुकाने में देरी के कारण FRL के खिलाफ CIRP को शुरू किया था। दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC) की धारा 12(1) के अनुसार, समाधान प्रक्रिया को 330 दिनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिये, जिसमें मुकदमेबाज़ी में व्यतीत समय भी शामिल होता है। मामला शुरू होने के 180 दिनों के भीतर CIRP को पूरा किया जाना चाहिये, लेकिन NCLT 90 दिनों का एकमुश्त अतिरिक्त समय प्रदान कर सकता है। विस्तारित समयावधि और मुकदमेबाज़ी सहित CIRP को पूरा करने के लिये अधिकतम समय 330 दिन होता है। कंपनियों के दिवाला और परिसमापन से संबंधित कानून को लेकर न्यायमूर्ति एराडी समिति की सलाह पर कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत NCLT की स्थापना की गई थी जो 1 जून, 2016 से लागू हुआ। NCLT एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो भारतीय कंपनियों से संबंधित मुद्दों पर निर्णय देता है। IBC ने दिवाला समाधान से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिये दो न्यायाधिकरणों का सुझाव दिया: ऋण वसूली न्यायाधिकरण, जो व्यक्तियों और साझेदारी फर्मों से जुड़े मामलों की सुनवाई करेगा तथा NCLT, जो निगमों एवं सीमित देयता भागीदारी से जुड़े मामलों की सुनवाई करेगा।
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जेम्स वेब टेलीस्कोप ने कॉम्पैक्ट गैलेक्सी की खोज की
बिग बैंग घटना के तुरंत बाद गठित अत्यधिक कॉम्पैक्ट गैलेक्सी की जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप द्वारा नवीनतम खोज प्रारंभिक ब्रह्मांड की हमारी समझ में परिवर्तन (Revolutionizing ) ला रही है। आकाशगंगा, जो लगभग 13.3 बिलियन वर्ष पहले अस्तित्त्व में थी, मिल्की वे से लगभग 1,000 गुना छोटी है, लेकिन हमारी वर्तमान आकाशगंगा की तुलना में नए सितारों का निर्माण करती है। यह खोज प्रारंभिक ब्रह्मांड में आकाशगंगा के निर्माण की पारंपरिक समझ को चुनौती देती है, जो यह दर्शाता है कि पहली आकाशगंगा वर्तमान में मौजूद आकाशगंगाओं से बहुत अलग हो सकती है और आकाशगंगा की विशेषताओं के बारे में हमारी सामान्य धारणाएँ प्रारंभिक ब्रह्मांड में लागू नहीं हो सकती हैं। इसके निर्माण के समय भारी तत्त्वों की कमी के कारण आकाशगंगा की रासायनिक संरचना भी वर्तमान आकाशगंगाओं से भिन्न है। "गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग" की घटना ने इस आकाशगंगा का अवलोकन आसान बना दिया गया था। गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग एक ऐसी घटना है जहाँ आकाशगंगाओं का बड़ा समूह एक मज़बूत गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बनाता है जो अपने पीछे दूर की आकाशगंगाओं से आने वाले प्रकाश को मोड़ता और आवर्धित करता है।
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उत्तरामेरुर शिलालेख
प्रधानमंत्री ने हाल ही में भारत के लोकतांत्रिक इतिहास पर चर्चा करते हुए तमिलनाडु के कांचीपुरम में उत्तरामेरुर शिलालेख का उल्लेख किया। यह शिलालेख परांतक प्रथम (907-953 ईस्वी) के शासनकाल में गाँव के स्व-शासन के कार्य करने का विस्तृत विवरण प्रदान करता है। इतिहासकार और राजनेता अकसर शिलालेख को भारत के लोकतांत्रिक कार्यशैली के लंबे इतिहास के सबूत के रूप में उद्धृत करते हैं। उत्तरामेरुर, वर्तमान कांचीपुरम ज़िले में स्थित एक छोटा-सा शहर है जो पल्लव और चोल शासन के दौरान बनाए गए अपने ऐतिहासिक मंदिरों के लिये जाना जाता है। परांतक प्रथम के शासनकाल का प्रसिद्ध शिलालेख वैकुंडा पेरुमल मंदिर की दीवारों पर देखा जा सकता है। शिलालेख स्थानीय सभा या ग्राम सभा कैसे कार्य करती थी, सदस्यों का चयन कैसे किया जाता था, उनकी आवश्यक योग्यता और भूमिकाएँ तथा जिम्मेदारियाँ आदि की जानकारी देता है, जिसमें विभिन्न कार्य करने वाली विशेष समितियों का वर्णन मिलता है। यह सभा विशेष रूप से ब्राह्मणों से बनी होती थी और शिलालेख उन परिस्थितियों का विवरण भी प्रदान करता है जिसमें सदस्यों को हटाया जा सकता था। शिलालेख में सभा के भीतर विभिन्न समितियों, उनकी ज़िम्मेदारियों और सीमाओं का भी वर्णन किया गया है। इन समितियों का कार्य 360 दिनों तक चलता था जिसके बाद सदस्यों को सेवानिवृत्त होना पड़ता था। सभा की सदस्यता ज़मींदार ब्राह्मणों के एक छोटे उपवर्ग तक ही सीमित थी और कोई वास्तविक चुनाव की व्यवस्था नहीं थी। सदस्यों को ड्रा के माध्यम से उम्मीदवारों के योग्य समूह से चुना जाता था। हालाँकि शिलालेख को लोकतांत्रिक कार्यशैली के लिये एक मिसाल के रूप में उद्धृत किया जाना चाहिये। यह शिलालेख एक संविधान की तरह है, जिसमें सभा सदस्यों की ज़िम्मेदारियों और उनके अधिकार की सीमाओं दोनों का वर्णन है। यदि कानून का शासन लोकतंत्र का एक अनिवार्य घटक है, तो उत्तरामेरुर शिलालेख सरकार की एक प्रणाली का वर्णन करता है जो इसका पालन करती है।