प्राइड मंथ | 05 Jul 2024
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रत्येक वर्ष जून में मनाया जाने वाला गौरव माह या प्राइड मंथ LGBTQ+ समुदाय के लिये चिंतन, उत्सव और वकालत का समय है। इसकी शुरुआत वर्ष 1969 के स्टोनवॉल विद्रोह से हुई थी।
- पिछले कुछ दशकों में प्राइड मंथ एक स्मरण दिवस से विकसित होकर एक माह तक चलने वाले उत्सव में बदल गया है, जिसे विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
जून में प्राइड मंथ क्यों मनाया जाता है?
- प्राइड मंथ वर्ष 1969 (न्यूयॉर्क) के स्टोनवॉल विद्रोह की याद दिलाता है, जो LGBTQ+ अधिकार आंदोलन में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। वर्ष 1999 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने जून को "गे और लेस्बियन प्राइड मंथ" घोषित किया।
- बराक ओबामा और जो बिडेन सहित बाद के राष्ट्रपतियों ने इस परंपरा को जारी रखा है, जून को LGBTQ प्राइड मंथ के रूप में मान्यता दी है।
स्टोनवॉल दंगे क्या थे?
- दंगे: अमेरिका में 1960 के दशक में समलैंगिकता अवैध थी और प्रलोभन एक दंडनीय अपराध था। न्यूयॉर्क शहर के ग्रीनविच विलेज सेक्शन में स्थित एक बार विशेष रूप से LGBTQ समुदाय के लिये बनाया गया था जिसका नाम स्टोनवॉल इन था।
- 28 जून 1969 को, न्यूयॉर्क पुलिस ने बिना लाइसेंस के शराब बेचने के आरोप में स्टोनवॉल इन पर छापा मारा जिससे LGBTQ समुदाय में रोष उत्पन्न हुआ और दंगे हुए जो छह दिनों तक जारी रहे।
- इन दंगों को LGBTQ समुदाय के अधिकारों और मान्यता के संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में देखा जाता है।
- मार्शा पी.जॉनसन, एक ट्रांसजेंडर सेक्स वर्कर, ने इन दंगों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और अब उन्हें LGBTQ समुदाय में एक अहम व्यक्ति माना जाता है।
- दंगों के बाद: स्टोनवॉल दंगों के बाद, कार्यकर्त्ताओं ने समुदाय की लैंगिक और जेंडर आइडेंटिटी में गर्व तथा एकता की भावना का उत्सव मनाने के लिये "गे प्राइड" थीम के साथ इसकी वर्षगाँठ मनाने के लिये एक मार्च का आयोजन किया।
- प्राइड को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई और यह एक माह तक जारी रहने वाला उत्सव बना जिसने LGBTQ समुदाय के भीतर विज़िबिलिटी तथा एकजुटता के आह्वान की भूमिका निभाई।
- इस आंदोलन को और अधिक समावेशी बनाने के लिये क्षेत्रीय बदलावों के साथ अमेरिका का प्राइड आयोजन समग्र विश्व में प्रचलित हुआ।
- दंगों का प्रभाव: स्टोनवॉल में दंगे दशकों से समलैंगिक लोगों द्वारा सामना की जाने वाली पुलिस क्रूरता और भेदभाव के खिलाफ एक आंदोलन था। दंगों ने गैर-पारंपरिक लिंग पहचान और सेक्सुअल ओरिएंटेशन को सार्वजनिक दृश्यता प्रदान की तथा वर्तमान में प्राइड मंथ निर्भीक पहचान एवं गर्वित एकता का प्रतीक है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में LGBTQIA+ अधिकार
- अमेरिका की सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि सभी राज्य समलैंगिक विवाह की अनुमति देते हैं और राज्य के बाहर किये गए विवाहों को मान्यता देते हैं।
- सेक्सुअल ओरिएंटेशन या लिंग पहचान के आधार पर भेदभाव को विशेष रूप से प्रतिबंधित करने वाला कोई संघीय कानून नहीं है।
- हालाँकि अमेरिका की सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का तात्पर्य है कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन और लिंग पहचान के आधार पर भेदभाव एक प्रकार का लैंगिक भेदभाव है, जो वर्ष 1964 के नागरिक अधिकार अधिनियम के तहत निषिद्ध है।
भारत में LGBTQIA+ के अधिकार
- वर्ष 1994 में थर्ड जेंडर के रूप में पहचान रखने वाले व्यक्तियों को कानूनी रूप से मताधिकार प्रदान किया गया।
- वर्ष 2014 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को थर्ड जेंडर श्रेणी के रूप में मान्यता प्रदान की जानी चाहिये।
- वर्ष 2017 में, भारत में LGBTQIA+ समुदाय को अपनी यौन अभिविन्यास को व्यक्त करने की स्वतंत्रता दी गई, जिसे निजता के अधिकार द्वारा संरक्षित किया गया।
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा और कल्याण के लिये प्रावधान करता है।
- भारतीय संविधान के अंर्तगत समान-लिंग विवाह को मौलिक या संवैधानिक अधिकार के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता नहीं प्रदान की गई है, लेकिन यह समान-लिंग वाले जोड़ों को एक साथ रहने के लिये कुछ सीमित मान्यता प्रदान करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है और साथ ही LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों को कानून के तहत समान सुरक्षा सहित संवैधानिक अधिकार प्राप्त है।