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प्रिलिम्स फैक्ट्स : 25 फरवरी, 2021

  • 25 Feb 2021
  • 8 min read

ओलिव रिडले कछुआ

(Olive Ridley Turtles)

हाल ही में ओडिशा उच्च न्यायालय (High Court) ने ओडिशा के वन और मत्स्य विभाग (Forest and Fisheries Department) की लापरवाही के कारण लगभग 800 ओलिव रिडले समुद्री कछुओं (Olive Ridley Sea Turtle) की मौत के मामले में स्वतः संज्ञान (Suo Motu) लिया है।

प्रमुख बिंदु

  • ओलिव रिडले कछुओं की विशेषताएँ:
    • ओलिव रिडले कछुए दुनिया में पाए जाने वाले सभी समुद्री कछुओं में सबसे छोटे और सबसे अधिक हैं।
    • ये कछुए मांसाहारी होते हैं और इनका पृष्ठवर्म ओलिव रंग (Olive Colored Carapace) का होता है जिसके आधार पर इनका यह नाम पड़ा है।
  • संरक्षण की स्थिति:
  • पर्यावास:
    • ये मुख्य रूप से प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागरों के गर्म पानी में पाए जाते हैं।
    • ओडिशा के गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य को विश्व में समुद्री कछुओं के सबसे बड़े प्रजनन स्थल के रूप में जाना जाता है।
  • अरीबदा:
    • ये कछुए अपने अद्वितीय सामूहिक घोंसले (Mass Nesting) अरीबदा (Arribada) के लिये सबसे ज़्यादा जाने जाते हैं, यहाँ अंडे देने के लिये हज़ारों मादाएँ एक ही समुद्र तट पर एक साथ आती हैं।
    • ये कछुए इन घोंसलों में अपने अंडे को पाँच से सात दिनों की अवधि के लिये लगभग डेढ़ फीट मिट्टी के अंदर रखते हैं और इस समयावधि के बाद अपने पिछले पैरों से घोंसलों के ऊपर की मिट्टी हटाकर अण्डों को बाहर निकाल लेते हैं।
  • संकट:
    • समुद्री प्रदूषण और अपशिष्ट।
    • मानव उपभोग: इन कछुओं के माँस, खाल, चमड़े और अंडे के लिये इनका शिकार किया जाता है।
    • प्लास्टिक कचरा: प्लास्टिक, मछली पकड़ने के जाल, पर्यटकों और मछली पकड़ने वाले श्रमिकों द्वारा फेंके गए अन्य कचरे का बढ़ता मलबा।
    • फिशिंग ट्रॉल: समुद्री संसाधनों के अत्यधिक दोहन की कोशिश में ट्रॉलर्स (Trawler- मछली पकड़ने वाले जहाज़) का उपयोग करके समुद्री अभयारण्य के आस-पास के 20 किलोमीटर क्षेत्र में मछली न पकड़ने के नियम का प्रायः उल्लंघन किया जाता है।
      • कई मृत कछुओं के शरीर पर चोट के निशान पाए गए, जिससे पता चलता है कि ये मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों की चपेट में आ गए थे।

गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य

  • गहिरमाथा (हिंद महासागर) का समुद्री तट ओलिव रिडले समुद्री कछुओं का विश्व में सबसे बड़ा प्रजनन स्थल है और ओडिशा का एकमात्र कछुआ अभयारण्य है।
  • ओडिशा सरकार ने वर्ष 1997 में समुद्री कछुओं को बचाने के अपने प्रयासों के एक हिस्से के रूप में गहिरमाथा को कछुआ अभयारण्य घोषित किया था।
  • गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य (Gahirmatha Marine Sanctuary), भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान के एक हिस्से में स्थित है। इस उद्यान के अन्य दो हिस्सों में भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान तथा भितरकनिका वन्यजीव अभयारण्य का क्षेत्र शामिल हैं।

ब्लैक नेक्ड क्रेन

Black Necked Crane

हाल ही में बौद्ध भिक्षुओं (Buddhist) के एक समूह ने तवांग ज़िले में जलविद्युत परियोजनाओं (Hydropower Project) पर अरुणाचल प्रदेश सरकार का विरोध किया है।

प्रस्तावित परियोजनाएँ न केवल लुप्तप्राय ब्लैक नेक्ड क्रेन (Black Necked Crane) के घोंसलों के मैदानों को प्रभावित करेंगी, बल्कि इस क्षेत्र के कई पवित्र बौद्ध तीर्थ स्थलों को भी खतरे में डाल देंगी।

प्रमुख बिंदु

  • ब्लैक नेक्ड क्रेन के विषय में:
    • नर और मादा दोनों का ही आकार लगभग समान होता है लेकिन नर, मादा से थोड़ा बड़ा होता है।
    • गर्दन, सिर, उड़ने वाले पंख और पूँछ पूरी तरह से काले होते हैं तथा शरीर का रंग हल्का भूरा/सफेद होता है।
    • एक विशिष्ट लाल रंग का मुकुट सिर को सुशोभित करता है।
    • बच्चों के सिर और गर्दन भूरे रंग के होते हैं तथा पंख वयस्क की तुलना में थोड़े छोटे होते हैं।
  • विशेष महत्त्व:
    • इनको दलाई लामा के एक अवतार (Tsangyang Gyatso) के रूप में मोनपास (Monpas- अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख संस्कृति वाला बौद्ध समूह) समुदाय द्वारा परम पूजनीय माना जाता है।
      • मोनपास पश्चिम कामेंग और तवांग ज़िलों में निवास करने वाले बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय का समूह है।
  • आवास और प्रजनन मैदान:
    • तिब्बती पठार, सिचुआन (Sichuan- चीन) और पूर्वी लद्दाख (भारत) के उच्च ऊँचाई वाले आर्द्रभूमि क्षेत्र इस प्रजाति के मुख्य प्रजनन स्थल हैं। ये सर्दियों की अवधि कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बिताते हैं।
    • ये भूटान और अरुणाचल प्रदेश में केवल सर्दियों के दौरान आते हैं।
    • इन्हें अरुणाचल प्रदेश के तीन क्षेत्रों में देखा जा सकता है:
      • पश्चिम कामेंग ज़िले में संगति घाटी (Sangti Valley)।
      • तवांग ज़िले में ज़मीथांग (Zemithang)।
      • तवांग ज़िले में चुग घाटी (Chug Valley)।
  • संकट:
    • जंगली कुत्ते इनके अंडों और चूजों को अत्यधिक नुकसान पहुँचाते हैं।
    • आर्द्रभूमि पर मानव दबाव (विकास परियोजनाओं) के कारण निवास स्थान का नुकसान।
    • सीमित चरागाहों की वजह से आर्द्रभूमियों पर चराई का दबाव बढ़ रहा है।
  • इनके संरक्षण के लिये उठाए गए कदम:
    • वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (WWF-India), जम्मू और कश्मीर के वन्यजीव संरक्षण विभाग के सहयोग से लद्दाख क्षेत्र में ब्लैक नेक्ड क्रेन के साथ-साथ उच्च ऊँचाई वाले आर्द्रभूमि के संरक्षण की दिशा में काम कर रहा है।
    • डब्ल्यूडब्ल्यूएफ अरुणाचल प्रदेश में शीतकालीन ब्लैक-नेक्ड क्रेन की कम जनसंख्या के संरक्षण के लिये काम कर रहा है।
  • संरक्षण की स्थिति:
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