प्रिलिम्स फैक्ट्स: 21 सितंबर, 2020 | 21 Sep 2020
वैभव शिखर सम्मेलन
Vaibhav Summit
2 अक्तूबर, 2020 को महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर भारतीय प्रधानमंत्री वैभव शिखर सम्मेलन (VAIshwik BHAratiya Vaigyanik Summit- VAIBHAV Summit) का उद्घाटन करेंगे।
वैभव शिखर सम्मेलन के बारे में:
- यह प्रवासी भारतीय एवं देश के वैज्ञानिकों व शिक्षाविदों का एक वैश्विक शिखर सम्मेलन है।
- महीने भर तक चलने वाले इस वैश्विक शिखर सम्मेलन में ऑनलाइन तरीके से शोधकर्त्ताओं के बीच विचार-विमर्श सत्र आयोजित किये जाएंगे।
- चर्चा के प्रमुख क्षेत्रों में शामिल होंगे: क्वांटम प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग, संचार प्रौद्योगिकी, कंप्यूटेशनल एवं डेटा विज्ञान तथा एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी आदि।
वैभव शिखर सम्मेलन का उद्देश्य:
- उभरती चुनौतियों को हल करने हेतु वैश्विक भारतीय शोधकर्त्ताओं की विशेषज्ञता एवं ज्ञान का लाभ उठाने के लिये एक व्यापक रोडमैप तैयार करना।
- भारत में शिक्षाविदों एवं वैज्ञानिकों के साथ सहभागिता तथा सहकारी साधनों के बारे में गहराई से चिंतन करना।
- ग्लोबल आउटरीच के माध्यम से देश में ज्ञान एवं नवाचार का एक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना।
वैभव शिखर सम्मेलन के आयोजक:
- यह शिखर सम्मेलन विभिन्न विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा शैक्षणिक संगठनों का एक संयुक्त प्रयास है जिसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) शामिल हैं।
महत्त्व:
- भारत में नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये वैभव शिखर सम्मेलन अटल इनोवेशन मिशन (AIM) में एक नया आयाम जोड़ेगा।
- यह शिखर सम्मेलन नई शिक्षा नीति के साथ संरेखण में भारत में कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिये प्रवासी भारतीयों के सक्रिय समर्थन और विचार विमर्श को बढ़ावा देगा।
- विश्व के विभिन्न देशों में कार्य कर रहे भारतीय मूल के वैज्ञानिक, शोधकर्त्ता एवं शिक्षाविद अपने वैश्विक दृष्टिकोण एवं अनुभव के साथ ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
काकतीय वंश
Kakatiya Dynasty
वर्तमान आंध्र प्रदेश की राजधानी अमरावती के पास धारानिकोटा (Dharanikota) में काकतीय राजवंश (Kakatiya Dynasty) के एक शासक ‘गणपति देव’ (Ganapati Deva) द्वारा निर्मित एक मंदिर को स्थानीय देवी बालूसुलाम्मा (Balusulamma) अर्थात् देवी दुर्गा के मंदिर में बदल दिया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- 13वीं शताब्दी का यह मंदिर पीठासीन देवी ‘काकती देवी’ (Kakati Devi) से संबंधित था जो काकतीय शासकों की कुलदेवी थी।
- गणपति देव पहले राजा हैं जिन्होंने अपने राज्य की सीमा के बाहर और आंध्र के तटीय क्षेत्र में काकती देवी की पूजा की थी। बाद में इस निवास स्थान को गणपति देव की बेटी गणपम्बा (Ganapamba) के संरक्षण में विकसित किया गया था।
मूर्ति की विशेषता:
- इस मंदिर से प्राप्त मूर्ति में काकती देवी आठ भुजाओं के साथ पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं। इस मूर्ति की शारीरिक विशेषताओं में अंडाकार चेहरा, पतले गाल, विस्तृत खुली आँखें, लंबी नाक और बंद होंठ शामिल हैं।
- काकतीय वंश की यह सबसे दुर्लभ एवं अनोखी मूर्ति है जो विशिष्ट कुल देवी को संदर्भित करती है।
मंदिर की विशेषता:
- मंदिर की छतों को कमल के फूलों से सजाया गया है किंतु मंदिर के शीर्ष पर कोई शिखर नहीं है।
- काकतीय वंश का मूल क्षेत्र जहाँ हनुमानकोंडा एवं वारंगल किले आदि अवस्थित हैं, में पाई जाने वाली स्थापत्यकला से काकती मंदिर वास्तुकला विशेषताएँ पूरी तरह से समान हैं।
- वर्तमान में काकती देवी की मूर्ति को मंदिर के दक्षिणी तरफ एक छोटे से स्थान पर रखा गया है जिसे स्थानीय रूप से गोल्लाभामा गुड़ी (Gollabhama Gudi) के नाम से जाना जाता है।
मंदिर सर्वेक्षण परियोजना (Temple Survey Project):
- काकतीय राजवंश के दौरान विकसित हुए भव्य मंदिरों की खोज एवं स्थापत्यकला का सर्वेक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की मंदिर सर्वेक्षण परियोजना के तहत किया जा रहा है, इस परियोजना के तहत पुरातत्वविदों ने कृष्णा नदी के तट पर इस विशिष्ट मंदिर (काकती देवी मंदिर ) की खोज की।
वारंगल का काकतीय राजवंश (12वीं -14वीं शताब्दी तक):
- प्रोला-II (Prola-II) नामक काकतीय शासक ने चालुक्यों को हराकर कृष्णा एवं गोदावरी नदी के मध्य के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया और हनुमाकोंडा को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया।
- प्रतापरुद्र-I (Prataparudra-I), प्रोला-II का पुत्र था जिसने अपनी राजधानी को वारंगल स्थानांतरित किया।
- गणपति देव, काकतीय राजवंश का महान शासक था। जिसने चोलों से कांची तक के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। उसने कलिंग एवं पश्चिमी आंध्र क्षेत्र पर भी आक्रमण किया।
- गणपति देव के बाद उसकी पुत्री रुद्रमा ने कुछ वर्षों तक शासन किया।
- 1309 ईस्वी में मलिक काफूर ने प्रतापरुद्र-II (Prataparudra-II) के शासन के दौरान वारंगल पर आक्रमण किया।
न्यूट्रास्युटिकल बैम्बू शूट
Nutraceutical Bamboo Shoot
विशेषज्ञों के अनुसार, बैम्बू शूट (Bamboo Shoot) में न्यूट्रास्यूटिकल (Nutraceutical) गुण पाए जाते हैं।
प्रमुख बिंदु:
- न्यूट्रास्यूटिकल (Nutraceutical) शब्द का इस्तेमाल औषधीय या पौष्टिक रूप से प्रकार्यात्मक खाद्य पदार्थों का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
- बैम्बू शूट (Bamboo shoots) या अंकुरित बाँस (Bamboo Sprouts), बाँस के सुपाच्य नए अंकुरित बेंत होते हैं जो मिट्टी की सतह के नीचे ही निर्मित होते हैं।
- बैम्बू शूट (Bamboo shoots) उच्च-मूल्य एवं सुरक्षित खाद्य पदार्थ के रूप में उभर रहे हैं और ये वायरल हमलों के लिये मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिये सबसे सस्ती इम्युनिटी बूस्टर का कार्य भी करते हैं।
- ताज़े बैम्बू शूट में प्रोटीन की मात्रा 1.49-4.04% के बीच हो सकती है। इसमें 17 अमीनो एसिड भी होते हैं जिनमें से 8 मानव शरीर के लिये आवश्यक हैं।
COVID-19 के लिये उपयोगी:
- COVID-19 से निपटने के लिये फिलीपींस के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किये गए नए रोगाणुरोधी साबुनों (Antimicrobial Soaps) एवं हैंड मिस्ट्स (Hand Mists) में बाँस एक प्रमुख घटक रहा है।
बैम्बू शूट का वैश्विक बाज़ार:
- इसका वर्तमान वैश्विक बाज़ार लगभग 1,700 मिलियन अमेरिकी डालर का है।
- प्रतिवर्ष विश्व स्तर पर 3 मिलियन टन से अधिक बैम्बू शूट का उपभोग किया जाता है।
- ‘इंटरनेशनल नेटवर्क फॉर बैम्बू एंड रतन’ (International Network for Bamboo and Rattan- INBAR) के अनुसार, चीन दुनिया के 68% बाँस एवं रतन (एक प्रकार का पाम फाइबर) उत्पादों का निर्यात करता है जिनकी कीमत 1112 मिलियन अमेरिकी डालर है।
- INBAR एक बहुपक्षीय विकास संगठन है जिसे वर्ष 1997 में स्थापित किया गया था जो बाँस एवं रतन का उपयोग करके पर्यावरण के सतत् विकास को बढ़ावा देता है।
भारतीय परिदृश्य:
- राष्ट्रीय बाँस मिशन के अनुसार, 13.96 मिलियन हेक्टेयर के बांस क्षेत्र के साथ भारत विश्व में पहले स्थान पर है।
- बांस की 136 प्रजातियों के साथ बाँस विविधता के मामले में भारत, चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।
- भारत में बाँस का वार्षिक उत्पादन 14.6 मिलियन टन है और वर्ष 2017 में बाँस-रतन उद्योग की कुल कीमत 28,005 करोड़ रुपए थी।
- भारत में बैम्बू शूट का उत्पादन एवं खपत ज्यादातर उत्तर-पूर्वी राज्यों तक ही सीमित है।
चेंदमंगलम साड़ी
Chendamangalam Sari
केरल के एर्नाकुलम के पास एक छोटा से शहर चेंदमंगलम (Chendamangalam) की साड़ियाँ अपने पुलियिलाकारा बॉर्डर (Puliyilakara Border) के कारण एक अगल पहचान रखती हैं।
चेंदमंगलम (Chendamangalam):
- चेंदमंगलम, केरल के एर्नाकुलम के पास एक छोटा सा शहर है जो अपने प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति के कारण प्रसिद्ध है।
- यहूदी, ईसाई, मुस्लिम एवं हिंदू पूजा स्थलों के साथ यह शहर प्राचीन बंदरगाह मुज़िरिस (Muziris) का हिस्सा था।
- यह शहर मूल रूप से कर्नाटक के बुनकर समुदाय ‘देवांग चेट्टियारों’ (Devanga Chettiars) द्वारा महीन सूत कटाई के लिये जाना जाता है।
चेंदमंगलम साड़ी (Chendamangalam Sari):
- भौगोलिक संकेतक (जीआई-टैग) प्राप्त ये चेंदमंगलम साड़ी अपनी पुलियिलाकारा बॉर्डर (Puliyilakara Border) से पहचानी जा सकती है जो पतली काली रेखाएँ हैं और ये साड़ी के स्लीवेज (Selvedge) के साथ डिज़ाइन की जाती है।
- अतिरिक्त-वज़न वाले चुट्टीकारा (Chuttikara) एवं धारियों तथा अलग-अलग चौड़ाई की बनावट के साथ इन साड़ियों की डिज़ाइन थोड़ी बदल गई है।
- बारीक सूती धागे से निर्मित इन साड़ियों को तैयार करने में डिज़ाइन के अनुसार तीन से चार दिन लगते हैं।
- नवाचार के रूप में इन साड़ियों में ग्राफिक-एज फिनिशिंग (Graphic-edged Finishing) एवं कासवु ज़री बॉर्डर (Kasavu Zari Borders) जैसी विशेषताओं को भी अपनाया गया है।
केयर 4 चेंदमंगलम (Care 4 Chendamangalam- C4C) पहल:
- यह स्थानीय स्तर पर शुरू की गई एक निजी पहल है।
- C4C पहल के दो उद्देश्य हैं:
- पारंपरिक चेंदमंगलम क्लस्टर को पुनर्जीवित करना।
- चेंदमंगलम साड़ी के लिये अगली पीढ़ी को प्रशिक्षित करना।