प्रिलिम्स फैक्ट्स: 16 दिसंबर, 2020 | 16 Dec 2020
भारत जल प्रभाव सम्मेलन
India Water Impact Summit
हाल ही में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और सेंटर फॉर गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट एंड स्टडीज़ (Centre for Ganga River Basin Management and Studies) द्वारा पाँचवें भारत जल प्रभाव सम्मेलन (India Water Impact Summit- IWIS) का आभासी आयोजन किया गया।
प्रमुख बिंदु
सम्मेलन के बारे में:
- भारत जल प्रभाव 2020 एक 5 दिवसीय सम्मेलन है जिसमें जल संरक्षण, जल सुरक्षा और नदियों को पुनर्जीवित करने के उपायों पर चर्चा करने के लिये भारत सहित विभिन्न देशों के विशेषज्ञ और शोधार्थी शामिल होते हैं।
- विषय-वस्तु/थीम: इस वर्ष सम्मेलन का आयोजन ‘अर्थ गंगा-नदी संरक्षण और विकास’ (Arth Ganga – River Conservation Synchronised Development) थीम के साथ किया गया।
- सम्मेलन के दौरान भारत में कीचड़ प्रबंधन के विकास हेतु नार्वे के जैव अर्थव्यवस्था शोध संस्थान (The Norwegian Institute of Bioeconomy Research- NIBIO) और सी-गंगा ने संयुक्त रूप से एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन:
- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण (National Ganga River Basin Authority) की एक क्रियान्वयन इकाई है।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016 में स्थापित राष्ट्रीय गंगा परिषद (National Ganga Council) ने राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण को प्रतिस्थापित किया है।
- NMCG की स्थापना वर्ष 2011 में एक पंजीकृत सोसाइटी के रूप में की गई थी।
- इसकी दो स्तरीय प्रबंधन संरचना है, जिसमें शासी परिषद और कार्यकारी समिति शामिल है।
- NMCG के उद्देश्य
- व्यापक नियोजन और प्रबंधन के लिये अंतर-क्षेत्रीय समन्वय को बढ़ावा देने हेतु एक नदी बेसिन दृष्टिकोण अपनाना ताकि गंगा नदी में प्रदूषण नियंत्रण के साथ-साथ उसका संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
- जल की गुणवत्ता और पर्यावरण की दृष्टि से सतत् विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से गंगा नदी में न्यूनतम पारिस्थितिक प्रवाह बनाए रखना।
- वर्ष 2014 में ‘नमामि गंगे कार्यक्रम’ को राष्ट्रीय नदी ‘गंगा’ के संरक्षण और कायाकल्प तथा प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करने के लिये एक एकीकृत संरक्षण मिशन के रूप में प्रारंभ किया गया था।
- यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) और इसके राज्य स्तरीय समकक्ष संगठनों द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- इस कार्यक्रम का कुल बजट 20000 करोड़ रुपए है। इसके प्रमुख स्तंभ हैं;
- सीवरेज ट्रीटमेंट अवसंरचना और औद्योगिक कचरे का निस्तारण,
- रिवर फ्रंट डेवलपमेंट और नदी की सफाई,
- जैव विविधता और वनीकरण,
- जन जागरूकता।
- सेंटर फॉर गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट एंड स्टडीज़ (cGanga)
- इसे वर्ष 2016 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-कानपुर (IITK) में स्थापित किया गया था।
- यह गंगा नदी बेसिन के सतत् विकास के लिये ज्ञान और सूचना के निर्माण तथा प्रसार की दिशा में कार्य करता है।
- यह केंद्र राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के लिये एक थिंक-टैंक के रूप में कार्य करता है
हिमालयन सीरो
Himalayan Serow
हाल ही में हिमालय के ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्र (स्पीति, हिमाचल प्रदेश) में पहली बार हिमालयन सीरो (HImalayan Serow) को देखा गया है
प्रमुख बिंदु:
विवरण:
- हिमालयन सीरो बकरी, गधा, गाय तथा एक सुअर के समान दिखता है।
शारीरिक विशेषताएँ:
- यह बड़े सिर, मोटी गर्दन, छोटे अंग, खच्चर जैसे कान, और काले बालों वाला एक मध्यम आकार का स्तनपायी है।
उपजाति:
- सीरो की कई प्रजातियाँ हैं और ये सभी एशिया में पाए जाती हैं।
- हिमालयन सीरो या कैपरीकोर्निस सुमात्रेंसिस थार (Capricornis Sumatraensis Thar) हिमालयी क्षेत्र तक ही सीमित है।
आहार:
- हिमालयन सीरो शाकाहारी होते हैं।
भौगोलिक स्थिति:
- ट्राँस हिमालय पर्वत क्षेत्र या तिब्बत हिमालय क्षेत्र ग्रेट हिमालय के उत्तर में स्थित है जिसमें काराकोरम, लद्दाख, जास्कर और कैलाश पर्वत शृंखलाएँ शामिल हैं।
- ये आमतौर पर 2,000 मीटर से 4,000 मीटर तक की ऊँचाई पर पाए जाते हैं। ये पूर्वी, मध्य और पश्चिमी हिमालय में पाए जाते हैं, परंतु ट्राँस हिमालयन क्षेत्र में नहीं पाए जाते।
नवीनतम उपस्थिति:
- हिमालयन सीरो को हिमाचल प्रदेश के स्पीति में हर्लिंग गाँव के पास देखा गया था।
- स्पीति पश्चिमी हिमालय के ठंडे पर्वतीय रेगिस्तानी क्षेत्र में स्थित है और यह घाटी समुद्र तल से औसतन 4,270 मीटर की ऊँचाई पर है।
- यह पहली बार है जब हिमाचल प्रदेश में सीरो को मानव द्वारा देखा गया है।
- सीरो को रूपी भबा वन्यजीव अभयारण्य और चंबा में भी देखा गया है।
- यह अभयारण्य स्थानीय रूप से व्यापक अल्पाइन चरागाहों के साथ-साथ कई ट्रेक, ट्रेल्स और दर्रों के लिये जाना जाता है जो इसे पड़ोसी ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क और पिन वैली नेशनल पार्क से जोड़ते हैं।
संरक्षण स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: सुभेद्य (Vulnerable)
- साईट्स (CITES): परिशिष्ट-1
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची-1
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972
- देश की पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वन्य प्राणियों, पक्षियों और पादपों के संरक्षण के लिये तथा उनसे संबंधित या प्रासंगिक या आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिये यह अधिनियम बनाया गया। यह जम्मू-कश्मीर को छोड़कर संपूर्ण भारत में लागू है। इस अधिनियम का उद्देश्य सूचीबद्ध लुप्तप्राय वनस्पतियों, जीव एवं पर्यावरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करना है।
- भारत सरकार ने देश के वन्यजीवों की रक्षा करने और प्रभावी ढंग से अवैध शिकार, तस्करी एवं वन्यजीवन तथा उनसे व्युत्पन्न के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से यह अधिनियम लागू किया। इसे जनवरी 2003 में संशोधित किया गया तथा कानून के तहत अपराधों के लिये सज़ा एवं ज़ुर्माने को और अधिक कठोर बना दिया गया।
इसमें कुल छह अनुसूचियाँ हैं:
- अनसूची-1
- इस अनुसूची में 43 वन्यजीव शामिल हैं। इनमें सूअर से लेकर कई तरह के हिरण, बंदर, भालू, चिंकारा, तेंदुआ, लंगूर, भेड़िया, लोमड़ी, डॉलफिन, कई तरह की जंगली बिल्लियाँ, बारहसिंगा, बड़ी गिलहरी, पेंगोलिन, गैंडा, ऊदबिलाव, रीछ और हिमालय पर पाए जाने वाले अनेक जानवर शामिल हैं। इसके अलावा इसमें कई जलीय जंतु और सरीसृप भी शामिल हैं। इस अनुसूची के चार भाग हैं और इसमें शामिल जीवों का शिकार करने पर धारा 2, 8, 9, 11, 40, 41, 43, 48, 51, 61 तथा धारा 62 के तहत दंड का प्रावधान है।
- अनुसूची-2
- इस अनुसूची में शामिल वन्य जंतुओं के शिकार पर धारा 2, 8, 9, 11, 40, 41, 43, 48, 51, 61 और धारा 62 के तहत सज़ा का प्रावधान है। इस सूची में कई तरह के बंदर, लंगूर, साही, जंगली कुत्ता, गिरगिट आदि शामिल हैं। इनके अलावा अन्य कई तरह के जानवर भी इसमें शामिल हैं।
- इन दोनों अनुसूचियों में शामिल जानवरों का शिकार करने पर कम-से-कम तीन साल और अधिकतम सात साल के जेल की सज़ा का प्रावधान है।
- इसके तहत कम-से-कम ज़ुर्माना 10 हज़ार रुपए और अधिकतम ज़ुर्माना 25 लाख रुपए है।
- दूसरी बार अपराध करने पर भी इतनी ही सज़ा का प्रावधान है, लेकिन न्यूनतम ज़ुर्माना 25 हज़ार रुपए है।
- अनुसूची-3 और अनुसूची-4: इसके तहत भी वन्यजीवों को संरक्षण प्रदान किया जाता है लेकिन इस सूची में शामिल जानवरों और पक्षियों के शिकार पर बहुत कम दंड का प्रावधान है।
- अनुसूची-5: इस सूची में उन जानवरों को शामिल किया गया है, जिनका शिकार किया जा सकता है।
- अनुसूची-6: इसमें दुर्लभ पौधों और पेड़ों की खेती और रोपण पर रोक है।
क्या खास है इस कानून में?
- वन्यजीव ( संरक्षण) अधिनियम, 1972 के उपबंधों के अंतर्गत वन्यजिवों के शिकार और वाणिज्यिक शोषण के विरुद्ध विधिक सुरक्षा दी गई है।
- संरक्षण और खतरे की स्थिति के अनुसार वन्यजीवों को अधिनियम की विभिन्न अनुसूचियों में रखा जाता है।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में इसके उपबंधों का अतिक्रमण करने संबंधी अपराध के लिये दंड का प्रावधान है।
- वन्यजीव अपराध हेतु प्रयोग में लाए गए किसी उपकरण, वाहन अथवा हथियार को जब्त करने का भी प्रावधान है।
- वन्यजीवों और उनके पर्यावासों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए देश भर में सुरक्षित क्षेत्र अर्थात् राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, संरक्षण रिज़र्व और सामुदायिक रिज़र्व सृजित किये गए हैं।
- वन्यजीवों के अवैध शिकार और उनके उत्पादों के अवैध व्यापार पर नियंत्रण संबंधी कानून के प्रवर्तन के सुदृढ़ीकरण हेतु वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की स्थापना की गई है।
- वन्यजीव अपराधियों को पकड़ने और उन पर मुकदमा चलाने के लिये सीबीआई को अधिकार दिये गए हैं।
विजय दिवस
Vijay Diwas
वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की विजय की स्मृति में प्रतिवर्ष 16 दिसंबर को विजय दिवस (Vijay Diwas) मनाया जाता है।
- वर्ष 2020 में विजय दिवस के 50 वर्ष पूरे हो गए हैं और सरकार इस अवसर को मनाने के लिये ‘स्वर्णिम विजय वर्ष’ कार्यक्रम का आयोजन कर रही है।
- राष्ट्रीय युद्ध स्मारक उन सभी सैनिकों को समर्पित है जिन्होंने आज़ादी के बाद देश की रक्षा के लिये अपना जीवन बलिदान कर दिया। साथ ही यह स्मारक उन सैनिकों को भी याद करता है जिन्होंने शांति अभियानों में बलिदान दिया।
प्रमुख बिंदु:
- भारत सरकार ने 3 दिसंबर, 1971 को बंगाली मुसलमानों और हिंदुओं की रक्षा के लिये पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ने का निर्णय लिया।
- यह युद्ध भारत और पाकिस्तान के मध्य 13 दिनों तक लड़ा गया था।
- 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख ने 93,000 सैनिकों के साथ ढाका में भारतीय सेना जिसमें मुक्ति वाहिनी भी शामिल थी, के सामने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया था।
- मुक्ति वाहिनी उन सशस्त्र संगठनों को संदर्भित करती है जो बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तान सेना के विरुद्ध लड़े थे। यह एक गुरिल्ला प्रतिरोध आंदोलन था।
- इसी दिन बांग्लादेश की उत्पत्ति हुई थी। इसलिये बांग्लादेश प्रत्येक वर्ष 16 दिसंबर को स्वतंत्रता दिवस (बिजोय डिबोस) मनाता है।