इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भूगोल

गंगा पारिस्थितिकी प्रवाह मानदंड

  • 01 Feb 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

केंद्रीय जल आयोग

मेन्स के लिये:

केंद्रीय जल आयोग के कार्य

चर्चा में क्यों:

केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission-CWC) के अनुसार, गंगा की सहायक नदियों के ऊपरी बहाव क्षेत्रों में स्थित 11 जल विद्युत परियोजनाओं में से 4 जल विद्युत परियोजनाएँ पारिस्थितिक प्रवाह [Ecological flow (e-flow)] संबंधी मानदंडों का उल्लंघन कर रही हैं।

मुख्य बिंदु:

  • केंद्र सरकार द्वारा लगभग एक वर्ष पहले गंगा और उसकी सहायक नदियों में जल के प्रवाह की मात्रा निर्धारित करने के एक वर्ष बाद भी ये जल विद्युत परियोजनाएँ मानदंडों को पूरा करने में असफल रही हैं।
  • केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित 11 परियोजनाओं में से चार ऐसी परियोजनाएँ है जो मानसून के बाद भी जल प्रवाह मानदंडों को पूरा नही करतीं।

गंगा नदी हेतु निर्धारित प्रवाह/ई-प्रवाह मानदंड:

  • पर्यावरणीय प्रवाह वास्तव में वह स्‍वीकार्य जल प्रवाह की मात्रा है जो किसी नदी को अपेक्षित पर्यावरणीय स्थिति अथवा पूर्व निर्धारित स्थिति में बनाए रखने के लिये आवश्‍यक होता है।
  • शुष्क मौसम के दौरान गंगा के प्रवाह क्षेत्र के ऊपरी हिस्सों अर्थात इसके उदगम स्थल से लेकर हरिद्वार तक मार्च और नवंबर के बीच शुरुआती 10 दिनों में 20 % पारिस्थितिक प्रवाह निर्धारित किया गया है।
  • लीन सीज़न (Lean Season) के दौरान अर्थात अक्तूबर, अप्रैल और मई में ई-प्रवाह औसतन 25% निर्धारित किया गया है।
  • मानसून के महीनों में अर्थात जून से सितंबर के दौरान मासिक औसत का 30% ई-प्रवाह निर्धारित है।

गंगा प्रवाह मानदंड का उल्लंघन करने वाली 4 परियोजनाएँँ निम्न हैं-

  • मनेरी भाली चरण-2 परियोजना (Maneri Bhali Phase- 2 Project), उत्तराखंड- उत्तरकाशी
  • विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना (Vishnuprayag Hydroelectric Project), उत्तराखंड- चमोली
  • श्रीनगर जलविद्युत परियोजना (Srinagar Hydroelectric Project), उत्तराखंड
  • पशुलोक बैराज परियोजना (Pashulok Barrage Project), उत्तराखंड -ऋषिकेश
  • विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना और श्रीनगर जलविद्युत परियोजना अलकनंदा नदी पर स्थित है।
  • मनेरी भाली चरण 2 परियोजना भागीरथी पर स्थित है।
  • पशुलोक बैराज परियोजना गंगा नदी की मुख्य धारा पर स्थित है।

गंगा प्रवाह के लिये निर्धारित समयसीमा:

  • समयसीमा के निर्धारण हेतु यह अधिसूचना अक्तूबर 2018 में जारी की गई थी। इसके तहत कंपनियों को अपनी परियोजना से संबंधित डिज़ाइन में बदलाव करने के लिये अक्तूबर 2021 तक का समय दिया गया था जिसे बाद में दिसंबर 2019 कर दिया गया था ।
  • सरकार द्वारा सितंबर 2019 तक गंगा प्रवाह मानदंडों के पूरा न होने पर समय सीमा को बढ़ाकर फिर से दिसंबर 2019 से अक्तूबर 2021 तक कर दिया गया।
  • इसके बाद CWC द्वारा विभिन्न परियोजनाओं की समीक्षा की गई।
  • समीक्षा में पाया गया कि अधिकांश पावर प्रोजेक्ट को निर्धारित मानदंडों को पूरा करने के लिये तीन वर्ष की समयसीमा की आवश्यकता नहीं हैं, अर्थात् तीन वर्ष से कम समयावधि में ही पानी के न्यूनतम प्रवाह हेतु उनके डिज़ाइन प्लान को संशोधित किया जा सकता है।

प्रवाह अधिसूचना का महत्त्व

  • बांधों के निर्माण से नदियों में जल की उपलब्धता कम होती है। इससे नदी के मार्ग में तथा तटों पर उपस्थित प्रजातियों के प्राकृतिक अधिवास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस अधिसूचना के लागू होने से इसे नियंत्रित किया जा सकेगा।
  • नदियों में वर्ष भर पानी की उपलब्धता से जलीय पारिस्थितिकी का विकास होगा क्योंकि नदियों के जल स्तर में कमी से नदी के किनारे स्थित स्थानीय गैर-जलीय प्रजातियों का विस्तार होता है तथा जलीय जीवों के अस्तित्व को खतरा पहुँचता है।
  • इससे जलीय पारिस्थितिकी में उपस्थित खाद्य शृंखला तथा पर्यावरण संतुलन का विकास होगा।
  • इस अधिसूचना द्वारा जलीय पारिस्थितिकी तथा जैव विविधता के संरक्षण में मदद मिलेगी।

मानकों के पूरा न होने की स्थिति पर:

मानकों का निर्धारित समयावधि में पूरा न होने की स्थिति में सरकार परियोजना को संचालित करने वाली कंपनी को परियोजना बंद करने हेतु नोटिस जारी कर सकती है या जुर्माना आरोपित कर सकती है।

केंद्रीय जल आयोग:

  • केंद्रीय जल आयोग जल संसाधन के क्षेत्र में भारत का एक प्रमुख तकनीकी संगठन है।
  • वर्तमान में यह जल शक्ति मंत्रालय (Ministry of Jal Shakti ), जल संसाधन विभाग (Department of Water Resources) और नदी विकास एवं गंगा कायाकल्प विभाग ( River Development and Ganga Rejuvenation) के साथ मिलकर भारत सरकार के संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य करता है।
  • इसका मुख्य कार्य बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, नेविगेशन, पेयजल आपूर्ति के संबंध में राज्य सरकारों को योजना, नियंत्रण और संरक्षण के लिये परामर्श देना है।
  • आयोग देश में जल संसाधनों के उचित उपयोग के लिये सामान्य जानकारियाँ भी उपलब्ध करता हैं।
  • इसकी स्थापना वर्ष 2001 में की गई थी तथा इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2