प्रीलिम्स फैक्ट्स: 14 मार्च, 2020 | 14 Mar 2020

भूमि राशि पोर्टल

Bhoomi Rashi Portal

हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के भूमि राशि पोर्टल (Bhoomi Rashi Portal) के माध्यम से राष्ट्रीय राजमार्गों के लिये भूमि अधिग्रहण में तेज़ी आई है।

मुख्य बिंदु:

  • 2018-19 में लगभग 3000 सूचनाएँ जारी की गई थीं, जबकि इससे पिछले दो वर्षों में केवल 1000 प्रति वर्ष ही जारी की जाती थीं। 
  • वहीं पिछले 21 महीनों (01.04.2018 से) में 37078 हेक्टेयर भूमि को अधिसूचित किया गया, जबकि उससे पहले के चार वर्षों में केवल 33005 हेक्टेयर भूमि को अधिसूचित किया गया था।

भूमि राशि पोर्टल के बारे में

  • भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को सरल बनाने के लिये इस पोर्टल की शुरुआत भारत सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की एक प्रमुख ई-गवर्नेंस पहल के रूप में 01 अप्रैल, 2018 को की गई थी।
  • इस पोर्टल के माध्यम से राष्ट्रीय राजमार्गों के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया त्रुटि मुक्त एवं पारदर्शी हुई है।
  • इस पोर्टल को रियल टाइम के आधार पर प्रभावित/इच्छुक व्यक्तियों के बैंक खाते में मुआवज़ा जमा करने के लिये सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (Public Financial Management System- PFMS) के साथ एकीकृत किया गया है।
  • भूमि राशि पोर्टल मॉडल अनुकरणीय है और इसका उपयोग राज्य सरकारों के साथ-साथ भारत सरकार के उन अन्य मंत्रालयों द्वारा भी किया जा सकता है जो सीधे तौर पर अपने प्रासंगिक कानूनी प्रावधानों के तहत भूमि का अधिग्रहण करते हैं।

पाई (π) डे

Pi (π) Day

14 मार्च को पूरे विश्व में पाई डे (Pi Day) मनाया जाता है।

मुख्य बिंदु:

  • गणित में किसी वृत्त की परिधि की लंबाई और उसके व्यास की लंबाई के अनुपात को पाई (π) कहा जाता है।
  • पाई (π) एक गणितीय स्थिरांक (Mathematical Constants) है जिसका मान 3.14159 (दशमलव के पाँच स्थानों तक) होता है।
  • पाई के मान की खोज 5वीं सदी में आर्यभट्ट ने की थी, जबकि आधुनिक युग में पाई का मान सबसे पहले वर्ष 1706 में गणितज्ञ विलिया जोन्स ने सुझाया था।

आर्यभट्ट (Aryabhatta):

  • आर्यभट्ट पाँचवीं शताब्दी के गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, ज्योतिषी और भौतिक विज्ञानी थे।
  • आर्यभट्ट गुप्त काल (320 ईस्वी से 550 ईस्वी तक) के महान गणितज्ञ थे। उन्होंने आर्यभट्टीयम् (Aryabhattiyam) की रचना की जो उस समय के गणित का सारांश है। इसके चार खंड हैं। पहले खंड में उन्होंने वर्णमाला द्वारा बड़े दशमलव संख्याओं को दर्शाने की विधि का वर्णन किया है।
  • दूसरे खंड में आधुनिक गणित के विषयों जैसे कि संख्या सिद्धांत, ज्यामिति, त्रिकोणमिति और बीजगणित का उल्लेख किया गया है।
  • आर्यभट्ट के अनुसार, शून्य केवल एक अंक नहीं था बल्कि एक प्रतीक और एक अवधारणा भी थी। शून्य की खोज ने भी नकारात्मक अंकों के एक नए आयाम को खोल दिया। उन्होनें पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की सटीक दूरी का पता लगाया।
  • आर्यभट्टीयम् के शेष दो खंड खगोल विज्ञान पर आधारित हैं जिन्हें खगोलशास्त्र भी कहा जाता है। ‘खगोल’ नालंदा विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध खगोलीय वेधशाला थी जहाँ आर्यभट्ट ने अध्ययन किया था।
  • उन्होंने इस दृष्टिकोण की अवहेलना की कि हमारा ग्रह स्थिर है तथा अपने सिद्धांत में बताया कि पृथ्वी गोल है और यह अपनी धुरी पर घूमती है। उन्होंने यह भी कहा कि सौरमंडल में चंद्रमा एवं अन्य ग्रह परावर्तित सूर्य के प्रकाश से चमकते हैं जो आधुनिक समय में सच साबित हुआ।
  • आर्यभट्ट द्वारा रचित अन्य कृतियाँ दशगीतिका सूत्र तथा आर्याष्टशत हैं।

जोसेर का पिरामिड

Pyramid of Djoser

हाल ही में मिस्र ने आम नागरिकों के प्रवेश के लिये जोसेर के पिरामिड (Pyramid of Djoser) को फिर से खोल दिया है।

  • गौरतलब है कि 14 वर्षों से की जा रही मरम्मत के बाद लगभग 6.6 मिलियन डॉलर की लागत से निर्मित यह मिस्र का पहला एवं सबसे प्राचीन पिरामिड है।

Egypt

मुख्य बिंदु:

  • वर्ष 1992 में मिस्र में आए भूकंप से पिरामिड को गंभीर नुकसान पहुँचा था और वर्ष 2006 में इसके जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया गया था।
    • वर्ष 2011 में अरब स्प्रिंग के दौरान इसके जीर्णोद्धार कार्य को बंद कर दिया गया था जिसे वर्ष 2013 में पुनः शुरू किया गया।
  • माना जाता है कि इस पिरामिड के प्रारूप को इम्होटेप (Imhotep) द्वारा डिज़ाइन किया गया था जिन्हें कुछ लोगों द्वारा विश्व के पहले वास्तुकार के रूप में वर्णित किया गया।
  • 4,700 वर्ष पुराने इस पिरामिड की लंबाई 60 मीटर है। यह मेम्फिस (Memphis) की शाही राजधानी के बाहर काहिरा (Cairo) शहर से 24 किमी. दक्षिण-पश्चिम में सक्कारा (Saqqara) पुरातात्त्विक स्थल पर स्थित है।
  • इस पिरामिड के चारों ओर हॉल एवं कोर्ट का एक परिसर स्थित है। यूनेस्को की इस विश्व धरोहर स्थल (जोसेर का पिरामिड) का निर्माण प्राचीन मिस्र के तीसरे राजवंश (2650 ईसा पूर्व - 2575 ईसा पूर्व) के दूसरे राजा फारोह जोसेर (Pharaoh Djoser) के समय किया गया था।
    • फारोह जोसेर के 19 वर्ष के शासनकाल में शैल वास्तुकला से संबंधित महत्त्वपूर्ण तकनीकी नवाचार हुए।
    • पिरामिड के वास्तुकार इम्होटेप एक चिकित्सक एवं ज्योतिषी के साथ-साथ कुछ समय तक फारोह जोसेर के मंत्री भी रहे।
  • जीर्णोद्धार के दौरान इस पिरामिड से 16 फीट लंबी ग्रेनाइट की कब्र प्राप्त हुई है जिसका वज़न 176 टन है। इस पिरामिड में स्थित राजा फारोह जोसेर की कब्र की भी मरम्मत की गई।