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प्रारंभिक परीक्षा

प्रिलिम्स फैक्ट्स: 02 अगस्त, 2021

  • 02 Aug 2021
  • 11 min read

कोर सेक्टर आउटपुट

Core Sectors Output

जून 2021 में ‘बेस इफेक्ट’ के कारण भारत के आठ प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादन में 8.9% की वृद्धि हुई, लेकिन इसकी गति कोविड-19 महामारी के साथ-साथ इसकी दूसरी लहर से पहले दर्ज किये गए उत्पादन स्तर से नीचे रही।

प्रमुख बिंदु

आठ प्रमुख क्षेत्रों के बारे में:

  • इनमें औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में शामिल मदों के भार का 40.27 प्रतिशत शामिल है।
  • आठ प्रमुख उद्योग क्षेत्र उनके भार के घटते क्रम में: रिफाइनरी उत्पाद> बिजली> स्टील> कोयला> कच्चा तेल> प्राकृतिक गैस> सीमेंट> उर्वरक।

बेस इफेक्ट:

  • ‘बेस इफेक्ट’ उस प्रभाव को संदर्भित करता है जो विभिन्न आँकड़ों के बीच तुलना के परिणाम या संदर्भ के आधार पर हो सकता है।
  • उदाहरण के लिये यदि तुलना हेतु चुने गए बिंदु का वर्तमान अवधि या समग्र डेटा के सापेक्ष असामान्य रूप से उच्च या निम्न मूल्य है तो ‘बेस इफेक्ट’ से मुद्रास्फीति दर या आर्थिक विकास दर जैसे आँकड़ों का स्पष्ट रूप से कम या अधिक विवरण हो सकता है।
  • जून 2021 में कोयला, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, स्टील, सीमेंट और बिजली का उत्पादन क्रमशः 7.4%, 20.6%, 2.4%, 25%, 4.3% और 7.2% बढ़ा, जबकि पिछले वर्ष इसी महीने में इसकी दर (-) 15.5%, (-) 12%, (-) 8.9%, (-) 23.2%, (-) 6.8% और (-) 10% रही।

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक:

  • IIP एकमात्र संकेतक है जो एक निश्चित अवधि के दौरान औद्योगिक उत्पादों के उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन को मापता है।
  • यह राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है।
  • यह एक समग्र संकेतक है जो निम्न वर्गीकृत उद्योग समूहों की विकास दर को मापता है:
    • व्यापक क्षेत्र अर्थात् खनन, विनिर्माण और बिजली।
    • उपयोग-आधारित क्षेत्र अर्थात् मूल सामान, पूंजीगत सामान और मध्यवर्ती सामान।
  • IIP के लिये आधार वर्ष 2011-2012 है।
  • IIP का महत्त्व:
    • इसका उपयोग नीति-निर्माण संबंधी उद्देश्यों के लिये वित्त मंत्रालय, भारतीय रिज़र्व बैंक आदि सहित सरकारी एजेंसियों द्वारा किया जाता है।
    • त्रैमासिक और अग्रिम सकल घरेलू उत्पाद अनुमानों की गणना के लिये IIP अत्यंत प्रासंगिक है।

पैंगोलिन

(Pangolin)

हाल ही में एक टीम द्वारा नोएडा से पैंगोलिन को रेस्क्यू कर वन विभाग को सौंप दिया गया।

Pangolin

पैंगोलिन के संबंध में:

  • पैंगोलिन की आठ प्रजातियों में से इंडियन पैंगोलिन और चीनी पैंगोलिन भारत में पाए जाते हैं।
  • इंडियन पैंगोलिन एक बड़ा चींटीखोर (Anteater) है जिसकी पीठ पर शल्कनुमा संरचना की 11-13 तक पंक्तियाँ होती हैं।
  • इंडियन पैंगोलिन की पूँछ के निचले हिस्से में एक टर्मिनल स्केल मौजूद होता है जो चीनी पैंगोलिन में नहीं मिलता है।
  • आहार:
    • कीटभक्षी-पैंगोलिन निशाचर होते हैं, और इनका आहार मुख्य रूप से चीटियाँ और दीमक होते हैं, जिन्हें वे अपनी लंबी जीभ का उपयोग कर पकड़ लेते हैं।
  • आवास:
    • इंडियन पैंगोलिन व्यापक रूप से शुष्क क्षेत्रों, उच्च हिमालय एवं पूर्वोत्तर को छोड़कर शेष भारत में पाया जाता है। यह प्रजाति बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका में भी पाई जाती है।
    • चीनी पैंगोलिन पूर्वी नेपाल में हिमालय की तलहटी क्षेत्र में, भूटान, उत्तरी भारत, उत्तर-पूर्वी बांग्लादेश और दक्षिणी चीन में पाया जाता है।
  • भारत में पैंगोलिन को खतरा:
    • पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, खासकर चीन एवं वियतनाम में इसके मांस का व्यापार तथा स्थानीय उपभोग (जैसे कि प्रोटीन स्रोत और पारंपरिक दवा के रूप में) हेतु अवैध शिकार इसके विलुप्त होने के प्रमुख कारण हैं।
    • ऐसा माना जाता है कि ये विश्व के ऐसे स्तनपायी हैं जिनका बड़ी मात्रा में अवैध व्यापार किया जाता है।
  • संरक्षण की स्थिति:
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की रेड लिस्ट में इंडियन पैंगोलिन को संकटग्रस्त (Endangered), जबकि चीनी पैंगोलिन को गंभीर संकटग्रस्त (Critically Endangered) की श्रेणी में रखा गया है।
    • इन दोनों प्रजातियों को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के भाग-I की अनुसूची-I के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
    • CITES: सभी पैंगोलिन प्रजातियों को लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ (CITES) के परिशिष्ट-I में सूचीबद्ध किया गया है।
    • अतः इसकी प्रजातियों के शिकार, व्यापार या उनके शरीर के अंगों और इनसे जुड़ी वस्तुओं के किसी अन्य रूप में उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
    • भारत में इसके अवैध शिकार पर 7 वर्ष तक की जेल की सज़ा हो सकती है क्योंकि इसे वन्यजीव अधिनियम की धारा के तहत अधिकतम सुरक्षा शामिल है।

दिल्ली-अलवर RRTS परियोजना

Delhi-Alwar RRTS Project

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने अरावली जैवविविधता पार्क और विस्तारित रिज क्षेत्र के तहत प्रस्तावित दिल्ली-अलवर RRTS (रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम) कॉरिडोर के एक खंड के निर्माण को अनुमति दी है।

प्रमुख बिंदु

समिति की रिपोर्ट:

  • समिति ने यह स्वीकार किया है कि परियोजना जनहित में है और चूँकि प्रस्तावित रेल गलियारा ज़मीन से 20 मीटर नीचे होगा, इसलिये इसके निर्माण हेतु पेड़ों को नहीं काटना पड़ेगा।
  • मॉर्फोलॉजिकल रिज क्षेत्र में सतह पर कोई निर्माण नहीं किया जाएगा।
  • There will be no construction on the surface in the Morphological Ridge area.
    • रिज या माउंटेन रिज एक भौगोलिक विशेषता है जिसमें पहाड़ों या पहाड़ियों की एक ऐसी शृंखला शामिल होती है जो कुछ दूरी तक निरंतर ऊँचे शिखर का निर्माण करती है
    • अरावली रिज क्षेत्र, जो अनिवार्य रूप से अरावली पर्वतमाला के विस्तार हैं और दिल्ली में 7,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं, को राजधानी (दिल्ली) का फेफड़ा माना जाता है।

दिल्ली-अलवर RRTS गलियारा:

  • यह 164 किलोमीटर लंबा रैपिड रेल कॉरिडोर/गलियारा है, जो एलिवेटेड ट्रैक और सुरंगों का मिश्रण होगा। इसे तीन चरणों में लागू किया जाना है।
  • माना जाता है कि गलियारे का 3.6 किमी. लंबा हिस्सा दक्षिणी दिल्ली में विस्तारित या मॉर्फोलॉजिकल रिज के नीचे से गुजरेगा।
    • 3.6 किलोमीटर लंबे मार्ग में से 1.7 किलोमीटर का मार्ग दिल्ली के वसंत कुंज के निकट स्थित अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क के नीचे से गुज़रेगा।

गलियारे का महत्त्व:

  • यात्रा समय के संदर्भ में:
    • गलियारे के निर्माण से दोनों स्थानों के बीच यात्रा में लगने वाले समय में 117 मिनट की कमी होगी।
  • वायु गुणवत्ता के संदर्भ में:
    • सार्वजनिक परिवहन की हिस्सेदारी में वृद्धि होने की संभावना के चलते इस गलियारे के निर्माण से दिल्ली/NCR (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में हवा की गुणवत्ता में सुधार होने की उम्मीद की जा रही है।
  • सडकों पर ट्रैफिक में कमी:
    • परिवहन नेटवर्क के बेहतर होने के साथ ही सड़क यातायात की भीड़भाड़ कम होने की संभावना है और इस परियोजना से क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के मुद्दों को संबोधित करने तथा दिल्ली-एनसीआर को सड़क, रेल एवं हवाई यातायात से जोड़ने वाली एक कुशल मल्टीमॉडल परिवहन प्रणाली के विकसित होने की उम्मीद है।

अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क:

  • इसे दक्षिणी दिल्ली में वसंत विहार के निकट स्थित 699 एकड़ भूमि पर विकसित किया गया है।
  • पूर्व में हुई खनन गतिविधियों और प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (एक आक्रामक झाड़ी) से यह क्षेत्र अत्यधिक निम्नीकृत हो गया है।
    • दिल्ली की जैवविविधता लगभग विलुप्त हो चुकी है। 
  • अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क का मुख्य उद्देश्य दिल्ली अरावली की खोई हुई जैवविविधता को वापस लाना है। इसका अन्य उद्देश्य छात्रों के बीच प्रकृति शिक्षा को बढ़ावा देना और जनता के बीच पर्यावरण संबंधी जागरूकता पैदा करना है।
  • यह अरावली के संकटग्रस्त औषधीय पौधों के संरक्षण में भी मदद कर रहा है।
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