प्रेसिज़न मेडिसिन और बायोबैंक | 26 Oct 2024
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
प्रेसिज़न मेडिसिन या व्यक्तीकृत चिकित्सा व्यक्तिगत स्वास्थ्य सेवा के एक नए युग की शुरुआत कर रही है। वैज्ञानिकों द्वारा मानव जीनोम परियोजना (HGP) को पूरा करने के बाद इस क्षेत्र ने एक नया आकार लेना शुरू कर दिया।
- अब इसमें कैंसर, दीर्घकालिक, प्रतिरक्षा, हृदय और यकृत जैसे रोगों के निदान और उपचार के लिये जीनोमिक्स को शामिल किया गया है।
नोट:
- भारतीय जनसंख्या की अद्वितीय आनुवंशिक विविधता को स्वीकार करते हुए, HGP का लक्ष्य देश भर के सभी प्रमुख जातीय समुदायों के 10,000 स्वस्थ व्यक्तियों के संपूर्ण जीनोम को अनुक्रमित करके विभिन्न भारतीय समूहों के बीच आनुवंशिक विविधताओं की पहचान करना और उन्हें सूचीबद्ध करना है।
प्रेसिज़न मेडिसिन क्या है?
- परिचय:
- यह रोगों के उपचार और निराकरण के लिये एक नवीन रणनीति है जो आनुवांशिकी, पर्यावरण और जीवनशैली में व्यक्तिगत अंतर पर केंद्रित है।
- यह सभी के लिये एक ही दृष्टिकोण अपनाने के बजाय प्रत्येक रोगी की विशिष्ट विशेषताओं के अनुसार चिकित्सा देखभाल उपलब्ध कराने पर ज़ोर देती है।
- यह विधि स्वास्थ्य पेशेवरों और शोधकर्त्ताओं को अधिक सटीक रूप से यह पूर्वानुमान लगाने में सक्षम बनाती है कि कौन से उपचार और निवारक उपाय विशिष्ट व्यक्तियों के समूह के लिये प्रभावी हैं।
- बायोबैंक की भूमिका:
- बायोबैंक शोध के लिये जैविक नमूने (जैसे, DNA, कोशिकाएँ, ऊतक) संग्रहीत करते हैं। व्यापक आबादी को लाभ पहुँचाने के लिये प्रेसिज़न मेडिसिन के लिये उनकी विविधता महत्त्वपूर्ण है।
- बायोबैंक डेटा का उपयोग करके हाल के अध्ययनों से अज्ञात दुर्लभ आनुवंशिक विकारों की पहचान करने में मदद मिली है।
उभरती प्रौद्योगिकियों की भूमिका:
- जीन संपादन: CRISPR जैसी तकनीकों ने आनुवंशिक दोषों के निराकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे पहले से उपचार न किये जा सकने वाली स्थितियों के लिये संभावित उपचार उपलब्ध हो गया है।
- mRNA थेरेप्यूटिक्स: कोविड -19 महामारी ने mRNA तकनीक की शक्ति को प्रदर्शित किया, जिससे वैक्सीन का तेज़ी से विकास संभव हुआ। इस अभिनव दृष्टिकोण ने आधुनिक चिकित्सा में इसके महत्त्व को उज़ागर किया जिसके लिये इसे नोबेल पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
भारत में प्रेसिज़न मेडिसिन और बायोबैंक की स्थिति क्या है?
- बाज़ार वृद्धि:
- भारतीय प्रेसिज़न मेडिसिन बाज़ार के 16% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने का अनुमान है, जो वर्ष 2030 तक 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है।
- वर्तमान में, यह राष्ट्रीय जैव अर्थव्यवस्था का 36% हिस्सा है, जिसमें कैंसर इम्यूनोथेरेपी, जीन एडिटिंग और बायोलॉजिक्स जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
- भारतीय प्रेसिज़न मेडिसिन बाज़ार के 16% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ने का अनुमान है, जो वर्ष 2030 तक 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है।
- नीति विकास:
- प्रेसिज़न मेडिसिन विज्ञान की उन्नति को नई 'बायोई 3' नीति में शामिल किया गया है।
- इसका उद्देश्य उच्च प्रदर्शन वाले जैव-विनिर्माण को बढ़ावा देना है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में जैव-आधारित उत्पादों का उत्पादन शामिल है।
- प्रेसिज़न मेडिसिन विज्ञान की उन्नति को नई 'बायोई 3' नीति में शामिल किया गया है।
- हालिया स्वीकृतियाँ और विकास:
- वर्ष 2023 में, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन द्वारा भारत की घरेलू रूप से विकसित CAR-T सेल थेरेपी, NexCAR19 को मंजूरी दी गई।
- वर्ष 2024 में, सरकार ने IIT बॉम्बे में CAR-T सेल थेरेपी के लिये एक समर्पित केंद्र भी स्थापित किया।
- वर्ष 2023 में, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन द्वारा भारत की घरेलू रूप से विकसित CAR-T सेल थेरेपी, NexCAR19 को मंजूरी दी गई।
- भारत में बायोबैंक की स्थिति:
- जीनोम इंडिया कार्यक्रम: 'जीनोम इंडिया' कार्यक्रम ने 99 जातीय समूहों के 10,000 जीनोमों की अनुक्रमणिका पूरी की, जिसका उद्देश्य अन्य लक्ष्यों के अलावा दुर्लभ आनुवंशिक रोगों के उपचार की पहचान करना था।
- फेनोम इंडिया परियोजना: अखिल भारतीय 'फेनोम इंडिया' परियोजना ने कार्डियो-मेटाबोलिक रोगों के लिये पूर्वानुमान मॉडल को बढ़ाने हेतु 10,000 नमूने एकत्र किये हैं।
- बाल चिकित्सा दुर्लभ आनुवंशिकी पर मिशन (PRaGeD) कार्यक्रम: इस मिशन का उद्देश्य बच्चों को प्रभावित करने वाले आनुवंशिक रोगों के लिये लक्षित चिकित्सा विकसित करने हेतु नए जीन या वेरिएंट की पहचान करना है।
- विनियामक चुनौतियाँ: भारत में बायोबैंकिंग विनियमन, प्रेसिज़न मेडिसिन की पूरी क्षमता को साकार करने में महत्त्वपूर्ण बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
- ब्रिटेन, अमेरिका, जापान और कई यूरोपीय देशों के विपरीत, जिनके पास बायोबैंकिंग मुद्दों (जैसे, सूचित सहमति, गोपनीयता, डेटा संरक्षण) को संबोधित करने के लिये व्यापक नियम हैं, भारत का नियामक ढाँचा असंगत है।
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